Wednesday 27 July 2016

अभिमन्यु! चक्रव्यूह में फंस रहा है तू

महाभारत के चरित्र ऐसे रोचक हैं कि उन की अनुभुति विभिन्न घटनाओं में होती रहती है। महाभारत में अभिमन्यु को अर्जुन के पुत्र और श्री कृष्ण का भांजा होने का सौभाग्य प्राप्त है। वह सबसे बहादुर और प्रतिभाशाली सेनानी है। उस का बेटा आगे चलकर हसतनापूर का राजा बनता है परंतु वह स्वतः युद्ध के तेरहवें दिन चक्रव्युह में फंसकर मारा जाता है। उस में और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में समानता दिखाई देती हैं। अव्वल तो यह कि चक्रव्युह तोड़ने का ज्ञान उसके पास अधूरा था। जब श्री कृष्ण अपनी बहन सुभद्रा को यह शिक्षा दे रहे थे तो वह सो गईं इसलिए वे बीच ही में चुप हो गए। इस प्रकार गर्भावस्था में ज्ञान प्राप्त करने वाले अभिमन्यु की शिक्षा अधूरी रह गई।
अगर यह सब को आप अजीब लगता है तो मोदी जी की शिक्षा के बारे जानें। किसी साक्षात्कार में वह खुद स्वीकार करते नजर आएंगे कि स्कूल के बाद शिक्षा जारी नहीं रख सके। कभी वह दिल्ली में स्नातक करते दिखाई देंगे लेकिन डिग्री चीख चीख कर कह रही होगी कि वह नकली है और फिर गुजरात से स्नातकोत्तर की डिग्री का चमत्कार भी नजर आजाएगा अर्थात हमारे प्रधानमंत्री भी सतयुग के लेकर कलयुग तक जारी चमत्कारों की महत्वपूर्ण श्रंखला की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं। वर्तमान परिस्थिती पर नजर डाली जाए तो ऐसा लगता है कि कलयुग का अभिमन्यु भी बड़े आराम से चक्रव्युह में फंसता जा रहा है। एक जमाना था जब उसका हर तीर निशाने पर लगता था और अब सारे चूक रहे हैं।
राजनीतिक दलों के लिए चुनाव से अधिक महत्व का कोई राष्ट्रीय या मानवीय मुद्दा नहीं होता। वर्तमान में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश का चुनाव है। उत्तर प्रदेश में भाजपा ने पहले तो मायावती को अपने साथ लेने का भरपूर प्रयत्न किया परंतु जब इसमें सफलता नहीं मिली तो बसपा को अंदर से खोखला करने की योजना बनाई गई। इस रणनीति के तहत विधानसभा में बहुजन समाज पार्टी के प्रमुख नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को तोड़ा गया परंतु यह सिलसिला रुका नहीं। मौर्य के बाद आरके चौधरी और रवींद्र प्रताप त्रिपाठी को बसपा से अलग किया गया और उनके बाद राष्ट्रीय सचिव परम देव निकल गए। अमित शाह की समझ में यह बात नहीं आती कि इस तरह की हरकतों से मायावती के प्रति दलित मतदाताओं की सहानुभूति बढ़ सकती है। बिहार में इसका प्रदर्शन हो चुका है पूर्व मुख्यमंत्री मांझी की गद्दारी से नीतीश कुमार का लाभ हुवा और खुद मांझी की अपनी नाव डूब गई।
