Thursday 21 January 2016

रोहित की आत्महत्या का दोषी कौन?

रोहित वामोला की आत्महत्या ने राष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी है। अगस्त के महिने में जब स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी चल रही थी हैदराबाद में रोहित सहित अंबेडकर स्टूडेंट्स यूनियन के पांच सदस्यों को पुलिस ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं पर हमला करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। जनवरी में गणतंत्र दिवस से पहले रोहित आत्महत्या कर ली। ऐसे में अरविंद केजरीवाल का इस आत्महत्या को लोकतंत्र और सामाजिक समानता की हत्या करार देते हुए केंद्रीय मंत्री बंदारू दत्तात्रेय की बरख़ास्तगी और प्रधानमंत्री से माफी की मांग उचित प्रतीत होती है।
निसंदेह इन दोनों छात्र संगठनों के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हुई थी। सच तो यह है कि एबीवीपी ने पहले एसए के समारोह पर धावा बोला और फिर एबीवीपी के अध्यक्ष ने फेसबुक पर एसए को देशद्रोही गुंडे लिखा। बाद में लिखित माफी मांग कर उसने मामला रफा-दफा करवाया। आगे चलकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक सदस्य ने षडयंत्र कर रोहित और उसके साथियों पर उसे घायल करने का निराधार आरोप लगा दिया। इसके समर्थन में उसने अपेनडिक्स ऑपरेशन के नकली कागजात लगा दिए।
केंद्रीय मंत्री बंदारू दत्तात्रेय को भी बाद में जोश आ गया और उन्हों ने स्मृति ईरानी को पत्र लिखा कि विश्वविद्यालय जातिवाद, उग्रवाद और देशद्रोही राजनीति का अड्डा बन गया है इसलिए तत्काल कार्रवाई की जाए। बंदारू ने अपने पत्र में झूठ का सहारा लेते हुए कहा कि वह छात्र याकूब मेमन पर बनाई वृत्तचित्र देख रहे थे हालांकि ऐसी किसी फिल्म का अस्तित्व ही नहीं है। यह केवल सांप्रदायिकता को हवा देने वाला आरोप था। हकीकत तो यह है कि छात्र मुजफ्फरनगर दंगों पर बनी फिल्म देख रहे थे जिसमें भाजपा के कई नेता आरोपी हैं और उन में से एक केंद्रिय मंत्री बना हुआ है। इसलिए एबीवीपी की नाराजगी समझ में आती है लेकिन उसे याकूब मेमन से जोड़ना खुली धोका धडी है।
इस घटना के बाद भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय विधान परिषद के सदस्य रामचंद्रन ने उपकुलपति से मुलाकात करके विश्वविद्यालय प्रशासन पर दबाव बनाया जिस के चलते दो ब्राह्मण प्रोफेसर्स पांडे और शर्मा की जांच समिति बनाई गई। प्रारंभिक रिपोर्ट में शोध समिति ने रोहित और उसके साथियों को निर्दोष पाया लेकिन अंतिम निर्णय उनके खिलाफ निकला और पांचों को निलंबित करके हॉस्टल से निकाल दिया गया।
इस अन्याय के फलस्वरूप मेरिट लिस्ट से प्रवेश लेने वाले एक पी.एच.डी. के छात्र रोहित को 21 दिसंबर के दिन हासटल खाली करना पडा। वह बेचारा इस दुष्टाचार के बाद विश्वविद्यालय गेट के बाहर एक तम्बू में रहने के लिये मजबूर हो गया और अंततः उसने अपने दोस्त के कमरे में आकर जान दे दी। रोहित ने अपनी वसीयत में ज़रूर लिखा है की उस की आत्महत्या के लिए वह खुद जिम्मेदार है तथा उसके दोस्तों या दुश्मनों को परेशान नहीं किया जाए लेकिन यह भी तथ्य है निलंबन के बाद उसने उप कुलपति को लिखा था वे उनके लिए जहर या सुंदर से फंदे की व्यवस्था कर दें। इस वाक्य से अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि रोहित को आत्महत्या की ओर ढकेलने के जिम्मेदारी किस पर है?
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस मार्कंडेय काटजू के पास उस आत्म हत्या का कारण निम्नानुसार हैं '' अक्सर गैर दलित (अपने सहपाठी दलित छात्र) को तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं। उन्हें इंसान नहीं समझते, उन पर व्यंग्य करते हैं, उनका उपहास उड़ाते हैं बल्कि उन के साथ दुर्व्यवहार से भी संकोच नहीं करते। यह राष्ट्रीय स्तर पर लज्जास्पद है। जब तक यह सामंती मानसिकता नहीं बदलती हमारा देश प्रगति नहीं कर सकता। ''
