Tuesday 22 December 2015

निर्भया से भयभीत व्यवस्था

अंधा उसे कहते हैं जो अपनी आँखों से देख नहीं सकता। जो सुन नहीं सकता वह बहरा कहलाता है बोलने से विकलांग व्यक्ति को मूक कहते हैं। लूला अपने हाथों से कोई वस्तु उठा नहीं सकता और न लंगड़ा अपने पैरों पर चल सकता है परंतु कानून की दृष्टि से एक नाबालिग बलात्कार कर सकता है! यदि आप को इस पर आश्चर्य नहीं है तो जान लीजिए कि पागल अपने दिमाग से सोच नहीं सकता। निर्भया बलात्कार के मामले में तथाकथित अव्यसक अपराधी की रिहाई हमसे सवाल कर रही है कि क्या न्यायपालिका बुद्धिहीन है? अदालत का तर्क यह है कि हम कानून बना नहीं सकते हम तो बस उस को लागू के लिए प्रतिबद्ध हैं। तो फिर क्या विधायिका यानी हमारे राजनीतिज्ञ पागल हैं? उन्होंने क़ानून क्यों नहीं बनाया?
ऐसा लगता है कि हमारे शासक नहीं चाहते कि शहर दिल्ली ने दुनिया भर में बलात्कार की राजधानी होने का जो श्रेय प्राप्त किया उस से वह वंचित हो जाए। वे यह भी नहीं चाहते कि हर 20 मिनट में देश के भीतर जो एक बलात्कार की वारदात का पंजीकरण होता है इस दर में कमी आए। एक अध्ययन के अनुसार महिला उत्पिडन के 69 में से केवल एक की पुलिस में शिकायत दर्ज होती है। यदि प्रशासन को प्राप्त कुल शिकायतों को 69 से गुणा कर दिया जाए तो अनुमान लगाया जा सकता है देश में महिलाएं कैसे दर्व्यव्हार का शिकार हैं। इस अत्याचार का एक कारण उचित कानून का अभाव है और दूसरा कार्यक्षमता में कमी है। यही कारण है कि दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाती मालीवाल ने हाई कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि यह बेहद दुख की बात है कि निर्भया का दोषी 20 दिसंबर को रिहा किया जाएगा। नर्भया के दोषी की रिहाई का दिन इतिहास का काला दिवस होगा।
निर्भया बलात्कार के पश्चात उसकी हत्या कर के आंतें बाहर निकालकर सड़क पर फेंकने वाला दोषी तीन साल एक सुधार घर में ऐश करने के बाद सम्मानपूर्वक बरी कर दिया गया। यह अत्याचार क्यों हुआ इसका लाख तर्क दिया जाए लेकिन मुख्य कारण यही है कि इस देश में इस्लामी कानून नहीं है। शरीयत ए इस्लामी के अनुसार से 9 से 12 वर्षिय किशोर व्यसक हो सकता है। किसी के वयस्क होने का निर्णय अस्वाभाविक आधार के बजाय मनुष्य के शारीरिक परिवर्तन पर किया जाएगा? निर्भया के दोषी ने अपने कुकर्म से सिध्द कर दिया कि वह बालिग हो चुका है इसलिए वह उसी दंड का अधिकारी है जो वयस्कों के लिए है।
शरीयत ए इस्लामी संसद के प्रमाणीकरण की मोहताज नहीं है और न वह मनुष्य को इस में हस्तकक्षेप का अधिकार देती है । जो लोग ऐसा करते हैं वे अपनि सत्ता का दुरुपयोग करते हैं जिसके कारण समाज में क्रूर अपराधी निडर होकर दनदनाते फिरते हैं और अत्याचार पीडित जनता असहाय और लाचार हो जाती है। पुलिस अपराधी की रिहाई के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों को निर्भया के माता पिता सहित गिरफ्तार कर लेती है।
मानव जाति की समझदारी इसमें है कि वह अपनी गुणों का पूरा समर्ण करके उनका भरपूर उरयोग करे और अपनी विवश्ता को भी ध्यान में रखे। दुनिया का सबसे महान बस चालक भी यदि हवाई जहाज़ चलाने का प्रयत्न करेगा तो न केवल खुद दुर्घटनाग्रस्त होकर बेमौत मारा जाएगा बल्कि जहाज़ के अन्य यात्रियों की मृत्यु का कारण भी बनेगा। आजकल यही हो रहा है। निर्भया की घटना के बाद यूपीए सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा विधेयक पारित किया जिसमें 18 साल से कम आयु के युवकों को नाबालिग घोषित कर दिया परंतु यह नहीं सोचा कि इसका लाभ उठाकर कितने दोषी सजा से बच जाएंगे । इस साल मई में नई सरकार ने संविधान में एक संशोधन करके इस उम्र को 16 साल करने का प्रयतान किया। वह संवैधानिक संशोधन लोक सभा में तो परित हो गया लेकिन राज्य सभा में विपक्ष ने उसे संशोधन हेतु संसदीय चयन समिति के हवाले कर दिया।
