Tuesday 29 September 2015

फेसबुक दीवार पर प्रधानमंत्री का सुंदर मुखडा (हास्य व्यंग)

(इस लेख के घटनाक्रम और बातचीत फर्जी हैं, वास्तविकता से इनका संबंध नहीं है)

टिकनोलोजी का ज़माना है। बच्चा बच्चा इंटरनेट का दीवाना है। प्रधानमंत्री भी इस शमा के परवाने हैं (क्योंकि वे भी बच्चों की तरह भोले भाले हैं परंतु पीढ़ी का अंतर तो बहरहाल है।) यदि आप किसी 80 साल के बुजुर्ग को एप्पल का एस-6 फोन भी थमा दें तो वह उससे बातचीत करने के अलावा कोई और काम नहीं ले सकेंगे। परंतु एक किशोर छात्र नोकिया के अर्ध आधुनिक फोन से न केवल फेसबुक पर चला जाएगा बल्कि यूट्यूब, ट्विटर और वाट्स अप आदि डाउनलोड करने के बाद अपनी पसंद के वीडियो गेम्स भी खेलने लगेगा। ऐसा ही कुछ मोदी जी के साथ हो रहा है जिसे एक उदाहरण की सहायता से समझा जा सकता है।
कल्पना करें कि एक अमीर कबीर दामाद का ससुर जेठालाल पटेल अपने नवासे नानो पटेल से कहता है बेटे में ताज महल देखना चाहता हूँ। तेजतर्रार नानो जवाब देता है नानाजी इसमें कौन सी मुश्किल है। आप अहमदाबाद से दिल्ली की फ़्लाईट लीजिए और वहां से कार में बैठकर आगरा निकल जाइए। घर बैठे मैं आपके लिए इंटरनेट पर विमान का टिकट आवंटित करवा देता हूँ। आप को यदि खिड़की के पास बैठना है तो वह सीट या आप गलियारे के पास बैठना चाहते हैं तो वह सीट भी ऑनलाइन बुक हो जाएगी। बोर्डिंग कार्ड मैं छाप दूंगा आप लाइन में लगने की परेशानी से बच जाएंगे। अपनी पसंद का खाने का यहाँ बैठे बैठे आर्डर दे दिया जाएगा। आप विमान में मांस कटलेट भी खा सकते हैं क्योंकि पृथ्वी के प्रतिबंध आसमान की ऊंचाइयों पर लागू नहीं होते। एयरपोर्ट टैक्सी सेवा का भुगतान कर दूंगा ताकि एक ड्राइवर नाम की तख्ती ले कर आप का इंतजार करे। वह आगरा के पांच सितारा होटल में पहुंचा देगा। कमरा बुक कर दूंगा, और फिर ताजमहल की सैर करवाने के बाद वही चालक दिल्ली हवाई अड्डे ले आएगा। आप जैसे जाएंगे वैसे ही प्रसन्न चित्त लौट आएंगे।
जेठा भाई उम्मीद कर रहा था कि नवासा साथ चलेगा लेकिन जब उन्होंने देखा कि वह कन्नी काट रहा है तो बोले बेटा यह तो खासा जटिल काम है। यह सब मुझसे नहीं होगा हम लोग तो एक झोले में कपड़े भरकर ट्रेन में सवार हो जाते थे और रास्ते में ढोकला फापड़ा खाते हुए आगरा पहुंच जाते थे। इसके बाद किसी सराय में रात बिताई दिन में रिक्शा पर बैठ कर ताजमहल देखा और फिर वापस रेलवे स्टेशन आ गए। नवासे को यह जवाब सुनकर बहुत निराशा हुई वह बोला लेकिन नाना अब जमाना बदल गया है। उस समय आप मेरी तरह कड़ियल जवान थे अब नहीं हैं। ट्रेन में ऐसी भीड़ नहीं होती रही होगी जैसे कि अब होती है। इसलिए आप इस रोमांच से परहेज करें और खुद को ख्रतरे में न डालें। इसी में आपकी और हमारी भलाई है।
नाना ने कहा अगर वाकई जमाना बदल गया है तो क्या ऐसा हो सकता है कि मैं आगरा जाए बिना यहीं बैठे बैठे ताजमहल देख लूँ? नानो बोला क्यों नहीं यह भी संभव है। हमारे गूगल बाबा को आप क्या समझते हैं वह इस कमरे में बैठे बैठे ताजमहल के दर्शन करवा देंगे। जेठा भाई ने पूछा वह कैसे? नानो चहक कर बोला मैं गूगल अर्थ पर ताजमहल टाइप करूंगा तो सेटेलाईट कैमरा आगरा पहुंच जाएगा। इस तरह आप यहीं इस कंप्यूटर के पर्दे पर ताजमहल का नज़ारा कर लेंगे। वहाँ जो कुछ हो रहा है वह सब आप को दिखाई देने लगेगा। जेठा भाई ने सोचा यह तो जबरदस्त बात है फिर उन्हें विचार आया कि उनके मिठाई की दुकान के पड़ोस में जो लड़का चाय बेचा करता था वह आजकल प्रधानमंत्री बना हुआ है और सुना है वह भी खासा कंप्यूटर सेवी है। जेठा भाई ने अपने नवासे नानो को आदेश दिया कि वह मोदी जी का विशेष फोन नंबर मिलाए।
जेठा भाई पटेल की गरजदार आवाज मोदी जी तुरंत पहचान गए और बोले जेठा सेठ केम छो? जेठा बोला यह तुम्हारी आवाज़ को क्या हो गया? मोदी जी बोले यार बड़े अच्छे समय में तुम ने फोन किया। वह अपने हारदिक को समझाओ इस के कारण पटेल सुनते ही मेरे दिल की धड़कन तेज हो जाती है। मुझे डर है कि कहीं दौरा ना पड़ जाए। जेठा भाई प्यार से बोले अरे नरू तेरे पास दिल ही कहाँ है जो धड़के या दौरा पड़े तेरी तो बस 56 इंच की छाती है, जिस में हवा भरी रहती है। मोदी जी ने जवाब दिया वह भी ठीक है कहिये कैसे याद किया? कहीं तुझे मेरे हाथ की मसाले वाली चाय तो नहीं याद आ गई। जेठा लाल ने कहा नहीं भाई अब वह चाय हमारे नसीब में कहां जिसे ओबामा पीते हैं। मोदी जी बोले वो भी सही है, लेकिन मैं तेरे लिये वह परेशानी उठा सकता हूँ बशर्ते कि ........ में समझ गया जेठा लाल ने कहा हारदिक को मैं समझा दूंगा मोदी जी बोले अच्छा तो बोल कैसे याद किया?
जेठा लाल ने कहा मेरा एक नवासा है बिल्कुल तुम्हारी तरह, जो मन में आए कह देता है। आज कह रहा था कि मैं गूगल पर ताजमहल देख सकता हूँ? क्या यह सच है या बस यूं ही चुनावी जुमला है? मोदी जी बोले जेठा सेठ तुम्हारा नवासा बहुत बुद्धिमान है और सच बोलता है उसे मेरे पास भेज दे। जेठा लाल ने कहा, यदि ऐसा है तो मैं इसे नहीं भेज सकता। मोदी जी ने चौंककर पूछा क्यों? मैं उसे चाय की दुकान पर नहीं बुला रहा हूँ। तुझे तो पता ही है में प्रधानमंत्री बन गया हूँ। जेठा ने उत्तर दिया नहीं वह दूसरी बात जो तुम ने कही ना कि सच बोलता है, मैं चाहता हूँ कि आगे भी सच बोलने का सिलसिला जारी रहे इसलिए रोक रहा हूँ। मोदी बोले खैर कोई बात नहीं लेकिन यह सच है कि तुम गूगल अर्थ की मदद से आगरा जाए बिना ताजमहल देख सकते हो। गूगल प्रमुख सुन्दर पिचाई मेरा प्रशंसक है। मैं तुम्हें सीधे गूगल के न्यूयॉर्क कार्यालय में भेज दूंगा बल्कि अगर एक महीने रुक सको दिल्ली से सीधे सैन फ्रांसिस्को रवाना कर सकता हूँ। मैं ने पहली बार यह सेवा शुरू करवाई है। मैं तुम्हें पहला यात्री बना दूँगा जो मुफ्त में यात्रा करेगा। हमारा राजदूत हवाई अड्डे से तुम्हें गूगल कार्यालय में ले जाएगा और तुम वहाँ पर ताजमहल को देख लेना।
इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि आजकल सरकारी स्तर पर टेक्नोलोजी का उपयोग कैसे हो रहा है। जो काम घर में बैठ कर करना चाहिए इसके लिए दुनिया भर की सैर की जा रही है। यही बात 'आप' के अरविंद केजरीवाल ने मोदी जी की यात्रा पर टिप्पणी करते हुए कही लेकिन उनसे पहले भाजपा के यशवंत सिंह भी यह कह चुके हैं कि अगर हम 'मेक इन इंडिया' के बजाय '' मैक इंडिया'' पर ध्यान दें तो हमें किसी के दरवाजे पर जाकर हाथ फैलाने की जरूरत नहीं होगी बल्कि लोग स्वतः लाइन लगाकर हमारे देश में निवेश करने के लिए आएंगे लेकिन यदि हम शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार और अन्य सुधार की ओर ध्यान नहीं दें तो लाख यात्राओं और बैठकों के बावजूद एक अतिरिक्त फूटी कौड़ी नहीं आएगी। प्रधानमंत्री की मेहनत के बिना जो निवेश होना है होता रहेगा।
मोदी जी ने गूगल के कार्यालय में जाकर पहले ताजमहल देखा लेकिन फिर उन्हें विचार आया होगा कि यह तो मुस्लिम राजा की यादगार है इसलिए वे बोले मुझे बनारस के घाट दिखलाओ। यह सवाल मोदी जी की बुद्धिमत्ता का प्रमाण है। मोदी जी के वाराणसी दौरे से पहले उनके चुनाव क्षेत्र का सौंदर्यीकरण शुरू हो जाता है इसलिए उन्हें न पानी में तैरते लावारिस शव नजर आते हैं और न कचरे के ढेर। गूगल मैप पर अचानक मोदी जी ने बनारस देखने की फरमाइश कर के स्वच्छ भारत अभियान की कलई खोल दी लेकिन भूल गए कि उस समय जो कुछ उन्होंने देखा उसका नजारा दुनिया भर के कई सारे लोगों ने किया और सब ने क्योटो के शैली में निर्मित होने वाले सपने की दुर्दशा देख ली।
बनारस के बाद मोदी जी ने कहा मैं पटना के पास खगोल नामक गांव देखना चाहता हूँ। यह नाम गूगल वालों ने पहली बार सुना था इसलिए वह परेशान हो गए। गूगल में कार्यरत बांके बिहारी ने कहा श्रीमान पटना देख लीजिए आप खगोल क्यों देखना चाहते हैं? मोदी जी बोले पटना में लालू का डंका बजता है मैं वह सुनना या देखना नहीं चाहता। तुम मुझे खगोल ले चलो। बांके बिहारी ने इस गांव का नाम भी नहीं सुना था इसलिए पूछा लेकिन खगोल में ऐसा क्या है जो आप उसे देखना चाहते हैं? मोदी जी बोले आप बिहार का इतिहास नहीं जानते। किसी जमाने में वहीं आर्य भट्ट की प्रयोगशाला थी और वह उस प्रयोगशाला में बैठ कर सितारों की चाल देखा करते थे। बांके बोला लेकिन श्रीमान यह तो बीते युग की बात है। अब तो वहां न आर्य भट्ट है न प्रयोगशाला  फिलहाल तो नीतीश कुमार ही नीतीश कुमार है।
मोदी जी बोले यह तुम मुझे बता रहे हो। नीतीश को हम अच्छी तरह जानते हैं वह नमक हराम हमारी मदद से ही तो मुख्यमंत्री बना था लेकिन अब जमाना बदल गया है। अब हमें उसकी जरूरत नहीं है। हम अपने बलबूते पर फिर बिहार में आर्य भट्ट की सरकार स्थापित करने जा रहे हैं। गूगल के प्रमुख सुन्दर पचाई ने आश्चर्य से पूछा क्या? क्या आप आर्य भट्ट को चिता से निकाल लाएंगे? मोदी जी बोले आप अमेरिका में आकर अपने धर्म सिद्धांत भूल गए। आप नहीं जानते हम लोग पुर्नजन्म में विश्वास करते हैं। मुझे विश्वास है कि आर्य भट्ट फिर से जन्म ले चुका है अब उसे खोजकर बिहार की गद्दी पर बैठाना शेष है सो मैं कर दूंगा।
फेसबुक का मार्क ज़ोकर्बरग जो बड़ी देर से चुप बैठा था बीच में बोल पड़ा। हाँ अगर ऐसा है तो आप उसके साथ एक सेल्फी लेकर फेसबुक पर डाल दीजिए। इसका भी काम हो जायेगा, आपका और मेरा भी। सुन्दर पचाई बोला लेकिन सेल्फी लेने के लिए उसे ढूंढना पडेगा वह कैसे होगा? मोदी जी बोले आसमान में उड़ने वाले जमीनी वास्तविकताओं नहीं जानते। बिहार के चुनावों की घोषणा हो चुकी है। मैं हर सप्ताह दो बार बिहार जाकर वहाँ के गली-कूचों में यह घोषणा करता फिरूँगा कि देखो में अमेरिका में जाकर भी बिहारियों को नहीं भूला। मैं ने वहां से आर्य भट्ट की प्रयोगशाला को गूगल के नक्शे पर देखा है ताकि चुनाव के बाद वहाँ अब्दुल कलाम के नाम पर एक प्रयोगशाला स्थापित की जाए। मुझे विश्वास है कि इस घोषणा को सुनकर कई आर्य भट्ट टिकट की लाइन में लग जाएंगे। बांके बिहारी को यह बात नागवार गुज़री वह बोला अब्दुल कलाम के नाम पर क्यों? आर्य भट्ट के नाम पर क्यों नहीं?
मोदी जी बोले तुम नहीं समझोगे। आर्य भट्ट का वंशज ब्राह्मण समाज हमारी मुट्ठी में है अब हमें मुसलमानों को निकट करना है। शाहनवाज हुसैन इस काम को बड़ी लगन से कर रहा है। उसी ने अब्दुल कलाम के नाम पर प्रयोगशाला स्थापित करने की सलाह दी है। सुंदर इस दौरान गूगल साइट पर आर्य भट्ट के बारे में पढ़ा चुका था वह बोला आर्य भट्ट का आविष्कार शून्य भी तो आखिर शून्य ही है। यह सुनकर बांके बिहारी की बिहारियत जाग उठी। राष्ट्रीय आहम से लिप्त बांके बिहारी ने कहा यह बात सही है कि अकेले शून्य का कोई महत्व नहीं है। अपने दाएँ अंक को भी वह प्रभावित नहीं करता लेकिन फिलहाल इसके दाएं ओर गूगल है इसलिए हर शून्य के जुड़ने से हमारे मूल्य में दस गुना वृद्धि हो जाएगी। बांके बिहारी के तर्क से खुश होकर सुन्दर बोला बांके मैं तो तुम्हें भी मोदी जी की तरह समझता था लेकिन तुम तो बड़े बुद्धिमान आदमी निकले।
मोदी जी ने कहा यही तो मैं कह रहा हूँ हम इस प्रयोगशाला को स्थापित करके उसके बाईं ओर एक के बाद एक शून्य जोड़ते चले जाएंगे जिससे बिहार का नाम भी गुजरात की तरह सारी दुनिया में रौशन हो जाएगा। ज़ोकर्बरग बोला लेकिन श्रीमान गुजरात का नाम कहां उज्ज्वल है? वहाँ तो शून्य तक का आविष्कार नहीं हुआ। मैं ने जब से आप के साथ हाथ मिलाया है लोग मुझे हाथ साफ करने वाली कीटनाशक दवाएं भेज रहे हैं ताकि मैं अपनी आस्तीन पर लगे गुजरात के मासूमों का खून धो सकूँ। मोदी जी मुस्कुरा कर बोले आप इन दंगों को भूल जाओ जैसा कि मैं भूल चुका हूँ और अगर कोई पूछ ले कि हाथ पर क्या लगा है तो कह देना यह सुंदर मेहंदी मोदी जी लगाकर गए हैं। ज़ोकर्बरग ने कहा लेकिन श्रीमान यह अमेरिका है? मोदी जी बोले इससे क्या फर्क पड़ता है। यह महबूब की मेहंदी है जो हर जगह रंग लाती है। ज़ोकर्बरग ने सोचा इन्हें समझाना मुश्किल है मैं टाट्टू कह दूँगा।
अहमदाबाद में नानो पटेल अपने नाना के साथ टीवी के सामने बैठा यह दृश्य देख रहा था। जेठा भाई ने पूछा नानो तुम क्या कर रहे हो? नानो बोला मोदी जी का भाषण देख रहा हूं? जेठा लाल ने बिगड़कर कहा भाषण तो सुनने की चीज़ होती है। नानो बोला जी नहीं नाना। मोदी जी के मन की बात तो सुनने के लिए होती है लेकिन अमेरिका में जाकर वे जो कुछ करते हैं वे तो देखने लायक होता है यह देखिए मोदी जी क्या कह रहे हैं। मैं तुम्हारे बीच खड़ा हूँ। आप लोग मुझे प्रमाणपत्र दीजिए। जेठा बोला इसमें आश्चर्य की क्या बात है नानो यह तो स्वाभाविक अपेक्षा है। नानो ने कहा कैसी बात करते हैं नाना जी सर्टिफिकेट कौन मांगता है शिक्षक या छात्र? मोदी जी अपने देश में शिक्षक दिवस के अवसर पर शिक्षक बन जाते हैं और विदेश में हाथ पसार कर अपने अज्ञानी भक्तों से प्रमाणपत्र मांगते हैं।
जेठा बोला जैसे चाय इसी को पिलाई जा सकती है जो उसके इछुक हो, उसी तरह प्रमाणपत्र भी इसी से मांगा जा सकता है जो उसे प्रदान कर सके। हम लोग अपनी मिठाई की दुकान उसी मेले में लगाते थे जहां वह बिकती थी। किसी जमाने में हम दोनों दशहरा के अवसर पर रामलीला भी हम उसी मुहल्ले में खेलते थे जहां दक्षिणा मिलती थी। कभी मैं राम बन जाया करता था और नरेंद्र रावण तो कभी नरेंद्र राम की भूमिका निभाता था और मैं रावण बन जाता था। यह दुनिया है दुनिया। यहाँ यही सब चलता है।
 नानो ने देखा मोदी जी टीवी के पर्दे पर मार्क ज़ोकर्बरग से गले मिल रहे हैं। उसने पूछा नाना जी यह अपके दोस्त मोदी जी बिदेस जाते हैं तो हर ऐरे गैरे नत्थू खैरे गोरे से लिपट जाते हैं। मैं ने उन्हें किसी भारतीय से गले मिलते नहीं देखा उसका क्या कारण है? जेठा इस सवाल पर गंभीर हो गया और आकाश की ओर देखने लगा। नानो ने कहा क्षमा नानाजी शायद आपको मेरी बात बुरी लगी इसलिये क्षमा मांगता हूँ। जेठा ने कहा नहीं बेटा ऐसी बात नहीं मुझे पता है अब यह जादू की झप्पी मेरा भाग्य नहीं बन सकती। नानो ने पूछा वह क्यों? जेठा ने कहा बेटे बात यह है कि हमारे विश्वास और सिद्धांत समय और स्थान के अनुसार बदल जाते हैं। एक दूसरे के प्रति हमारा व्यवहार भी बदलता रहता है। एक ज़माने में नरेंद्र मुझे चाय पिलाता था अब ओबामा को पिलाता है। गौ हत्या हमारे देश में हराम है लेकिन वही मांस अन्य देशों को निर्यात करके अजनबी लोगों को खिलाना वैध है।
नानो बोला लेकिन विकिपीडिया में तो मैं यह सब नहीं पढ़ा। नानो और नाना की बातचीत गंभीर होती जा रही थी। जेठा ने कहा पुत्र इस ज्ञान की अनुभूति तुम्हें गूगल बाबा नहीं करा सकते इसके लिए तुम्हें मनु बाबा का चरण सपर्श करना होगा। नानो ने पूछा मनु बाबा? उनका नाम तो मैं कभी नहीं सुना जबकि आए दिन टेलीविजन पर आसा राम बापू की तरह किसी न किसी बाबा बल्कि बाबी का नाम भी सुनाई देता है। जेठा ने चौंककर पूछा परवीन बॉबी तो कब की मर खप गई यह नई बॉबी कहां से आ गई। नानो बोला बॉबी मतलब बाबा की धर्म पत्नी। आजकल तो उनका चर्चा कुछ ज्यादा ही हो रहा है कभी राधा माँ तो कभी साध्वी प्राची, जब टीवी वालों को कोई नहीं मिलता तो वह उनके पीछे पड़ जाते हैं ख़ैर आप मनु भाई के बारे में बता रहे थे। जेठा लाल ने कहा कि यह मनु भाई तुम्हारे मुन्ना भाई की तरह फर्जी एमबीबीएस की डिग्री वाला नहीं है बल्कि यह इस विद्वान ने विश्व प्रसिद्ध शास्त्र मनु सम्रती की रचना की है। इस का ज्ञान प्राप्ति के लिए तुम्हें प्लेटो के बजाय चाणक्य का चेला बनना पडेगा। यह संस्कार तुम्हें संघ की शाखा में मिलेंगे जहां से प्रशिक्षण लेकर मेरा दोस्त प्रधानमंत्री बन गया।

