Tuesday 22 September 2015

प्रधानमंत्री का अमरिकी दौरा: इस घर को आग लग गई घर के चिराग से

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिर एक बार अमेरिका के दौरे पर रवाना हो रहे हैं। पिछली बार की तरह वे पहले संयुक्त राष्ट्र की सामान्य बैठक को संबोधित करेंगे। इसके बाद वाशिंगटन के बजाय सिलिकॉन वैली जाएंगे। पिछली बार मैडिसन स्क्वायर न्यूयॉर्क में उन्होंने एक नाच रंग के कार्यक्रम में भाग लिया था लेकिन इस बार वह सैन जोन्स में स्थित सेप सेंटर के अंदर प्रतिष्ठित शैली में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित करेंगे। यह स्वागत योग्य बात है कि एक साल बाद सही प्रधानमंत्री को अपने देश की प्रतिष्ठा और सम्मान का विचार तो आया। परम्परा के अनुसार उद्योगपतियों से मुलाकात के अलावा फेसबुक कार्यालय का दौरा भी होगा। पिछले साल केवल सिखों ने प्रर्दशन किया था लेकिन इस बार गुजरात के रहने वाले पटेल समाज का आक्रोश भी उनका स्वागत करेगा।
गुजरात में जब से आरक्षण आंदोलन शुरू हुवा है प्रधान मंत्री ने अपना रुख बिहार और वाराणसी की ओर कर लिया। गुजराती जनता के दिलों पर राज्य करने का दावा करने वाले कथाकथित ह्रदय सम्राट ने पिछले तीन महीने में एक बार भी गुजरात के अंदर कदम रखने की हिम्मत नहीं की मगर गुजरात की आग उनके आगे अमेरिका पहुंच गई। गुजरात अगर मोदी जी का मैका है तो ससुराल दिल्ली है। वर्तमान में जहां एक ओर गुजरात से लेकर अमेरिका तक पटेल समाज आग बगूला है वहीं खुद मोदी जी ने देश को फासीवाद की आग में झोंक रखा है। अमरीका में मोदी का इंतजार करने वाले पटेल समुदाय के दिल में फफोले फूट रहे हैं। बकौल शायर؎
दिल के फफोले जल उठे सीने के दाग से इस घर को आग लग गई घर के चिराग से
अमेरिका के अंदर पटेल समाज ने परदेसी पटेल अमानत सोसायटी (ओपास) स्थापित करके प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन के अवसर पर अमेरिकी प्रशासन से विरोध प्रर्दशन की अनुमति प्राप्त कर ली है।  ओपास के तेजस पटेल के अनुसार वे लोग काले कपड़े पहनकर काले झंडे के साथ प्रदर्शन करेंगे। ओपास नेता बलदेव पटेल का कहना है कि पिछली बार हमने प्रधानमंत्री के लिए लाल कालीन बिछाया था इस बार हम काले झंडे लहराएँगे। एक और नेता सतीश पटेल ने कहा कि हम ने भारत विकास एसोसिएशन के भारत बराई से अपना वह चंदा लौटाने की मांग की है जो पिछले साल दिया था। इस मांग के जवाब में भारत बराई ने मैडिसन स्कवायर में किए गए तमाशे की कलई खोल दी। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम के लिए कुल एक हजार बीस करोड रुपये एकत्र किए गए थे जिसमें से एक हजार करोड तो कार्यक्रम के प्रबंधन पर खर्च हो गए और शेष राशि स्वच्छ भारत मिशन को सौंप दी गई मानो उस पर भाजपा ने हाथ साफ कर लिया। इससे सिध्द होता है कि वह देश भक्ति का प्रदर्शन नहीं बल्कि एक हजार करोड के खर्च से आयोजित किया गया मनोरंजन था।
पटेल समाज संयुक्त राष्ट्र कार्यालय से लेकर भारतीय दूतावास तक रैली निकालेगा इस के अलावा सैन जोस में भी विरोध करेगा। अमेरिका के विभिन्न शहरों में भी प्रदर्शन होंगे। इसके चलते सरकारी एजेंसियां ​​पटीलों को मोदी जी के कार्यक्रमों में लाने के बजाय दूर रखने में जुटी हुई हैं। अमेरिका में मौजूद मोदी भक्तों का कहना है कि हमें अपने आंतरिक समस्याओं को भारत की सीमा से बाहर नहीं लाना चाहिए मगर खुद प्रधानमंत्री जब पिछली सरकार पर फ्रांस, कनाडा, चीन और दुबई में खुलेआम आलोचना करते हैं तो यह मोदी भक्त उसे उचित ठहराते हुए बग़लें बजाते हैं। इसके विपरीत यदि कोई दूसरा उन की आलोचना करे तो देश भक्ति जाग उठती है और वह उस पर लानत मलामत करने लगते हैं।
