Sunday 20 December 2015

मर्दे नादां पर कलामे नरम और नाजुक बेअसर

इक़बाल और टेगोर दो ऐसे युग पुरूष हैं जिन का दो विभिदेशों में समान सम्मान किया जाता है। एक तरफ अल्लामा इक़बाल को पाकिस्तान के राष्ट्र कल्पना का जनक कहा जाता है वहीं उन का तराना-ए-हिन्दी सारे जहाँ से अच्छा भारतीय राष्ट्र गान जन गण मन से अधिक लोकप्रीय है। इस तथ्य का एक प्रमाण यह है की जब इंदिरा गांधी ने भारत के प्रथम अंतरिक्षयात्री राकेश शर्मा से पूछा कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है, तो शर्मा ने इस गीत की पहली पंक्ति कही। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि जन गण मन मूलतः बंगाली में लिखा गया था जिसको भारत के अधिकतर लोग नहीं समझ सकते यही कारण है की बंगला दाश ने भी टेगोर रचित आमार सोनार बांगला को अपना राष्ट्र गीत बनाया।
औपचारिक और अनौपचारिक राष्ट्रीय गीतों में एक अंतर यह भी है कि विद्रोह से भरे भारत के लोगों को शांत करने के लिए अंग्रेजों ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया। उस समय रविंद्रनाथ टेगोर पर दबाव बना कर जोर्ज पंचम के स्वागत में यह गीत लिखवाया गया। मजबूरी में रविंद्रनाथ टेगोर ने वो गीत लिखा जिस में  जोर्ज पंचम को भारत भाग्य विधाता कहा गया। हकीक़त में यह अंग्रेजो कि खुशामद में लिखा गया गीत था जबकि । अल्लामा  इक़बाल को १९०५ में लाला हरदयाल ने एक सम्मेलन की अध्यक्षता करने का निमंत्रण दिया। इक़बाल ने भाषण देने के बजाय यह सारे जहां से अच्छा पूरी उमंग से गाकर सुनाई। हिन्दुस्तान के प्रशंसा में लिखा यह गीत विभिन्न सम्प्रदायों के बीच भाई-चारे की भावना को प्रोत्साहित करता है।
अल्लामा इकबाल की कविता इस्लामी मान्यताओं और दर्शन के साथ मुलमानों के इतिहास और सभ्यता का बहुमूल्य गुलदस्ता है। एक समाज सुधारक के रूप में उन्होंने मिल्लत के अनेक समस्याओं का विश्लेषण किया। मिल्लत के पतन का कारण और निवारण कुरान और प्रेषित के उपदेशों की रोशनी में पेश किया इसीलिए इस्लामी कवि कहलाने का गौरव प्राप्त है। अल्लामा इकबाल उच्च श्रेणी की बौद्धिक और सुधारात्मक कविता के बावजूद असाधारण लोकप्रियता प्राप्त हुई ऐसा कम होता है।
 अल्लामा इकबाल ने कविता की माध्यम से निराश लोगों को जागरूक करने की जिम्मेदारी निभाई। उनके बाद उठने वाली प्रगतिशील आंदोलन ने भी बड़े पैमाने पर कविता से जनजागरण का काम लीया परंतु उसमें इस्लाम के बजाय वामपंथी विचारधारा का बोलबाला था। इसके विपरीत इकबाल ने निराशा  मुसलिम समुदाय में नया जोश और उल्लास भरने की खातिर इस्लाम को आधार बनाया। इकबाल को  पश्चिम में जाकर उसके अवलोकन और अनुभव का सौभाग्य प्राप्त हुआ था इसलिए उसकी वास्तविकता और बोदा पन उन पर पूरी तरह स्पष्ट हो चुका था। इकबाल ने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में पश्चिमी विचारधारा विनाश कारी प्रभाव को बहुत करीब से देखा वे दोनों महायुध्द के चश्मदीद गवाह थे इसलिए उन्होंने बौद्धिक पटल पर पश्चिमी सभ्यता की मानसिक गुलामी से निकालने का संघर्ष किया।