USA Tour of PM (Urdu)

  (طنزو مزاح)
(اس مضمون کے واقعات و مکالمے فرضی ہیں  ، حقیقت سے ان کا  تعلق اتفاقی ہے)
ٹیکنولوجی کا زمانہ ہے۔ بچہ بچہ انٹر نیٹ کا دیوانہ ہے۔ وزیراعظم بھی اس شمع کے پروانے ہیں ( اس لئے کہ وہ بھی بچوں کی مانند ناپختہ  کارہیں) ۔  لیکن نسل کا فرق تو بہر حال ہوتا ہی ہے۔ اگر آپ کسی ۸۰ سال کے بزرگ کو ایپل کا ایس ۶Good initiative نوعمر طالب علم نوکیا کےنیم جدید فون سے نہ صرف فیس بک پر چلا جائیگا بلکہ   یوٹیوب ، ٹویٹر اور واٹس اپ وغیرہ ڈاؤن لوڈ کرنے کے بعد اپنی پسند  کے ویڈیو گیمس بھی کھیلنے لگے گا۔ ایسا ہی کچھ مودی جی کے ساتھ ہورہا ہے جسے ایک مثال کی مدد سے سمجھا جاسکتا ہے۔
فرض کیجئے کہ ایک امیر کبیر داماد کا خسر  جیٹھالال پٹیل اپنے نواسے نانو پٹیل  سے کہتا ہے بیٹے میں تاج محل دیکھنا چاہتا ہوں ۔ تیز طرارنا نو جواب دیتا ہے ناناجی اس میں کون سی مشکل ہے ۔ آپ احمدآباد سے دہلی کی فلائیٹ لیجئے اور وہاں سے کار میں بیٹھ کر آگرہ نکل جائیے۔ میں گھر بیٹھے آپ کیلئے انٹر نیٹ پر ہوائی جہاز کاٹکٹ مختص کروادیتا ہوں۔  آپ کو اگر کھڑکی کے پاس بیٹھنا ہے تو وہ نشست یا اگر آپ راہداری کے قریب بیٹھنا چاہتے ہیں تووہ سیٹ بھی  آن لائن  بک ہو جائیگی  ۔ بورڈنگ کارڈ میں چھاپ دوں گا آپ کو لائن میں لگنے زحمت بھی نہیں کرنی پڑے گی۔ آپ کی پسند کا کھانا یہاں بیٹھے بیٹھے آرڈر کردیا جائیگا۔آپ ہوائی جہاز میں بیف کٹلیٹ بھی کھا سکتے ہیں اس لئے کہ زمین کی پابندیاں آسمان کی بلندیوں پر نافذ نہیں ہوتیں۔ ائیر پورٹ پر ٹیکسی سروس کی ادائیگی کردوں گا تاکہ  ایک ڈرائیور نام کی تختی لے کرآپ کا  انتظار کرے۔ وہ آپ کو آگرہ کی پانچ ستارہ ہوٹل میں پہنچا دے گا ۔ کمرہ  میں بک کردوں گا اور پھر آپ کو تاج محل کی سیر کروانے کے بعد وہی ڈرائیور دہلی ہوائی اڈے لے آئیگا۔ آپ جیسے جائیں گے ویسے  ہی ہشاش بشاش لوٹ آئیں گے۔
جیٹھا بھائی توقع کررہا تھا کہ نواسہ ساتھ چلے گا لیکن جب انہوں  نے دیکھا کہ وہ کنی کاٹ رہا تو بولےبیٹا یہ تو خاصہ پیچیدہ کام ہے ۔ یہ سب مجھ سے نہیں ہوگا ہم لوگ تو ایک جھولے میں کپڑے بھر کر ٹرین میں سوار ہوجاتے تھے اور راستے میں ڈھوکلا پھاپڑا  کھاتے ہوئے آگرہ پہنچ جاتے تھے ۔ اس کے بعد کسی سرائے میں رات گزاری دن میں رکشا پر بیٹھ کر تاج محل دیکھا  اور پھرواپس ریلوے اسٹیشن  آگئے ۔ نواسے کو یہ جواب سن کر بہت مایوسی ہوئی وہ بولا لیکن نانا اب زمانہ بدل گیا ہے۔  اس وقت آپ میری طرح کڑیل جوان تھے اب نہیں ہیں۔ ٹرین میں ایسی بھیڑ بھی نہیں ہوتی رہی ہوگی جیسے کہ اب ہوتی ہے۔  اس لئے آپ اس مہم جوئی سے گریز فرمائیں  اور اپنے آپ کوخطرات میں نہ ڈالیں۔  اس میں آپ کی عافیت اور ہماری بھلائی ہے۔
نانا نے کہا اگر واقعی زمانہ بدل گیا ہے تو کیا کوئی ایسی صورت نہیں  بن سکتی ہے کہ میں آگرہ جائے بغیر یہیں بیٹھے  بیٹھے تاج محل دیکھ لوں ؟نا نو بولا کیوں نہیں یہ بھی ممکن ہے ۔ ہمارے گوگل بابا کو آپ کیا سمجھتے ہیں وہ اس کمرے میں بیٹھے بیٹھے آپ کو تاج محل کے درشن کروادیں گے۔ جیٹھا بھائی نے پوچھا وہ کیسے؟ نانوچہک کر بولامیں گوگل ارتھ پر تاج محل ٹائپ کروں  گااور سیٹیلائیٹ کیمرہ آگرہ پہنچ جائیگا ۔ اس طرح آپ یہیں اس کمپیوٹر کے پردے پر تاج محل کا نظارہ کرلیں گے ۔ وہاں جو کچھ ہورہا ہے وہ سب آپ کو دکھائی دینے لگے گا۔ جیٹھا بھائی نے سوچا یہ تو زبردست بات ہے پھر انہیں خیال آیا کہ ان کے مٹھائی کی دوکان کے پڑوس میں جو لڑکا چائے بیچا کرتا تھا وہ آج کل وزیراعظم بنا ہوا ہے اور سنا ہے وہ بھی خاصہ کمپیوٹر سیوی ہے۔ جیٹھا بھائی  نے اپنے نواسے نانو کو   حکم دیا کہ وہ مودی جی کے خاص فون کا  نمبر ملائے۔
جیٹھا بھائی  پٹیل کی گرجدار آواز مودی جی فوراً پہچان گئے اور بولے جیٹھا سیٹھ  کیم چھو؟ جیٹھا بولا یہ تمہاری آواز کو کیا ہو گیا؟ مودی جی بولےیاربڑے اچھے وقت پر تم نے فون کیا ۔ وہ اپنے ہاردک کو سمجھاؤ اس کی وجہ سےپٹیل سنتے ہی میرے  دل کی دھڑکن تیز ہوجاتی ہے۔ مجھے ڈر ہے کہ کہیں  دورے  نہ پڑنے لگیں ۔ جیٹھا بھائی بولے ارے نرو تیرے پاس دل ہی کہاں ہے جو دھڑکے یا اس پر دورہ پڑیں تیری تو بس ۵۶ انچ کی چھاتی ہے جس میں ہوا بھری  رہتی ہے۔ مودی جی نے جواب دیا وہ بھی ٹھیک ہے کہیے کیسے یاد کیا؟ کہیں تجھے میرے کی ہاتھ مسالے والی چائے تو نہیں یاد آگئی ۔  جیٹھا لال نے کہا نہیں بھائی اب وہ چائے ہمارے نصیب میں کہاں  جسے اوبامہ نوش فرماتےہیں ۔  مودی  جی بولے  وہ بھی درست ہے مگر میں تیرےلئے وہ زحمت کرسکتا ہوں بشرطیکہ کہ تو ۰۰۰۰ میں سمجھ گیا جیٹھا لال نے کہا میں ہاردک کو سمجھا دوں گا ۔مودی جی بولے اچھا تو بول کیسے یاد کیا؟
جیٹھا لال نے کہا میرا ایک نواسہ ہے بالکل تمہاری طرح ،جو من میں آئے کہہ دیتا ہے۔ آج کہہ رہاتھا کہ  میں گوگل پر تاج محل دیکھ سکتا ہوں؟ کیا یہ سچ ہے یا بس یوں ہی انتخابی جملہ ہے؟ مودی جی بولے جیٹھا لال پٹیل تمہارا نواسہ بہت ذہین ہےاور سچ بولتا ہے اسے میرے پاس بھیج دے ۔ جیٹھا لال نے کہا اگر ایسا ہے تو میں اسے نہیں بھیج سکتا ۔ مودی جی نے چونک کر پوچھا کیوں؟  میں اسے چائے کی دوکان پر نہیں بلارہا ہوں ۔ تجھے تو پتہ ہی ہے میں وزیراعظم بن گیا ہوں۔ جیٹھا نے جواب دیا نہیں وہ دوسری بات جو تم نے کہی نا کہ سچ بولتا ہے، میں چاہتا ہوں کہ آگے بھی سچ بولنے کا سلسلہ جاری رہے اس لئے روک رہا ہوں۔ مودی بولے خیر کوئی بات نہیں لیکن یہ سچ ہے کہ تم  گوگل ارتھ کی مدد سے آگرہ جائے بغیر تاج محل دیکھ سکتے ہو۔ گوگل کا سربراہ سندر پچائی میرا بہت بڑا مداح ہے۔ میں تمہیں سیدھےگوگل کے نیویارک  دفتر میں بھیج دوں گا بلکہ اگر ایک مہینہ رک سکو دہلی سے براہِ راست سان فرانسسکو فلائیٹ بھی روانہ کرسکتا ہوں۔  میں نےپہلی بار یہ خدمت  شروع کروائی ہے ۔ میں اس کا تمہیں پہلا مسافر بنا دوں گا جو مفت میں  سفر کرے گا۔ ہمارا سفیر ہوائی اڈے سے تمہیں گوگل کے دفتر میں لے جائیگا اور تم وہاں پر تاج محل کو دیکھ سکو گے۔
اس مثال سے سمجھا جاسکتا ہے کہ آج کل حکومتی سطح پر  ٹکنالوجی کا استعمال کس طرح ہو رہا ہے ۔  جو کام گھر میں بیٹھ کر کرنا چاہئے اس کیلئے دنیا بھر کی سیر کی جارہی ہے۔ یہی بات  عاپ کے اروند کیجریوال نے مودی جی کے دورے پر تبصرہ کرتے ہوئے کہہ دی لیکن  ان سے پہلے بی جے پی کے یشونت سنگھ  بھی یہ کہہ چکے ہیں کہ اگر ہم ’’میک ان انڈیا‘‘ کے بجائے ’’میک انڈیا ‘‘ پر توجہ دیں تو ہمیں کسی کے دروازے پر  جاکر ہاتھ  پھیلانے کی ضرورت نہیں پیش آئیگی بلکہ لوگ از خود لائن لگا کر ہمارے ملک میں سرمایہ کاری کرنے کیلئے آئیں گے لیکن اگر ہم نے تعلیم ، صحت، مواصلات اور دیگر اصلاحات کی جانب توجہ نہیں کی تو لاکھ دوروں اور ملاقاتوں کے باوجود ایک  اضافی پھوٹی کوڑی نہیں آئیگی ۔ وزیراعظم کے محنت و مشقت کے بغیر جو سرمایہ کاری ہونی ہے ہو تی رہےگی۔
مودی جی نے گوگل کے دفتر میں جاکر سب سے پہلے تاج محل کو دیکھا لیکن پھر انہیں خیال آیا ہوگا کہ یہ تو مسلم بادشاہ کی  تعمیر کردہ یادگار ہے اس لئے وہ بولے مجھے بنارس کے گھاٹ دکھلاؤ۔ یہ سوال مودی جی کی ذہانت کا غماز ہے۔ مودی جی کے وارانسی دورے سے قبل ان کے حلقۂ انتخاب کی آرائش و زیبائش کا کام شروع ہوجاتا ہے اس لئے انہیں نہ پانی میں تیرتی لاوارث لاشیں نظر آتی ہیں اور نہ کچرے کے ڈھیر ۔ گوگل میپ  پر اچانک مودی جی نے  بنارس دیکھنے کی فرمائش کرکے سوچھّ بھارت ابھیان کی قلعی کھول دی لیکن  بھول گئے کہ اس وقت جو کچھ انہوں نے دیکھا اس کا نظارہ دنیا  بھر کے بہت سارے لوگوں نے کیا اور سب کو پتہ چل گیا کہ  کیوٹو کے طرز پر تعمیر ہونے والے خواب کی تعبیر کیا ہے؟
بنارس کے بعد مودی جی نے کہا میں پٹنہ کے قریب میں واقع کھگول نامی گاوں دیکھنا چاہتا ہوں ۔ یہ نام گوگل والوں نے پہلی بار سنا تھا اس لئے وہ پریشان ہوگئے۔ گوگل میں زیر ملازمت بانکے بہاری نے کہا جناب پٹنہ دیکھ لیجئے آپ وہ کھگول کیوں دیکھنا چاہتے ہیں؟ مودی جی بولے پٹنہ میں لالو کا ڈنکا بجتا ہے میں اسے سننا یا دیکھنا نہیں  چاہتا  ۔ تم مجھے کھگول لے چلو۔ بانکے بہار ی  نے اس گاوں کا نام بھی نہیں سنا تھا اس لئے  پوچھا  لیکن کھگول میں ایسا کیا ہے اور جو آپ اسے دیکھنا چاہتے ہیں ؟ مودی جی بولے تم بہار کی تاریخ نہیں جانتے ۔ کسی زمانے میں وہیں آریہ بھٹ کی تجربہ گاہ تھی اور وہ اس لیباریٹری میں بیٹھ کر ستاروں کی چال دیکھا کرتے تھے ۔ بانکے بولا لیکن جناب یہ تو گزرے زمانے کی بات ہے۔ اب تو وہاں نہ آریہ بھٹ ہے اور نہ اس کی تجربہ گاہ ہے ۔ فی الحال تو وہاں نتیش کمار ہی نتیش کمار ہے۔
مودی جی بولے یہ تم مجھے بتا رہے ہو۔ نتیش کو ہم اچھی طرح جانتے ہیں وہ نمک حرام ہماری مدد سے ہی تو وزیراعلیٰ بناتھا لیکن اب زمانہ بدل گیا ہے۔ اب ہمیں اس کی ضرورت نہیں ہے ۔ ہم اپنے بل بوتے پر  دوبارہ بہار میں  آریہ بھٹ کی حکومت قائم کرنے جارہے ہیں ۔  گوگل کے سربراہ سندر پچائی نے حیرت سے سوال کیا۔کیا آپ آریہ بھٹ کو چتا کے اندر سے نکال کر لائیں گے؟ مودی جی بولے تم امریکہ میں آکر اپنے عقائد و نظریات بھول گئے ۔ تم نہیں جانتے ہم لوگ پونر جنم میں وشواس کرتے ہیں ۔ مجھے یقین ہے کہ آریہ بھٹ  پھر سےپیداہوچکا ہے اب صرف اسے تلاش  کرکے اس کو بہار کی گدیّ پر بٹھانے کا کام رہ گیا ہے سو میں کردوں گا۔
فیس بک کا  مارک زوکربرگ جو بڑی دیر سے خاموش بیٹھا تھا درمیان میں بول پڑا ۔ جی ہاں اگر ایسا ہے تو آپ اس کے ساتھ ایک سیلفی نکال کر فیس بک پر ڈال دیجئے۔ اس کا بھی کام ہوجائیگا، آپ کا اور میرا بھی۔ سندر پچائی بولا لیکن اس کے ساتھ سیلفی لینے کیلئے اس کو ڈھونڈنا بھی تو ضروری ہےوہ کام کیسے ہوگاَ؟ مودی جی بولے آسمان میں اڑنے والے زمینی حقائق سے واقف نہیں ہوتے۔ بہار کے ریاستی انتخابات کا اعلان ہو چکا ہے ۔ میں ہر ہفتہ دو مرتبہ بہار جاوکر وہاں کے گلی کوچوں میں  یہ اعلان کرتا پھروں گا کہ دیکھو میں امریکہ میں جاکر بھی بہاریوں کو نہیں بھولا۔میں نے وہاں بھی آریہ بھٹ کی تجربہ  گاہ کوگوگل کے نقشے پر دیکھا اور انتخاب کے بعد میں وہاں عبدالکلام کے نام پر ایک تجربہ گاہ قائم کروں گا  ۔ مجھے یقین ہے کہ اس اعلان کو سن کر کئی آریہ بھٹ ٹکٹ کی لائن میں لگ جائیں گے۔ بانکے بہاری کو یہ بات ناگوار گزری  وہ بولا عبدالکلام  کے نام پرکیوں؟ آریہ بھٹ کے نام پر کیوں نہیں؟
مودی جی بولے تم نہیں سمجھو گے ۔ آریہ بھٹ کا وارث براہمن سماج  فی الحال ہماری مٹھی میں ہے اب ہمیں مسلمانوں کو قریب کرنا ہے ۔ شاہنواز حسین اس کام کو بڑی تندہی سےکررہا ہے۔ اسی نے عبدالکلام کے نام پر تجربہ گاہ قائم کرنے کانادر مشورہ دیا ہے ۔سندر اس دوران گوگل سائٹ پرآریہ بھٹ  کے بارے میں پڑھ چکا تھا وہ بولا آریہ بھٹ کی ایجاد  صفر بھی تو آخر صفر ہی ہے۔  یہ سن کر  بانکے بہاری کی بہاریت جاگ اٹھی ۔ قومی حمیت سے سرشار بانکے بہاری نے جواب دیا  یہ بات درست ہے کہ مجرد صفر کی کوئی قدروقیمت نہیں  ہے۔اس کی دائیں جانب والے  ہندسوں پر بھی وہ اثر انداز نہیں ہوتا ۔ لیکن فی الحال اس کے دائیں جانب گوگل ہے اس لئے ہر صفر کا اضافہ ہماری قدرو قیمت میں  دس گنا کے اضافہ کا سبب بن سکتا  ہے۔ بانکے بہاری کی منطق سے خوش ہو کر سندر بولا بانکے  میں تو تمہیں  بھی مودی جی کی طرح سمجھتا تھا لیکن تم تو بڑے ذہین آدمی  نکلے۔  
مودی جی نے کہا یہی تو میں کہہ رہا ہوں ہم اس تجربہ گاہ کو قائم کرکے اس کے بائیں  جانب یکے بعد دیگرے صفر کا اضافہ کرتے چلے جائیں گے جس سے بہار کا نام بھی  گجرات کی مانند ساری دنیا میں روشن ہو جائیگا۔زوکربرگ بولا لیکن جناب گجرات کا نام کہاں روشن ہے؟ وہاں تو صفر تک ایجاد نہیں ہوا ۔ میں نے جب سے آپ کے ساتھ مصافحہ کیا ہے لوگ مجھے ہاتھ صاف کرنے والی جراثیم کش دوائیں بھیج رہے  ہیں تاکہ میں اپنی آستین پر لگے گجرات کے معصوموں کا خون دھو  سکوں ۔ مودی جی مسکرا کر بولے تم ان فسادات کو بھول جاؤ جیسا کہ میں بھول چکا ہوں ہوں اور اگر کوئی پوچھ لے کہ ہاتھ پر کیا لگا ہے تو کہہ دینا یہ خوبصورت مہندی مودی جی  لگا کر گئے ہیں  ۔ زوکربرگ نے کہا لیکن جناب یہ امریکہ ہے ؟ مودی جی بولے اس سے کیا فرق پڑتا ہے ۔ یہ محبوب کی مہندی ہے جو ہر جگہ رنگ لاتی ہے۔ زوکربرگ نے سوچا ان کو سمجھانا مشکل ہے میں ٹٹو کہہ دوں گا۔
احمدآباد میں نانو پٹیل اپنے نانا کے ساتھ ٹیلی ویژن کے سامنے بیٹھا  یہ مناظر دیکھ رہا تھا ۔ جیٹھا بھائی نے پوچھا نانو تم کیا کررہے ہو؟نانو بولا  مودی جی تقریر دیکھ رہاہوں؟ جیٹھا لال نے بگڑ کر کہا تقریر تو سننے کی چیز ہوتی ہے۔ نانو بولا جی نہیں نانا  ۔ مودی جی کے دل کی بات ضرور سننے کیلئے ہوتی ہے لیکن امریکہ میں جاکر وہ جو کچھ کرتے ہیں وہ تو دیکھنے لائق ہوتا ہے یہ دیکھئے وہ کیا کررہے ہیں ؟ مودی جی کہہ رہے ہیں  میں تمہارے درمیان کھڑا ہوں ۔ آپ لوگ مجھے سرٹیفکیٹ دیجئے۔ جیٹھا بولا اس میں حیرت کی کیا بات ہے نانو یہ تو فطری تقاضہ ہے۔ نانو نے کہا کیسی بات کرتے ہیں نانا جی سرٹیفکیٹ کون مانگتا ہے استاد یا طالب علم؟  مودی جی اپنے ملک میں  یوم اساتذہ کے موقع پر استاد بن جاتے ہیں اور پردیس میں  ہاتھ پسار کر اپنے جاہل بھکتوں سے سرٹیفکیٹ طلب فرماتے ہیں۔ جیٹھا بولا جیسے چائے  اسی کوتو پلائی جاسکتی ہے جو اس کا طالب ہو اسی طرح سرٹیفکیٹ بھی اسی سے مانگا جاسکتا ہے جو اسے مرحمت فرمائے  ۔ ہم لوگ اپنی مٹھائی کی دوکان اسی  میلے میں لگاتے تھے جہاں وہ بکتی تھی۔ کسی زمانے میں  ہم دونوں دسہرہ  کے موقع پر رام لیلا بھی ہم اسی محلے میں کھیلتے تھے جہاں دکشنا ملتی تھی ۔ کبھی میں رام بن جایا کرتا تھا اور نریندر راون تو کبھی نریندر رام کا کردار نبھاتا تھا اور میں راون بن جایا کرتا تھا ۔ یہ دنیا ہے  دنیا۔ یہاں یہی سب چلتا ہے۔
 نانو نے دیکھا مودی جی  ٹی وی کے پردے پر مارک زوکربرگ سے معانقہ فرمارہے ہیں ۔ اس نے پوچھا نانا  جی یہ آپ کے دوست مودی جی بدیس جاتے ہیں تو ہر ایرے غیرے نتھو خیرے گورے سے لپٹ جاتے ہیں ۔ میں نے انہیں کسی  ہندوستانی سے گلے ملتے نہیں دیکھا اس کی کیا وجہ ہے؟  جیٹھا اس سوال پر سنجیدہ ہوگیا اور خلاء میں دیکھنے لگا۔ نانو نے کہا معاف کیجئے ناناجی شاید آپ کو میری بات بری لگی اس لئے معذرت چاہتا ہوں۔ جیٹھا نے کہا نہیں بیٹے ایسی بات نہیں مجھے پتہ ہے اب یہ جادو کی جھپی ّ میرا مقدر  نہیں بن سکتی۔ نانو نے پوچھا وہ کیوں؟  جیٹھا نے جواب دیا بیٹے بات یہ ہےکہ ہمارے عقائد و نظریات زمان و مکان کے پابند ہیں ۔  ہمارا سلوک اوررویہ وقت اور مقام کے ساتھ بدل جاتا ہے۔ ایک زمانے میں نریندر مجھ کو چائے پلاتا تھا اب اوبامہ کو پلاتا ہے۔  گئو کشی ہمارے ملک میں حرام ہے لیکن وہی گوشت دیگر ممالک کو برآمدکر کے اجنبی لوگوں کو کھلانا   نہ صرف حلال بلکہ مستحب ہے۔
نانو بولا لیکن وکی پیڈیا میں تو میں نے یہ سب نہیں پڑھا۔ نانو اور نانا کی گفتگو بتدریج مائل بہ سنجیدگی تھی ۔ جیٹھا نے کہا بیٹے یہ علم وحکمت کی معرفت تمہیں گوگل بابا نہیں کرا سکتے اس کیلئے تمہیں منو بابا کے آشرم میں جانا ہوگا۔ نانو نے پوچھا منو بابا؟ ان کا نام تو میں نے کبھی نہیں سنا جبکہ آئے دن ٹیلی ویژن پرآسا رام باپو کی طرح کے  کسی نہ کسی بابا بلکہ بابی کا نام بھی سنائی دیتا ہے۔  جیٹھا نے چونک کر پوچھا پروین بابی تو کب کی مر کھپ گئی یہ نئی بابی کہاں سے آگئی۔ نانو بولا بابی کا مطلب بابا کی دھرم پتنی۔ آج کل تو ان کا چرچا کچھ زیادہ ہی ہے کبھی رادھے ماں تو کبھی سادھوی پراچی جب ٹی وی والوں کو کوئی نہیں ملتا تو وہ ان کے پیچھے پڑ جاتے ہیں خیر آپ منو بھائی کے بارے میں بتا رہے تھے۔ جیٹھا لال نے کہا یہ منو بھائی تمہارے منا بھائی کی مانند فرضی ایم بی بی ایس  کی ڈگری والا نہیں ہے بلکہ اس عالم فاضل ودوان  نے شہرہ آفاق صحیفہ منو سمرتی تصنیف کیا ۔ اس کاگیان  پراپت کرنےکیلئے تمہیں افلاطون کے بجائے چانکیہ کے آگے زانوئے تلمذ طے کرنا پڑے گا اوریہ سنسکار تمہیں سنگھ کی شاکھا میں ملیں گے جہاں  سےتربیت حاصل کرکے میرا دوست وزیراعظم بن گیا ۔
(جاری ،ان شا اللہ)      