उत्तर प्रदेश में दयाशनकर सिंह के एक मूर्खतापूर्ण बयान ने बसपा को फिर से जीवित कर दिया। जितने लोग भाजपा से निकले थे उन सब ने मायावती पर टिकट बेचने का आरोप लगाया था और यह बहुत हद तक सही भी है। मायावती ही क्यों भाजपा ने क्या विजय माल्या से कुछ लिए बिना ही दान में अपने सदस्यों के मत इस भ्रष्ट पूंजीपति को दिलवा दिए होंगे? और दिल्ली से भागने में मदद की होगी? मौजूदा राजनीति को व्यापार के अलावा कुछ और समझने वाला दरअसल राजनीति की क ख ग से भी परिचित नहीं है। दया शंकर सिंह ने कोई नई बात नहीं कही बल्कि जो लोग रुपयों के बदले बिक कर बसपा को अलविदा कह रहे हैं उनकी वकालत करते हुए कहा कि उनके ऐसा करने का कारण मायावती द्वारा टिकटों की बिक्री है लेकिन साथ ही दया शंकर सिंह ने मायावती को वेश्या से बदतर भी कह दिया। दया शंकर के अपमानजनक बयान ने मायावती के सितारे चमका दिए। दया शंकर खुद तो डूबे लेकिन उनके साथ भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चे के अध्यक्ष दीप चंद राम ने इस्तीफा देकर संघ परिवार की सारी सोशल इन्जिनियरिंग चौपट कर दी।
दया शंकर सिंह ने जो कहा वह न तो पहली बार है और न भाजपा का हड़बड़ाहट नई है। अप्रैल के अंदर उत्तर प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष मधु मिश्रा ने भी अपने कार्य कर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि आज तुम्हारे सिर पर बैठ कर संविधान के सहारे जो लोग राज कर रहे हैं याद है वह कभी अपने जूते साफ किया करते थे। एक ज़माने तक हमें जिन के साथ बैठना भी स्वीकार नहीं था जल्द ही हमारे बच्चे उन्हें हुजूर कहकर पुकारेंगे। इस बयान के सामने आते ही भाजपा ने मधु मिश्रा को 6 साल के लिए पार्टी से बाहर निकाल दिया था दया शंकर के साथ भी यही किया गया लेकिन इस तरह के अपमानजनक व्यवहार के बाद भी अगर अमित शाह इस खुशफहमी का शिकार हैं कि दलित समाज भाजपा को या उनके उकसाने पर मायावती से अलग होने वालों का समर्थन करेगा तो इससे बड़ी बेवकूफी कोई और नहीं है।
उत्तर प्रदेश में सब से पहले चुनाव का बिगुल भाजपा ने जून ही में राष्ट्रीय कार्यकारिणी सम्मेलन आयोजित करके बजा दिया। इससे पहले कई लोग मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावा पेश कर चुके थे परंतु वरूण गांधी को डांट दिया गया। अदित्यनाथ की उपेक्षा और स्मृति ईरानी का नाम खारिज हो गया। इस प्रकार राजनाथ सिंह का नाम सबसे उभर कर सामने आया। सम्मेलन के बाद होने वाली जनसभा में राजनाथ सिंह का जनता ने उसी उत्साह के साथ स्वागत किया जैसा कि किसी ज़माने में मोदी जी का होता था। उनके भाषण से पहले नारे लगाने वालों का उत्साहित लोग चुप होने का नाम नहीं लेते थे। मोदी जी इससे ठिठक गए।
इसके बाद राजनाथ के नाम की घोषणा तो दूर दूसरे दिन रणनीति तय करने के लिए जो बैठक रखी गई थी उसमें भी उन्हें बैठने का मौका नहीं मिला इस लिए कि मोदी जी उन को अपने साथ लेकर दिल्ली आगए। उस के बाद से भाजपा को उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का उम्मीदवार नहीं मिला। राजनाथ सिंह बहुत शक्तिशाली उम्मीदवार है लेकिन मोदी और शाह की जोड़ी उन्हें अपने लिए खतरा मानती है। एक ओर जहां 27 साल बाद मरी पड़ी कांग्रेस की रथयात्रा का उत्तर प्रदेश में स्वागत हो रहा है वहीं भाजपा की नाव बीच मंजधार में डोल रही है।