अल्लामा इकबाल ने कुरान सुन्नत के अलावा पश्चिमी विचारों और भारत के प्राचीन दर्शन का अध्ययन किया। अल्लामा इकबाल ने प्राचीन और आधुनिक युग के महापुरूषों का खुले मन से गुनगान किया जिनमें श्री रामचंद्र, श्री कृष्ण, गौतम बुद्ध, गुरुनानक, विश्व मित्र, स्वामी राम तीर्थ आदि का समावेश है। लाहौर में अपने अंग्रेजी और दर्शन के शिक्षक प्रोफेसर अर्नोल्ड इंगलिस्तान वापसी ने अल्लामा बहुत दुखी हुए और प्रसिध कविता नाला ए फिराक में अपनी श्रद्धा के अमर पुष्प अर्पण किये। अल्लामा दिल्ली महान दार्शनिक और कवि भरथरी हरि के बडे प्रशंसक थे। यही कारण है कि इकबाल ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक बाल जिब्रील के प्रथम पृष्ठ पर भरथरी हरि की पंक्ति का अनुवाद लिखा है। यह अनूठा सम्मान कम ही लोगों को प्राप्त हुआ होगा। भरतरी हरी पहली शताब्दी (ई.पू.) में संस्कृत भाषा के कवि थे। मालवा के उस राजा का राजधानी उज्जैन था। उनकी व्याकरण की पुस्तक का आज भी हवाला दिया जाता है।
 इसके अलावा भरथरी हरि तीन कविता संग्रह हैं जिनमें जीवन के तीन प्रमुख क्षेत्रों पर 100 से आधिक श्लोक हैं। पहली पुस्तक श्रंगार शतक में प्रेम विलास को विषय बनाया गया है। दूसरी पुस्तक नीति शतक उस युग की रचना है जब वह मालवा राज्य का राज कुमार था। इसमें भरथरी हरि ने अपने दौर की राजनीतिक स्थिति और विचारों को प्रस्तुत किया है। इस कवि की सब से महत्वपूर्ण किताब वैराग्य शतक है। अपना राज पाट छोड़कर संन्यास लेने के बाद उसने वैराग्य शतक लिखी जिसमें दिव्य अनुभूति और सन्यास व मोक्ष को चर्चा का विषय बनाया गया है अल्लामा इकबाल एक कवि के रूप भरथरी हरि के की महानता का अपार सम्मान करते थे।
भरथरी हरि की कविता में मौजूद विषय की विविधता और विस्तार का मुख्य कारण उसके जीवन के उतार-चढ़ाव हैं। संन्यास लेने से पहले उसने एक सफल दुनियादार जीवन का उपभोग किया और सांसारिक विलासता में ऐसे लीन हुआ कि राजर्धम और रचनात्मक कर्मों से बेखबर हो गया। इस लापरवाही का मुख्य कारण उसका पत्नी रानी पनगला के साथ जुनून की हद तक प्यार था। भरतरी हरी सौतेले भाई विक्रमादित्य ने इस पर आपत्ति जताई तो रानी पनगला ने अपने पति की मदद से उसे निर्वासित करवा दिया।
भरथरी हरि के विषय में एक बहुत रोचक घटना इतिहास की पन्नों में दर्ज है। कहा जाता है कि किसी साधु संत ने भरथरी हरि से खुश होकर उसे एक फल प्रदान किया और यह वरदान भी दिया कि इसे खाने से आयु में वृद्धि होगी। भरथरी हरि चूंकि अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता था इसलिए उसने अपने उसको प्राथमिकता दी। भरथरी हरि ने वह फल अपनी चहेती पत्नी देकर कहा कि नहाने के बाद उसे खाए। पनगला एक साईस के इश्क में