मोदी जी आजकल सुभाष चंद्र बोस पर फिदा हैं। पिछले एक सप्ताह में उनके कार्यालय से बोस के परिजनों को 8 बार फोन किया गया परंतु गुजरात के लोह पुरुष और संघ परिवार के मन पसंद वल्लभ भाई पटेल के परिजनों को कोई नहीं पूछता। सरदार पटेल का पड़पोता (भतीजा) केवल पटेल अमेरिका में रहता है। उसका कहना है कि आरक्षण के कारण वह इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश से वंचित रहा और देश छोड़ने के लिए मजबूर हुवा। एक और नेता दिशेश पटेल भाजपा सरकार द्वारा गुजरात के अंदर पटेल प्रदर्शनकारियों पर अत्याचार से नाराज है। उन की शिकायत है कि हम अपने मानवाधिकारों के उल्लंघन से मोदी जी को अवगत करना चाहते हैं। इस आंदोलन में पटेल समुदाय के साथ गुजरात के ब्राह्मण भी शामिल हो गए हैं। यह एक तथ्य है कि अनेक कारणों से मोदी जी ने गुजरात के ब्राह्मणों का राजनीतिक प्रभाव खत्म कर दिया यही कारण है अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम के पिता दीपक पंड्या ने कहा कि वह अपने गांव के पटेल समुदाय का समर्थन कर रहे हैं। सारे राजनीतिक विशेषग्य आश्चर्य से गुजरातियों द्वारा मोदी जी का विरोध और ब्राह्मणों के अंदर भाजपा सरकार से नाराजगी का चमत्कार देख रहे हैं।
देश के अंदर अनगिनत समस्याएं हैं। उन की अनदेखा करके प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी इतने विदेशी दौरे क्यों करते हैं? इस सवाल का जवाब है कि संसद में जाकर बहस में भाग लेने की न उनमें क्षमता है और न साहस। अंतर्देशीय विषय में उनकी बातों पर कोई विश्वास नहीं करता न ध्यान देता है इसलिए खबर नहीं बनती। खबरों में रहने का सबसे आसान तरीका विदेश दौरा है लेकिन फिर सवाल उठता है कि खबरों में रहना क्यों जरूरी है? लोकतंत्र की मजबूरी यह है कि या तो जनता के काम करो या कम से कम शोर करो? मोदी जी ने दूसरा विकल्प पसंद फरमाया है। मोदी जी बहुत बुद्धिमान आदमी हैं, वे अपनी शक्ति और कमजोरी से वाकिफ हैं। वे जानते हैं कि कौन सा काम वह भलिभांति कर सकते हैं और क्या उन के बस का रोग नहीं है इसलिए अपने तरीके से वे राष्ट्र की सेवा में लगे हुए हैं अब यह सेवा जनता के लिए वरदान है या श्राप इसकी उन्हें कोई चिंता नहीं है । वह तो उसे अपना सौभागाय समझते हैं तथा नारसीसस की तरह खुद ही अपने सेल्फी को देखकर देखकर खुश होते रहते हैं।
मीडिया में आजकल मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के विदेशी दौरों की तुलना हो रही है। मनमोहन ने 10 सालों में 40 देशों का दौरा किया मोदी जी एक साल में 20 देश घूम आए। इस तरह अगर पांच साल का मौका उन्हें मिल जाए तो सेकडा पूरा हो जाएगा। यह भी कहा जा रहा है मोदी जी पर पिछले वर्ष अमेरिका यात्रा के दौरान 31 लेख लिखे गए जबकि मनमोहन जी के दौरे पर केवल 8 लेख प्रकाशित हुए थे। इन लेखों में क्या लिखा था? मोदी जी का विरोध कितना और मनमोहन की कितनी प्रशंसा की गई थी यह एक शोध का विषय है। इन लेखों में कितने स्वेच्छा से लिखे गए थे और कितने लिखवाए गए थे उसका विवरण भी रोचक हो सकता है। मोदी जी के टीवी पर दिखने का शौक ओबामा के दौरे पर नज़र आया। मोदी जी के साथ वे 255 घंटों तक टीवी के पर्दे दिखाई दिए जबकि मनमोहन युग में केवल 82 घंटों तक जनता को ओबामा का दर्शन हुवा था। सवाल यह उठता है कि सरकारी खर्च पर इस प्रचार से  मोदी जी और ओबामा को तो खूब भला हुआ लेकिन जनता को मनोरंजन के अलावा क्या मिला?