दलितों पर अत्याचार की घटनाएं उत्तर प्रदेश से निकलकर गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक तक फैल गई हैं। उत्पत्ति गुजरात से हुई जहां गौ भक्ति के नशे में चूर मोदी भक्तों ने मृत गाय की खाल निकालने वाले दलितों की खुलेआम पिटाई कर दी। वैसे जो लोग गोमूत्र को अपने लिए अमृत समझते हैं उनसे क्या अपेक्षा की जाए? इन निर्दोष दलितों को आदर्श गुजरात पुलिस ने ही दंगाइयों के हवाले किया था। इस अत्याचार के खिलाफ देश भर में विरोध प्रदर्शन हुआ और संसद में इसकी गूंज सुनाई दी। मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल ने जब कुछ दे दिलाकर मामले को ठन्डा करने का प्रयत्न किया तो पीडितों ने कहा हमें मुआवजा नहीं न्याय चाहिए। अत्याचार करने वालों को हमारे हवाले करो ताकि हम बदला ले सकें। मोदी जी और शाह जी को खुद अपने राज्य में होने वाला यह अत्याचार नज़र नहीं आया, जबकि उसके खिलाफ कई दलितों ने आत्मदहन की कोशिश कर चुके हैं और उनमें से एक की मृत्यु भी हो गई।
उत्तर प्रदेश में आखलाक़ अहमद के परिजनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के बाद संघ परिवार के हौसले ऐसे बुलंद हुए कि उन्होंने कर्नाटक में एक दलित परिवार की गोमांस खाने के आरोप में पिटाई कर दी। बजरंग दल के 40 लोगों ने पहले तो बलराज और उसके परिजनों को एक घंटे तक बंधक बनाए रखा और फिर लाठी और हॉकी से उन पर टूट पड़े। इस हमले में बलराज का हाथ टूट गया और उसकी पत्नी व बेटी भी घायल हुए। कर्नाटक में गोमांस पर प्रतिबंध नहीं है। यहां से बड़े का मांस पड़ोसी राज्यों बल्कि दुनिया भर में निर्यात किया जाता है लेकिन वहां रहने वाले गरीबों को इससे वंचित रखा जा रहा है। दलितों पर अत्याचार के खिलाफ कानून के तहत जब 7 आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया तो चोरी और सीना जोरी दिखाते हुए बजरंग दल के साथ भाजपा के विधायक ने भी विरोध प्रदर्शन में भाग लिया।
असहिष्णुता और घृणा की यह आग महाराष्ट्र में भी फैल रही है। बीड जिले में दो दलित युवकों पर इसलिए 30 लोगों ने रास्ते में रोक कर मारा पीटा कि उसकी मोटर साइकिल पर डॉ बाबा साहब की तस्वीर लगी थी। यह बात अगर आप को चकित करती है कि आखिर डाक्टर बाबा साहब की तस्वीर में क्या खराबी है तो आप नहीं जानते कि अहमदनगर के पास कोपर्डी के स्थान पर एक नाबालिग लड़की का बलात्कार और हत्या हो गई थी। वहां से सैकड़ों मील दूर जिन बाइक सवारों को पीटा गया उनका संबंध बलात्कार से नहीं था बल्कि उस जाति से था जिस के व्यक्ति ने यह घृणित अपराध किया और उन्हें मारने वाले मराठा जाति के थे जिससे उस लडकी का संबंध था। बलात्कार और हत्या की सारी निंदा के बावजूद क्या मराठों हर दलित पर अपना गुस्सा उतारना योग्य है? लेकिन उन्हें कौन समझाए? केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री रामदास अठावले को तक खुद उनकी सहयोगी पार्टी भाजपा के मुख्यमंत्री ने कोपर्डी जाने से रोक दिया और कहा 8 दिन बाद हम वहां जाएंगे।