गिरफ्तार थी इसलिए उसने फल उसे दे दिया। साईस एक वेश्या का प्रेमी था इसलिए वह फल उपहार के रूप में वेश्याओं तक पहुंच गया। वेश्या ने राजा को खुश करने के लिए वह फल भरथरी हरि की भेंट कर दिया। उसने फल खा लिया मगर उसे पता चल गया कि रानी पंगला बेवफा है। इस घटना से आहत होकर भरतरी हरी ने ना केवल अपनी पत्नी से किनारा कर लिया बल्कि राज पाट छोड़ कर सन्यासी बन गया। रानी पंगला की भूमिका तथ्य है या प्रतीक यह तो अनुसंधान का विषय है लेकिन इसमें शक नहीं कि कलयुग ने क्रुर और बेवफ़ा रानी पंगला को सुंदर आभूषण पहना कर लोकतंत्र की नीलम परी बना दिया है।
इस युग लोकतंत्रिक नीलम परी ने अपना मकड जाल कुछ इस तरह से फैला रखा है कि संविधान ने सत्ता का फल जाहिरा तौर पर जनता के कदमों में डाल दिया। जनता ने वर्तमान समय में भाजपा पर मुग्ध होकर यह फल उसे प्रदान कर दिया। भाजपा का युगल प्रेमी नरेंद्र मोदी थे इसलिए वह मोदी जी को थमा दिया गया। मोदी जी पूंजीपतियों के आशिक हैं इसलिए उन्होंने अडानी और अंबानी को इस फल से मालामाल कर दिया। पूंजीपतियों के दिल में यदि जनता का प्यार होता तो और अगर वह फल उन्हें लौटा देते तो चक्र पूरा हो जाता लेकिन कलयुग में यह कैसे संभव था इस लिए लालची पूंजीपतियों ने उसे अपनी तिजोरी में बंद कर दिया और देश की जनता का बहुमत दाने दाने का मोहताज हो गया।
लोकतंत्र का यह जादुई फल संविधान की बदौलत हर चुनाव के मौसम में गांव गांव शहर शहर अपने आप फलने लगता है। जनता उस के जादू में गिरफ्तार होकर अपने सारे दुख दर्द भुला देते हैं और राजनीतिक नेताओं के भाषणों की कृपा से नित नए सपने सजाने लगते हैं। पिछली बार राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का समर्थन करने के पश्चात अब लोगों को अपनी गलती का अहसास हो चला है इस लिये संभवतः वह आगामी चुनाव में यह फल कांग्रेस के हाथ में थमा दे। फिर वही सिलसिला चल पड़ेगा। कांग्रेस उसे राहुल की झोली में डाल देगी और फिर घूम कर वह पूंजीवादी लॉकर में चला जाएगा। लाचार व असहाय जनता फिर नए चुनाव का इंतजार करेंगे और कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए तीसरे मोर्चे को वह फल प्रदान कर देंगे लेकिन अंततः लालू, नीतीश या मुलायम भी उसे पूंजीपतियों के हाथों बेचने से नहीं चूकेंगे। जनता को तो इस राज्य प्रणाली में धैर्य(सब्र) के मीठे फल पर ही संतोश करना होगा। वह उसे कभी नहीं चख पाएंगे।
जनता की स्मरणशक्ति चूंकि कम अवधि की होती है इसलिए संभावना है कि अगले युग के लोग भाजपा की धोखाधड़ी को भूल चुके हों। उन्हें कमल फिर से खुशनुमा लगने लगे, फिर एक बार उस पर विस्वास कर बैठें। विकल्प ना होने के कारण राजी-खुशी न सही तो बेदिली के साथ सत्ता के फल को तत्कालीन मोदी के चरणों में डाल दें और वह उसे पूंजीपतियों के चरणों में डाल दे। पूंजीवादी लोकतंत्र में इसके अलावा और हो भी क्या सकता है। यह सिलसिला तब तक चलेगा जब तक कि लोग पश्चिमी निर्धमी लोकतांत्रिक प्रणाली को अपना संरक्षक समझेंगे और उस का उन्मूलन करने के बजाय उसका संरक्षण करते रहेंगे। भरथरी हरि की तरह मौजूदा नेताओं में से न कोई संन्यास लेगा और न राष्ट्र का कल्याण होगा।
