Saturday 23 January 2016

गाय हमारी माता है आगे कुच्छ नहीं आता है (व्यंग)

विख्यात कवि अल्लामा इकबाल की प्रसिध्द  काव्य प्रार्थना ''लब पे आती है दुआ'' के बारे में कहा जाता है कि वह उर्दू साहित्य की सब से लोकप्रिय कविता है। लेकिन उसके बाद निश्चित ही इस्माइल मेरठी की '' हमारी गाय '' का नंबर आता होगा। उर्दू भाषा का कौन सा ऐसा पाठक है जो ''रब का शुक्र अदा कर भाई जिसने हमारी गाय बनाई '' से परिचित ना हो। इस्माइल मेरठी को अगर गाय उन सारे गुणों आभास होता जिन का आविष्कार भारत वासियों ने कर रखा है तो वह एक कविता पर समाधान करने के बजाय इस विषय पर “मधुशाला”  जैसी पुस्तक “गौशाला” लिख मारते।
“मधुशाला” के संबंध में भगवा सेना के लोग यहां तक कहते हैं कि यदि हरिवंश राय बच्चन ने “मधुशाला” के बजाए “गौशाला” नामक कविता संग्रह की रचना की होती तो वे ना केवल अपने सुपुत्र बिग बी से अधिक लोकप्रीय होते बल्कि हम पंडित नेहरू से उन के निकटतम संबंधों के बावजूद भारत रत्न से सम्मानित कर देते। वैसे अमिताभ बच्चन के लिये अब भी अवसर है वे अगर “मधुशाला” का नवीन रीमिक्स “गौशाला” किसी से लिखवा लें (जैसा कि प्रधान मंत्री करते रहते हैं) और अपने नाम से प्रकाशित कर दें तो उस को पढे बिना ही पुरूस्कारित कर दिया जाएगा। इस प्रकार उन्हें अपने पिताश्री से महान कवि कहलाने का सम्मान प्राप्त हो जाएगा जैसे कि मोदी जी कुच्छ समय बाद अटल जी से बडे कवि कहलाएंगे। वैसे शिक्षा मंत्री अपनी सास (रा स्व सं) के तुष्टीकर्ण के लिये उसे पाठ्य क्रम में भी शामिल कर सकती हैं।
प्रधान मंत्री चूंकि गुजरात की पावन धर्ती के सुपुत्र हैं इस लिये सुना है वे आज कल गुजरात ही में जन्मे राष्ट्र पिता महात्मा गांधी को श्रध्दांजली देने के लिये नाथूराम गोडसे के गुरू क्रांति वीर विक्रम सावरकर को भारत रत्न पुरूस्कार से सम्मानित करने पर विचार कर रहे हैं। तरंतु यदि गौहत्या के संबंध में सावरकर के क्रांतिकार विचारों पर उन की नजर पड जाए तो निश्चित ही उन्हें पुर्नविचार करना पडेगा। सावरकर के ख्याल में गाय का वध करने से बडा अत्याचार उस का दूध पीना है इस लिये कि गाय दूध हमारे लिये नहीं बल्कि अपने बछडे के लिये देती है इस लिये दूध पर पहला अधिकार उस का है। गाय के बछडे को वंचित कर के उस का दूध खुद पी जाना दोनों पर अत्याचार है। सावरकर शायद नहीं जानते थे कि गाय को माता कहने के पीच्छे क्या षडयंत्र है?
