Monday 14 March 2016

सियासत में नहीं है फर्क जीने और मरने का

अंग्रेजी में लिविंग का अर्थ जीना और लीविंग का मतलब जाना होता हैं। केवल मात्रा के अंतर से जीवन का आरंभ अंत में बदल जाता है। श्री श्री रवि शंकर जीने की कला सिखाते हैं और विजय माल्या जाने का कौशल प्रदर्शन करते हैं। इन दोनों का निवास बेंगलुरु में है तथा उनके बीच एक समानता भाजपा से संबंध भी है। विजय माल्या ने एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा की सदस्यता ली तो उन्हें जनता दल (एस) ने 23 वोट और भाजपा ने 30 वोट प्रदान किए। उनके भागने में सांसदों को प्राप्त राजनयिक पासपोर्ट ही काम आया। इस प्रकार विभिन्न बैंकों का 900 करोड ऋण चुरा वे भाग खड़े हुए।
माल्या की भांति रविशंकर भी प्रधानमंत्री के बहुत बड़े प्रशंसक हैं और उन्हें वर्षों से योग सिखाने का प्रयत्न कर रहे हैं यह और बात है कि मोदी जी की अकड़ और कठोरता आड़े आजाती है। मोदी जी को चाहिए कि वह आरएसएस की शाखाओं में लाठी के बजाय योग व्यायाम का आयोजन करवाएं ताकि कम से कम संघ परिवार की आगामी पीढ़ी इतनी लचीली हो कि योगासन कर सके। वैसे मोदी जी के फैशन प्रेम का आरएसएस पर प्रभाव पडा है। उसने खाकी निकर के बजाय पैंट पहनने का फैसला कर लिया है। वैसे कुछ लोगों का मानना है इस बदलाव में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका राबड़ी देवी ने निभाई है। उन्होंने कहा था ये लोग चड्डी पहन कर सार्वजनिक स्थलों पर आ जाते हैं उन्हें शर्म नहीं आती? हमें शर्म आती है। राबड़ी देवी के इस वाक्य में न जाने क्या जादू था कि अचानक निकर की लंबाई में वृद्धि हो गई और वह पैंट बन गई। सही बात तो यह है कि संघ परिवार की चड्डी ढीली करने में नीतीश कुमार से लेकर कन्हैया कुमार तक बिहारियों ने असाधारण योगदान दिया है।
 संघ परिवार की टोपी उछालने का काम दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने किया था और ऐसी पटखनी दी कि हिंदुत्व समर्थक राजधानी में जन सभा करना भूल गए। इसी कारण मोदी जी को श्री रविशंकर की शकर में लिपटी हुई जहर की पुड़िया लानी पड़ी लेकिन दुर्भाग्य से चीनी की यह परत देखते देखते बारिश में भीग कर यमुना में बह गई। कार्यक्रम से पूर्व सभा स्थल की तैयारी के कारण होने वाले पर्यावरण के नुकसान को लेकर कुछ लोगों ने राष्ट्रीय हरी(ग्रीन) अदालत के दरवाजे पर दस्तक दी। अदालत ने अपने विशेषज्ञों की एक टीम को नुकसान का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी तो 120 करोड का अनुमान लगाया गया। श्री श्री रविशंकर को जीने की कला सिखाने के लिए उन पर कम से कम 250 करोड का जुर्माना लगाया जाना चाहिए था परंतु विभिन्न कारणों से अदालत ने 100 करोड पर समाधान कर लिया।