Tuesday 22 September 2015

प्रधानमंत्री का अमरिकी दौरा: इस घर को आग लग गई घर के चिराग से

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिर एक बार अमेरिका के दौरे पर रवाना हो रहे हैं। पिछली बार की तरह वे पहले संयुक्त राष्ट्र की सामान्य बैठक को संबोधित करेंगे। इसके बाद वाशिंगटन के बजाय सिलिकॉन वैली जाएंगे। पिछली बार मैडिसन स्क्वायर न्यूयॉर्क में उन्होंने एक नाच रंग के कार्यक्रम में भाग लिया था लेकिन इस बार वह सैन जोन्स में स्थित सेप सेंटर के अंदर प्रतिष्ठित शैली में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित करेंगे। यह स्वागत योग्य बात है कि एक साल बाद सही प्रधानमंत्री को अपने देश की प्रतिष्ठा और सम्मान का विचार तो आया। परम्परा के अनुसार उद्योगपतियों से मुलाकात के अलावा फेसबुक कार्यालय का दौरा भी होगा। पिछले साल केवल सिखों ने प्रर्दशन किया था लेकिन इस बार गुजरात के रहने वाले पटेल समाज का आक्रोश भी उनका स्वागत करेगा।
गुजरात में जब से आरक्षण आंदोलन शुरू हुवा है प्रधान मंत्री ने अपना रुख बिहार और वाराणसी की ओर कर लिया। गुजराती जनता के दिलों पर राज्य करने का दावा करने वाले कथाकथित ह्रदय सम्राट ने पिछले तीन महीने में एक बार भी गुजरात के अंदर कदम रखने की हिम्मत नहीं की मगर गुजरात की आग उनके आगे अमेरिका पहुंच गई। गुजरात अगर मोदी जी का मैका है तो ससुराल दिल्ली है। वर्तमान में जहां एक ओर गुजरात से लेकर अमेरिका तक पटेल समाज आग बगूला है वहीं खुद मोदी जी ने देश को फासीवाद की आग में झोंक रखा है। अमरीका में मोदी का इंतजार करने वाले पटेल समुदाय के दिल में फफोले फूट रहे हैं। बकौल शायर؎
दिल के फफोले जल उठे सीने के दाग से इस घर को आग लग गई घर के चिराग से
अमेरिका के अंदर पटेल समाज ने परदेसी पटेल अमानत सोसायटी (ओपास) स्थापित करके प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन के अवसर पर अमेरिकी प्रशासन से विरोध प्रर्दशन की अनुमति प्राप्त कर ली है।  ओपास के तेजस पटेल के अनुसार वे लोग काले कपड़े पहनकर काले झंडे के साथ प्रदर्शन करेंगे। ओपास नेता बलदेव पटेल का कहना है कि पिछली बार हमने प्रधानमंत्री के लिए लाल कालीन बिछाया था इस बार हम काले झंडे लहराएँगे। एक और नेता सतीश पटेल ने कहा कि हम ने भारत विकास एसोसिएशन के भारत बराई से अपना वह चंदा लौटाने की मांग की है जो पिछले साल दिया था। इस मांग के जवाब में भारत बराई ने मैडिसन स्कवायर में किए गए तमाशे की कलई खोल दी। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम के लिए कुल एक हजार बीस करोड रुपये एकत्र किए गए थे जिसमें से एक हजार करोड तो कार्यक्रम के प्रबंधन पर खर्च हो गए और शेष राशि स्वच्छ भारत मिशन को सौंप दी गई मानो उस पर भाजपा ने हाथ साफ कर लिया। इससे सिध्द होता है कि वह देश भक्ति का प्रदर्शन नहीं बल्कि एक हजार करोड के खर्च से आयोजित किया गया मनोरंजन था।
पटेल समाज संयुक्त राष्ट्र कार्यालय से लेकर भारतीय दूतावास तक रैली निकालेगा इस के अलावा सैन जोस में भी विरोध करेगा। अमेरिका के विभिन्न शहरों में भी प्रदर्शन होंगे। इसके चलते सरकारी एजेंसियां ​​पटीलों को मोदी जी के कार्यक्रमों में लाने के बजाय दूर रखने में जुटी हुई हैं। अमेरिका में मौजूद मोदी भक्तों का कहना है कि हमें अपने आंतरिक समस्याओं को भारत की सीमा से बाहर नहीं लाना चाहिए मगर खुद प्रधानमंत्री जब पिछली सरकार पर फ्रांस, कनाडा, चीन और दुबई में खुलेआम आलोचना करते हैं तो यह मोदी भक्त उसे उचित ठहराते हुए बग़लें बजाते हैं। इसके विपरीत यदि कोई दूसरा उन की आलोचना करे तो देश भक्ति जाग उठती है और वह उस पर लानत मलामत करने लगते हैं।
मोदी जी आजकल सुभाष चंद्र बोस पर फिदा हैं। पिछले एक सप्ताह में उनके कार्यालय से बोस के परिजनों को 8 बार फोन किया गया परंतु गुजरात के लोह पुरुष और संघ परिवार के मन पसंद वल्लभ भाई पटेल के परिजनों को कोई नहीं पूछता। सरदार पटेल का पड़पोता (भतीजा) केवल पटेल अमेरिका में रहता है। उसका कहना है कि आरक्षण के कारण वह इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश से वंचित रहा और देश छोड़ने के लिए मजबूर हुवा। एक और नेता दिशेश पटेल भाजपा सरकार द्वारा गुजरात के अंदर पटेल प्रदर्शनकारियों पर अत्याचार से नाराज है। उन की शिकायत है कि हम अपने मानवाधिकारों के उल्लंघन से मोदी जी को अवगत करना चाहते हैं। इस आंदोलन में पटेल समुदाय के साथ गुजरात के ब्राह्मण भी शामिल हो गए हैं। यह एक तथ्य है कि अनेक कारणों से मोदी जी ने गुजरात के ब्राह्मणों का राजनीतिक प्रभाव खत्म कर दिया यही कारण है अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम के पिता दीपक पंड्या ने कहा कि वह अपने गांव के पटेल समुदाय का समर्थन कर रहे हैं। सारे राजनीतिक विशेषग्य आश्चर्य से गुजरातियों द्वारा मोदी जी का विरोध और ब्राह्मणों के अंदर भाजपा सरकार से नाराजगी का चमत्कार देख रहे हैं।
देश के अंदर अनगिनत समस्याएं हैं। उन की अनदेखा करके प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी इतने विदेशी दौरे क्यों करते हैं? इस सवाल का जवाब है कि संसद में जाकर बहस में भाग लेने की न उनमें क्षमता है और न साहस। अंतर्देशीय विषय में उनकी बातों पर कोई विश्वास नहीं करता न ध्यान देता है इसलिए खबर नहीं बनती। खबरों में रहने का सबसे आसान तरीका विदेश दौरा है लेकिन फिर सवाल उठता है कि खबरों में रहना क्यों जरूरी है? लोकतंत्र की मजबूरी यह है कि या तो जनता के काम करो या कम से कम शोर करो? मोदी जी ने दूसरा विकल्प पसंद फरमाया है। मोदी जी बहुत बुद्धिमान आदमी हैं, वे अपनी शक्ति और कमजोरी से वाकिफ हैं। वे जानते हैं कि कौन सा काम वह भलिभांति कर सकते हैं और क्या उन के बस का रोग नहीं है इसलिए अपने तरीके से वे राष्ट्र की सेवा में लगे हुए हैं अब यह सेवा जनता के लिए वरदान है या श्राप इसकी उन्हें कोई चिंता नहीं है । वह तो उसे अपना सौभागाय समझते हैं तथा नारसीसस की तरह खुद ही अपने सेल्फी को देखकर देखकर खुश होते रहते हैं।
मीडिया में आजकल मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के विदेशी दौरों की तुलना हो रही है। मनमोहन ने 10 सालों में 40 देशों का दौरा किया मोदी जी एक साल में 20 देश घूम आए। इस तरह अगर पांच साल का मौका उन्हें मिल जाए तो सेकडा पूरा हो जाएगा। यह भी कहा जा रहा है मोदी जी पर पिछले वर्ष अमेरिका यात्रा के दौरान 31 लेख लिखे गए जबकि मनमोहन जी के दौरे पर केवल 8 लेख प्रकाशित हुए थे। इन लेखों में क्या लिखा था? मोदी जी का विरोध कितना और मनमोहन की कितनी प्रशंसा की गई थी यह एक शोध का विषय है। इन लेखों में कितने स्वेच्छा से लिखे गए थे और कितने लिखवाए गए थे उसका विवरण भी रोचक हो सकता है। मोदी जी के टीवी पर दिखने का शौक ओबामा के दौरे पर नज़र आया। मोदी जी के साथ वे 255 घंटों तक टीवी के पर्दे दिखाई दिए जबकि मनमोहन युग में केवल 82 घंटों तक जनता को ओबामा का दर्शन हुवा था। सवाल यह उठता है कि सरकारी खर्च पर इस प्रचार से  मोदी जी और ओबामा को तो खूब भला हुआ लेकिन जनता को मनोरंजन के अलावा क्या मिला?
यह सार्वजनिक मनोरंजन मुफ्त नहीं था बल्कि उनके कल्याण पर ख़र्च होने वाले करों में से एक भारी- भरकम रकम प्रधानमंत्री के दौरों की भेंट चढ़ गई। ऑस्ट्रेलिया में मोदी जी के प्रतिनिधिमंडल को ठहराने पर साडे पांच करोड रुपये खर्च हुए थे और टैक्सी का बिल ढाई करोड रुपये था। मोदी जी भूटान के दौरे पर भी 41 लाख से अधिक फूंक आए। अमेरिका में उन्होंने ने रहने सहने पर 6 करोड से अधिक खर्च किए। पिछली बार मोदी जी न्यूयॉर्क पैलेस में रुके थे और वाईट हाऊस भी गए थे। इस बार ओबामा ने मोदी जी के बजाय पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को वाईट हाऊस का अतिथी बना लिया तो संभव है कि मोदी जी के चेलों ने सोचा हो क्यों न मोदी जी को ओबामा के साथ वाल्डरोफ आस्टोरया नामक होटल में ठहरा दिया जाए जहां पिछली बार ओबामा रूके थे संभवत: एकाध सेल्फी का मौका हाथ आजाए लेकिन दुर्भाग्य से ओबामा ने अपना इरादा बदल दिया और वह खुद न्यूयॉर्क पैलेस में चले गए जहां मोदी ठहरे थे। इस बात की संभावना है कि सैन जोन्स से वापसी के बाद मोदी और ओबामा की बातचीत वाल्डरोफ आस्टोरया में हो।
नाटक बाजी से लोग बहुत जल्दा उक्ता जाते हैं, इसलिए इसे एक ही शैली में बार बार दोहराया नहीं जा सकता है। फिल्मी दुनिया के लोग इसी लिए अपने फारमूले बारी बारी से अदलते बदलते रहते हैं। मोदी भक्तों ने भी सोचा बार बार नाच के बजाए अब की बार उद्योगपतियों की बैठक के अलावा स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी में भाषण रखवा दिया जाए। विश्वविद्यालय के अंदर मोदी जी बेशक जबरदस्त भाषण पढ़कर सुनाएंगे क्योंकि एमजे अकबर जैसे लेखकों की सेवाओं उन्होंने प्राप्त कर रखी हैं लेकिन अगर वहाँ किसी छात्र ने मोदी जी से उनकी शैक्षिक योग्यता पूछ ली तो समस्या खडी हो जाएगी। गुजरात के एक आरटीआई स्वयंसेवी ने जानकारी के अधिकार के तहत मोदी जी की 10 वीं, 12 वीं और एमए की मार्क शीट मांग ली तो उसे प्रधानमंत्री कार्यालय और चुनाव आयोग से दिलचस्प उत्तर प्राप्त हुए।
प्रधानमंत्री कार्यालय ने उसे प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर जाने की सलाह दी लेकिन इससे पहले वहां से एमए (राजनीति विज्ञान) वाला वाक्यांश निकाल दिया गया था जिस से पता चलता है कि दाल में कुछ काला है। चुनाव आयोग ने कहा कि वह प्रधानमंत्री के शपथपत्र को देखें। वह स्वयंसेवी अदालत में पहुंच गया तो वहां पर मौजूद न्यायाधीष एस ई रिजवी साहब ने फैसला सुनाया '' जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी है कि वह रिकॉर्ड में मौजूद जानकारी प्रदान करें लेकिन यह सूचना चूंकि सरकारी रिकॉर्ड में मौजूद नहीं है इसलिए प्रधानमंत्री कार्यालय प्रदान नहीं कर सकता।''  इस फैसले के खिलाफ अपील की अनुमति थी इसलिए वह भी कर दी गई तो जवाब मिला फिर से आरटीआई के तहत आवेदन करो इस प्रकार साबित हो गया कि दुनिया गोल है और मोदी जी योग्यता में कहीं न कहीं झोल है। मोदी भक्त काली दास, सूर दास और कबीर दास के उदाहरण दे कर कहते हैं कि उनके पास कौन सी डिग्री थी लेकिन वे भूल जाते हैं डिग्री का न होना समस्या नहीं है लेकिन झूठा दावा कर देना गंभीर अपराध है जिसका अनुसरण करने वाले संघ दास (स्मृति ईरानी, ​​विनोद तावड़े और नरेंद्र मोदी) खुलेआम घूम रहे हैं, लेकिन 'आप' के पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंग तोमर जेल में चक्की पीस रहे हैं।
इस साल मोदी जी के जन्मदिन के अवसर पर उनके शिक्षकों और छात्रों के भाव अखबारों की शोभा बने। संयोग से सारे शिक्षक स्कूल के थे हालांकि मोदी जी के कॉलेज के किसी प्रोफेसर को पकड़ कर उस से प्रशंसा करवा लेना कोई मुश्किल काम नहीं था परंतु ऐसा कोई व्यक्ति मौजूद तो हो। उनके साथ पढ़ने वाले एक छात्र ने कॉलेज के पहले साल का उल्लेख किया है लेकिन एमए करने के लिए अधिक 5 साल की अवधि आवश्यक होती है इसलिए क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि उनके कॉलेज का कोई सहपाठी छात्र प्रशंसा करने के लिए आगे नहीं आया। मोदी जी के साथ पढ़ने वालों उनके ने नाटकों में  अभिनय का उल्लेख किया है जिससे पता चलता है कि यह कीटाणु उनके अंदर बचपन से ही पाए जाते हैं। वैसे मोदी जी ने अभिनेता बनने के बजाय नेता बन जाने का अच्छा निर्णय लिया वरना यह ऐश और ऐसी प्रसिद्धि कैसे उपलब्ध होती?
सैन फ्रांसिस्को के क्षेत्र में मोदी जी 33 साल बाद जाने वाले पहले प्रधानमंत्री जरूर हैं लेकिन उनसे पहले 3 भारतीय प्रधानमंत्री इस क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं। 1949 में जबकि सिलिकॉन घाटी का अस्तित्व नहीं था पंडित जवाहर लाल नेहरू ने यूसी बर्कले यूनानी केंद्र में भाषण किया था। उनके बाद 1978 में मोरारजी देसाई और फिर 1982 में इंदिरा गांधी लॉस एंजिल्स की यात्रा कर चुकी हैं। 2000 में अटल जी भी वहाँ जाना चाहते थे मगर नहीं जा सके। संयोग वश मोरारजी देसाई का भी वहाँ के शिक्षित समाज ने विरोध करते हुए उन्हें भारतीय जनता का क़साई करार दिया था और अब वह मोदी जी के खिलाफ कमर कस रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, अमेरिकी विश्वविद्यालयों में दक्षिण एशिया के मामलों पर गहरी नजर रखने वाले 124 प्रोफेसरों ने एक बयान जारी करके मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों का हनन करने वाली मोदी सरकार से सावधान रहने की अपील की है। इन लोगों ने मोदी के दौरे और सिलिकॉन वैली के साथ भारत के व्यापार का अधिकार स्वीकार करते हुए गुजरात दंगों की याद दिलाई है।
खाड़ी के इस क्षेत्र में 2 लाख 70 हजार भारतीय मूल के लोग रहते हैं जिनमें से दो तिहाई का जन्म भारत में हुआ है। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण पदों पर हैं जैसे गूगल के प्रमुख सुन्दर पचाई और अडोब सिस्टम के सीईओ शनतानो नारायण। मोदी जी सेप केंद्र में साढ़े 18 हजार भारतीयों को संबोधित करने के अलावा उन उद्योगपतियों से भी बातचीत करेंगे। मोदी जी निवेशकों से बात तो बहुत करते हैं लेकिन प्रभाव का अनुमान निम्नलिखित आंकड़े से लगाया जा सकता है। अमेरिका और भारत के बीच 500 अरब डॉलर का कारोबार होने की उम्मीद थी, लेकिन केवल 100 अरब डॉलर हुआ जबकि इसकी तुलना में चीन ने अमेरिका के साथ 600 अरब डॉलर का कारोबार किया। चीन का निर्यात 450 अरब डॉलर है और आयात केवल 150 अरब डॉलर है। कहावत प्रसिद्ध है जो गरजते हैं वह बरसते नहीं।
इस दौरे पर मोदी जी फेसबुक कार्यालय में जाकर ज़क्रबरग से भी मिलेंगे। इस मुलाकात को असाधारण उपलब्धि करार दिया जा रहा है हालांकि पिछले दिनों घड़ी बनाने के आरोप में गिरफ्तार सूडानी छात्र अहमद का समर्थन करते हुए फेसबुक मार्क ज़क्रबरग ने कहा था '' एक वस्तु बनाने की क्षमता और इच्छा सराहनीय है ना कि दोष। भविष्य अहमद जैसे बच्चों का है। '' इसके बाद होनहार अहमद को ज़क्रबरग ने अपने कार्यालय में आने का निमंत्रण भी दिया। राष्ट्रपति ओबामा ने भी अहमद की सराहना करते हुए लिखा था। '' शानदार घड़ी अहमद। क्या आप इसे वाईट हाऊस में लाना चाहोगे? आप से दूसरे बच्चों को भी विज्ञान में प्रोत्साहन मिला है। इसी कारण अमेरिका महान है।''  यह घटना एक ओर जहां अमरिकी समाज में मौजूद निंदनीय इस्लामोफोबिया का पता देता है वहीं यह भी सिध्द करती है कि जहां राजनीतिज्ञ झूठी प्रतिष्ठा के लिए पापड़ बेलते फिरते हैं वहीं प्रतिष्ठा की देवी स्वत: आकर अहमद जैसे निस्वार्थ लोगों के चरण स्पर्श करती है।