बात गाय के उपयोगिता की चल रही थी बीच में भारत रत्न आ गया वैसे भारत वर्ष में गाय किसी अनमोल रत्न से कम कहां है? जहां तक गाय के दूध का प्रशन है उस से तो सारा जग परिचित है। उस के अंदर जो शक्ती और सम्रध्दी है उसका अनुमान लगाने के लिये लालू या मुलायम को देख लेना काफी है। इसके अलावा गोमूत्र के जितने लाभ बाबा रामदेव जानते हैं उनका अगर ठीक से प्रचार हो जाए तो न जाने कितनी दवाओं की कंपनियों पर ताला पड जाए और अस्पताल बंद हो जाएं क्यूंकि लोग घर बैठे बिना शुल्क स्वस्थ हो जाया करेंगे।
बडे चाव से गाय का दूध पीने वालों ने भी उसके गोबर को आंगन और दीवार पुतने का साहस नहीं किया होगा। अटल जी के युग में मानव संसाधन का मंत्री पद डॅ। मुरली मनोहर जोशी के पास था। कहने को वे प्राध्यापक थे परंतु सुना है राजकारण में व्यस्त रहने के कारण वे केवल वेतन लेने की हद तक अपना परम कर्तव्य निभाते थे। जोशी जी का एक मात्र अविष्कार यह था दीवार पर गोबर पोतने से प्रमाणु किरण (Radioactive rays) की क्षति से सुरक्षा संभव है। वह तो अच्छा हुवा के इस की प्रसिध्दी नहीं हुई वरना उन्हें नोबल प्राईज मिल जाता और भाजप के मार्ग दर्शन मंडल को चार चांद लग जाते।
बिहार चुनाव में जब सारे उपाय विफल हो गए तो भाजपा के अंतिम पोस्टर में गाय दिखाई गई परंतु ना गाय संघ के झांसे में आई और ना मतदाता आए। अब की बार इस बात की उम्मीद थी कि तमिलनाडु चुनाव के पहले ही पोस्टर में बैल नज़र आ जाए। गाय की प्रशंसा के साथ उक्त कविता में यह भी है कि '' बछडे उसके बैल बनाए जो खेती के काम में आए। '' परंतु बैल को भारत और दुनिया के अन्य देशों में खेती के अलावा खेल के मैदान में मनोरंजन का साधन भी बनाया जाता है। इस को धूल चटा कर लोग अपनी वीरता के झंडे गाड़ते हैं जिसे तमिलनाडु में '' जल्ली कटू” 'कहा जाता है और महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, हरियाणा और पंजाब में बैल गाड़ियों की दौड़ आयोजित की जाती है।
बैल के इस उपयोग को पशु अधिकार के लिए संघर्ष करने वाले अन्याय मानते हैं और उसका अंत चाहते हैं। भारतीय संसद न सिर्फ वोट देने वाले मनुष्य का बल्कि गूंगे बहरे जानवरों के मौलिक अधिकारों का भी ख्याल करती है। पर्यावरण मंत्रालय ने  1991 में एक आदेश पत्र जारी करके भालू, बंदर, शेर, तेंदवा, चीता और कुत्ते के प्रशिक्षण और प्रदर्शन पर रोक लगा दी। सर्कस वालों के संगठन ने दिल्ली हाई कोर्ट में इसे चुनौती दी लेकिन न्यायालय ने मानव का तर्क खारिज कर जानवरों के पक्ष में फैसला सुनाया।  2011 के अंदर इस आदेश पत्र में संशोधन कर के विशेष रूप से बैल भी शामिल कर दिया गया इस तरह मानो तमिलनाडु में पोंगल के अवसर पर जल्ली कटू की रस्म पर प्रतिबंध लग गया।
जल्ली कटू के खिलाफ इस संशोधन को भी न्यायालय में चुनौती दी गई लेकिन अदालत ने मई  2014 में अपने फैसले को उचित ठहरा दिया। मई  2014 तो खैर नई सरकार के गठन का महीना था इसलिए किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया।  2015 गौमाता का साल था, इसलिए किसी को बैल का ख्याल नहीं आया लेकिन अप्रैल  2016 के अंदर तमिलनाडु के राज्य चुनाव होने वाले हैं इसलिए अचानक पोंगल और जल्ली कटू के बैलों को महत्व प्राप्त हो गया। सारे राजनीतिक दल सशक्त थ्योर जाति के तुष्टीर्कण में लग गए जिसे त्रीचुरापल्ली, मदुराई, थनी, पदोकोटाई और डिंडीगुल जिले का भाग्य विधाता समझा जाता है जहां यह त्यौहार बडे उत्साह के साथ मनाया जाता है। इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध प्रदर्शन करते हुए अलनगनालोर और पालाम्मीदो के राजमार्ग को बंद कर दिया और धमकी दी कि अगर सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला नहीं बदलता तो वे अपने राशन कार्ड्स और मतदाता पहचान पत्र वापस कर देंगे। जिस का सीधा अर्थ है कि चुनाव का बहिष्कार करेंगे।