 दलित समाज के विरूधद इस अत्याचार में अगर छात्रों के साथ सत्तारूढ़ राजनेता और प्रशासन भागीदार हो जाए तो स्थिति बिगड़ती चली जाती है। केवल हैदराबाद विश्वविद्यालय के अंदर पिछले दस वर्षों में आठ छात्रों ने आत्महत्या की है और लगातार इस तरह का वातावर्ण बनाया जाता है कि दलित छात्र या तो भाग जाएं या ऐसा अत्यंत कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाएं।
हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय में दिसंबर के अंदर छात्रों ने मांस महोत्सव के आयोजन का निर्णय लिया। मानव अधिकारों दिवस के अवसर पर यह व्यवस्था2011, 2012  और  2014 में हो चुकी है लेकिन उसका कोई खास विरोध नहीं हुआ था। इस साल भाजपा के विधान परिषद सदस्य राजा सिगं इसे रोकने के लिए मरने मारने पर उतर आए। अदालत ने प्रतिबंध लगाया पुलिस की जबरदस्त व्यवस्था की गई फिर भी वह समारोह सफल रहा। यह उल्लेखनीय है डॉ। अंबेडकर छात्रावास के छात्रों ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और उसके बाद ही अपनी विफलता पर पर्दा डालने के लिए भगवा ब्रिगेड ने रोहित और उसके साथियों को निलंबित करवाया।
आंध्र प्रदेश देश इन राज्यों में से एक है जहाँ गाय और बछडे के वध पर तो प्रतिबंध है लेकिन बैल और अन्य जानवरों के वध करने की अनुमति है और इस का उल्लंघन करने वाले के लिए सजा भी केवल एक हजार रुपये है। आंध्र प्रदेश से हजारों टन बड़े जानवर का मांस दुनिया भरके देशों में निर्यात किया जाता है।   चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री गुलाबी क्रांति का उल्लेख करते थे और उन्हें हर बड़े जानवर का मांस गाय का दिखता था। इस गुलाबी क्रांति को हरित क्रांति में बदलने के लिए उन्होंने जनता से वोट मांगा लेकिन चुनाव में सफल होते ही वह मांस भैंस का हो गया और फिर क्या था भगवा क्रांति गुलाबी गुलाबी हो गई। मोदी सरकार के सत्तासीन होने के बाद भारत विश्व का सब से बडा बीफ निर्यात करने वाला देश बन गया।
हमारे समाज की यह विडंबना है कि एक तरफ संविधान और अदालत पशु तक के अधिकारों के संरक्षण की गारंटी देता है तथा राजनीतिज्ञ गाय जैसे जानवर को राष्ट्रमाता ठहरा कर सामान्य जनता की भावनाओं का शोषण करते हैं दूसरी ओर इंसानों के साथ जानवरों से भी बुरा व्यवहार किया जाता है । पिछले वर्ष दिल्ली के नजफगढ़ में एक मरी हुई गाय को ले जाने वाले नगर पालिका के ठेकेदार दलित शंकर को मुसलमान समझकर गौहत्या के आरोप में मार दिया गया और कोई कुच्छ ना बोला। हरयाणा में पुलिस थाने के भीतर एक दलित युवा की हत्या पर केंद्रीय मंत्री वी के सिंग बोले अगर गली के कुत्ते पर कोई पत्थर चला दे तो हम पर आरोप लग जाता है। यह वाक्य संघ की मानसिक्ता का प्रतीक है।
इस दोगली राजनीति के कारण हैदराबाद में रोहित रामलो जैसे होनहार छात्र के आत्महत्या कि दिल दहलाने वाली घटना घटती है। इस त्रासदी में न केवल कुलपति बल्कि केंद्रीय श्रम मंत्री दित्तात्रेय बंडारू के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है। रोहत की आत्महत्या के खिलाफ होने वाले विरोध की आग फैलती जा रही है। 12 दलित अध्यापकों ने भी अपना त्याग पत्र दे दिया है। उन शोलों की तपिश बंदारू से आगे निकल कर स्मृति ईरानी और नरेंद्र मोदी के दामन को छू रही है। देखना यह है जल्द ही आयोजित होनेवाले प्रांतीय चुनाव पर इसका क्या प्रभाव पडता है इसालिए कि सारे विपक्षी राजनीतिक दल इसे अपने पक्ष में भुनाने के लिए सक्रिय हो गए हैं।

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