Wednesday 13 July 2016

डॉक्टर जाकिर नायकः खल नायक या महा नायक

एक साल पहले अगर यह पूछा जाता कि कनैह्या कुमार कौन है? तो जेएनयू के बाहर शायद ही कोई इस सवाल का सही जवाब दे पाता लेकिन आज हालत यह है कि न केवल देश का बच्चा बच्चा उससे परिचित है बल्कि विश्व मीडिया में भी वह अजनबी नाम नहीं है। इस दौरान कनैह्या कुमार ने कौन सा ऐसा कारनामा कर दिया कि जिसने उसे इस असाधारण प्रतिष्ठा का हकदार बना दिया? दरअसल कनैह्या कुमार ने तो सिर्फ यह है किया कि छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए अफजल गुरु की फांसी के खिलाफ आयोजित होने वाले एक प्रदर्शन में भाग लिया जिसमें दो चार सौ छात्र भी उपस्थित नहीं थे। वह विरोध भी कोई नया नहीं था बल्कि तीसरी बार हो रहा था और उसकी ओर कोई ध्यान देने की जरूरत तक महसूस नहीं करता था परंतु यह हुवा कि स्मृति ईरानी की लगातार गलतियों ने खुद उन्हें जीरो बना दिया और कनैह्या कुमार को हीरो बन गए।
कनैह्या के साथ यह किया गया कि पहले उस के भाषण के पीछे कश्मीर के प्रदर्शन के नारे जोड़े गए। इसके बाद दो बार अदालत के अंदर पुलिस की निगरानी में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की धज्जियां उड़ाते हुए उसे संघ के गुंडों ने पीटा। तिहाड़ जेल में अफजल गुरु के कमरे में उसे कैद किया गया और नतीजा यह हुआ कि कनैह्या कुमार युवाओं की आंखों का तारा बन गया। कनैह्या को जिस तरह देश द्रोही घोषित किया गया था उसी तरह डॉक्टर ज़ाकिर नायक को आतंकवादी करार दिया गया। डॉ जाकिर नायक इस्लाम के एक बुद्धिमान उपदेशक हैं। अंग्रेजी बोलने वाले युवाओं में वह बेहद लोकप्रिय हैं। बड़ी मेहनत से उन्होंने अपना टीवी चैनल स्थापित किया है जो दुनिया की कई भाषाओं में और विभिन्न देशों में देखा जाता है।
 डॉ जाकिर नायक को अव्वल तो बांग्लादेश के आक्रमणकारियों से जोड़कर खतरनाक आतंकवादी साबित करने की कोशिश की गई लेकिन आगे चल कर हर विस्फोट से उन्हें इस तरह जोड़ा जाने लगा कि आशंका पैदा हो गई कहीं उनके जन्म से पहले उत्पन्न होने वाले देश विभाजन का आरोप भी डॉक्टर साहब पर ना लगा दिया जाए। ये आरोप इतने बोदे थे कि सारी दुनिया में जगहंसाई का कारण बने।      उदहार्ण के तौर पर एक बांग्लादेशी आतंकवादी का फेसबुक पर उन्हें फोलों करना। फेसबुक पर अनुकरण करने वालों के आधार पर अगर लोगों को दोषी ठहराया जाने लगे तो शायद ही कोई महत्वपूर्ण राजनीतिक नेता या सेलिब्रिटी जेल के बाहर दिखे इसलिए कि हर आतंकवादी या बदमाश जिसे चाहे फेसबुक पर पसंद कर सकता है और इस मामले में किसी का किसी पर कोई जोर नहीं है। बांग्लादेश का ही एक और आतंकवादी श्रद्धा कपूर के पीछे पडा हुवा था और उस से मुलाकात भी कर चुका था तो क्या श्रद्धा की भी जांच होगी बल्कि कश्मीर में हिजबुल मुजाहिदीन का कमांडर बुरहान वाणी के फेसबुक पेज पर सेहवाग की तस्वीरें भी मिलती हैं तो विरेंद्र सेहवाग को भी गिरफ्तार किया जाएगा?