आम दिनों में तो इस तरह की धमकियों से नेता प्रभावित नहीं होते परंतु चुनाव को निकट देख कर डेढ़ साल बाद अचानक केंद्र सरकार नींद से जाग गई और उसने 7 जनवरी को एक नया आदेश पत्र जारी करके जल्ली किटू में बैलों पर लगा प्रतिबंध उठा दिया। इस आदेश पत्र पर रोक लगाने के लिए पशु अधिकारों के लिए काम करने वाले विभिन्न संगठनों ने मिलकर कर अदालत में गुहार लगाई बल्कि सरकार पर 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लंघन करने का आरोप लगा कर अदालत की अवमानना की शिकायत भी कर दी।
सरकारी आदेश पत्र के समर्थन में भाजपा तमिलनाडु के अध्यक्ष सुन्दर राजन ने बड़ी सफाई से स्वीकार कर लिया कि अप्रैल में होने वाले चुनाव के मद्देनजर भाजपा के लिए यह अनिवार्य है कि वद जनता के साथ नजर आए। उन्होंने कहा कि इस प्रतिबंध को समाप्त करना चुनाव में भाजपा के लिए उपयोगी साबित होगा। अपनी साफ गोई के कारण सुन्दर राजन बधाई के पात्र हैं लेकिन उन्हें क्या पता था कि न्यायालय इस आदेश पत्र को सरकार के मुंह पर दे मारेगा और लेने के देने पड जाएंगे।
सुन्दर राजन ने यह खुलासा भी किया कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने इस प्रतिबंध को समाप्त करवाने के लिए पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर के साथ कई बैठकें कीं। काश के अमित शाह प्रकाश जावडेकर पर समय बर्बाद करने के बजाय न्यायाधीशों को प्रभावित करने का प्रयत्न करते लेकिन ऐसा लगता है वहां भी उन की दाल नहीं गल रही है। पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि ने प्रधानमंत्री से कहा कि वह तुरंत अध्यादेश जारी करके तमिलनाडु में जल्ली कटू का आयोजन सुनिश्चित करें।
मुख्यमंत्री जय ललिता ने प्रधानमंत्री को याद दिलाया कि पोंगल का त्योहार 14 जनवरी से शुरू हो रहा है इसलिए जल्ली कटू से संबंधित तमिलनाडु की जनता की भावनाओं पर ध्यान देना बेहद महत्वपूर्ण है। सवाल यह है कि इन सार्वजनिक भावनाओं का ख्याल राजनीतिक दलों को 4 साल बाद क्यों आ रहा है। अदालत जल्ली कटू को संस्कृति और सभ्यता का हिस्सा नहीं मानती उसने आदेश पत्र के खिलाफ की जाने वाली अपील का जवाब देने के लिए सरकार को चार सप्ताह का समय दिया है और दो सप्ताह के अंदर उसे रद्द कर दिया।
सरकार के इस फैसले से भाजपा के अंदर भी एक महाभारत छिड़ गई है। इन्सान से अधिक पशुओं से सहानुभूति रखने वाली केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने सरकारी निर्णय के खिलाफ अदालत के फैसले की सराहना की। मेनका के अनुसार यह पश्चिमी परंपरा है इस में जानवर और इंसान की जान भी जाती है। मकर संक्राती के अवसर पर पेड़ पौधों की पूजा होनी चाहिए लेकिन जानवरों पर अत्याचार किया जाता है। गाय बैल किसानों के लिए उपयोगी जानवर हैं उनकी सुरक्षा होनी चाहिए। मेनका के इस बयान पर भाजपा के सहयोगी दल पीएमके के अध्यक्ष राम दोस ख आग बबूला हो गए और उन्होंने मेनका को जल्ली कटू का इतिहास और तमिलनाडु की संस्कृति के अध्ययन की नसीहत कर डाली। उन्होंने भाजपा से स्पष्टीकरण मांगा कि क्या वह मेनका की समर्थक है?