संसद में मई की गरमाई बैठक के बाद बरसाती बैठक और अब शीतकालीन सत्र तक सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने इस गंभीर प्रशन पर आपराधिक लापरवाही का प्रदर्शन किया। अगर यह कानून पहले बन जाता तो अदालत के लिए उस अपराधी को सजा देना सरल हो जाता लेकिन हमारे नेताओं को अगर चुनावी अभियान, विदेश यात्राओं और एक दूसरे के खिलाफ दुषप्रचार से फुर्सत मिले तो वह जनता के कल्याण की ओर ध्यान दें। वह तो दिन रात राजनीतिक जोड़-तोड़ और भ्रष्टाचार के जरिए लूट खसोट में लगे रहते हैं।
वित्त मंत्री को पूंजीपतियों को खुश करने वाले जीएसटी विधेयक का ग़म खाए जाता है बल्कि अब तो वह निवेशकों का उध्दारक दिवालिया कानून भी पास कराने की जुगत में हैं। विपक्ष कांग्रेस का यह हाल है कि कभी वह सूट बूट पर हंगामा करती है तो कभी अपने भ्रष्टाचार पर परदा डालने के लिए अदालत के चक्कर काटती है। भ्रष्टाचार सम्राट केजरीवाल एक भ्रष्ट अधिकारी को बचाने के लिए सर धड़ की बाजी लगा देते हैं और पूर्व कानून मंत्री उन पर मानहानि का दावा करने के लिए अदालत के दरवाजे पर दस्तक देते हैं लेकिन कोई निर्भया के हत्यारे को सजा दिलाने के लिए न्यायपालिका का रुख नहीं करता है।
हमारे देश में प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के अलावा एक कानून मंत्री सदानंद गौड़ा भी हैं जिनके नाम से बहुत कम लोग परिचित हैं। सदा आनन्द अपने नामानुसार हर चित्र में अपनी बत्तीसी दिखाते है। यह उनका कर्तव्य था 6 महीने के भीतर इस संवैधानिक संशोधन पर चयन समिति की टिप्पणी सदन में पेश करके 20 दिसंबर से पूर्व इसे पारित करवा कर उस जघन्य अपराधी को रिहा होने से रोकते लेकिन सदानंद खुद व्यक्तिगत समस्याओं में ऐसे उलझे हुए हैं कि उन्हें राष्ट्र के लिए फुर्सत ही नहीं।
नई सरकार में पहले सदानंद गौड़ा को रेल मंत्री बनाया गया। कुछ महीने बाद ही उनके सुपुत्र कार्तिक को एक फिल्म अभिनेत्री को धोखा देकर बलात्कार करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद उन्हें मंत्री मंडल से हटाने के लिए दबाव बनने लगा। प्रधानमंत्री ने जब पहली बार मंत्री मंडल में फेरबदल किया तो सदानंद गौड़ा को रेलवे से हटा कर कानून मंत्री बना दिया गया। इस तरह मानो सदानंद गौड़ा को अपने बेटे को सजा से बचाने की सुविधा प्रदान कर दी गई क्योंकि ऐसे न्यायाधीष तो कम ही होंगे जो अपने मंत्री के सुपुत्र को जेल भेजने का साहस दिखाएं।
इसका परिणाम यह हुआ कि पुलिस ने आरोपी को सजा दिलवाने के बजाएया यह साबित करने पर अपना जोर लगा दिया कि कार्तिक से मुलाक़ात के लिए वह अभिनेत्री स्वतः आई थी इसलिए बलात्कार का तो मुकदना नहीं बनता हाँ धोखाधड़ी की दफा 420 अवश्य लगती है। कानून मंत्री के सामने अब नया लक्ष अपने 420 बेटे का विवाह था।
मंत्री जी इस शुभ कार्य में जुट गए और इस साल अक्टूबर में इस कर्तव्य से भी निमट गए जबकि उस अभिनेत्री के अनुसार कार्तिक ने 5 जून 2014 को उसके गले में मंगलसूत्र डाला था और अपने दोस्तों से उसका परिचय पत्नी के रूप में कराया था। अभिनेत्री के अनुसार कार्तिक का यह दूसरा विवाह है। इस दौरान सदानंद पर लोक आयूकत की अदालत में ज़मीन घोटाले का एक नया आरोप भी लगा। अब ऐसा कानून मंत्री अपने आप को कानूनी शकंजों से बचाए या कार्तिक की अंदेखी कर के निर्भया का बलात्कार करने वाले को सजा दिलवाए?