डॉ जाकिर नायक पर एक आरोप यह है कि हाफिज सईद की वेबसाइट पर उनके संस्थान का लिंक मौजूद था। अगर आईआरएफ की साइट पर हाफिज सईद का लिंक मौजूद होता तब तो जाकिर नायक को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता था लेकिन ऐसा नहीं है। इसके अलावा एक वीडियो क्लिप को शरारत करके संदर्भ से काट कर इस तरह पेश किया जा रहा है मानो वह आतंकवाद के समर्थक हैं। वास्तविकता तो यह है कि अगर उसे पूरा देखा जाए तो पता चलता है कि वह आतंकवाद के खिलाफ है और यू ट्यूब पर आतंकवाद की निंदा में डॉ जाकिर नायक के कई वीडियो मौजूद हैं। डॉ जाकिर नायक का दोष केवल यह है कि उनके आगे प्रधान मंत्री के गुरु श्री श्री रविशंकर अपना आर्ट ऑफ लिविंग भूल जाते हैं और ऐसा अनेक लोगों के साथ होता है। उनके खिलाफ जो रपट लिखवाई जा रही है इस विषय में अकबर इलाहाबादी बादी किया खूब कहा है ؎
रकीबों ने रपट लिखवाई है जा जा के थाने में कि अकबर नाम लेता है खुदा उस जमाने में
एनडीटीवी पर शेखर गुप्ता जैसे प्रसिद्ध पत्रकार के साथ डॉ जाकिर नायक का वाक दी टॉक वाला साक्षात्कार किसे याद नहीं। इसके बावजूद मीडिया ने उन्हें खतरनाक आतंकवादी साबित करने की सुपारी ले रखी थी। मीडिया में जो आग लगी हुई थी उसमें राजनाथ सिंह से किरन रजिजो तक और नायडू से लेकर फडनवीस तक सब तेल डाल रहे थे। इस तरह की मूर्खता से डॉ जाकिर नायक का तो कुछ नहीं बिगड़ा लेकिन संभव है स्मृति ईरानी की तरह उनमें से किसी की कुर्सी डांवा डोल हो जाए।
भाजपा वाले बार बार यह भूल जाते हैं कि शीशमहल के बासी दूसरों की ओर पत्थर नहीं उछालते। महाराष्ट्र भाजपा के बहुत दीग्गज नेता एकनाथ खड़से पर दाउद इबराहीम के साथ लगातार संपर्क का आरोप मुंबई पुलिस ने लगाया है। महाराष्ट्र में गृह मंत्रालय का कलमदान खुद मुख्यमंत्री फडनवीस के पास है। वह इस आरोप की जांच करवाकर तथ्यों को सामने क्यों नहीं लाते? सरकार एकनाथ खड़से की धमकी क्यों डर जाती है कि अगर उन्होंने ज़ुबान खोली तो राजनीतिक भूकंप पैदा हो जायेगा? संघियों को याद रखना चाहिए कि जिनकी अपनी चड्डी ढीली होती है वह दूसरों की धोती नहीं खींचते।
उक्त धमकी के अंदर जो बातें गुप्त हैं उन से हट कर देखें तो साध्वी प्रज्ञा आतंकवाद के आरोप में अब तक जेल के अंदर है और उन्हें जमानत देने से अदालत ने इंकार कर दिया है। राजनाथ से लेकर पृथ्वीराज चव्हाण तक न जाने किस किस भाजपा नेता के साथ प्रज्ञा की तस्वीरों से गूगल अटा पड़ा है। समझौता एक्सप्रेस विस्फोट की जिम्मेदारी लेने वाले असीमानंद को मोदी और भागवत के साथ हाथ मिलाते और गले मिलते हुए हर अखबार की वेबसाइट पर देखा जा सकता है। रास्वसंघ के नेता इंद्रेश कुमार पर एन आई ए आतंकवाद में लिप्त होने के गंभीर आरोप लगा चुकी और उन्हें संघ परिवार ने मुसलमानों की रिझाने की जिम्मेदारी दे रखी है।
गुजरात के दंगों का असली अपराधी वैसे तो इस दुनिया की अदालत से अब तक बचा है लेकिन इस नरसंहार के लिए जिन लोगों को विभिन्न अदालतें सजा सुना चुकी हैं उन्हें देखें। क्या उनमें कोई ऐसा भी है जो प्रधानमंत्री का मन पसंद ना हो? जो खुलेआम उन्हें अपना आदर्श न मानता हो? और जो संघ के पालन पोषण या शरण में ना हो? ये सारी बातें किसी जांच की मोहताज नहीं हैं। इस का प्रमाण अनगिनत समाचार लेख, न्यायिक बहस, गवाहों के बयान, जजों के फैसले और स्टिंग ऑपरेशन के वीडियो में फैला हुवा है। बाबू बजरंगी जैसे लोग प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि देने में बिल्कुल संकोच नहीं करते। नरोदा पाटिया के अंदर नरसंहार कि दोषी अदालत से आजीवन कारावास की सजा पाने वाली माया कोन्दानी को दंगे के बाद मंत्रालय से सम्मानित वाला अगर उस के अपराध में भागीदार नहीं है तो किसी का फेसबुक पर किसी के पिछे आना क्या मायने रखता है ?