Monday 21 September 2015

وزیراعظم کاامریکی دورہ:اس گھر کو آگ لگ گئی گھر کے چراغ سے

وزیر اعظم نریندر مودی پھر ایک بار امریکہ کے دورے پر روانہ ہورہے ہیں ۔ گزشتہ مرتبہ کی طرح وہ پہلے اقوام متحدہ کے عمومی اجلاس سے خطاب کریں گے ۔ اس کے بعد واشنگٹن کے بجائے سیلیکون ویلی جائیں گے ۔ پچھلی مرتبہ میڈیسن اسکوائر نیویارک  میں انہوں نے ایک  ناچ رنگ کے  پروگرام  میں شرکت کی تھی لیکن  اس  بار وہ  سان جونس میں واقع سیپ سینٹرکے اندر پروقار انداز میں ہندوستانی عوام سے خطاب کریں گے۔ ایک سال بعد سہی وزیراعظم کو اپنے ملک کی عزت ووقار کا خیال آگیا یہ خوش آئند بات ہے۔ حسبِ سابق صنعتکاروں  سے ملاقات اور اس کے علاوہ وہ فیس بک کے دفتر دورہ  بھی ہوگا۔ پچھلے سال   صرف سکھوں نےمظاہر کیا تھا  لیکن اس بار گجرات کے رہنے والےپٹیل سماج کا غم و غصہ بھی ان کا منتظر ہو گا۔   
گجرات میں جب سے ریزرویشن کی تحریک کا آغاز ہواہےوزیراعظم نے اپنا رخ بہار اور وارانسی کی جانب کرلیا۔  گجراتی عوام کے دلوں کی بادشاہت کا دعویٰ کرنے والے  اس خودساختہ شہنشاہ نے گزشتہ تین ماہ  میں ایک بار   بھی گجرات کے اندر قدم رکھنے کی جرأت نہیں کی مگر گجرات کی آگ ان کے آگے امریکہ پہنچ گئی۔ گجرات اگرمودی جی  کا میکہ ہے تو سسرال دہلی ہے۔ فی الحال  جہاں ایک طرف گجرات سے لے کر امریکہ تک  پٹیل سماج آگ بگولا ہے وہیں خود مودی جی نے  ملک کو فسطائیت کی آگ میں جھونک رکھا ہے ۔امریکہ میں  مودی کا انتظار کرنے والی پٹیل برادری  کے دل میں پھپھولے پھوٹ رہے ہیں ۔  بقول شاعر؎
دل کے پھپھولے جل اٹھے سینے کے داغ سے                                 اس گھر کو آگ لگ گئی گھر کے چراغ سے
امریکہ کے اندر  پٹیل سماج نے بیرونِ ملک پٹیل امانت سوسائٹی (اوپاس) قائم کرکےوزیراعظم نریندر مودی کی آمد کے موقع پر امریکی انتظامیہ سے احتجاجی جلوس نکالنے کی اجازت بھی حاصل کرلی ہے۔  ۔ اوپاس کے کنونیر تیجس پٹیل کے مطابق وہ لوگ کالے کپڑے پہن کر سیاہ جھنڈوں کے ساتھ مظاہرہ کریں گے۔ اوپاس کے رہنما بلدیو پٹیل کاکہنا ہے کہ پچھلی مرتبہ ہم نے وزیراعظم کیلئے سرخ قالین بچھایا تھا اس مرتبہ ہم سیاہ پرچم لہرائیں گے۔  ایک اور رہنما ستیش پٹیل نے کہا کہ  ہم نے بھارت وکاس ایسو سی ایشن کے ناظم بھارت برائی سے اپنا چندہ لوٹانے کا مطالبہ کیا ہے گزشتہ سال دیا تھا۔ اس مطالبے کے جواب میں بھارت برائی نے میڈیسن اسکوائرمیں کئے گئے تماشے کی قلعی  بھری بزم میں کھول دی۔ انہوں نے اپنی معذوری ظاہر کرتے ہوئے کہا کہ  اس پروگرام کیلئے جملہ ایک ہزار بیس کروڈ روپئے جمع کئے گئے تھے جس میں سے ایک ہزار کروڈ تو پروگرام کے انتظام وانصرام پر صرف  ہوگئے اور باقی رقم سوچھّ بھارت مشن کو سونپ دی  گئی  گویا اس پر بی جے پی نے ہاتھ صاف کرلیا ۔ اس سے ظاہر ہے کہ وہ دیش بھکتی کا مظاہرہ نہیں بلکہ ایک ہزار کروڈ کے اصراف سے منعقد کردہ ایک تفریحی   کھیل تھا ۔
پٹیل سماج اقوام متحدہ کے دفتر سے لے کر ہندوستانی سفارتخانےتک  کے علاوہ سان جوس میں بھی احتجاج کرنے کا ارادہ رکھتا ہے۔ امریکہ کے مختلف شہروں میں  بھی مظاہرے ہوں گے ۔ اس کے سبب سرکاری ایجنسیاں پٹیلوں کو مودی جی کے پروگراموں میں لانے کے بجائے دور رکھنے میں جٹی ہوئی ہیں۔ امریکہ میں موجود مودی بھکتوں کا کہنا ہے کہ ہمیں اپنے داخلی مسائل کو ہندوستان کےحدود سے باہر نہیں لانا چاہئے مگر خود وزیراعظم  جب سابقہ حکومت  پر فرانس، کینیڈا، چین  اور دبئی میں کھلے عام تنقید فرماتے ہیں تو یہ مودی بھکت انہیں حق بجانب ٹھہراتے ہوئے  بغلیں بجاتے ہیں۔ اس کے برعکس اگر کوئی  بیرونِ ہندان  پر تنقید کرے تو دیش بھکتی جاگ اٹھتی ہے اور وہ اس پر لعنت ملامت کرنے لگتے ہیں۔ 
مودی جی آج کل سبھاش چندر بوس پر دل و جان سے فدا ہیں۔ پچھلے ایک ہفتہ میں ان کے دفتر سے بوس کے اہل خانہ کو ۸ مرتبہ فون کیا گیا  گجرات کے مرد آہن اور سنگھ پریوار کے منظور نظر ولبھ بھائی پٹیل کے احتجاج  کرنے والےخاندان کو کوئی نہیں پوچھتا ۔سردار پٹیل کا پڑپوتا (بھتیجا) کیول پٹیل فی الحال امریکہ میں مقیم ہےاس کا کہنا یہ ہے کہ ریزرویشن کے سبب وہ انجینیرنگ کالج میں داخلہ سے محروم رہا اور ترک ِوطن پر مجبور ہوا ۔ ایک اور رہنما دکشیش پٹیل بی جے پی حکومت کے ذریعہ  گجرات کے اندرپٹیل مظاہرین پر مظالم سے ناراض ہیں۔ ان کا شکایت ہے کہ ہم اپنے حقوق انسانی کی پامالی سے مودی جی کو آگاہ کرنا چاہتے ہیں۔  اس احتجاج میں پٹیل برادری کے ساتھ گجرات کے براہمن بھی شامل ہو گئے ہیں۔ یہ ایک حقیقت ہے کہ گوں ناگوں وجوہات کی بناء پر مودی جی نےگجرات براہمنوں کا سیاسی اثرو ورسوخ ختم کردیا یہی وجہ ہے امریکی خلاء باز سنیتا ولیم کے والد دیپک پنڈیا  نے  کہاکہ وہ اپنے گاوں کی  پٹیل برادری کی حمایت کررہے ہیں۔  سارے سیاسی دانشور حیرت و استعجاب کے عالم میں گجراتیوں کے ذریعہ مودی جی کی مخالفت اور براہمنوں کے اندر بی جے پی  حکومت سے ناراضگی کا چمتکار  دیکھ رہے ہیں۔    
ملک کے اندر فی الحال بے شمار مسائل ہیں۔ ان کو نظر انداز کرکےوزیر اعظم نریندر مودی اس قدر غیر ملکی دورے کیوں کرتے ہیں ؟ اس سوال کا سہل ترین جواب یہ ہے کہ ایوان پارلیمان میں جا کر مباحث میں حصہ لینے کی نہ ان میں صلاحیت ہے اور نہ جرأت  ۔ اندرون ملک ان کی باتوں پر نہ کوئی توجہ دیتا ہے نہ اعتماد کرتا ہے اس لئے  خبر نہیں بنتی ۔ اس لئےخبروں میں رہنے کا سب سے  آسان طریقہ بیرونِ ملک دورہ ہے لیکن پھر سوال پیدا ہوتا ہے کہ خبروں میں رہنا کیوں ضروری ہے؟ جمہوریت کی مجبوری  یہ ہے کہ یا تو عوام کے کام کرو یا  کم ازکم شور کرو؟مودی جی نے دوسرا متبادل پسند فرمایا ہے۔ مودی جی نہایت ذہین آدمی ہیں وہ اپنی خوبیوں اور کمزوریوں سے واقف ہیں۔ وہ جانتے ہیں کہ کون سا کام وہ بحسن و خوبی کرسکتے ہیں اور کیاان کے بس کا روگ نہیں ہے اس لئے حسبِ استطاعت وہ قوم کی خدمت کرنے میں لگے ہوئے ہیں اب یہ خدمت عوام کیلئے رحمت ہے زحمت اس سے ان کو کوئی غرض نہیں ہے ۔ وہ تو اسے اپنے لئے باعثِ سعادت  سمجھتے ہیں نیز نارسیسس کی مانند خود ہی اپنے سیلفی کو دیکھ دیکھ کر خوش ہوتے ہیں۔
ذرائع ابلاغ میں آج کل منموہن سنگھ اور نریندر مودی کے غیر ملکی دوروں کا موازنہ کیا جارہا ہے۔منموہن نے ۱۰ سالوں میں ۴۰ ممالک کا دورہ کیا مودی جی ایک سال میں ۲۰ممالک گھوم آئے۔ اس طرح اگر پانچ سال کا موقع انہیں مل جائے تو سیکڑہ پورا ہوجائیگا۔ یہ بھی کہا جارہا ہے مودی جی پر گزشتہ امریکی دورے کے دوران ۳۱ مضامین  لکھے گئے جبکہ منموہن  جی کے دورے پر صرف ۸ مضامین لکھے گئے تھے ۔  ان مضامین میں لکھا کیا گیا تھاَ؟ مودی جی کی مخالفت اور  منموہن کی کس قدر تعریف کی گئی تھی وہ ایک تحقیق کا موضوع ہے۔ ان مضامین میں  کتنے اپنے طور پر لکھے گئے تھے اور کتنے لکھوائے گئے تھے اس کی تفصیل بھی دلچسپ ہوسکتی ہے۔مودی جی کے ٹی وی پر نظر آنے کا شوق صدراوبامہ کے دورے پر نظر آیا۔  مودی جی کے ساتھ وہ ۲۵۵  گھنٹوں تک ٹی وی کے پردے دکھائی دئیے  جبکہ منموہن کے زمانے میں صرف۸۲ گھنٹوں تک عوام کو اوبامہ کا دیدار  نصیب ہوا تھا ۔ سوال یہ پیدا ہوتا ہے کہ اس سرکاری  اشتہاربازی سے مودی جی اور اوبامہ کو تو خوب بھلا ہوا لیکن  عوام کو تفریح کے علاوہ  کیا ملا؟
یہ عوامی تفریح مفت نہیں  تھی بلکہ ان کی فلاح وبہبود  پرخرچ ہونے والے ٹیکس میں سے ایک خطیر رقم وزیراعظم کےدوروں کی نذر ہوگئی ۔ آسٹریلیا میں مودی جی کے وفد کو ٹھہرانے پر ۶ء۵ کروڈ روپئے خرچ ہوئے تھے اور ٹیکسی کا بل ۴ء۲ کروڈ روپئے تھا۔ مودی جی بھوٹان کےدورے پر بھی۴۱ لاکھ سے زیادہ پھونک آئے۔ امریکہ میں انہوں نےرہنے سہنے پر ۶ کروڈ سے زیادہ خرچ کئے۔ پچھلی مرتبہ مودی جی نیویارک پیلس میں رکے تھے اور قصر ابیض بھی تشریف لے گئے تھے۔ اس بار اوبامہ نے مودی جی کے بجائے پاکستانی وزیراعظم نواز شریف کو قصر ابیض کا مہمان بنا لیا  تو ممکن نے مودی جی  کے حواریوں نے سوچا ہو کہ کیوں نہ مودی جی کو اوبامہ کے ساتھ والڈروف اسٹوریہ نامی ہوٹل میں ٹھہرا دیا جائے جہاں پچھلی مرتبہ اوبامہ کا قیام تھا ممکن ہے ایک آدھ سیلفی کا موقع ہاتھ آجائےلیکن بدقسمتی سے اوبامہ نے اپنا اراددہ بدل دیا اور وہ خود نیویارک پیلس میں منتقل ہو گئے جہاں مودی ٹھہرے تھے۔ اس بات کاقوی امکان ہے کہ سان جوس سے واپسی کے بعد مودی اور اوبامہ کی باہمی گفتگو  والڈروف اسٹوریہ میں منعقد ہو ۔
ڈرامہ بازی  سے لوگ  بہت جلداوب جاتے ہیں اس لئے  اسے ایک ہی انداز میں  بار بار دوہرایا نہیں جاسکتا ہے ۔ فلمی دنیا کے لوگ اسی لئےاپنے فارمولوں کو باری باری سے ادلتے بدلتے رہتے ہیں۔ مودی بھکتوں نے بھی سوچا بار بار ناچ رنگ کا کھیل نہیں چلے گا اس لئے اب کی بار صنعتکاروں کی ملاقات کے علاوہ اسٹین فورڈ یونیورسٹی میں خطاب رکھوادیا گیا۔ اس میں شک نہیں کہ یونیورسٹی کے اندر مودی جی زبردست تقریر پڑھ کر سنائیں گے اس لئے کہ ایم جے اکبر جیسے لکھنے والوں کی خدمات انہوں نے حاصل کررکھی ہیں لیکن اگر وہاں کسی طالبعلم نے مودی جی سے ان کی تعلیمی لیاقت دریافت کر لی تو مسئلہ ہو جائیگا۔ گجرات کے ایک آر ٹی آئی رضا کار نے  حقِ معلومات کے تحت مودی جی کی ۱۰ ویں ، ۱۲ ویں اور ایم اے کی مارک شیٹ طلب کرلی تو اس کو وزیراعظم کے دفتر اور الیکشن کمیشن سے دلچسپ جوابات موصول ہوئے۔
وزیراعظم کے دفتر نے اسے وزیراعظم کی ویب سائٹ سے رجوع کرنے کا مشورہ دیا لیکن اس سےقبل وہاں سے ایم اے (پولیٹیکل سائنس) والا جملہ ہذف کردیا گیا  تھاجس سے پتہ چلتا ہے کہ دال میں کچھ کالا ہے۔ الیکشن کمیشن نے کہا کہ وہ وزیراعظم کے حلف نامہ کو دیکھے ۔وہ رضا کار عدالت میں پہنچ گیا تو وہاں پر موجود جج ایس ای رضوی صاحب نے فیصلہ سنایا’’ عوامی نمائندوں کی ذمہ داری ہے کہ وہ ریکارڈ میں موجود معلومات فراہم کریں  لیکن اس بابت چونکہ  دفتری ریکارڈ میں معلومات موجود نہیں ہے اس لئے وزیراعظم کے دفتر وہ فراہم نہیں کرسکتا‘‘۔ عدالت نے اس فیصلے کے خلاف اپیل کی اجازت دی تھی اس لئے وہ بھی کردی گئی تو جواب ملا وہ پھر سے آرٹی آئی کے تحت درخواست دے گویا یہ ثابت کردیا گیا کہ دنیا گول ہے اور مودی جی تعلیمی لیاقت میں کہیں نہ کہیں جھول ہے۔ ان کے بھکت آج کل کالی داس ، سور داس اور کبیرداس کی مثالیں دے رہے  ہیں کہ ان کے پاس کون سی ڈگری تھی لیکن وہ بھول جاتے ہیں ڈگری کا نہ ہونا مسئلہ نہیں ہے مگر اس کا جھوٹا دعویٰ کردینا ایک سنگین جرم ہے جس کا ارتکاب  کرنے والے سنگھ داس (سمرتی ایرانی ,ونود تاوڑےاور نریندر مودی ) کھلے عام گھوم رہے ہیں مگر عآپ کےسابق وزیر قانون جتیندرسنگھ تومر جیل میں چکی پیس رہے ہیں  ۔
اس سال مودی جی کی سالگرہ کے موقع پر ان کے اساتذہ اور طلباء کے تاثرات اخبارات کی زینت بنے ۔ اتفاق سے  سارے اساتذہ اسکول کے تھے  حالانکہ مودی جی کے کالج کے کسی نہ کسی پروفیسر کو پکڑ کر اس سے ان کی تعریف کروالینا کوئی مشکل کام نہیں تھا بشرطیکہ ایسا کوئی فردِ بشر موجود ہوتا۔ ان کے ساتھ پڑھنے والے ایک طالبعلم نے کالج کے پہلے سال کا ذکر کیا ہے لیکن ایم اے کرنے کیلئے مزید ۵ سال کا عرصہ درکار ہوتا ہے اس لئے  کیا یہ تعجب کی بات نہیں ہے کہ ان کے کالج کا  کوئی ہم جماعت طالبعلم تعریف و توصیف کرنے کیلئے آگے نہیں آیا۔ مودی جی کے ساتھ پڑھنے والوں نے ڈراموں میں ان کی اداکاری کا ذکر کیا ہے جس سے پتہ چلتا ہے کہ یہ جراثیم ان کے اندر بچپن ہی سے پائے جاتے ہیں۔ ویسے مودی جی نے ابھینیتا بننے کے بجائے نیتا بن جانے کا اچھا فیصلہ کیا  ورنہ یہ عیش و عشرت اور ایسی شہرت انہیں کیونکر  میسر آتی؟
سان فرانسسکو کے علاقہ میں مودی جی ۳۳ سال بعد جانے والے پہلے وزیراعظم ضرور ہیں لیکن ان سے قبل ۳ ہندوستانی وزرائے اعظم اس خطے کا دورہ کرچکے ہیں ۔ ؁۱۹۴۹ میں  جبکہ سیلیکون کی وادی کا وجود نہیں تھا پنڈت جواہر لال نہرو نے یو سی برکلی یونانی مرکز میں خطاب کیا ۔ ان کے بعد؁۱۹۷۸ میں مرارجی دیسائی اور پھر ؁۱۹۸۲ میں اندرا گاندھی لاس اینجلس کا دورہ کرچکی ہیں ۔ ؁۲۰۰۰ میں اٹل جی بھی وہاں جانا چاہتے تھے مگر نہیں جاسکے ۔  یہ حسنِ اتفاق ہے کہ مرارجی دیسائی کے دورے کی بھی وہاں کے تعلیم یافتہ حضرات نے مخالفت کی تھی اور انہیں ہندوستانی عوام کا قصائی قرار دیا تھا اور اب وہ مودی جی کے خلاف کمر بستہ ہیں ۔ ذرائع کے مطابق، امریکی یونیورسٹیوں میں جنوبی ایشیا کے امور پر گہری نظر رکھنے والے ۱۲۴پروفیسروں نے ایک بیان جاری کر کے حقوق انسانی اور شہری حقوق کو پامال کرنے والی مودی حکومت سے محتاط رہنے کی اپیل کی ہے۔ ان حضرات نےمودی کے دورۂ امریکہ اور سلیکون ویلی کے ساتھ ہندستان کے کاروباری امکان کا حق تسلیم کرتے ہوئے گجرات فسادات کو یاد دلانے کی کوشش کی ہے۔
کھاڑی کے اس علاقہ میں ۲لاکھ ۷۰ ہزار ہندوستانی نسل کے لوگ آباد ہیں جن میں سے  دوتہائی کی پیدائش ہندوستان میں ہوئی ہے۔ ان میں سے کچھ اہم عہدوں پر فائز ہیں مثلاً گوگل کے سربراہ سندر پچائی اور اڈوب  سسٹم کے سی ای او شنتانو نارائن۔ مودی جی سیپ سینٹر میں ساڑھے ۱۸ہزار ہندوستانیوں سے خطاب کرنے کے علاوہ ان صنعتکاروں سے بھی گفت و شنید کریں گے۔  مودی جی سرمایہ کاروں سے بات تو بہت کرتے ہیں لیکن اس کی اثر پذیری کا اندازہ مندرجہ ذیل اعدادو شمار سے لگایا جاسکتا ہے۔ امریکہ اور ہندوستان کے درمیان ۵۰۰ بلین ڈالر کا کاروبار متوقع تھا مگر صرف ۱۰۰ بلین ڈالر ہوا جبکہ اس کے مقابلے خاموش طبع چین نے امریکہ کے ساتھ ۶۰۰ بلین ڈالر کا کاروبار کیا اور اس میں سے چین کی برآمدات ۴۵۰ بلین ڈالر ہے اور برآمد صرف ۱۵۰ بلین ڈالر ہے ۔ مثل مشہور ہے جو گرجتے ہیں وہ برستے نہیں۔
اس دورے پر مودی جی فیس بک کے دفتر میں جاکر ذوکربرگ سے بھی ملیں گے۔ اس  ملاقات کودورے کی غیر معمولی کامیابی قرار دیا جارہا ہے حالانکہ گزشتہ دنوں  گھڑی بنانے کی پاداش میں گرفتار ہونے والے سوڈانی طالبعلم احمد کی حمایت کرتے ہوئے فیس بک کے مارک ذوکربرگ نے کہا تھا  ’’کسی چیز کو بنانے کی صلاحیت اور خواہش قابلِ تعریف ہےنہ کہ قابلِ گرفت ۔ مستقبل احمد جیسے بچوں کا ہے‘‘۔ اس کے بعد ہونہار احمد کو ذوکربرگ نے اپنے دفتر میں آنے کی دعوت بھی دی  ۔  صدر اوبامہ نے بھی احمد کو خراجِ عقیدت پیش کرتے ہوئے لکھا  تھا۔ ’’شاندار گھڑی احمد۔  کیا تم اسے قصر ابیض میں  لانا چاہوگے؟ تم  سےدوسرے بچوں کو بھی سائنس میں دلچسپی لینے کا حوصلہ ملاہے۔ اسی وجہ سے امریکہ عظیم  ہے‘‘۔  یہ واقعہ ایک طرف  توامریکی معاشرے میں  موجود قابلِ مذمت اسلامو فوبیا کا پتہ دیتا ہے وہیں یہ بھی ظاہر کرتا ہے  کہ جہاں  سیاستداں جھوٹی شہرت کیلئے پاپڑ بیلتے پھرتے  ہیں وہیں  شہرت کی دیوی ازخود آکر احمد جیسے بے نیاز  لوگوں کے قدم چومتی ہے۔   