जनता के दबाव में 22 दिसंबर को संवैधानिक संशोधन पारित हो गया लेकिन इसके बावजूद जो अपराधी रिहा हो चुका है उसे दंड देना असंभव है। सीताराम येचुरी के अलावा विपक्ष और सरकार दोनों इस संशोधन के पक्ष में थे। येचूरी अब भी इसे सीलेक्ट समिति के हवाले करना चाहते हैं लेकिन आशंका है कहीं फिर से वह ठंडे बस्ते में न चला जाए। वैसे इस कानून के पारित हो जाने के बावजूद समस्या का समाधान नहीं होगा।
जिस दिन सदन में इस पर बहस हो रही उसी दिन रोहतक की अदालत ने एक नेपाली लड़की के निर्मम बलात्कार और हत्या में 7 लोगों को मौत की सजा सुनाई। इस अपराध के आठवें आरोपी ने आत्महत्या कर ली लेकिन नौवां 15 साल का है। नए कानून के बावजूद वह दोषी अधिकतम 3 साल सुधार केंद्र में रह कर छूट जायेगा। इस तरह मानो फिर एक बार साबित हो जायेगा कि ईश्वरीय निर्देश की आनदाखी कर के बनाए जाने वाले मानवीय कानून अक्षम होते हैं। निर्भया के पिता बद्री नाथ सिंह पाण्डे भी यही ​​कहते हैं कि हम मजबूर नहीं हैं मगर व्यवस्था असमर्थ है। जरूरत कानून बदलने की नहीं व्यवस्था परिवर्तन की है।
मनुष्य के कल्याण की गारंटी उसके निर्माता और मालिक के अलावा किसि और का बनाया हुआ कानून कैसे दे सकता है? मुस्लिम विव्दानों का 1400 वर्ष पूर्व व्यसक की आयु भौतिक आधार पर 9 से 12 साल निर्धारित कर देना (हालांकि कि लक्षणों के प्रकट न होने की स्थिति में 15 साल तक का अपवाद भी मौजूद है) इस बात का खुला प्रमाण है कि वे इस्लामी शरीयत और मानव प्रकृति से खूब परिचित थे। ब्रिटेन में भी 10 से 17 वर्ष के किशोर को अवस्क माना जाता है परंतु अगर वह हत्या या बलात्कार जैसा जघन्य अपराध कर बैठे तो युवाओं की अदालत से उसका मुकदमा क्राउन कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
अमेरिका के विभिन्न राज्यों में कानून अलग अलग है लेकिन कम से कम 14 साल के लड़के को वयस्कों की सजा मिल सकती है। एनकोस्न के 16 वर्षीय किशोर बरोगन राफ़्रटी को  2011  के अंदर हत्या के आरोप में जेल भेजा गया। इसी साल कोलारेडो के एक 12 वर्षिय किशोर ने अपने माता-पिता की हत्या करने के बाद अपने छोटे भाई पर हमला किया। अपराध कबूल करने के बाद उसे अव्यसकों की अदालत ने 7 साल की सजा सुनाई। बलात्कार की घटनाएं अमेरिका के विकसित समाज में भी घटती हैं जैसे स्टेबनविला में दो 16 वर्षीय फुटबॉल खिलाड़ियों ने एक नशे में धुत्त जवान लड़की की इज्जत लूट ली। सुंदर द्वीप में एक 12 साल के छात्र ने अपनी अध्यापिका का बलात्कार कर दिया। बोल्टन के 12 वर्षीय लड़के ने दो लड़कियों की इज्जत लूट ली जिन की उम्र 10 और 11 साल थी। अमेरिका में 20 प्रतिशत अपराध यह तथाकथित नाबालिग किशोर करते हैं।
भारत में भी कम उम्र के किशोरों के अंदर अपराध प्रवृत्ति में जबरदस्त वृद्धि हुई है। गौहाटी में पिछले दिनों पांच लड़के एक 12 वर्षीय लड़की को बरगला कर अपने झोपड़ी में ले गए और उसका बलात्कार किया। पकड़े जाने पर उन सभी ने अपने कमसिन होने का दावा कर दिया बाद में उन्हें सुधार केंद्र रवाना कर दिया गया। कानून में परिवर्तन के बावजूद उनमें से कुछ अपने आप को 16 वर्ष से कम का साबित करके 3 साल के भीतर छूट जाएंगे।