राम दोस के आक्रोश के बावजूद जो लोग जल्ली कटू का विवरण जानते हैं वह अदालत के फैसले से सहमत होंगे। अव्वल तो यह कोई धार्मिक समारोह नहीं है दूसरे इस में शामिल होने वाले बैलों का मानसिक संतुलन बिगाड़ने के लिए उन्हें जबरन शराब पिलाई जाती है। उन्हें जोश दिलाने की खातिर मारा पीटा जाता है। उन्हें सुई चुभाई जाती हैं। उनकी पूंछ मरोड़ी जाती है बल्कि उनकी आँखों और गुप्तांग पर मिर्च रगड़ने से भी परहेज नहीं किया जाता।
1960  में संविधान के अंदर संशोधन करके पशुओं को मानव अत्याचार से बचाने के लिए कानून बनाया गया। न्यायालय ने अपने फैसले में पशुओं के पांच मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया है। इसमें सबसे पहले भूख, प्यास और सम्मिश्रण आहार से मुक्ति, इस के पश्चात भय और थकान, भौतिक और मौसम की तकलीफ से बचाव, घाव और बीमारी से सुरक्षा और उनके दिनचर्या के व्यवहार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता शामिल है। जल्ली कटू के हंगामे में बैलों जमीन पर गिरा कर उपरोक्त सभी अधिकारों का हनन मात्र मनोरंजन के लिए किया जाता है।
न्यायालय ने अपने निर्णय में पशु अधिकार को संवैधानिक दर्जा देने की सिफारिश भी की है। अन्य देशों का उदाहरण दे कर सरकार से आग्रह किया गया है कि वह जानवरों के आत्म सम्मान की सुरक्षा सुनिश्चित करे। ऐसे में सरकार का दायित्व है कि वह अदालत की सिफारिशों पर गंभीरता से विचार करे और इसे लागू करने का प्रयत्न करे इसके विपरीत एक तरफ यह सरकार गाय को माता का दर्जा दे कर परम पूज्य ठहराती है और दूसरी ओर उस के भाई, पिता व बेटे के साथ अमानवीय व्यवहार का मार्ग प्रशस्त करती है।
संघ परिवार यदि वाकई गाय का हमदर्द होता तो जल्ली कटू प्रथा पर प्रतिबंध लगवाता लेकिन वोट की लालच में इस प्रतिबंध को उठा कर उसने अपने चेहरे पर पड़ी पाखंड की नकाब नोच कर फेंक दी है। यह निंदनीय सत्य है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए तमिल नाडु और आध्र प्रदैश के विभिन्न शहरों में जल्ली कटू का त्योहार जोर शोर मनाया गया। किसी ने इसे रोकने टोकन का साहस नहीं किया।
भारत में गाय की न केवल पूजा की जाती है बल्कि प्राकृतिक आपदाओं से अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए गाय का बैल के साथ विवाह भी रचा दिया जाता है। दो साल पूर्व इंदौर की एक ऐसी ही शादी में 5 हजार लोगों ने भाग लिया और उस पर दस लाख रुपये खर्च किया गया। इस शादी में न केवल मंत्र पढ़े गए बल्कि दूल्हे और दुल्हन ने अग्नि के फेरे भी लिए तथा अपने समृद्ध वैवाहिक जीवन के लिए शुभकामनाएं भी प्राप्त कीं।
यह सब तो आम जनता के बखेड़े हैं राजनेता वोट पाने के लालसा में गाय के नाम पर भावनात्मक शोषण करते हैं। यह और बात है कि जब गाय को उन के घिनौने उद्देश्य का पता चल जाता है तो उस के थन सूख जाते हैं और राजनीतिज्ञ हाथ मलते रह जाते हैं। राजनीतिक दलों की यह हालत देख कर बचपन का एक जोक याद आता है। परिक्षा में गाय पर निबंध लिखने को कहा गया तो एक चालाक विद्यर्थी ने लिखा “गाय हमारी माता है आगे कुच्छ नहीं आता है”  शिक्षक ने बिहार के मत दाता के समान “बैल हमारा बाप है नम्बर देना पाप है” लिख कर शून्य दे दिया।
(इस व्यंग लेख का उद्देश्य किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है, अगर अनजाने में ऐसा हुवा हो तो मैं बिनाशर्त क्षमा याचना करता हूँ)

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