Tuesday 15 September 2015

दिल्ली विश्वविद्यालय के चुनाव का संकेत

एक मामूली सा तिनका हवा के रुख पता देता है। दिल्ली विश्वविद्यालय और दिल्ली में स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के चुनाव परिणाम सुशिक्षित युवाओं के बौद्धिक प्रवृत्ति की पहचान कराते हैं। पिछले साल दिल्ली में युवाओं के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आशा की किरण थे और दिल्ली में भाजपा की असाधारण सफलता में इस युवा शक्ती का विशेष योगदान था लेकिन 8 महीने बाद दिल्ली के प्रांतीय चुनावों में एक नया दृश्य सामने आया। इस बार यह युवा नरेंद्र मोदी का दामन झटक कर अरविंद केजरीवाल से लिपट गए थे। यही कारण था कि भाजपा ने जहां सभी संसदीय क्षेत्रों में सफलता प्राप्त की थी वहीं 'आप' ने 70 में से 67 सीटों पर अपना ध्वज लहरा दिया था। इतने कम समय में ऐसी बड़ी क्रांति की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।
 दिल्ली में आजकल केजरीवाल का बोलबाला है। अपनी पार्टी के अंदर वह सारे विरोधियों को ठिकाने लगा चुके हैं। केंद्र के षडयंत्रों पर भी काफी हद तक काबू पा चुके हैं इसलिए यह उम्मीद की जा रही थी कि किशोरों की आंखों के तारे अरविंद केजरीवाल का जादू विश्वविद्यालय चुनाव में सिर चढ़कर बोलेगा और कांग्रेस व भाजपा का सफ़ाया कर देगा लेकिन अफसोस कि वो भ्रम भी टूट गया। कॉलेज के छात्रों ने अरविंद केजरीवाल से अपना रुख फेर लिया और दोबारा उन्हीं राजनीतिक दलों की ओर आकर्षित हो गए जिन पर अतीत में विश्वास किया करते थे।
 जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय निवासी संस्था है इसलिए इसमें दिल्ली से बाहर के छात्रों की संख्या अधिक होगी और दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों में स्थानीय छात्रों की भरमार होना स्वाभाविक है। इसलिए इन परिणामों से इस बात का भी अनुमान लगाया जा सकता है कि दिल्ली के भीतर और बाहर का छात्र समुदाय किस को कितना महत्व देता है। दिल्ली में चूंकि केंद्र सरकार भाजपा की है और राज्य सत्ता 'आप' के हाथों में है इसलिए उम्मीद यह की जा रही थी असली प्रतिस्पर्धा उन्हीं दोनों दलों के छात्र संगठनों क्रमशः अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और छात्र युवा संघर्ष समिति (सीवाईएसएस) के बीच होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
दिल्ली विश्वविद्यालय में एबीवीपी का बोलबाला रहा है। पिछले दो सालों से वह चारों महत्वपूर्ण पदों (अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव) पर काबिज रही है। इस बार फिर वही हुआ कि उसने यह चारों सीटें जीत लीं। सीवाईएसएस न केवल अपना खाता खोलने में नाकाम रही बल्कि वह चार में से केवल एक स्थान पर दूसरे नंबर पर रही शेष तीनों पदों के लिए एबीवीपी को कांग्रेस की छात्र संगठन एनएसयूआई को पछाड़ना पडा। एनएसयूआई ने सचिव का पद आपसी लड़ाई के कारण गंवाया। एनएसयूआई के नामांकित  उम्मीदवार अमित शेरावत को 10 हजार से अधिक और विद्रोही उम्मीदवार अमित चौधरी को 9 हजार से अधिक वोट मिले जबकि एबीवीपी की अंजलि राणा केवल 14 हज़ार वोट प्राप्त करके सफल हो गईं।
डीयूएसयू का अध्यक्ष पद बड़े आराम से सत्येंद्र आवाना के पास आगया। उन्होंने एनएसयूआई के प्रदीप विजयन को 6 हजार से अधिक के अंतर से पराजित कर दिया। उपाध्यक्ष पद पर सीयूएसएस ने एबीवीपी को नाकों चने चबवा दिए। सीयूएसएस की गरिमा राणा को केवल 755 वोटों के मामूली अंतर से हार मिली। इस पद पर 'आप' ने अपनी उपस्थिति का एहसास जोरदार तरीके पर दिलाया। सचिव पद पर एबीवीपी की अंजलि राणा ने 4 हजार 6 सौ वोटों के अंतर से और सहसचिव के पद पर चरपाल यादव ने 6 हजार के अंतर से एनएसयूआई के उम्मीदवारों को हराकर साबित कर दिया कि छात्रों ने फिर एक बार भगवा झंडा उठा लिया है और कांग्रेस उनसे लोहा लेने की कोशिश कर रही है। छात्र समुदाय के अन्दर झाड़ू का दूर-दूर तक पता नहीं है।
इन शिक्षा केन्द्रों के और राज्य चुनाव अभियान में भी एक समानता है। पिछली बार नरेंद्र मोदी यह भूल गए थे कि वे प्रधानमंत्री हैं और दिल्ली के चुनावों में पार्टी को सफल करना उनकी जिम्मेदारी नहीं है। अमित शाह ने दिल्ली के स्थानीय नेताओं को किनारे करके प्रचार प्रसार की बागडोर अपने हाथों में ले रखी थी यही कारण है कि दिल्ली की शर्मनाक हार के लिए किसी स्थानीय नेता को नहीं बल्कि केवल मोदी और शाह को जिम्मेदार ठहराया गया । इस बार भाजपा की नेताओं ने अपने आप को चुनाव से दूर रखा हालांकि अरुण जेटली एबीवीपी से होकर राजनीति में आए हैं और भाजपा प्रवक्ता सम्बत पात्रा भी जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। इस रणनीति का फायदा यह हुआ कि जो लोग ज़मीनी सच्चाई से परिचित हैं वे सही ढंग से चुनाव लड़ कर अपनी सफलता दोहरा सके।
इसके विपरीत अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों ने वह गलती की जो भाजपा के नेता पिछली बार कर चुके थे। यही कारण है कि एबीवीपी के राष्ट्रीय सचिव रोहित चाहल ने अपनी सफलता का श्रेय जहां कार्यकर्ताओं के सिर बांधा वहीं आम आदमी पार्टी की रणनीति को भी अपने पक्ष में अनुकूल बताया। चाहल के अनुसार यदि केजरीवाल विज्ञापन तंत्र के बजाय बुनियादी मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करते तो परिणाम अलग हो सकते थे। यह टिप्पणी इस बात का प्रमाण है कि प्रदर्शनी अभियान जिस तरह नरेंद्र मोदी के लिए व्यर्थ है उसी तरह केजरीवाल लिए भी बेकार है। कांग्रेस के लिए इन परिणामों में उम्मीद की किरण यह  है कि छात्र समुदाय के अंदर वह भाजपा को तो अपने पीछे नहीं कर सकी मगर 'आप' से बेशक आगे निकल गई है और सत्ताधारी दलों के प्रति युवाओं की निराशा इसके लिए लाभप्रद साबित हो रही है ।
दिल्ली विश्वविद्यालय के चुनाव एक पहाड़ी नदी की तरह होते है मगर जेएनयू एक शांत तालाब के समान है। जेएनयू के परिणाम का सबसे महत्वपूर्ण पैग़ाम यह है कि देश भर से जेएनयू में अध्ययन करने के लिए आने वाले बुद्धिमान के अंदर अब तक वामपंथी विचारधारा लोकप्रिय है। जिस तरह एबीवीपी पिछले दो सालों से दिल्ली के चारों पदों पर काबिज है इसी तरह जेएनयू के इन चारों सीटों पर लाल झंडा लहराता रहा है लेकिन इस बार सबसे निचली पायदान यानी सहसचिव की कुर्सी भगवा वादियों ने जीत कर यह बता दिया कि उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। इसके अलावा उपाध्यक्ष और सचिव की लड़ाई में भी उनका उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहा।
 अध्यक्षता के लिए असली प्रतिस्पर्धा वामपंथी छात्र संगठनों के बीच थी। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के छात्र संगठन एआईएसएफ के उम्मीदवार कनख्या कुमार ने इस बार कट्टरपंथी वामपंथी एआईएसए के विजय कुमार को 67 वोट के अंतर से हरा दिया। इसके बावजूद उपाध्यक्ष पद पर शहला रशीद और महासचिव की सीट पर एआईएसए के रामा नागा फिर एक बार सफल हो गए लेकिन इन दोनों जगहों पर उन से हारने वाले उम्मीदवारों का संबंध एबीवीपी से था। संयुक्त सचिव के कम महत्वपूर्ण पद पर तो एबीवीपी के सौरभ कुमार शर्मा ने एआईएसए के हामिद रजा हरा ही दिया।
एक ही शहर में दो विश्वविद्यालयों के चुनाव परिणामों का फर्क छात्रों के विभिन्न मनोविज्ञान की अभिव्यक्ति करता है। आम कॉलेज के छात्रों का चिंतन गहरा नहीं हैं। वह हर लहर के साथ हो जाते हैं। व्यक्तित्व के झांसे में आ जाते हैं। मीडिया की मदद से उन्हें अपने काबू में करना मुश्किल नहीं है। इसके अलावा वह जल्द बाज स्वभाव के होते हैं। जितना जल्दी किसी के सर्मथक बनते हैं उतनी ही तेजी के साथ उनका मोह भंग भी हो जाते हैं। इसके विपरीत जेएनयू के छात्रों में बौद्धिक स्थिरता पाई जाती है। वह सोच समझ कर मतदान करते हैं और आसानी से किसी बरगलाने में नहीं आते।
दिल्ली विश्वविद्यालय की तरह जेएनयू में एनएसयूआई या सीयूएसएस का कहीं दूर दूर तक अता-पता न होने का यही मुख्य कारण है। जेएनयू के सैद्धांतिक वातावरण में चिंता विहीन संगठन की जगह नहीं है। एबीवीपी अपने फासीवादी विचारधारा के बावजूद एक सैद्धांतिक संगठन है। दूसरा चौंकाने वाला सच यह है कि सामवाद का आर्कषण उच्च शिक्षा स्थलों में अभी शेष है। यह बात भी ध्यान देने योग्य है उसके चार में से दो उम्मीदवार मुसलमान थे जिनमें से एक ने जीत प्राप्त की और दूसरा मामूली फर्क से हार गया।
 स्टूडेंट्स इस्लामिक ओरगनाइज़ेशन (एसआईओ) जैसे सैद्धांतिक छात्र संगठन के लिए यह खुशखबरी है। जेएनयू के बुद्धिमान छात्रों अगर हिंदुत्व से प्रभावित हो सकते हैं तो इस्लाम से क्यों नहीं? जेएनयू के मुस्लिम छात्रों अगर सामवाद का झंडा उठा सकते हैं तो गैर मुस्लिम छात्र इस्लामवादी संगठन के झंडे तले चुनाव क्यों नहीं लड़ सकते?
इन उपलब्धियों के पीछे सिद्धांत के अलावा इन छात्रों संगठनों की ठोस कल्याणकारी संर्धष  भी है। एसआईओ यदि छात्रों की निस्वार्थ सेवा का बीड़ा उठाए तो कोई दूर नहीं कि वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवरसिटी की तरह जेएनयू में भी अपनी कामयाबी का झंडा गाड़ सकती है। एक ज़माने में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय वामपंथियों का गढ़ हुआ करता था लेकिन पिछले साल एसआईओ के अब्दुल्ला अज़ाम की अध्यक्ष पद पर सफलता ने साबित कर दिया कि यह काम मुश्किल जरूर है मगर असंभव नहीं है। इस ओर अगर कदम बढ़ाया गया तो आगे चल कर सफलता जरूर कदम चूमेगी।