महाराष्ट्र सरकार ने जब डॉ जाकिर नायक की जांच करने का फैसला किया तो उसे इस काम में 9 विभिन्न टीमों को लगाना पड़ा। इसका एक कारण तो यह है कि सरकारी अधिकारी काम बहुत धीमे करते हैं और दूसरा कारण यह है कि सामग्री बहुत अधिक थी। दैनिक हिन्दू के अनुसार चार दिनों की मेहनत के बाद महाराष्ट्र की खुफिया विभाग ने फिलहाल डॉक्टर ज़ाकिर नायक को क्लीन चिट दे दी है। यह क्लीन चिट इस मामले में अलग है कि आम तौर पर यह काम सरकार के दबाव में किया जाता था इस बार दबाव के खिलाफ किया गया है। विश्वसनिय सूत्रों के हवाले से हिंदू ने खबर दी है कि डॉ नायक के आगमन पर उनको न तो गिरफ्तार करना संभव है और न संभावना है। डॉ नायक के सभी साहित्य और वीडियो को देखने के बाद यह साबित तो नहीं हो सका कि आतंकवाद का कोई तत्व शामिल है इस लिए अब देखा जा रहा है कि उन्होंने किसी की भावना को आहत तो नहीं किया? और यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार होने वाले कौन कौन से युवा डॉक्टर साहब से प्रभावित थे हालांकि इस शोध का अदालत में कोई महत्व नहीं है वहाँ सार्वजनिक भावनाओं को नहीं वास्तविकता को प्राधान्य दिया जाता है। इससे पहले न्यायालय व्दारा सरकार की कई बार खिंचाई हो चुकी है।
 बांग्लादेश आतंकवादियों से संबंध पर पुर्वी अटॉर्नी जनरल सोली सोराब जी का रुख है कि पहले निष्पक्ष जांच हो और फिर नियमों को लागू किया जाए न कि पहले। ऐसा लगता है कि सोराब जी मीडिया के शत्रुतापूर्ण रवैये पर टिप्पणी फ़रमा रहे थे। धार्मिक घृणा के सवाल पर महाराष्ट्र के पूर्व एडवोकेट जनरल ने स्पष्ट किया कि अपने धर्म का पालन करना और प्रचार भारत के अंदर इंसान का मौलिक अधिकार है। हर कोई अपने धर्म को दूसरे से बेहतर कह सकता परंतु विभिन्न समुदायों के बीच झगड़ा लगाने से यह मौलिक अधिकार छिन जाता है। वरिष्ठ कानून विशेषज्ञ अमित देसाई इस बात पर जोर देते हैं कि किसी बयान को संदर्भ से काटकर नहीं बल्कि समग्र रुप से देखना चाहिए।
 प्रधानमंत्री ने घृणित भाषण को समाज के लिए हानिकारक बताया। इस बाबत विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत में भाषण के सिद्ध शब्दों के साथ प्रेक्षक के इरादे पर भी ध्यान दिया जाता है। अगर किसी का  जान बूझकर नहीं बल्कि अनजाने में मन आहत हुआ हो और ध्यान दिलाने पर वक्ता माफी मांग ले तो अदालत उसके साथ नरमी का व्यवहार करती है। जिस समय डॉ जाकिर नायक को लेकर हंगामा बरपा था 9 महीने के बाद हारदिक पटेल की रिहाई का रास्ता साफ हो रहा था। हारदिक पटेल ने तलवार हाथ में लेकर जिस तरह बलपूर्वक व्यवस्था को तहस-नहस करने की घोषणा की थी वह सब को याद है। बाद में बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी थी। इसीलिए उस पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया लेकिन अब वह भी स्वतंत्र हो रहा है ऐसे में किसी ऐसे व्यक्ति को आतंकवादी करार देने की कोशिश जिसके चाल चरित्र से कभी भी शांति भंग होने का खतरा उतपन्न न हुआ हो एक मूर्खता से अधिक कुछ और नहीं है।