रविशंकर जी चूंकि जीने की कला सीख चुके हैं इसलिए उन्होंने अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए इस जुर्माने को घटाकर 5 करोड करवा दिया। प्रशन यह है कि अब बाकी के 115 करोड कौन खर्च करेगा? अगर सरकार करेगी तो क्यों? या फिर इस नुकसान की भरपाई ही नहीं होगी? यदि नहीं तो जीवन जीने के इस कला का धिक्कार होना चाहिए जिसने न केवल स्थानीय लोगों का बल्कि वहां रहने बसने वाले पशु पक्षियों का भी जीना हराम कर दिया। अगर एक आम नागरिक से यह सवाल किया जाए कि जीवन जीने की कला क्या है? तो वह फौरन कहेगा '' जियो और जीने दो '' लेकिन श्री रविशंकर इस तथ्य से अनजान हैं। एक ज़माने तक वह धैर्य और संयम के विशेषज्ञ माने जाते थे हालांकि वह मुखौटा मात्र था जिसे चढ़ाकर वे जनता के समक्ष आते थे। अपने भक्तों के बीच वह उसी क्रोध और आक्रोश का प्रदर्शन करते थे जो संघ परिवार की विशेषता है। यूट्यूब पर एक निजी बैठक में डॉ जाकिर नाइक को अपमान करने वाला वीडियो उसका साक्ष है।
मोदी जी ने सोचा होगा कि मारने की कला तो आरएसएस से सीख ली अब क्यों न श्री श्री रविशंकर से जीने की कला सीखी जाए? लेकिन ऐसा लगता है मोदी जी के बजाय खुद स्वामी जी उनके भक्त बन गए हैं वरना यह घोषणा ना करते कि 5 करोड जुर्माना भुगतान करने के बजाय मैं जेल जाना पसंद करूंगा। स्वामी जी को यह गलतफहमी थी कि सरकार से उनकी निकटता के कारण अदालत उनकी गीदड़ भपकी में आ जाएगी लेकिन जब सदन में इस पर हंगामा हो गया तो उन्हें आशंका हुई कि इस कठोरता के कारण प्रतिबंध न लग जाए? उस लिये जुर्माना एकमुश्त भुगतान करने के बजाए चार सप्ताह का समय मांगा गया। अदालत ने 25 लाख जमा करने की शर्त पर 3 सप्ताह की मोहलत दे दी। यह उसी तरह घूम जाऊ था जैसे भूमि अधिग्रहण विधेयक पर मोदी सरकार का था पहले अड़ना और फिर झुक जाना या ईपीएफ पर टैक्स को लेकर कर हीलों बहानों के बाद अंतत: जेटली जी का घुटने टेक देना।
वैसे बात बनाने की कला में जेटली जी प्रधानमंत्री से आगे निकल चुके हैं। विजय माल्या के निकल भागने पर जब संसद में हंगामा हुआ तो जेटली को क्वात्रोची याद आ गए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस भी क्वात्रोची को रोकने में विफल रही थी। यह तर्क कई दिलचस्प सवालों को जन्म देता है। अव्वल तो क्या जेटली मानते हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस और भाजपा के बीच कोई अंतर नहीं है? दूसरे क्या अब भाजपा की नजर में कांग्रेस का क्वात्रोची को भागने में मदद करना वैध हो गया है? तीसरे क्या भाजपा ने कांग्रेस की मजबूरी का ख्याल करते हुए हंगामा नहीं किया था? सच तो यह है कि कांग्रेस ने क्वात्रोची और बोफोर्स मामले की जो कीमत चुकाई थी भाजपा को भी अब इसके लिए तैयार हो जाना चाहिए? याद रहे राजीव गांधी के साथ लोकसभा में 400 से अधिक सदस्य थे और बोफोर्स भ्रष्टाचार ने उन्हें सत्ता से वंचित कर दिया था इसलिए भाजपा के 275 की क्या बिसात है?