Monday 14 September 2015

جہاں میں کامیابی کی یقیں والوں سے یاری ہے

ایک معمولی سا تنکا ہوا کے رخ پتہ دیتا ہے ۔دہلی یونیورسٹی اور دہلی میں واقع جواہر نہرولال یونیورسٹی کے انتخابات کے نتائج  تعلیم یافتہ  نوجوانوں کے فکری وسیاسی رحجان کی نشاندہی کرتے  ہیں ۔  گزشتہ سال  دہلی کے نوجوانوں کیلئے وزیراعظم نریندر مودی امید کی کرن تھے اور دہلی میں بی جے پی غیر معمولی کامیابی میں ان بہت بڑا حصہ تھا  لیکن ۸ ماہ بعد دہلی کے صوبائی انتخابات میں ایک نیا منظر نامہ سامنے آیا۔ اس بار یہ نوجوان نریندر مودی کا دامن جھٹک کر اروند کیجریوال سے بغلگیر ہوگئے تھے ۔ یہی وجہ تھی کہ  بی جے پی نے جہاں تمام پارلیمانی حلقوں میں کامیابی حاصل کی تھی وہیں عآپ نے ۷۰ میں سے ۶۷ نشستوں پر اپنا پرچم لہرا دیا تھا ۔ اس قدر کم وقت میں ایسا بڑا انقلاب کسی کے وہم و گمان میں نہیں تھا لیکن وہ برپا ہو کررہا ۔
 دہلی میں فی الحال کیجریوال کا بول بالا ہے ۔ اپنی پارٹی کے اندر وہ سارے مخالفین کو ٹھکانے لگا چکے ہیں ۔ مرکز کی ریشہ دوانیوں پر بھی بڑی حد تک قابو پاچکے ہیں اس لئے یہ توقع کی جارہی  تھی کہ نوجوانوں کے منظور نظر اروند کیجریوال کا جادو یونیورسٹی انتخابات میں سر چڑھ کر بولے گا اور کانگریس و بی جے پی کا صفایہ کردے گا لیکن افسوس کہ وہ طلسم بھی ٹوٹ گیا۔ کالج کے طلباء نے اروند کیجریوال سے اپنا رخ پھیر لیا اور پھر دوبارہ انہیں سیاسی جماعتوں کی جانب متوجہ ہو گئے جن پر وہ ماضی میں اعتماد کیا کرتے تھے۔
 جواہرلال نہرو یونیورسٹی چونکہ اقامتی درسگاہ ہے اس لئے اس میں بیرونِ دہلی کے طلباء کی تعداد زیادہ ہوگی اور دہلی  یونیورسٹی کے کالجوں میں مقامی طلباء کی بہتات ہونا فطری ہے۔ اس لئے ان نتائج سے اس بات کا بھی اندازہ لگایا جاسکتا ہے کہ شہر دہلی اور بیرونِ دہلی کی طلباء برادری کس رحجان کو کتنی اہمیت دیتی ہے۔ دہلی میں چونکہ مرکزی حکومت بی جے پی  کی ہے اور صوبائی اقتدار عآپ کے ہاتھوں میں ہے اس لئے توقع یہ کی جارہی تھی اصل مقابلہ انہیں دونوں جماعتوں کے طلباء تنظیموں بالترتیب  اکھل بھارتیہ ودیارتھی پریشد (اے بی وی پی ) اور چھاتر یوا سنگھرش سمیتی (سی وائی ایس ایس) کےدرمیان ہوگا لیکن ایسا نہیں ہوا ۔
دہلی یونیورسٹی میں اے بی وی پی کا بول بالا رہا ہے ۔ گزشتہ دو سالوں سے وہ چاروں اہم عہدوں (صدر، نائب صدر،سکریٹری اور جوائنٹ سکریٹری ) پر قابض رہی ہے۔ اس بار پھر سے یہی ہوا کہ اس نے ان چاروں نشستوں کو جیت لیا۔  سی  وائی ایس ایس نہ صرف  اپنا کھاتہ کھولنے میں ناکام رہی بلکہ وہ چار میں صرف ایک مقام پر دوسرے نمبر پر آسکی  بقیہ تینوں عہدوں کیلئے اے بی وی پی کو کانگریس کی طلباء تنظیم این ایس یو آئی کو پچھاڑنا پڑا۔  این ایس یو آئی نے سکریٹری کا عہدہ آپسی لڑائی کے سبب گنوایا۔ این ایس یوآئی کے امیدوار امیت شیراوت کو ۱۰ ہزار سے زیادہ اور باغی امیدوار امیت چودھری کو ۹ ہزار سے زائد ووٹ ملے جبکہ اےبی وی پی کی انجلی رانا صرف ۱۴  ہزارووٹ حاصل کرکے کامیاب ہو گئیں۔
ڈی یو ایس یو کی صدارت پر ستیندر آوانہ بڑے آرام سے فائز ہوگئے ۔ انہوں نے این ایس یو آئی کےپردیپ وجین کو۶ ہزار سے زیادہ کے فرق سے شکست فاش دے دی۔  نائب صدر کے عہدے پر سی یو ایس ایس نے اے بی وی پی کو ناکوں چنے چبوا دئیے۔ گریما رانا کو صرف ۷۵۵ ووٹوں کے معمولی فرق سے شکست ہوئی ۔  اس عہدے پر عآپ نے اپنی موجودگی کا احساس  زور دار طریقہ پردلایا۔  سکریٹری شپ پر اے بی وی پی کی انجلی رانا نے ۴ ہزار ۶ سو ووٹوں کے فرق سے اور جوائنٹ سکریٹری کے عہدے پر چرپال یادو نے ۶ ہزار کے فرق سے این ایس یو آئی کے امیدواروں کو شکست دے کر ثابت کردیا کہ طلباء  نےپھر ایک  زعفرانی پرچم اٹھا لیا ہے اور کانگریس ان سے لوہا لینے کی کوشش کررہی ہے ۔ طلباء برادری کے اندرجھاڑو کا دور دور تک پتہ نہیں ہے۔ 
ان تعلیم گاہوں کی اور ریاستی انتخابی مہم میں بھی ایک مماثلت ہے۔ گزشتہ مرتبہ نریندر مودی یہ بھول گئے تھے کہ وہ وزیراعظم ہیں اور دہلی کے انتخابات میں پارٹی کو کامیاب کرنا ان کی ذمہ داری نہیں ہے۔ امیت شاہ نے دہلی کے مقامی رہنماوں کو کنارے کرکے باگ ڈور اپنے ہاتھوں میں لے لی تھی  یہی وجہ ہے کہ دہلی کی شرمناک شکست کیلئے کسی مقامی رہنما کو ذمہ دار نہیں ٹھہرایا گیا بلکہ ساری بحث کا محور مودی اور شاہ رہے۔ اس مرتبہ بی جے پی کی لیڈرشپ نے اپنے آپ کو کیمپس انتخابات سے دور رکھا حالانکہ ارون جیٹلی  اے بی وی پی سے ہوکر سیاست میں آئے ہیں اور بی جے پی ترجمان سمبت پاترا بھی جے این یو طلباء یونین  کے صدر رہ چکے ہیں ۔  اس  حکمت عملی کا فائدہ  یہ ہوا کہ جو لوگ زمینی حقائق سے واقف ہیں انہوں نے صحیح انداز میں انتخاب لڑا اور اپنی کامیابی کو دوہرا دیا۔
اس کے برعکس اروند کیجریوال اور ان کے ساتھیوں نے وہ غلطی کی جو بی جے پی کے رہنما پچھلی مرتبہ کرچکےتھے ۔ یہی وجہ ہے کہ اے بی وی پی کے قومی  سکریٹری  روہت چاہل  نے اپنی کامیابی کا سہرہ جہاں کارکنا ن کے سر باندھا وہیں عام آدمی پارٹی کی حکمت عملی کو بھی اپنے حق میں سازگار گردانہ ۔ چاہل کے مطابق اگر کیجریوال اشتہاری تماشوں کے بجائے بنیادی مسائل پر اپنی توجہ مبذول کرتے تو نتائج مختلف ہو سکتے تھے ۔  یہ تبصرہ اس بات کا غماز ہے نمائشی مہم جس طرح نریندر مودی کیلئے بے فائدہ ہے اسی طرح کیجریوال کیلئے بھی بے سود ہے۔  کانگریس کیلئے ان نتائج میں یہ امید کی کرن ہے کہ طلباء برادری کے اندر وہ بی جے پی  کو تو اپنے پیچھے نہیں  کرسکی مگر عآپ سے یقیناً آگے نکل گئی ہے اور  برسرِ اقتدار جماعتوں کے تئیں نوجوانوں کی مایوسی اس کیلئے سود مند ثابت ہو رہی ہے۔
دہلی یونیورسٹی کے انتخابات تو ایک چنگھاڑتی پہاڑی ندی کے طرح  ہوتےہیں مگر جے این ایو ایک نہایت پرسکون تالاب کی مانند ہے ۔ اس  لئے جے این یو کے نتائج کسی اور رحجان کا پتہ دیتے ہیں ۔  سب سے اہم بات یہ ہے کہ ملک بھر سے جو ذہین طلباء جے این یو میں تعلیم حاصل کرنے کیلئے آتے ہیں ان کے اندر ہنوز اشتراکی نظریات کی حامل تحریکیں مقبول ہیں ۔ جس طرح اے بی وی پی گزشتہ دوسالوں سے دہلی کے چاروں عہدوں پر قابض ہے اسی طرح جے این یو کے ان چاروں نشستوں پر سرخ پرچم لہرا تارہا ہے  لیکن اس مرتبہ اس کی سب سے نچلی پائیدان یعنی جوائنٹ سکریٹری کی کرسی پر زعفرانیوں نے کامیابی حاصل کرکے یہ بتادیا کہ ان کی قوت کو نظر انداز نہیں کیا جاسکتا ۔ اس کے علاوہ نائب صدر اور سکریٹری کی جنگ میں بھی ان کا امیدوار دوسرے نمبر پر رہا۔
   صدارت کیلئے اصل مقابلہ بائیں بازو کی طلباء تنظیموں کے درمیان تھا ۔ کمیونسٹ پارٹی آف انڈیا کی طلباء تنظیم اے آئی ایس ایف  کے امیدوار کنھیا کمارنے اس بار انتہا پسند نظریات کی حامل اے آئی ایس اے  کے وجئے کمار کو ۶۷ ووٹ کے فرق سے شکست دے دی ۔  اس کے باوجود نائب صدر کے عہدے پر شہلا رشید اور سکریٹری جنرل کی نشست پر اے آئی ایس اے کے راما ناگا پھر ایک بار کامیاب ہوگئے لیکن ان دونوں مقامات پر ان سے ہارنے والے امیدواروں کا تعلق اے بی وی پی سے تھا۔ جوائنٹ سکریٹری کے نسبتاً کم اہم  عہدے پر تو اے بی وی پی کے سوربھ کمار شرما نے اے آئی ایس اے کے حامد رضا کو شکست دے دی۔  
ایک ہی شہر میں واقعدو یونیورسٹیوں کے انتخابی نتائج کا فرق طلباء کی مختلف نفسیات  کا اظہار ہے۔ عام کالج کے طلباء انتشار فکر کا شکار ہیں۔ وہ ہر لہر کے ساتھ ہوجاتے ہیں۔ باآسانی مختلف شخصیات کے جھانسے میں آجاتے ہیں ۔ ذرائع ابلاغ کی مدد سے ان کو اپنے قابو میں کرنا مشکل نہیں ہے۔  اس کے علاوہ وہ جلد باز طبیعت کے حامل ہیں ۔ جس قدر جلدی کسی کے گرویدہ ہوتے ہیں اتنی ہی تیزی کے ساتھ اس سے بددل بھی ہوجاتے ہیں ۔  اس کے برعکس جے این یو کے طلباء میں فکری استحکام پایا جاتا ہے۔ وہ سوچ سمجھ کر اپنا حق رائے دہندگی استعمال کرتے ہیں اور آسانی سے کسی ورغلانے میں نہیں آتے۔  
دہلی یونیورسٹی کی طرح جے این یو میں این ایس یو آئی  یا سی یوایس ایس کا کہیں دور دور تک اتہ پتہ نہ ہونے کا یہی بنیادی سبب ہے۔ جے این یو کے نظریاتی ماحول میں  فکر ونظر سے عاری کسی تنظیم کی گنجائش نہیں ہے۔ اے بی وی پی  اپنے فسطائی نظریہ کے باوجود ایک نظریاتی تنظیم ہے۔  دوسری چونکا دینے والی حقیقت یہ ہے کہ اشتراکی فکر کیلئے ان  گئے گزرے حالات میں  بھی  اعلیٰ تعلیم گاہوں کے اندر کشش باقی ہے۔ یہ بات بھی قابلِ غور ہے اس کے چار میں دو امیدوار مسلمان تھے جن میں سے  ایک نے کامیابی حاصل کی  اور  دوسرامعمولی سے فرق ہار گیا  ۔
 اسٹوڈنٹس اسلامک آرگنائزیشن (ایس آئی او) جیسی نظریاتی طلباء تنظیم کیلئے اس میں خوشخبری ہے۔ جے این یو  کے ذہین طلباء اگر ہندوتوا کےنظریہ سے متاثر ہوسکتے ہیں تو اسلام سےکیوں نہیں ؟ جے این یو کے مسلم طلباء  اگراشتراکیت کا پرچم بلند کرسکتے ہیں تو وہاں کے غیر مسلم طلباء اسلام  پسند تنظیم کے جھنڈے تلے  انتخاب کیوں نہیں لڑسکتے؟ دراصل ان کامیابیوں کے پیچھے نظریہ کے علاوہ ان طلباء تنظیموں کی ٹھوس فلاحی خدمات  بھی ہیں ۔ ایس آئی او اگر طلباء کی بے لوث خدمت کا بیڑہ اٹھائے تو کوئی بعید نہیں کہ وہ  علی گڑھ مسلم یو نیورسٹی کی مانند جے این یو کے بھی اپنی کامیابی کا جھنڈا گاڑ سکتی ہے۔ ایک زمانے میں علی گڑھ مسلم یونیورسٹی اشتراکیوں کا گڑھ ہوا کرتی تھی لیکن  گزشتہ سال ایس آئی اوکےصدارتی امیدوار عبداللہ عزام کی  کامیابی نے ثابت کردیا کہ یہ کام مشکل ضرور ہے مگر ناممکن نہیں ہے۔ اس جانب اگر قدم بڑھایا گیا تو  جلد یا بدیریقیناً کامیابی قدم چومےگی بقول ایک انگریزی  شاعر ؎

سفر آغاز جب کرنا
 تو بس اتنا سمجھ لینا
 جہاں میں کامیابی کی یقیں والوں سے یاری ہے
 اگر تم بھی یقیں رکھو
 تو پھر منزل تمھاری ہے۔

         