अठावले तो खैर दलित हैं लेकिन खुद ब्राह्मण फडनवीस भी अभी तक कोपर्डी जाने का साहस नहीं जुटा पाए। दलित समाज के अन्य दो नेताओं डॉक्टर प्रकाश अंबेडकर और योगेंद्र कवाड़े को भी पुलिस ने वहां जाने से रोक दिया। कोपर्डी ही तरह की एक घटना नई मुंबई में हुई जहां स्वपनिल सोनावने नाम के एक दलित युवक की केवल इसलिए हत्या कर दी गई कि वह एक आगरी समाज की लड़की से शादी करना चाहता था। स्वपनिल को लड़की के भाई जबरन पुलिस थाने ले गए वहां पर उसे डरा-धमका कर यह लिखने पर मजबूर किया गया कि वह लड़की से संपर्क नहीं रखेगा साथ ही यह भी लिख्वा लिया गया कि यदि उसके साथ कोई आकस्मिक घटना हो जाए तो कोई और जिम्मेदार नहीं होगा। इस वसीयत के बाद तो मानो उसकी हत्या का परवाना मिल गया। यह विडंबना है कि सारी दुनिया कोपर्डी तो जाना चाहती है लेकिन कोई सोनावने परिवार का दुख बांटने के लिए नवी मुंबई नहीं जाना चाहता है।
भाजप ने रोहित वेमुला से कोई सबक नहीं सीखा जिस के चलते जातीय घृणा का ज्वालामुखी अंदर ही अंदर पकने लगा और अब हम सब उस के कगार पर खड़े हैं। यह सत्तारूढ़ दल के अपने हाथों की कमाई है इसलिए वह पूर्णतः अक्षम है। इस गंभीर समस्या से ध्यान हटाने के लिए कभी डॉक्टर ज़ाकिर नायक के आईआरएफ से किसी को गिरफ्तार कर लिया जाता तो कभी कल्याण या परभनी से मुस्लिम युवकों को दाइश से संबंध का निराधार आरोप लगाकर उठा लिया जाता हे। दाइश के नाम से जो खेल चल रहा उसके बारे में खुद एटीएस ने विधि विभाग से मांग की है कि नकली शिकायत करने वालों को सजा दी जाए। पिछले 8 महीने में इस प्रकार की 300 शिकायतें प्राप्त हुई हैं और वह सब की सब नकली थीं। उनमें से एक 80 वर्षीय मस्जिद के इमाम के खिलाफ थी जो पिछले 20 वर्षों से इमामत कर रहे हैं। जांच के बाद पता चला कि मस्जिद ट्रस्ट के आपसी झगडे में जब एक गुट को महसूस हुआ कि इमाम साहब दूसरे के समर्थक हैं तो उसने इमाम साहब को आईएस का पक्षधर बना दिया।
मुंबई में सड़क पर कबाब बेचने वाले एक व्यक्ति के खिलाफ शिकायत आई तो पता चला कि उसका कारण एक सब्जी विक्रेता के कारोबार पर दुशप्रभाव था। एक कार्यालय में कोई महिला अपने सहकारी में रुचि रखती थी जब उसने देखा कि वह व्यक्ति किसी और की ओर आकर्षित है तो उस पर आईएसिस से संबंध का आरोप लगा दिया गया। यहां तक कि एक परिवार ने शादी के रिश्ते को स्वीकार करने से इंकार करने वालों को परेशान करने के लिए उसका रिश्ता आईएसिस से जोड़ दिया। पुलिस विभाग के इस स्पष्टिकर्ण से पता चलता है कि इन फर्जी शिकायतों के पीछे कहीं निजी दुश्मनी, कहीं व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा, कहीं हसद व जलन जैसे कारण हैं। यह तो व्यक्तिगत मामलों हैं परंतु जब खुद सरकार इसका राजनीतिक कारणों से विरोधियों को परेशान करने के लिए या अपनी असफलताओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए उसका दुर्उपयोग करने लगे तो मामला बहुत बिगड़ जाता है।
