Monday 5 October 2015

गांधी जयंती: गांधीजी अब देख लें आकर अपना हिन्दुस्तान

भारत में तीन मौसम और तीन राष्ट्र दिवस हैं। गरमा गर्म स्वतंत्रता दिवस और ठंडा ठंडा गणतंत्र दिवस। इनके अलावा बरसात का मौसम यानी गांधी जयंती। इन सारे अवसरों पर राष्ट्रपति एक संदेश अवश्य प्रसारित करते हैं। इस बार गांधी जयंती के अवसर पर प्रणब दा ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा,' 'गांधी जयंती एक विशेष दिन है, जब हमें अपने आप को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसा, शांति और सहिष्णुता के आदर्शों के प्रति समर्पित कर देना चाहिए'। गांधीजी दरअसल उन्हीं तीन सिद्धांतों के प्रचारक थे। लेकिन कलयुग में गांधी जी की लाठी को झाड़ू में बदलकर '' स्वच्छ भारत'' से जोड़ दिया गया है। हाथ की सफाई से अहिंसा का 'अ' निकालकर शांति के पहले लगा दिया गया जिस से वह अशांति में बदल गई। नतीजा यह है कि चारों ओर हिंसा की हाहाकार मची है और अशांति का बाजार गर्म है। असहिष्णुता का सबसे बड़ा उदाहरण दादरी में एक सैनिक सरताज के पिता अखलाक़ और भाई द्निश की हत्या है। 2007 में संयुक्त राष्ट्र ने गांधी जी के जन्म दिन को 'अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस' घोषित किया था संभव है कि हाल की घटनाओं के बाद यह विश्व संस्था इस दिन की योग्यता पर पुर्नविचार करने पर मजबूर हो जाए।
इस साल 2 अक्टूबर को जहां बड़े राज नेता गांधी समाधि राजघाट पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए पहुंचे वहीं संस्कृति मंत्री महेश शर्मा और सांसद असद उद्दीन ओवैसी बसाहड़ा गांव में मुहम्मद अखलाक के घर उनके परिवार जनों के प्रति संवेदना व्यक्त करने के लिए भी गए। मोहम्मद अखलाक की मौत इतनी महत्वपूर्ण क्यों हो गई कि अगले दिन अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी ने भी उनके घर जाने का कष्ट किया? यह एक महत्वपूर्ण प्रशन है जिस का उत्तर पंडित जवाहर लाल नेहरू के उस बयान में छिपा है जो उन्होंने महात्मा गांधी की म्रत्यु के समय दिया था '' वह प्रकाश हमसे विदा हो रहा है जो जाने के हजारों वर्ष बाद भी हमारे जीवन का मार्गदर्शन करता रहेगा। गांधी जी के आदर्श हमारे सामूहिक जीवन की विरासत के समान हैं।'' धार्मिक सहिष्णुता और गौ हत्या के बारे में गांधी जी का आदर्श तो यह था कि ''हिन्दोस्तान में गौ हत्या के खिलाफ कोई कानून नहीं बनाया जा सकता .... में  दीर्घकाल से गाय की सेवा का शपथ ग्रहण कर चुका हूँ लेकिन यह कैसे हो सकता है कि मेरा धर्म शेष भारतीय नागरिकों का भी धर्म हो? इसका अर्थ उन लोगों की उत्पीड़न करना होगा जो हिंदू नहीं हैं। '' पंडित जी के नेतृत्व में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में गव रक्षा का कानून बना कर गांधी जी की विरासत गंवा दी।
इस कानून के अनुसार गाय बैल वध करना, उसका सहयोग करना यानी मांस बेचने और उसके लाने ले जाने को अपराध ठहरा दिया गया। इस का उल्लंघन करने वाले के लिए अधिक से अधिक 7 साल कैद और दस हजार रुपये जुर्माना की सजा तै की गई। विमान और ट्रेन यात्रियों को बीफ अपवाद दिया गया। इस कानून में बीफ खाने वाले का कोई उल्लेख नहीं है यानी अगर कोई यात्री रेलवे स्टेशन या हवाई जहाज से बीफ अपने साथ लाकर घर नें खाए तो यह अपराध नहीं है। ऐसे में मोहम्मद अखलाक के घर में रखे मांस को प्रयोगशाला में भेजने का कोई औचित्य ही नहीं बनता। यदि अखलाक ने गाय वध भी किया होता तब भी उसकी सजा मौत नहीं है और इस सजा को बहाल करने का अधिकार किसी आतंकवादी भीड़ को नहीं बल्कि अदालत को प्राप्त है लेकिन इन बातों पर वही ध्यान दे सकता है जो कानून के शासन में विश्वास रखता हो। जिसे अपनी मनमानी करनी हो? जो जानता हो कि हत्या के बाद वह भी मुजफ्फरपुर दंगा के आरोपी संगीत सोम की तरह बरी हो जाएगा तो वो इन बातों पर क्यों कान धरे?