Sunday 13 September 2015

संघ और सरकार की संयुक्त बैठक

संघ परिवार के साथ सरकार के संयुक्त बौठक पर इतने विचार व्यक्त किये गए कि बहुत दिनों के बाद सुश्री मायावती का नाम और चित्र भी मीडिया में आगया वरना तो लोग हाथी की माया को भूल ही गए थे? मायावती ने सोचा होगा मुसलमानों को रिझाने का यह दुर्लभ अवसर है। मुलायम संघ अनेक कारणों से भाजपा के करीब होते जारहे हैं। पहले संसद में वह अचानक विपक्ष के विरोध से अलग हो गए और अब बिहार के महागठ बंधन से किनारा कर लिया। यदि शरद पवार की एनसीपी के साथ मुलायम संघ एक नया मोर्चा बनाकर बिहार के दंगल में कूद पड़ें तो संभव है घर के न घाट के जितिन राम मांझी भी उनके साथ बीजेपी की नाव को डूबने से बचाने की कोशिश में लग जाएं। ऐसे में मुसलमान अवश्य मुलायम संघ से नाराज होकर विकल्प खोजने का प्रयत्न करेंगे और मायावती के मायाजाल में फिर से फंस जाएंगे। इसलिए मुसलमानों के तुष्टीकर्ण का इस से अच्छा मौका और कोई नहीं हो सकता। मुसलमानों के मनसिकता कुछ ऐसी है कि वह अपनी प्रशंसा से भी अधिक संघ परिवार की आलोचना पर खुश होते हैं।
बहुजन समाज पार्टी की जो मुश्किल है वही समस्या भारतीय जनता पार्टी की भी है। जिस तरह मुसलमानों को खुश करना बसपा के दोबारा सत्ता में आने के लिए जरूरी है उसी तरह अपनी सरकार को बनाए रखने के लिए संघ परिवार का तुष्टीकर्ण भाजपा की मजबूरी है। मुसलमान जिस तरह भाजपा को हराने के लिए तन मन धन से जुट जाते हैं संघ के स्वयंसेवक भी भाजपा को सफल करने के लिए अपनी सारी ऊर्जा झोंक देते हैं। इन मुफ्त की सेनाओं को बहला फुसलाकर अपने साथ रखना और कुछ प्रदर्शनी कामों से उन्हें खुश करते रहना राजनीतिक दलों के अवसरवाद की अनिवार्यता है। लोकतांत्रिक प्रणाली में हर राजनीतिक दल अपने मतदाताओं सहित कार्यकर्ताओं का भावनात्मक शोषण करता है। इस तरह वे न केवल सत्ता प्राप्त करते हैं बल्कि जब सफल हो जाती हैं तो उसे सशक्त भी करते हैं।
संघ परिवार का यह आरोप कि धर्मनिरपेक्ष दल मुसलमानों के इशारे पर चलते हैं ऐसा ही है कि जैसे यह कहा जाए कि भाजपा का रिमोट कंट्रोल आरएसएस के हाथों में है। कोई धर्मनिरपेक्ष दल मुसलमानों के हित में ठोस काम नहीं करता हां उनके कार्यकाल में कुछ मुस्लिम नेताओं के वारे न्यारे जरूर हो जाते हैं। कोई मुफ्ती गृहमंत्री तो कोई सलमान विदेश मंत्री बना दिया जाता है, लेकिन आम मुसलमान की दुर्दशा पर इसका कोई विशेष असर नहीं होता। इसी तरह भाजपा के सत्ता में आते ही कुछ सुषमा और जेटली जैसे लोग समृद्ध तो हो जाते हैं लेकिन हिंदू जनता का भला नहीं होता। संघ परिवार के कुछ नेताओं के साथ सरकार के कुछ मंत्रियों का बैठना और अनचाहे प्रवचन जहर मार कर लेने को संघ के आगे सरकार का नतमस्तक होना कह देना मूर्खता है। यह और बात है कि फिल्मी अभिनेताओं की तरह राजनीतिक नेता भी इस तरह की अफवाहें अपने हित में फैलाते रहते हैं।
इसमें संदेह नहीं कि भारतीय जनता पार्टी संघ परिवार का एक अभिन्न अंग है लेकिन अब यह सुपुत्र जवान हो चुका है वह बडी आस्था के साथ अपने गुरूवर की बातें सुन तो लेता है लेकिन सभी का पालन नहीं करता। जो उसे उपयुक्त लगती हैं उन पर अमल करता है बाकी पर क्षमा मांग लेता है। सरकार में शामिल अक्सर मंत्रियों ने संघ की शाखा में प्रशिक्षण प्राप्त किया है इसलिए वे हमेशा एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं। अटल जी और आडवाणी जी के समय में भी यही स्थिति थी और भाजपा को जब भी सत्ता मिलेगी यही होगा जो स्वाभाविक है। संघ और भाजपा एक दूसरे के लिए इसी तरह अविभाज्य हैं जैसे नेहरू गांधी परिवार और कांग्रेस या मायावती और बसपा। अंतर बस यह है कि एक सार्वजनिक कंपनी है जिस के कई शेयर होल्डर्स हैं और दूसरी परिवारिक प्राइवेट लीमीटीड संस्था। इन सभी राजनीतिक व्यापारियों प्रकृति भीतर से समान है।
ऐसे में यह प्रशन उठता है कि संघ और भाजपा ने ऐसा बड़ा तमाशा इससे पूर्व केंद्र तो दूर किसी राज्य में भी क्यों नहीं किया? यह भी सच है कि बड़े गर्व से अपने आप को प्रधान सेवक कहने वाले मोदी जी ने भी मुख्यमंत्री के रूप में इस तरह की किसी सभा में भाग नहीं लिया। दरअसल अटल जी ने रजू भैया के युग में सत्ता संभाली लेकिन सौभाग्य से बहुत जल्दी सुदर्शन सरसंघ चालक बना दिए गए। सुदर्शन अपनी भौतिक और संगठनात्मक आयु में अटल और आडवाणी से छोटे थे इस लिए सुर्दशन का उन पर जोर नहीं चलता था। मोदी और भागवत समान आयु के हैं, लेकिन अन्य मंत्री और अमित शाह उनसे खासे जूनियर हैं इसलिए भागवत को गुरु मानकर उनको साष्टांग नमस्कार कर देते हैं। इस तरह भागवत की आत्मा को शांति मिल जाती है और संघ परिवार खुशी से झूम उठता है। अटल जी की गठबंधन सरकार थी जिसमें कई संघ विरोधी दल भी शामिल थे इसलिए वह अपने समर्थकों की नाराजगी का बहाना बना कर कन्नी काट लेते थे लेकिन मोदी जी ऐसा नहीं कर सकते।
भाजपा को बाद पहली बार अपने बूते पर बहुमत प्राप्त हुवा है इसलिए स्वयंसेवकों की उम्मीदें पहले की अपेक्षा बहुत बढ़ गई हैं। अटल जी की सरकार पर राम मंदिर बनाने का दबाव था क्योंकि आडवाणी जी ने इसी आधार पर वोट मांगा था लेकिन मोदी जी पर ऐसा दबाव नहीं है। मोदी जी विकास और समृद्धि के सपने दिखला कर सत्ता में आए हैं इसलिए जनता उनसे अपने वादे निभाने की उम्मीद करती है। जैसे समय बीतता जा रहा जनअसंतोष में तेजी के साथ वृद्धि होती जा रही है। संघ के स्वयंसेवक जिन्होंने अपना खून पसीना एक करके चुनावी जीत प्राप्त की थी वे भी निराश हो रहे हैं। दरअसल उन्हीं स्वयंसेवकों को संतुष्ट करने या मूर्ख बनाने के लिए यह नाटक किया गया। केंद्रिय मंत्रियों को एक पंक्ति में भागवत के सामने दंडवत करते हुए देखकर संघ कार्यकर्ता धन्य हो गए और उन सपनों को भूल गए जिन्हें साकार करने के लिए उन्होंने अपना तन मन धन झोंक दिया था।
वेंकैया नायडू का पहले दिन यह कहना कि हमारा संघ के साथ बैठना ऐसा ही है जैसे एक बेटे का अपनी माता के पास जाना दरअसल संघ कार्यकर्ताओं का भावनात्मक शोषण था। दूसरे दिन राजनाथ बात साफ कर दी कि हम ने उनसे ना आदेश लिया और न उनके समक्ष जवाबदेही की। उनके पास जो जानकारी है उसे प्राप्त किया गया और विचार विर्मश तो किसी से भी किया जा सकता है। राजनाथ ने थिंक टैंक की बात भी कही जो मार्गदर्शन के लिए हो सकता है लेकिन वे भूल गए कि भाजपा की भी आडवाणी और जोशी जैसे लोगों वाली एक मार्गदर्शक समिति है। सरकार ने आज तक उन से किसी मुद्दे पर भी सलाह नहीं ली। इस बैठक में जहां संघ की ओर से 95 लोगों को इकट्ठा कर लिया गया और सरकार के 20 मंत्री उपस्थित थे मार्गदर्शक समिति के बुजुर्ग सदस्यों को भी कम से कम दिल रखने के लिये बुलाया  जा सकता था लेकिन स्वार्थी राजनेताओं से इस तरह की उम्मीद करना व्यर्थ है। जहां तक ​​मार्गदर्शन का प्रशन है वह तो सिरे से उद्देश्य ही नहीं था। मुसलमानों की चिंता इसलिये भी व्यर्थ है कि उनके अधिकारों के हनन में भाजपा संघ से दो कदम आगे है।
प्रधान मंत्री ने आखिरी दिन बड़े गाजे-बाजे से बैठक में उपस्थित होकर उक्त धारणा की पुष्टि कर दी। पहले तो संघ ने उन्हें अपनी सुविधानुसार आने की अनुमति देकर अपनी औकात बता दी। इसके बाद मोदी जी ने आदत के अनुरूप एक चुनावी भाषण देकर यह स्पष्ट कर दिया कि किस का महत्व क्या है? मोदी जी ने यह स्वीकार किया कि मैं आज इस स्थान पर संघ के संस्कारों की बदौलत पहुंचा हूं लेकिन यह एक द्विभाषी वाक्य है जिसका एक मतलब यह भी है कि इन संस्कारों का लाभ उठाकर मैं ने जो ऊंचाई प्राप्त कर ली है आप लोग इससे वंचित हैं। इसके बाद मोदी जी ने खुद अपनी पीठ थपथपाते हुए कहा कि सरकार ने इस दौरान कई उपलब्धियां प्राप्त की हैं और अब यह आप लोगों का काम है कि उन्हें जनता तक ले जाएं इस प्रकार वह संघ से मार्गदर्शन लेने के बजाय उसे काम में लगाकर लौट आए। अगर यह आदेश लेना है तो आदेश देना किसे कहते हैं?
इस बैठक के बाद लोग उम्मीद कर रहे थे कि संघ ने सरकार की कम से कम ललित मोदी या व्यापम जैसे मामले में खिंचाई की होगी। लेकिन पता चला कि वह तो केवल सरकार की प्रशंसा करने और उसे अधिक समय देने के अलावा कुछ और नहीं कर सका। जहां तक ​​ समय देने का सवाल है वह तो भारत की जनता ने भाजपा को दे दिया है और संघ न भी चाहे तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। राम मंदिर जैसे विवाद पर संघ प्रवक्ता ने कह दिया कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे। पाकिस्तान की ओर से सीमा पर होने वाले हमलों को लेकर संघ से कड़े रुख की उम्मीद थी लेकिन इस पर भी सरकार को पाकिस्तान के साथ बंधुत्व के वातावरण में बातचीत जारी रखने की हिदायत दी गई। सीमा पर चीनी हमले के खिलाफ संघ बराबर आग उगलता रहता था। वे अपने सदस्यों को चीन की यात्रा पर जाने तक की अनुमति नहीं देता था मगर पिछले एक साल से उसके होटों पर ताला लगा हुआ है। आजकल संघ जनता को चीनी माल उपयोग करने पर तो डांटता है मगर सरकार को आयात बंद करने की सलाह नहीं देता। इस स्थिति को देखकर ऐसा लगता है कि संघ परिवार सरकार को प्रभावित करने के बजाय उस से प्रभावित होने लगा है। ؎
शामिल पसे पर्दा भी हैं इस खेल में कुछ लोग बोलेगा कोई, होंठ हिलाएगा कोई और
यदि ऐसा नहीं है तो क्या कारण है कि खुद मोदी जी ने तो अभी तक कोई इफ्तार पार्टी नहीं दी बल्कि राष्ट्रपति की इफ्तार से भी कन्नी काट गए मगर संघ ने न केवल इफ्तार पार्टियों आयोजीत कीं बल्कि उलेमा की सभा तक कर डाली। भले मुसलमान उसके झांसे में नहीं आए परंतु संघ की ओर से यह आयोजन उसका सैद्धांतिक पराजय है। सच तो यह है कि संगठन चलाना या अभियान चलाकर चुनाव में सफलता प्राप्त कर लेना एक काम है और सरकार के प्रशासनिक कार्य कुशलता से संचालित करना विभिन्न काम है। मोदी सरकार की निरंतर विफलताओं को देखकर ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री के रूप में कई वर्षों का अनुभव भी नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंग और मनोहर परिकर को अच्छा प्रशासनिक नहीं बना सका।
भूमि अधिग्रहण के मामले में सरकार को मुंह की खानी पड़ी। इस बीच अश्लील वेबसाइटों पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की गई लेकिन फिर घबराकर यू टर्न ले लिया गया और अब पुणे फिल्म संस्थान के प्रमुख को लेकर वे बचाव में आ गए। गजेन्द्र चौहान को निष्क्रिय करने के प्रयत्न किये जा रहे हैं। पूर्व सैनिकों की पेंशन के मामले में सरकार की अनुभवहीनता चरम सीमा पर है। पूर्व सैनिक 84 दिनों तक विरोध करते रहे और सरकार घोड़े बेचकर सोती रही लेकिन जब देखा कि इसका नकारात्मक प्रभाव बिहार चुनाव पर पड़ सकता है तो आचार संहिता लागू होने से तीन दिन पहले जल्दबाजी में ओरोप मंजूरी की घोषणा ऐसे की के 7 में से केवल एक मांग को स्वीकार किया गया इसलिए प्रदर्शन खत्म नहीं हुआ।
यह मामला बहुत दिलचस्प है। सुबह 11 बजे पूर्व सैनिकों के प्रतिनिधियों को रक्षा मंत्री ने मुलाकात के लिए बुलाया तो इस समय स्वैच्छिक छात्रवृत्ति प्राप्त सैनिकों को इससे अलग रखने का प्रशन चर्चा में आया ही नहीं। शाम 5 बजे खुद रक्षा मंत्री परीकर ने घोषणा कि स्वैच्छिक छात्रवृत्ति प्राप्त सैनिकों को लाभ नहीं मिलेगा। उसी शाम 7 बजे फिर जब प्रतिनिधिमंडल ने रक्षामंत्री से मुलाकात की तो वे बोले न जाने वह प्रावधान कहाँ से आ गया? इससे पता चलता है कि खुद रक्षा मंत्री नहीं जानते कि वे क्या कह रहे हैं और उन्हों ने एक मामूली सी गलती से 45 प्रतिशत सैनिकों की पेंशन शहीद कर दी। बाद में प्रधानमंत्री ने कहा लोग भ्रम फैलाकर गुमराह कर रहे हैं और सारे सैनिक इससे लाभवंत होंगे जबकि यह काम उनके रक्षा मंत्री कर रहे थे। प्रधानमंत्री के अनुसार 14 महीनों से वह इस काम में लगे हुए हैं, लेकिन रक्षा मंत्री कहते हैं कि कागजात की तैयारी में दो सप्ताह से लेकर एक महीना लग सकता है।
यदि पूर्व सैनिकों को प्रधानमंत्री के आश्वासन पर भरोसा होता तो वे अपना प्रर्दशन खत्म कर देते लेकिन ऐसा नहीं हुआ। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि हम अपनी आमरण भूक हडताल तो खत्म किए देते हैं लेकिन जब तक कि हमारि सारी मांगें न मानी जाएं और हमें लिख कर नहीं दिया जाए विरोध प्रर्दशन जारी रहेगा । सैनिकों का अविश्वास बजा है। वित्त मंत्री इसे अनुचित और अव्यावहारिक बता चुके हीं। प्रधानमंत्री के आश्वासन के बावजूद सरकारी अधिकारी कहते हैं कि जिन लोगों ने बेहतर रोजगार के लिए सेना को अलविदा कहा वह इस सुविधा के हकदार कैसे हो सकते हैं। उनमें से कोई पेंशन के अभाव का यह लाभ बतलाता है कि यह सैनिकों के सेना से निकलने में हतोत्साहित होगा।
अविश्वास के वातावर्ण की यह चरम सीमा है कि पूर्व सैनिक तक सरकार के शब्दों पर भरोसा नहीं करते ऐसे में जनता किस गिनती में आती है? संघ से सरकार की बातचीत का नाटक संघ प्रचारकों को विश्वास में ले सकता है मगर आम लोगों पर इस तमाशे का कोई असर नहीं होगा। यह बात जग जाहिर है कि पूर्व सैनिकों को पेंशन देने का फैसला संघ के कहने पर नहीं बल्कि बिहार चुनाव के कारण किया गया है। अगर चुनाव सिर पर न होते या इसमें भाजपा के हारने की संभावना न होती तो यह निर्णय कदापि न होता। संघ के कथाकथित देश भक्तों के मन में राष्ट्र गरिमा का विचार होता तो वह दिल्ली के मध्याँचल भवन में तीन दिन की सरकारी खर्च पर पिकनिक मनाने के बजाय जंतर मंतर पर जाकर पूर्व सैनिकों को विश्वास में लेते और उनका विरोध प्रतिष्ठित रूप में खत्म करवाते परंतु यहां तो मदारी का खेल हो रहा है कोई डुगडुगी बजा रहा है कोई उछल कूद रहा है राष्ट्र की चिंता ना संघ को है ना सरकार को।