क्वात्रोची और विजय माल्या का मामला बहुत विभिन्न है। बोफोर्स की दलाली कुल 64 करोड थी जिसमें मुद्रास्फीति का अनुपात लगाया जाए तब भी वह 900 करोड नहीं बनते। अगर यह मान लिया जाए कि वह सारी राशि क्वात्रोची की जेब में चली गई थी तो राजीव गांधी के खिलाफ चलाया जाने वाला अभियान तोहमत में बदल जाता है। क्वात्रोची बेशक रिश्वत का एक सहभागी था और वह रिश्वत भी अवैध थी लेकिन एक विदेशी कंपनी की जेब से निकल कर आई थी। विजय माल्या ने तो हमारे अपने बैंकों को लूटा है। विजय माल्या की तरह क्वात्रोची सांसद नहीं बल्कि एक विदेशी नाग्रिक था। इस पर अगर मुकदमा कायम भी होता तो इटालियन सरकार का दबाव उसे छुड़ा सकता था जैसा कि केरल में इटालियन जहाज चालकों को अपने मछुआरों के हत्या की सज़ा दिलाने में मोदी सरकार विफल रही।
 विजय माल्या के मामले में कोई विदेशी दबाव नहीं बल्कि खुद अपनी सरकार का दबाव काम कर रहा था। 8 अक्तोबर 2015 को सीबीआई की ओर से निर्देश जारी हुआ कि विजय माल्या को हवाई अड्डे पर देखते ही गिरफ्तार किया जाए। माल्या साहब उस समय ब्रिटेन में ऐश कर रहे थे। लौटने से पहले उन्हों ने इस निर्देशपत्र को बदलवा दिया और अब उन्हें गिरफ्तार करने के बजाय नजर रखने की ताकीद की गई। सीबीआई के अनुसार गिरफ्तारी का पंजीकरण एक जूनियर अधिकारी की चूक थी हालांकि वह फैसला दुरूस्त था। अगर उसी समय माल्या को गिरफ्तार कर लिया जाता तो आज जेटली जी को यह न कहना पड़ता कि बैंक ने अदालत से संपर्क करने में देरी की। जीटली जी यह न बताएं कि बैंक वालों ने क्या नहीं किया बल्कि यह वर्णन दें कि उनकी सरकार ने क्या किया? और अगर कुछ नहीं किया तो 900 करोड में से कितना हिस्सा उनकी अपनी तिजोरी में जमा हो गया। विजय माल्या  अक्तोबर के बाद 3 बार विदेशी यात्रा पर गए और चौथी बार ललित मोदी की तरह हमेशा के लिए फरार हो गया।
विजय माल्या की ही तरह भाजपा ने ललित मोदी के साथ भी कमाल दयालुता का प्रदर्शन किया। राजस्थान के मुख्यमंत्री विजय राजे सिंधिया ने ललित मोदी को भागने में सुविधा प्रदान करने के लिए शपथपत्र दिया। विदेश मंत्री सुषमा सवाराज ने मानवीय आधार पर ललित मोदी भागने का औचित्य प्रदान किया। संसद में इस मुद्दे पर हंगामे के बाद सरकार ने बड़े गाजे-बाजे से गिरफ्तार करने का संकल्प दोहराया लेकिन जो मोदी सरकार पिछले 6 महीने से ललित मोदी के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी करवाने में नाकाम रही है वह भला विजय माल्या को क्या वापस लाएगी? वैसे अगर सरकार विजय माल्या को वापस लाने में सफल भी हो जाए तो उसका क्या बिगाड़ लेगी? छोटा राजन पहले ही सरकार की हिरासत में ऐश कर रहा है। उसका बाल बांका नहीं हुवा विजय माल्या के साथ भी यही होगा।
श्री श्री रविशंकर को जीने की कला सिखाने के लिए तीन फुटबॉल ग्राउंड के बराबर का मंच बनाना पड़ा और उस पर 35 हजार साज़िंदों को बिठाना पड़ा इसके बावजूद उनके इस तमाशे में शरीक होने के लिए दुनिया भर से कोई महत्वपूर्ण हस्ती आने के लिए तैयार नहीं हुई। मजबूरन दुनिया के सबसे भ्रष्ट शासक  मुगाबे को मुख्य अतिथि बनाया गया लेकिन जब मोदी जी के सलाहकारों ने मंच को असुरक्षित घोषित किया तो '' मोगामबो डर गया '' और दिल्ली से वापस चला गया। राष्ट्रपति ने देखा कि इस कार्यक्रम के आयोजकों ने अधिकांश विभागों से अनुमति नहीं ली है और पर्यावरण को बहुत क्षति पहुचा रहे हैं तो वे भी कन्नी काट गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने आप को रोक नहीं सके और उन्होंने अपने लिए अलग मंच बनवा कर भाग लिया। मोदी जी ने उसे कला और संस्कृति का कुंभ मेला घोषित कर दिया। हिंदू ह्रदयसम्राट के अलावा अगर कोई और यह हरकत करता तो संघ परिवार इस बयान को लेकर आसमान सिर पर उठा लेता। हिंदू धर्म के अपमान का बहाना बनाकर देश भर में आतंक फैला देता।