यह सार्वजनिक मनोरंजन मुफ्त नहीं था बल्कि उनके कल्याण पर ख़र्च होने वाले करों में से एक भारी- भरकम रकम प्रधानमंत्री के दौरों की भेंट चढ़ गई। ऑस्ट्रेलिया में मोदी जी के प्रतिनिधिमंडल को ठहराने पर साडे पांच करोड रुपये खर्च हुए थे और टैक्सी का बिल ढाई करोड रुपये था। मोदी जी भूटान के दौरे पर भी 41 लाख से अधिक फूंक आए। अमेरिका में उन्होंने ने रहने सहने पर 6 करोड से अधिक खर्च किए। पिछली बार मोदी जी न्यूयॉर्क पैलेस में रुके थे और वाईट हाऊस भी गए थे। इस बार ओबामा ने मोदी जी के बजाय पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को वाईट हाऊस का अतिथी बना लिया तो संभव है कि मोदी जी के चेलों ने सोचा हो क्यों न मोदी जी को ओबामा के साथ वाल्डरोफ आस्टोरया नामक होटल में ठहरा दिया जाए जहां पिछली बार ओबामा रूके थे संभवत: एकाध सेल्फी का मौका हाथ आजाए लेकिन दुर्भाग्य से ओबामा ने अपना इरादा बदल दिया और वह खुद न्यूयॉर्क पैलेस में चले गए जहां मोदी ठहरे थे। इस बात की संभावना है कि सैन जोन्स से वापसी के बाद मोदी और ओबामा की बातचीत वाल्डरोफ आस्टोरया में हो।
नाटक बाजी से लोग बहुत जल्दा उक्ता जाते हैं, इसलिए इसे एक ही शैली में बार बार दोहराया नहीं जा सकता है। फिल्मी दुनिया के लोग इसी लिए अपने फारमूले बारी बारी से अदलते बदलते रहते हैं। मोदी भक्तों ने भी सोचा बार बार नाच के बजाए अब की बार उद्योगपतियों की बैठक के अलावा स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी में भाषण रखवा दिया जाए। विश्वविद्यालय के अंदर मोदी जी बेशक जबरदस्त भाषण पढ़कर सुनाएंगे क्योंकि एमजे अकबर जैसे लेखकों की सेवाओं उन्होंने प्राप्त कर रखी हैं लेकिन अगर वहाँ किसी छात्र ने मोदी जी से उनकी शैक्षिक योग्यता पूछ ली तो समस्या खडी हो जाएगी। गुजरात के एक आरटीआई स्वयंसेवी ने जानकारी के अधिकार के तहत मोदी जी की 10 वीं, 12 वीं और एमए की मार्क शीट मांग ली तो उसे प्रधानमंत्री कार्यालय और चुनाव आयोग से दिलचस्प उत्तर प्राप्त हुए।
प्रधानमंत्री कार्यालय ने उसे प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर जाने की सलाह दी लेकिन इससे पहले वहां से एमए (राजनीति विज्ञान) वाला वाक्यांश निकाल दिया गया था जिस से पता चलता है कि दाल में कुछ काला है। चुनाव आयोग ने कहा कि वह प्रधानमंत्री के शपथपत्र को देखें। वह स्वयंसेवी अदालत में पहुंच गया तो वहां पर मौजूद न्यायाधीष एस ई रिजवी साहब ने फैसला सुनाया '' जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी है कि वह रिकॉर्ड में मौजूद जानकारी प्रदान करें लेकिन यह सूचना चूंकि सरकारी रिकॉर्ड में मौजूद नहीं है इसलिए प्रधानमंत्री कार्यालय प्रदान नहीं कर सकता।''  इस फैसले के खिलाफ अपील की अनुमति थी इसलिए वह भी कर दी गई तो जवाब मिला फिर से आरटीआई के तहत आवेदन करो इस प्रकार साबित हो गया कि दुनिया गोल है और मोदी जी योग्यता में कहीं न कहीं झोल है। मोदी भक्त काली दास, सूर दास और कबीर दास के उदाहरण दे कर कहते हैं कि उनके पास कौन सी डिग्री थी लेकिन वे भूल जाते हैं डिग्री का न होना समस्या नहीं है लेकिन झूठा दावा कर देना गंभीर अपराध है जिसका अनुसरण करने वाले संघ दास (स्मृति ईरानी, ​​विनोद तावड़े और नरेंद्र मोदी) खुलेआम घूम रहे हैं, लेकिन 'आप' के पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंग तोमर जेल में चक्की पीस रहे हैं।
इस साल मोदी जी के जन्मदिन के अवसर पर उनके शिक्षकों और छात्रों के भाव अखबारों की शोभा बने। संयोग से सारे शिक्षक स्कूल के थे हालांकि मोदी जी के कॉलेज के किसी प्रोफेसर को पकड़ कर उस से प्रशंसा करवा लेना कोई मुश्किल काम नहीं था परंतु ऐसा कोई व्यक्ति मौजूद तो हो। उनके साथ पढ़ने वाले एक छात्र ने कॉलेज के पहले साल का उल्लेख किया है लेकिन एमए करने के लिए अधिक 5 साल की अवधि आवश्यक होती है इसलिए क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि उनके कॉलेज का कोई सहपाठी छात्र प्रशंसा करने के लिए आगे नहीं आया। मोदी जी के साथ पढ़ने वालों उनके ने नाटकों में  अभिनय का उल्लेख किया है जिससे पता चलता है कि यह कीटाणु उनके अंदर बचपन से ही पाए जाते हैं। वैसे मोदी जी ने अभिनेता बनने के बजाय नेता बन जाने का अच्छा निर्णय लिया वरना यह ऐश और ऐसी प्रसिद्धि कैसे उपलब्ध होती?