इस आधुनिक राजनैतिक प्रणाली के कारण भरतर हरि की भूमि भारत में फिलहाल जो व्यक्ति शासन कर रहा है वह संन्यासी न सही तो कम से कम ब्रह्माचारी जरूर है। उसने बिना तलाक के वैवाहिक रिश्ता तोड रखा है। वह अपनी मां से प्रदर्शनी मुलाकात तो करता है लेकिन उन्हें अपने पास नहीं बुलाता। वे बड़े गाजे-बाजे के साथ यह दावा तो करता है कि उसका आगे पीछे कोई नहीं है कि जिसके लिए वह भ्रष्टाचार करे हालांकि जो व्यक्ति सरकारी खर्च पर दिन में पांच बार कपड़े बदले और उनमें एकाध 10 लाख तक का सूट भी हो तो उसे भ्रष्टाचार के जाल में फंसने के लिए किसी और की क्या अवश्यक्ता?
भरथरी हरि के बाद से यह देश अभूतपूर्व बौद्धिक और व्यावहारिक गिरावट का शिकार हुआ है। वह तो खैर इकबाल की भेंट प्रधानमंत्री से नहीं हुई। अगर ऐसा हुआ होता और इसके बाद उन्होंने भरतरी हरी वाला शेर कहा होता तो निश्चित रूप से प्रधानमंत्री के भक्त उसे अपने चहीते नेता से जोड देते। मोदी जी भी जिनके नाम से एक काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुका है इस शेर को समझे बिना सहर्ष इस बात पर गर्व जताते कि पहली बार किसी महान कवि ने किसी प्रधानमंत्री शेर कहा परंतु चूंकि इन के जन्म से 12 साल पहले अल्लामा इकबाल इस नश्वर जग से कूच कर चुके थे इसलिए यह संभावना नहीं है। अभी तक आगर आप नहीं जान सके वो कौन सा शेर है जो प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व का भरपूर चित्रण करता है तो लीजिए पढिए भरथरी हरि का यह विचार ؎
फूल पत्ती से कट सकता है हीरे का जिगर मर्दे नादां पर कलामे नरम और नाजुक बेअसर
केजरीवाल के प्रधानमंत्री को कायर और मानसिक रोगी कहने पर आजकल भाजपा वाले खूब बवाल मचा रहे हैं और उन्हें अपनी भाषा पर लगाम लगाने का प्रवचन दे रहे हैं। भाजपा जैसी बदज़बान पार्टी का जिसकी साध्वी सांसद ने रामज़ादे और हरामज़ादे की शब्दावली का आविष्कार किया है। जिस का एक मंत्री दलित युवक की हिरासत में मौत को कुत्ते की की मौत क़रार देता है। जिसके नेता मांस खाने वालों के लिए मौत की सजा की सिफारिश करते हैं और खुद प्रधानमंत्री गुजरात के दंगों को अपनी कार के पहियों तले आने वाले कुत्ते की संज्ञा देता है, दूसरों के बोलने पर आलोचना कुछ अजीब सा लगता है। अरविंद केजरीवाल ने उक्त शेर की रोशनी में कहा कि चूंकि प्रधानमंत्री राजनीतिक क्षेत्र में मुझ पर काबू नहीं पा सके इसलिए ओछी हरकतों पर उतर आए हैं और यह भी बोले कि देश के वित्त मंत्री झूटा है। सच तो यह है कि यदि लातों के भूत की पूजा जूतों से ही होती है।

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