 मोदी जी ने अपने संबोधन में कहा कि अगर हम हर चीज की आलोचना करेंगे तो विश्व हमारा सम्मान कैसे करेगी? इस से पता चलता है कि प्रधानमंत्री पर्यावरण के विनाश को कोई महत्व नहीं देते। उन के निकट कानून का हनन सामान्य बात है। प्रधानमंत्री को ज्ञात होना चाहिए कि सारी दुनिया में देश का सम्मान तो दरकिनार दिनोंदिन अपमान हो रहा है। इस बदनामी के लिए कोई और नहीं बल्कि उनका अपना संघ परिवार जिम्मेदार है अगर यह सिलसिला बंद हो जाए तो बिना किसी तमाशे के राष्ट्र का नाम रोशन हो जाएगी। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में भारतीय संस्कृति पर गर्व व्यक्त करते हुए कहा कि वह श्री श्री रविशंकर के आभारी हैं कि उन्होंने उसे सारी दुनिया में फैला दिया है।
मोदी जी ने पिछले दिनों इतने विदेशी दौरे किए कि यमुना के किनारे भी उन्हें आभास नहीं हुआ कि वह विदेश में नहीं बल्कि खुद अपने देश में भाषण कर रहे हैं और तथ्य यह है कि स्वामी जी ने अपनी संस्कृति का निर्यात करने के बजाय दुनिया भर के कलाकारों को यहां प्रस्तुत किया है जो उनकी सभ्यता से भारतीयों को प्रभावित कर रहे हैं। प्रतिभागियों का यह हाल है कि वह भंगड़ा के बजाय अफ्रीकी नाच की धुनों पर थिरक रहे हैं। मोदी जी जब अमेरिका गए थे तो उन्होंने लोगों को इकट्ठा करने के लिए किसी कथक न्रतकी के बजाय रॉक डांसर को बुलाया इसके बावजूद कोई अंग्रेज नहीं फटका अब चूंकि भारत में भी जनता ने मोदी जी की सभाओं में आना छोड़ दिया है इसलिए दुनिया भर में नाचने गाने वालों को इकट्ठा करके जनसभा की जा रही है लेकिन बुरा हो बरसात का कि उसने रंग में भंग डाल दिया। शायद आजकल अदालत तो दूर प्रकृति भी सरकार से त्रस्त है।
श्री श्री हरि के अनुसार इस नौटंकी में शरीक होने के लिए कुल 36 हजार कलाकारों को देश-विदेश से बुलाया गया। उन भाग्य के मारों को आंधी आए या तूफान सभा स्थल पर आना ही था। अख़बारों के अनुसार पहले दिन जब प्रधानमंत्री ने भाषण किया तो केवल 40 से 50 हजार के बीच लोग मौजूद थे। मतलब कार्यक्रम के प्रतिभागियों की संख्या पैसे देकर बुलाए जाने वाले कलाकारों की तुलना में एक चौथाई भी नहीं थी। दूसरे दिन सुबह नेतृत्व शिविर कार्यक्रम को श्री रविशंकर ने यह कह कर टाल दिया कि जब लोग ही नहीं हैं तो क्या फायदा। बाद में करीब के एक हॉल में 300 लोगों को इकट्ठा करके अर्थव्यवस्था पर चर्चा शुरू हुई तो सरकार के खिलाफ शिकायत का दफतर खुल गया।
एक अन्य कार्यक्रम में सत्ता से बेदखल विदेशी राजनीतिज्ञ उपस्थित थे। उनमें से एक फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति वेलिपिन ने कहा कि अफगानिस्तान, इराक और लीबिया में सैन्य हस्तकक्षेप एक मूर्खता थी बल्कि आतंकवाद के खिलाफ छेड़ी जाने वाली इस लड़ाई बजाय खुद एक बहुत बड़ी मूर्खता है। अब सवाल यह उठता है कि मोदी जी उठते बैठते आतंकवाद के खिलाफ जिस विश्व युद्ध में शरीक होने की घोषणा करते हैं वह क्या है?