सैन फ्रांसिस्को के क्षेत्र में मोदी जी 33 साल बाद जाने वाले पहले प्रधानमंत्री जरूर हैं लेकिन उनसे पहले 3 भारतीय प्रधानमंत्री इस क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं। 1949 में जबकि सिलिकॉन घाटी का अस्तित्व नहीं था पंडित जवाहर लाल नेहरू ने यूसी बर्कले यूनानी केंद्र में भाषण किया था। उनके बाद 1978 में मोरारजी देसाई और फिर 1982 में इंदिरा गांधी लॉस एंजिल्स की यात्रा कर चुकी हैं। 2000 में अटल जी भी वहाँ जाना चाहते थे मगर नहीं जा सके। संयोग वश मोरारजी देसाई का भी वहाँ के शिक्षित समाज ने विरोध करते हुए उन्हें भारतीय जनता का क़साई करार दिया था और अब वह मोदी जी के खिलाफ कमर कस रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, अमेरिकी विश्वविद्यालयों में दक्षिण एशिया के मामलों पर गहरी नजर रखने वाले 124 प्रोफेसरों ने एक बयान जारी करके मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों का हनन करने वाली मोदी सरकार से सावधान रहने की अपील की है। इन लोगों ने मोदी के दौरे और सिलिकॉन वैली के साथ भारत के व्यापार का अधिकार स्वीकार करते हुए गुजरात दंगों की याद दिलाई है।
खाड़ी के इस क्षेत्र में 2 लाख 70 हजार भारतीय मूल के लोग रहते हैं जिनमें से दो तिहाई का जन्म भारत में हुआ है। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण पदों पर हैं जैसे गूगल के प्रमुख सुन्दर पचाई और अडोब सिस्टम के सीईओ शनतानो नारायण। मोदी जी सेप केंद्र में साढ़े 18 हजार भारतीयों को संबोधित करने के अलावा उन उद्योगपतियों से भी बातचीत करेंगे। मोदी जी निवेशकों से बात तो बहुत करते हैं लेकिन प्रभाव का अनुमान निम्नलिखित आंकड़े से लगाया जा सकता है। अमेरिका और भारत के बीच 500 अरब डॉलर का कारोबार होने की उम्मीद थी, लेकिन केवल 100 अरब डॉलर हुआ जबकि इसकी तुलना में चीन ने अमेरिका के साथ 600 अरब डॉलर का कारोबार किया। चीन का निर्यात 450 अरब डॉलर है और आयात केवल 150 अरब डॉलर है। कहावत प्रसिद्ध है जो गरजते हैं वह बरसते नहीं।
इस दौरे पर मोदी जी फेसबुक कार्यालय में जाकर ज़क्रबरग से भी मिलेंगे। इस मुलाकात को असाधारण उपलब्धि करार दिया जा रहा है हालांकि पिछले दिनों घड़ी बनाने के आरोप में गिरफ्तार सूडानी छात्र अहमद का समर्थन करते हुए फेसबुक मार्क ज़क्रबरग ने कहा था '' एक वस्तु बनाने की क्षमता और इच्छा सराहनीय है ना कि दोष। भविष्य अहमद जैसे बच्चों का है। '' इसके बाद होनहार अहमद को ज़क्रबरग ने अपने कार्यालय में आने का निमंत्रण भी दिया। राष्ट्रपति ओबामा ने भी अहमद की सराहना करते हुए लिखा था। '' शानदार घड़ी अहमद। क्या आप इसे वाईट हाऊस में लाना चाहोगे? आप से दूसरे बच्चों को भी विज्ञान में प्रोत्साहन मिला है। इसी कारण अमेरिका महान है।''  यह घटना एक ओर जहां अमरिकी समाज में मौजूद निंदनीय इस्लामोफोबिया का पता देता है वहीं यह भी सिध्द करती है कि जहां राजनीतिज्ञ झूठी प्रतिष्ठा के लिए पापड़ बेलते फिरते हैं वहीं प्रतिष्ठा की देवी स्वत: आकर अहमद जैसे निस्वार्थ लोगों के चरण स्पर्श करती है।

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