Friday 4 September 2015

تازہ ہوا بِہار کی، دل کا ملال لے گئی

وزیراعظم نریندر مودی کی محنت و کاوش رنگ لانے لگی ہے۔ ان کے مخالفین کے اچھے دن آنے لگے ہیں۔  اس کی ابتداء ویسے تو دہلی سے ہوئی لیکن اس کی انتہاء ممکن ہے بہار میں ہوجائے۔  مودی جی میں اگر سمجھ بوجھ ہوتی تو چھوٹی سی دہلی کی بڑی شکست سے عبرت پکڑتے ہوئے پروقار انداز میں صوبائی  انتخابات سے کنارہ کشی اختیار کرلیتے لیکن وہ ایسا نہ کرسکے ۔ دہلی میں تو بی جے پی سب سے بڑی سیاسی جماعت تھی ۔ صدر راج کے چلتے اقتدار کی زمامِ کار بلاواسطہ بی جے پی کے ہاتھوں میں تھی۔  حزب اختلاف دوحصوں میں منقسم تھا ۔ انتخابی مہم میں حصہ لینے کیلئے کہیں جانے کا قصد نہیں کرنا پڑتا تھا اور اوبامہ کوجشنِ جمہوریہ میں بلا کر عوام کو گمراہ کرنے کا بھی نادر موقع تھا۔ کیجریوال کے دامن پر وقت سے پہلے استعفیٰ دے کر بھاگ کھڑے ہونے کا داغ بھی تھا ، اس کے باوجود شاہ جی اور مودی جی  کی پے درپے حماقتوں نے کیجریوال کو ایسی کامیابی سے نواز دیا جس کا تصور بھی محال تھا۔
اس کے برعکس  بہار میں  بی جے پی کچھ عرصہ پہلے تک  جنتادل (یو) کی جونیر پارٹنر ضرور رہی  لیکن اس کو کبھی بھی اپنے بل بوتے پر اقتدار نصیب نہیں ہوا۔ اس پارلیمانی انتخابات  کا اگرجائزہ لیا جائے جس میں بی جے پی نے غیر معمولی کامیابی حاصل کی تو یہ بات  صاف ہو جاتی ہے کہ وہ حزب اختلاف کے انتشار کا نتیجہ تھا ۔بی جے پی کو اپنے دو حواریوں کے ساتھ کل ملا کر ۸ء۳۵ فیصد ووٹ ملے تھے جبکہ جے ڈی یو ، آر جے ڈی اور کانگریس نے جملہ ۳ء۴۴ فیصد ووٹ حاصل کئے تھے۔ ایسا بھی نہیں ہے کہ مودی جی کے اقتدار میں آتے ہی رائے دہندگان کا جھکاو بی جے پی کی جانب بڑھ گیا ہو اس لئے کہ ضمنی انتخاب میں بھی جہاں بی جے پی اور ایل جے پی نے مشترکہ طور پر ۹ء۳۷ فیصد ووٹ حاصل کئے وہیں کانگریس ، جے ڈی یو اور آرجے ڈی نے مل کر ۶ء۴۵ فیصد ووٹ حاصل کئے۔ یہ گزشتہ سال اگست کی بات ہے جب مودی جی کا جادو سر چڑھ کر بول رہا تھا ۔ اب ایک سال  گزر جانے کےبعد بھی اگر کوئی یہ سمجھتا ہے کہ انکی مقبولیت میں اضافہ ہوا ہے تو اس سے بڑا مودی  جی کااندھابھکت کون ہوسکتا ہے؟
بہار کی حالیہ انتخابی مہم کا اگر گزشتہ سال کے قومی انتخابات  کی مہم سے موازنہ کیا جائے تو ایک زبردست مشابہت نظر آتی ہے۔ پچھلے سال کانگریس کا یہ حال تھا کہ وہ اقتدار کے نشے میں چور بغیر کسی خاص حکمت عملی کے روایتی انداز میں بے دلی کے ساتھ جلسے جلوس کررہی تھی ۔  اس دوران اس نے کوئی نیا الحاق تو درکنار پرانے حلیفوں کا بھی ساتھ چھوڑ دیا۔ اس کے برعکس بی جے پی نے اپنی انتخابی منصوبہ بندی کیلئے پرشانت کشور جیسے ذہین مشتہر کی خدمات حاصل کررکھی تھیں جو متنوع انداز میں مہم کی منصوبہ بندی کررہا تھا اور مودی جی کی پرجوش قیادت میں بی جے پی اس پر عملدرآمد کررہی تھی ۔ اس دوران ہر چھوٹی بڑی جماعت کو ساتھ الحاق کرنے کی کوشش بھی جاری تھی اور قومی جمہوری محاذ میں شامل جماعتوں کی تعداد ۲۵ تک پہنچ گئی تھی ۔
اس بار نتیش کمار نے آسمان میں اڑنے کے بجائے زمین سے اپنے کام کا آغاز کیا۔   مانجھی کو گھر بھیج کرمودی کی طرح خود کمان سنبھالی۔ لالو یادو  اور کا نگریس کے ساتھ اپنے الحاق کو مستحکم کیا۔ لالو یادو نے بھی کمال پختگی  اور سوجھ بوجھ کا مظاہرہ کرتے ہوئے نتیش کمار کواس مہا گٹھ بندھن کا چہرہ بنا یااور خود اس کے ریڑھ کی ہڈی بن گئے ۔ لالو نے اپنی انا قربان کردی اور سماجوادی کو اپنے حصے میں ۵ نشستیں دے کر سیکولر محاذ کو ٹوٹنے سے بچا لیا۔ کانگریس کو ۴۰ نشستیں دے کر پر وقار انداز میں ساتھ لیا اورنتیش کمار نے بھی  اقتدار میں ہونے کے باوجود۱۰۰ نشستوں پر اکتفاء کرلیا۔ اس کے بعدان لوگوں نےپرشانت کشور کی خدمات حاصل کیں تاکہ بی جے پی کو منھ توڑ جواب دیا جاسکے ۔ اس کے برخلاف بی جے پی نے وہی روایتی پروپگنڈا، وزیراعظم پر بیجا انحصار ، جلسے جلوس اور قسمیں وعدے شروع کردئیے جن پر پہلے تو لوگوں نے انجانے میں اعتماد کرلیا تھا لیکن اب کسی کا اعتبار نہیں ر ہا۔ وزیر اعظم نے ایک کے بعد ایک تین ریلیاں کیں جن کے سارے اثرات کو نتیش لالو اور سونیا نے پٹنہ کی ایک مہاریلی کے ذریعہ زائل کردیا۔
بھارتیہ جنتا پارٹی  فی الحال کئی محاذ پر ایک ساتھ جوجھ رہی ہے۔ کانگریس کی منموہن سرکار دس سالوں میں جس قدر بدنام ہوئی تھی مودی سرکار اس ایک سال کے عرصے میں اس سے زیادہ رسوا ہوچکی ہے۔ بی جے پی کے پاس کوئی وزیراعلیٰ کا امیدوار نہیں ہے اور عوام جانتے ہیں کہ مودی جی دہلی کا تخت و تاج چھوڑ کر بہار کا اقتدار سنبھالنے کیلئے نہیں آئیں گے۔ بھارتیہ جنتا پارٹی کے اندر وزیراعلیٰ کی کرسی کےکئی خواہشمند ہیں اور ان کی ناراضگی سے بچنے کیلئے وہ اپنے امیدوار کا اعلان کرنے سے کترا رہی ہے۔ اننت کمار نے جب کہا کہ وزیراعظم کے نام پر ووٹ مانگا جائیگا تو سشیل مودی ناراض ہوگئے مگر ۸۰ سالہ سی پی ٹھاکر نے کہہ دیا کہ وہ اس عہدے پر ذمہ داری ادا کرنے کیلئے تیار ہیں۔پٹنہ سے بی جے پی کے رکن پارلیمان شتروگھن سنہا اس کیلئے بہت بڑا سر درد بنے ہوئے ہیں ۔ انہوں نے یعقوب میمن سمیت کئی مسائل میں پارٹی  موقف کی مخالفت کرنے کے بعد نتیش کمار کو بہار کا سرپرست تک قرار دے دیا۔
نتیش کمار نے اس بیچ ایک ایسی چال چلی جس نے بی جے پی کے کئی مہرے الٹ گئے۔ اروند کیجریوال کو بہار بلا نا اوران کو اپنا ہمنوا بنا کر پیش کرنا کئی اعتبار سے اہم ہے۔ نتیش پر یہ الزام ہے کہ وہ  بدعنوان لالو کا ساتھ ہوگئے ہیں لیکن کرپشن کے خلاف لڑنے والے والے کیجریوال کی حمایت اس کو کمزور کردیتی ہے۔ کیجریوال شہری علاقوں میں خاصے مقبول ہیں  اس لئے ان کی حمایت کا اثر بی جے پی کے شہری متوسط طبقے کے رائے دہندگان کو متاثر کرسکتا ہے۔ اس بار بہار کے ہر حلقۂ انتخاب میں ۸ تا ۱۰ہزار نوجوان ووٹرس ہیں وہ یقین کیجریوال کی شخصیت کے اندر ایک کشش محسوس کرتے ہیں۔ یہ رائے دہندگان ذات پات کو کم اہمیت دیتے ہیں ایسے میں جو نام نہاد اونچی ذات کے رائے دہندگان بی جے پی کا ساتھ چھوڑنے کے سبب نتیش سے دور ہوگئے ہیں ان میں سے کچھ کیجریوال کے توسط سےقریب آسکتے ہیں۔ کیجریوال اور نتیش کمار کے درمیان کوئی سودے بازی نہیں بلکہ بے لوث دوستی ہے۔ نتیش نے دہلی انتخاب میں کیجریوال کی حمایت کی بدلے میں کچھ نہیں مانگا یہی کیجریوال نے بھی کیا اور پھر دشمن کا دشمن تو دوست ہوتا ہی ہے۔   
بی جے پی  نے اس دوران  جتن رام مانجھی اور پپو یادو کو بھی اپنے قریب کرنے کی کوشش کی  لیکن سچ تو یہ ہے کہ  نئے حلیف تو درکنار اس کے پرانے ساتھی رام ولاس پاسوان  اور اوپندر خوشواہا  بھی بی جے پی سے ناراض چل رہے ہیں ۔ سب سے پہلے تو انہیں بی جے پی نعرے ’’اب کی بار بی جے پی سرکار‘‘ پر اعتراض ہے۔ ان کا کہنا ہے کہ بی جے پی کے بجائے اس نعرے میں این ڈی اے ہونا چاہئے۔ ان کو یہ شکایت بھی ہے کہ بی جے پی نشستوں کی تقسیم کو بلاوجہ ٹال رہی ہے ۔ اس سے بی جے پی کی نیت کاشبہ بھی ظاہر ہورہا ہے اور تیاری بھی متاثر ہورہی ہے ۔خشواہا نے بی جے پی کو گزشتہ مرتبہ کی طرح صرف ۱۰۲ نشستوں پر انتخاب لڑنے کا مشورہ دیا ہے۔ جبکہ بی جے پی کم از کم ۱۶۰ نشستوں پر لڑنا چاہتی ہے۔ اس کھائی کو پاٹنے کیلئے ۳۱ اگست کو امیت شاہ کی قیادت میں حلیف جماعتوں کے ساتھ ایک نشست ہوئی لیکن اس میں  ناکامی کے سوا کچھ ہاتھ نہ آیا ۔ اگر بی جے پی ۱۵۰ پر بھی راضی ہو جائے تو بقیہ ۹۰ نشستوں کو چار جماعتوں میں کیسے تقسیم کیا جائیگا  ؟ اس لئے لوک جن شکتی ۷۵ نشتیں چاہتی ہے لوک سمتا پارٹی کا ۶۶ پر دعویٰ ہے اور مانجھی کی ’ہم‘۴۰ کی خواہشمند ہے۔ اس بندر بانٹ میں  جو گلُ کھلیں گے اس کا اندازہ لگانا مشکل نہیں ہے۔ 
بی جے پی کی حامی جماعتوں میں  بھی وزارت اعلیٰ کی کرسی کولےکر بھی اچھے خاصے اختلافات ہیں ۔ مانجھی چونکہ وزیراعلیٰ رہ چکے ہیں اس لئے اپنے آپ کو اس عہدے کا سب زیادہ حقدار سمجھتے ہیں۔ رام ولاس پاسوان نے مسلمانوں کو بے وقوف بنانے کیلئے پھر ایک بار مسلم وزیراعلیٰ کی تجویز پیش کی ہے ۔ اوپندر خشواہا  چاہتے ہیں کہ رام والاس پاسوان کو وزیراعلیٰ کا امیدوار بنا کر پیش کیا جائے۔ اس سے زیادہ باہمی عدم اعتماد کیا ہوسکتا ہے تمام تر اختلاف کے باوجود سارے حامیوں کا اس بات پر اتفاق ہے کہ وزیراعلیٰ بی جے پی کا نہ ہو ۔  ایل جی پی کے رامچندر پاسوان تو بی جے پی پر ودھان پریشد کے انتخاب میں ان کے امیدوار کی شکست کا  الزام بھی لگا چکے ہیں اور کہہ چکے ہیں کہ ہمارے کارکنا ن اس زیادتی کوٹھنڈے پیٹوں برداشت نہیں کریں گے۔
بی جے پی کا سب سے بڑا ہتھیار نتیش کمار سرکار کی ناکامی کا پرچار  ہے لیکن بدقسمتی  سےنتیش کے دس سالہ اقتدار میں سے آٹھ سال بی جے پی اس کی حصہ دار رہی ہے۔ بی جے پی بار بار یہ کہہ رہی ہے نتیش اور لالو کی دوستی ناپاک ،ابن الوقتی اور غداری ہے ۔اس لئے کہ انہوں نے بی جے پی سے ناطہ توڑ لیا لیکن نتیش کمار نے بی جے پی کے ساتھ آنے سے قبل لالو کا ساتھ چھوڑا تھا تو کیا وہ  اس وقت گنگا کی طرح پوتر  دیش بھکتی تھی ۔رام ولاس پاسوان  کاجوایک زمانے تک  بی جے پی کے سخت مخالف تھے لالو کو چھوڑ کر بی جے پی کے ساتھ آجانا ابن الوقتی اور موقع پرستی نہیں ہے ؟ کیا عوام کو بے وقوف بنانا اسی قدر آسان ہے جتنا بی جے پی سمجھتی ہے۔ گڈکری نے کہا تھا بہار کےخون میں نسل پرستی ہے لیکن فی الحال گجرات میں جو ہو رہا ہے اس کےسامنے بہار تو بالکل بونا نظر آنے لگا ہے۔ مودی جی بہار کو گجرات بنانے چلے تھے مگراس دوران  خود گجرات  بہاربن چکا ہے۔ مودی سوچ رہے ہوں گے کہ ہاردک پٹیل کو اگر احتجاج کرنا ہی تھا تو کم از کم بہار انتخاب بعد کرتا اس  موقع پر ہنگامہ آرائی  کرکے اس نے بی جے پی کے تابوت میں آخری کیل ٹھونک دی ہے۔   
ان تمام حقائق سے قطع نظر مہا گٹھ بندھن کا سب سے بڑا اثاثہ مودی جی کی حماقتیں ہیں جو ان سے یکے بعد دیگرے سرزد ہورہی ہیں مثلا   ً عین  مہاریلی کے دن ’من کی بات‘ میں تحویل اراضی بل پر اپنی شکست کا اعتراف کرکے انہوں نے مخالفین کو اپنی دھنائی کا نادر موقع عطا کردیا۔ سارے ہی بڑے رہنما وں کی تقریر میں اس کا ذکر تھا اور اس کے ذریعہ سے یہ بات ثابت کی گئی کہ مودی غریب کسانوں کی زمین چھین کر سرمایہ داروں کو دینا چاہتے تھے ۔ حزب اختلاف نے ان کو ایسا کرنے سے روک دیا  اور اپنا موقف تبدیل کرنے پر مجبور کردیا  ۔ اگر نریندر مودی اپنےوزارت عظمیٰ کے وقار کو داؤں پر  لگابہار کے دنگل میں نہیں کودتے تومہاریلی اس طرح کی تنقید کا نشانہ ہر گز نہیں بنتے ۔ وزیراعظم کے ذمہ انتخابی مہم چلانے اورغیر ملکی دورے کرنے کے علاوہ بھی بہت سارے کام ہیں اور سچ تو یہ ہے جن نمائشی کاموں میں مودی جی اپنا قیمتی وقت برباد کررہے ہیں یہ سرے سے ان کی ذمہ داری ہی نہیں ہے۔
 انتخابی مہم پر نگاہ ڈالیں تو نتیش کمار اسی حکمت عملی پر عملدرآمد کررہے ہیں جو مودی جی نے گجرات میں اختیار کررکھی تھی۔ مودی جی بار بار گجرات کی عوام کے عزت ووقار (سوابھیمان )کی دہائی دیتے تھے۔ ان کا الزام تھا کہ دہلی کی برسرِ اقتدار سرکار دراصل گجرات کے سارےلوگوں کو(فسادات کے پس منظر میں) قاتل اورزانی گردانتی ہے۔ یہ گجراتیوں کی تو ہین  ہے اور وہ اس کو بحال کرنے کیلئے کھڑا ہوئے ہیں اس لئے عوامی حمایت کے مستحق ہیں۔  مودی جی اپنے اوپر لگنے والے ہر الزام کو بڑی عیاری کے ساتھ عوام کے سر منڈھ کر ان  کا جذباتی استحصال کر تے تھے ۔ اس طرح  مودی جی  نےتین مرتبہ گجرات کی عوام کو بے وقوف بنایا ۔ اب ان کو چاہئے  کہ وہ  کم از کم  اپنے مخالف کو ایسا کرنے کا موقع نہ دیں لیکن ایسا کرنے کیلئے عقل و فہم کی ضرورت ہوتی ہے۔
مودی جی نے پہلے تو ڈی این اے کی بات کہہ کر نتیش کمار کو اسےبہاریوں کی توہین قرار دے کر ’ الفاظ واپس لو‘  تحریک چلا نے کا موقع دیا۔  اس کے بعد مودی جی نےبہار کے پیکج کا اعلان کچھ اس طرح سے کیا گویا نیلامی ہورہی ہے ۔ اس کو  لالو جی نے بہاریوں کی توہین قرار دیتے ہوئے کہہ دیا کہ ’بہاری ٹکاؤ ہے بکاؤ‘ نہیں ہے۔ مودی جی نے بہار کو بیمارو کہا تو نتیش کمار نے بہار کا موازنہ گجرات سے کر کے ثابت کردیا کہ کئی معاملات میں بہارگجرات سے بہتر ہے۔ مودی جی نے نتیش کمار کو یاچک(مانگنے والا) کہہ کر ان پر ذاتی حملہ کیا تو اسے بھی بہاریوں کی توہین سے جوڑ دیا گیا۔سوال کیا گیا کہ  کیامودی  جی کاوزیراعلیٰ کی   حیثیت سےمرکزی حکومت سے اپنا حق مانگنا جھولی پسارنا تھا۔ مودی جی کے اہانت آمیز سلوک نے پٹنہ ریلی کو سوابھیمان ریلی کا بنا دیا۔
سوابھیمان ریلی کے بعد مودی جی اپنی چوتھی ریلی کرنے کیلئے  بھاگلپور پہنچے ۔پہلے اس ریلی کو ۳۰ اگست کو ہونا تھا لیکن چونکہ اسی دن پٹنہ میں مہاریلی کا اعلان ہوگیا بی جے پی نے اسے دودن کیلئے ملتوی کردیا۔ اس ریلی سے قبل نتیش کمار نے ٹویٹ کرے وزیراعظم کومزید سینہ کوبی اور نئے وعدوں  کے بجائے پرانے وعدوں کی تاریخ بتانے کیلئے کہا اس کے جواب مودی جی ؁۲۰۱۹ کی تاریخ دے دی۔ اس بار  مودی جی  نے ڈرامہ بازی تو کم کی مگر آئندہ ۵ سالوں کیلئے ۳ لاکھ ۷۴ ہزار کروڈ کا وعدہ پھر بھی کردیا ۔ انہوں صحت کی بابت بہار کے ؁۲۰۰۵ کے بعد پچھڑنے  ذکر کیا اور بھول گئے کہ اس دوران بی جے پی اقتدار میں بھاگیدار تھی۔ مودی کی ریلی کے بارے کانگریسی رہنما علی انور نے کہا پٹنہ جیسی ریلی کرنے کیلئے پردھان منتری کو دوسرا جنم لینا ہوگا ۔ اس دن مودی کی قسمت ہی خراب تھی کہ ریلی سے پہلے بارش ہوگئی اور اس کے بعد شئیر بازار ۷۰۰ پوائنٹ گرگیا۔ اسی کے ساتھ ایک ناکام ریلی کی خبر بھی ذرائع ابلاغ سے اتر گئی۔   
پچھلے الیکشن میں مودی نے اپنے آپ کو چائے والے کے طور پر پیش کیا اور نتیش کو مغرور بتاتے ہوئے ان پر مرکزی سرکار کی مدد کو ٹھکرنے کا، ان کے ساتھ اپنی دعوت منسوخ کرنے کا اور مانجھی کی طشتری سے نوالہ چھین لینے کا الزام لگایا۔ اس کے جواب میں نتیش کمار نے خود کو ایک غریب مجاہد آزادی کا بیٹا بنا کر پیش کیا ۔ انہوں نے بہار کی تاریخ میں انقلابیوں کا حوالہ دیتے ہوئے فرمایا کہ جن کے والدین نے قوم کیلئے کوئی کارنامہ نہیں انجام دیا وہ ہمارے ڈی این اے کو برا بھلا کہہ رہے ہیں۔ دہلی انتخاب کے وقت بی جے پی نے کیجریوال کے گوتر(سرشت) میں انارکی کا فقرہ کسا تھا جو اسے کافی مہنگا پڑا لیکن بہار میں پھر اسی غلطی کا اعادہ کیا جارہا ہے۔نتیش کمار نےمودی جی کے۱۴ ماہ بعد ساری دنیا کی سیر کرلینے کے بعد بہار کا رخ کرنے پر  بھی طنز کیا۔ انتخابات میں چمتکار ہوتے رہتے ہیں اس لئے ان تمام حقائق کے باوجود اگر بی جے پی کامیاب ہو جاتی ہے تو وہ ایک معجزہ  ہی  کہلائےگا۔
 اٹل جی  کی انتخابی شکست سے بی جےپی کو ایسا کرارہ جھٹکا لگا تھاکہ وہ دس سال پیچھے چلی گئی اور یہی وجہ ہے کہ دس سال بعد  پھر سے اقتدار میں آگئی لیکن  ایسا لگتا ہے کہ مودی جی کی شکست اس قدر ہیبت ناک ہوگی کہ بی جے پی کم ازکم ۵۰ سال پیچھے جن سنگھ کے زمانے میں پہنچ جائیگی۔ کمل کے پھول میں کل پانچ پنکھڑیاں ہیں جن میں ایک کو انہوں نے پہلے سال میں نوچ کر پھینک دیا ہے ۔ اپنی مدتِ کار کے خاتمہ تک ساری پنکھڑیاں ایک ایک کرکےجھڑ جائیں گی اور پھر سنگھ پریوار کے نیکر دھاری بھکت جن سنگھ والا چراغ  لے کر ڈھونڈنے نکلیں گے اور  کیچڑ میں کھڑے ڈنٹھل کو دیکھ کر پوچھیں گےیہاں جو کمل بابو ہوا کرتے تھے وہ کہاں غائب ہو گئے؟ لوگ کہیں گے ایک ٹھو جملیشور بابو آئے رہےجو انہیں دس لاکھ کے کوٹ میں ٹانک کر اپنے ساتھ لے گئے  ۔ بقول  عزیز حامد مدنی ؎

تازہ ہوا بہار کی، دل کا ملال لے گئی                                 پائے جنوں سے حلقۂ گردش حال لے گئی