इस विश्व सांस्क्रतिक मेले का उच्चतम शिखर तब आया जब पाकिस्तान से आने वाले मुफ्ती सईद अहमद खान के भाषण के पश्चात जोश में आकर स्वामी जी ने गृहमंत्री की उपस्थिती में पाकिस्तान जिंदाबाद की घोषणा कर दी। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के अंदर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे की अफवाह फैलाकर बवंडर मचाने वाले सारे भक्त स्वामी जी के नारे पर तालियां पीटते रहे हालांकि यह तो उनके लिए सिर पीट लेने का अवसर था। भारतीय जनता पार्टी को अब जीने की कला सीखने के बजाय आर्ट ऑफ रनिंग यानी भागने की कला सीखनी चाहिए। इसलिए कि प्रधानमंत्री ने खुद स्वीकार किया है जब सत्ता और सरकार विफल हो जाती है तो इस तरह के मेलों ठेलों की जरूरत पडती है। इस बयान के बाद इन लोगों को अब अपने जाने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।
आर्ट ऑफ रनिंग लिए वैसे भाजपा आत्मनिर्भर है। इसे किसी स्वामी जी के बजाय श्रीमती हेमा मालिनी और सौभाग्यवती स्मृति ईरानी से मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए। कुछ महीने पहले राजस्थान में हेमा मालिनी की गाड़ी ने एक कार को टक्कर मारकर उस में एक बच्चे की हत्या कर दिया और पिता को ज़खमी कर दिया। हेमा मालिनी के लिए विशेष सवारी का आयोजन किया गया और उन्हें एक प्रतिष्ठित निजी अस्पताल में पहुंचा दिया गया ताकि तुरंत प्लास्टिक सर्जरी हो सके और मरने वाले बच्चे और इसके घायल पिता को सरकारी दवाखाने में ले जाकर डाल दिया गया जहां उनका को पूछने वाला कोई नहीं था।
हेमा मालिनी की तबीयत संभली तो उन्होंने ट्वीट करके बच्चे की मौत पर अफसोस व्यक्त किया लेकिन इसके लिए पिता को दोषी ठहराते हुए कह दिया कि यदि वह ट्रफिक के नियमों का सम्मान करता तो बच्चे को न गंवाता। इस प्रकार हेमाजी ने यह साबित कर दिया कि ट्रफिक के नियमों की वह पुलिस से अधिक विशेषज्ञ हैं। पुलिस ने हेमा के चालक को हिरासत में ले रखा था और यह बात तय है कि प्रशासन किसी वीआईपी के चपरासी पर भी खूब सोच समझकर हाथ डालता है। हेमा मालिनी तो खैर अब सास की भूमिका निभाने लायक हो गई हैं लेकिन भाजपा की तेज तर्रार बहू उनसे दो कदम आगे निकल गईं। आगरा राजमार्ग पर जब उनके काफिले की एक गाड़ी ने मोटर साइकिल पर सवार डॉक्टर रमेश नागर को टक्कर मारी तो उनके बच्चे रोते रहे लेकिन बेरहम स्मृति पर इसका कोई प्रभाव नहीं पडा।
वह दुर्धटनास्थल से भाग खड़ी हुईं। घायलों की मदद करने के बजाय यह मानने से इनकार कर दिया कि टक्कर मारने वाली कार उनके काफिले में शामिल थी तथा कैलाशवासी डॉ नागर की बेटी से एफआईआर में एक फर्जी गाड़ी का नंबर लिखवा दिया। उन गतिविधियों को देखकर ऐसा लगता है कि बहुत जल्द भाजप का अर्थ '' भागो जनता पीटेगी '' हो जाएगा। उस समय पार्टी के नेता ललित मोदी और विजय माल्या के पदचिन्हों पर करोडों का घोटाला करके फरार हो जाएंगे और जनता चैन का श्वास लेगी।

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