अपराध के आंकड़े रखने वाले राष्ट्रीय संस्थान (एन सी आर बी) के अनुसार 2012 में 35 हज़ार से अधिक अव्यसक अपराध में लिप्त पाए गए जिनमें से एक तिहाई यानी दस हजार से अधिक 16 साल से कम आयु के थे। इन अपराधों में चोरी डकैती तो केवल दोगुना बढ़ी लेकिन महिलाओं के अपहरण में 6.6 गुना की वृद्धि हुई। 2002 से लेकर 2012 के दशक में इन तथाकथित कमसिनों द्वारा बलात्कार की घटनाओं में 5.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इस अवधि में महिलाओं और बच्चियों के अपहरण की घटनाएं 5 गुना बढ़ गईं।
इस भयानक स्थिति की सर्वप्रथम जिम्मेदारी राजनेताओं पर जाती है जिनके रवैये ने अपराधियों के हौसले बुलंद कर दिए हैं। उदाहरण के लिए दो महीने पहले दिल्ली में दो मासूम बच्चियों की सामूहिक बलात्कार के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली पुलिस पर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री और लेफ्टिनेंट गवर्नर पर हल्ला बोल दिया है। केजरीवाल ने दिल्ली में बढ़ते अपराधों के लिए दिल्ली पुलिस को जिम्मेदार ठहराया (इसलिए कि वे केंद्र सरकार के अधीन है)। केजरीवाल ने दिल्ली में लगातार होने वाली बलात्कार की वारदातों को शर्मनाक बताते हुए सवाल किया कि पीएम और एलजी क्या कर रहे हैं? इसके जवाब में महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष बरखा सिंह ने केजरीवाल सरकार पर आरोप लगाया कि वह केवल अपने प्रचार में व्यस्त है जबकि दिल्ली में महिलाओं पर अपराध बढ़ते जा रहे हैं।
अतीत में वित्त मंत्री अरुण जेटली भी इस तरह की राजनीतिक बयानबाजी कर चुके हैं। उन्होंने पर्यटन मंत्रालय की एक बैठक में बलात्कार की घटनाओं की ओर संकेत करते हुए कहा था कि दिल्ली में एक मामूली घटना के विज्ञापित हो जाने के कारण देश को पर्यटन के क्षेत्र में अरबों रुपये का घाटा उठाना पड़ा। उनके विचार में बलात्कार की घटनाओं के घटने से अधिक हानिकारक उनका प्रचार है और वह इस घाटे को धन दौलत के तराजू में तोलते हैं।
राज्य सभा की बहस में भाग लेते हुए टीएमसी के डेरेक ओब्रायन ने अपने स्वार्थी भाषण में कहा कि अगर दुर्भाग्यवश वह मेरी बेटी होती तो मैं वकीलों पर रूपया बरबाद करने के बजाए बंदूक खरीद कर उस अपराधी को गोली मार देता। जबकि ज्योति सिंह उर्फ ​​निर्भया की मां आशा देवी भारत की हर लड़की की सुरक्षा के लिए संर्घष करने का आवाहन करती हैं। उन्होंने यह सवाल भी किया कि हमें न्यायालय से किसी अनुकूल निर्णय की अपेक्षा नहीं थी लेकिन मैं पूछना चाहता हूं कि आखिर कानून परिवर्तन के लिए कितनी निर्भया दरकार हैं?
इस अवसर पर सबसे महत्वपूर्ण बात स्वाती मालीवाल ने कही कि अब समय आ गया है कि महिलाएं मोमबत्ती कि बजाय मशाल ले कर मैदान में उतरें। महिला ही क्यों पुरुषों को भी अत्याचार के खिलाफ इस लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर शामिल होना पडेगा तभी इस समस्या का समाधान संभव है। निर्भया के पिता बद्री सिंह पाण्डे अपनी पत्नी आशा देवी के साथ सदन में संविधान के संशोधन पर बहस का निरीक्षण करने के लिए आए। इस से पूर्व  बद्री नाथ सिंह ने संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी से मुलाकात के बाद कहा बातें बहुत हो चुकीं अब किसी देरी के बिना इस संशोधन को लागू होना चाहिए।

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