केरल के एबिन जेकब ने शिकायत की उसकी बहन मेरीन जेकब उर्फ मरियम और उसके पति बैक्सटन विन्सेंट जिसने इस्लाम कबूल करने के बाद अपना नाम याहया रख लिया गायब हो गए हैं इसलिए वे निश्चित रूप आईसिस से जाकर मिल गए होंगे। इस आरोप के आधार पर आईआरएफ के अर्शी कुरैशी को मुंबई आकर गिरफ्तार कर लेना कितनी मूर्खतापूर्ण कृति है, इसलिए कि यह दो साल पहले की घटना है। अर्शी कुरैशी को उन से जोड़कर आईएसीस से जोड़ने की कोशिश करना निंदनीय अपराध है । यह खेदजनक है कि शिकायत कर्ता का संबंध संघ परिवार तो दरकिनार हिंदू समाज से भी नहीं है।
केरल पुलिस की मदद से यह गंदा खेल खेलने वाली प्रांतीय सरकार भाजपा या कांग्रेस की नहीं बल्कि कम्युनिस्टों की है और उनसे संघ परिवार की दुश्मनी इतनी बढ़ी हुई है कि नरसंहार तक की नौबत आती रहती है। इसके बावजूद केरल की वामपंथी सरकार का संघ का कलपुर्जा बन कर निर्दोष लोगों को बल्कि संस्थाओं और धर्म को बदनाम करने की साजिश में शामिल हो जाना निंदनीय है। भाजपा को याद रखना चाहिए कि इस तरह के नींददायक इंजेक्शन से काम नहीं चलेगा जब यह जातिवाद का ज्वालामुखी फटेगा तो पूरे संघ परिवार को अपने साथ भस्म कर लेगा। यह भस्मासुर नाचते नाचते जब अपना हाथ अपने ही सिर पर रखेगा तो खुद भस्म हो जायेगा लेकिन उस समय तक यह अपने साथ कितनों को निगल लेगा यह कोई नहीं जानता। इस अवसर पर मोदी जी को चाहिए कि वह नीरो की तरह बंसी बजाने के बजाय अभिमन्यु की कथा से कुच्छ सीखें।
अभिमन्यु के बारे में यह प्रसिद्ध है कि वह चन्द्र देवता के पुत्र वरछा का अवतार था और साथ ही श्री कृष्ण का भांजा भी था इसलिए यह सवाल पैदा होता है कि मामा ने अपने भांजे को बचाया क्यों नहीं? इस की भी एक बहुत ही रोचक कथा है। अभिमन्यु अपने पिछले जन्म में अभिकसूरा नामक राक्षस था और वह कृष्ण के मामा कंस का मित्र था। राजा कंस अपने भांजे कृष्ण को मारना चाहता था लेकिन हुआ यह कि कृष्ण ने उस को ठिकाने लगा दिया। अभिकसूरा अपने दोस्त के खून का बदला लेने का इरादा किया तो श्रीकृष्ण ने उसे जादू से कीड़ा बनाकर एक डिब्बे में बंद कर दिया।
श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा ने अर्जुन से शादी के बाद गलती से वह डिब्बा खोल दिया। वह कीड़ा गर्भ में निवेशन कर गया और अभिमन्यु का जन्म हुआ। जब अर्जुन ने श्री कृष्ण से अपने बेटे की मृत्यु की शिकायत की तो उन्हों ने बताया कि मैं ने पिछले जन्म का बदला लिया है। मोदी जी ने भी मुख्यमंत्री के काल में जिन लोगों को जीना दूभर कर दिया था और अब भी जिस तरह राजनाथ और स्मृति ईरानी इत्यादि को नाराज कर रहे हैं तो उनके खिलाफ भी कई अभिकसूरा तैयार हो गए हैं। वे बदले की आग में जल रहे हैं और मोदी जी के चक्रव्युह में फंसने की प्रतिक्षा कर रहे हैं। मोदी जी को यह नहीं भूलना चाहिए कि जब वे फंस जाएंगे तो अर्जुन के समान न संघ परिवार कुछ कर सकेगा तथा न कृष्ण की तरह अमित शाह समर्थन में आएगा।

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