डॉ नायक का मामला ऐसे समय में उठाया गया जब मीडिया के पास कोई भडकाऊ विषय नहीं था। उसके सामने पहली खबर तो प्रधानमंत्री के विदेशी दौरे की थी। अब देश के लोग इन तमाशों से इतना ऊब चुके हैं कि अफ्रीका तो दर किनार अमेरिकी दौरे पर भी ध्यान नहीं देते। दूसरा बड़ा आरोप कांग्रेस ने यह लगाया कि सरकार 45,000 हजार करोड के दूरसंचार घोटाले पर पर्दा डाल रही है। कांग्रेस की यूपीए सरकार ने 6 टेलीफोन कंपनियों पर 2006 से 2009 के बीच सरकारी बकाया भुगतान करने में कोताही के लिए जांच का आदेश दिया था। भाजपा ने विपक्ष के रूप में इस के कारण सरकारी खजाने के अनुमानित नुकसान पर खूब हंगामा किया था और कांग्रेस के ऊपर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप जड़ दिया था। उस समय यह खबर सभी मीडिया पर छाई हुई थी।
 इस विवाद पर अब महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट आ चुकी है और उस ने उन चार वर्षों में 12 हजार करोड से ज्यादा बकाया को स्वीकार कर लिया है अगर इन बकायाजात का  2016 तक का अनुमान लगाया जाए तो यह राशि 45000 हजार करोड बन जाती है। पहले जो लोग सरकारी खजाने के नुकसान पर शोक कर रहे थे वह खजाने के मालिक बने हुए हैं लेकिन सरकार इस राशि को जुर्माना सहित वसूल करने के बजाय पूंजीपतियों को सुविधा देने की कोशिश कर रही है। सरकार का ऐसा करना भ्रष्टाचार की अप्रत्यक्ष संरक्षण के समान है। कांग्रेस का आरोप है कि और इस तरह सरकार मित्र कंपनियों को सजा से बचाया जा रहा है और उनके अपराध का समर्थन किया जा रहा है। जब से नई सरकार सत्ता में आई है मीडिया में भ्रष्टाचार के आरोप उछाले नहीं दबाए जाते हैं। ऐसा लगता है डॉ जाकिर नायक के मामले को इस भ्रष्टाचार से ध्यान हटाने के लिए बड़ी चतुराई से इस्तेमाल किया गया लेकिन जब कश्मीर हिंसा की बड़ी खबर सामने आ गई तो वह भी काफूर हो गया।
वैसे यह भी एक सत्य है कि पिछले कुछ वर्षों के भीतर भारत की हद तक डॉ नायक का काम मांद पड़ने लगा था। इस दौरान कोई बड़ा सम्मेलन, प्रसिद्ध चर्च का आयोजन नहीं हुआ था। खाड़ी देशों में मिलने वाले पुरूस्कारों के अलावा उनके बारे में कोई खबर मीडिया में नहीं दिख रही थी लेकिन मीडिया की वर्तमान शरारत और सरकार की मूर्खता ने डॉ जाकिर नायक को फिर एक बार प्रसिद्धि की बुलंदियों पर पहुंचा दिया है। उनके पीस चैनल पर भारत में वैसे भी पाबंदी थी। कुछ केबल ऑपरेटरों के अलावा कोई नेटवर्क इसे प्रसारित नहीं कर रहा था इस लिए पहुँच सीमित थी लेकिन अब जो यह हंगामा खड़ा किया गया इसके बारे में जानने वालों की संख्या में असाधारण वृद्धि हुई है।
यह नए लोग अवश्य इंटरनेट या यू ट्यूब पर जाकर यह पता करने की कोशिश करेंगे कि आखिर सच्चाई क्या है? वे डॉक्टर नायक के वीडियो देखेंगे तो उनके सामने एक अलग व्यक्ति आएगी और दर्शक उनके द्वारा इस्लाम धर्म से भी परिचित होंगे। इस बात का प्रबल संभावना है कि अंततः यह संघर्ष बहुतों को इस्लाम के करीब करने में मददगार साबित हो लेकिन इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि इस दौरान देश में एक वर्जित चैनल के संस्थापक और मालिक सारे राष्ट्रीय चैनलों पर चर्चा का विषय बना रहा बल्कि छाया रहा। इसमें शक नहीं कि इन चार दिनों में राष्ट्रीय मीडिया पर किसी खल नायक का नहीं बल्कि एक महा नायक राज करता रहा।

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