उत्तर प्रदेश सरकार से प्रेरणा लेकर  1955 के अंत में बिहार के अंदर भी गौ हत्या पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इस कानून में दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति के लिए केवल 6 महीने तक की सजा का प्रस्ताव था और जुर्माने की राशि भी 1000 रूपया थी। इस कानून में धार्मिक उद्देश्य के लिए समर्पित बैलों को मज़हबी तरीके से वध करने की छूट दी गई थी लेकिन यह प्रशासन के परमिट के अधीन था। मध्य प्रदेश में जब कानून बना तब भी प्रशासन की अनुमति से धार्मिक और चिकित्सा अनुसंधान के लिये भैंस के वध की अनुमति थी। सजा अधिकतम एक साल और जुर्माना केवल एक हजार रुपये तय किया गया। कसी सर फिरी भीड़ को बीफ खाने वाले को मारने का परवाना किसी कानून ने नहीं दिया।
 दिलचस्प बात यह है कि इन सभी नियमों में वध की खातिर गाय बैल का लाना लेजा और खरीद बिक्री अपराध है। वर्तमान में भारत बीफ निर्यात करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश है इसलिए जाहिर है जिन राज्यों में बड़े वधशालाएं हैं उनके आसपास वाले राज्यों से भी जानवर वहाँ लाए जाते होंगे तथा उनका मांस जिन बंदरगाहों से निर्यात किया जाता है जैसे मुंबई वहाँ भी परिवहन का काम होता ही होगा लेकिन यह कानून उन बड़े पूंजीपतियों पर भी इसी तरह लागू नहीं होता जैसे पांच सितारा होटलों को धन के बल पर छूट मिल जाती है। पिछले चुनाव अभियान में गुलाबी क्रांति शब्द का आविष्कार करके जनता को बरगलाया गया था लेकिन नई सरकार के पहले साल में निर्यात पर प्रतिबंध तो दूर वृद्धि हो गई। जैन समाज अपने त्योहार के दौरान मांस खाने वालों को सब्जी खाने के लिए मजबूर करने की कोशिश तो करता है परंतु अपने समाज के बीफ व्यापारियों को मांस निर्यात करने से नहीं रोकता।
1958  के अंदर गौरक्षा के कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। पांच जजों के प्रमुख मुख्य न्यायाधीश एस आर दास ने गाय और बछड़ों के अलावा अन्य बड़े जानवरों के वध की अनुमति दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा निरर्थक जानवरों को पालना राष्ट्रीय नुकसान है उनका वध गरीबों का आहार है। मुख्य न्यायाधीश ने स्वीकार किया कि बड़े जानवर का मांस आम आदमी की खुराक है। इस फैसले के 47 साल बाद  2005 में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला बदल कर गुजरात में लगे पूर्ण प्रतिबंध को उचित करार दे दिया। जस्टिस लाहोती ने 7 सदस्यीय बेंच के बहुमत का फैसला सुनाते हुए कहा 47 साल बाद बड़े जानवर का मांस ही गरीब आदमी के लिए प्रोटीन वाला सामान्य आहार नहीं है। देश में खाद्य उत्पादन खासा बढ़ गया है समस्या खाद्य वस्तुओं के समान वितरण की है।
अदालत ने धर्म के बजाय अर्थव्यवस्था और पोषण के आधार पर फैसला किया और गोबर को कोहिनूर हीरे के समान घोषित कर दिया। मूल मामला धार्मिक नहीं बल्कि आर्थिक और राजनीतिक ही है। कानून के तहत पशु वध करने और उसे बेचने पर प्रतिबंध है भोजन पर नहीं। इस का पालन इस तरह होना चाहिए था कि मांस के आयात में वृद्धि होती। यह जानवर अन्य देशों में कटते और यहाँ उनकी खपत होती लेकिन इसके विपरीत आयात के बजाय निर्यात में वृद्धि होती चली गई। इसका मतलब यह है जानवर तो अब भी जोर-शोर से वध किए जा रहे हैं और उनका मांस बेचा भी जा रहा है यानी कानून का उल्लंघन हो रहा है। अंतर यह है कि पहले आम भारतीय यह जानवर खरीदता था और उसे वध करके आम भारतीय नागरिक को बेच देता था इस तरह इस व्यवसाय से आम लोगों का भला होता था।
अतीत में जो पशु बलि किए जाते थे वे अब भी न तो गौशालाओं में पलते हैं और न सड़कों पर मरते हैं बल्कि पहले की तरह कुछ विशेष पूंजीपतियों के निजी वधकक्षों में वध किए जाते हैं। इस कारोबार से निवेशक का लाभ होता है और वे अपना फायदा नेताओं के साथ बांटकर ऐश करते हैं। प्रधानमंत्री ने चुनाव प्रचार के दौरान स्वीकार किया था कि उनके जैन मित्र भी इस व्यवसाय में हैं अब भला सत्ता में आने के बाद अपने दोस्तों को कौन नाराज कर सकता है? जहां तक जनता का संबंध है गौ माता के नाम पर धार्मिक भावनाओं को भड़का कर उन्हें बाआसानी मूर्ख बनाया जा सकता है।
इस बात को एक उदाहरण से समझा जा सकता है। पश्चिम बंगाल में बीफ पर प्रतिबंध नहीं है। यहाँ कुछ बड़े जानवर सीमा पार करके बंगला देश भी भेज दिए जाते थे। अब इसे तस्करी बताकर बंद कर दिया गया ताकि वह जानवर उन बड़े स्लाटर हाऊस में आ सकें जिनसे मांस निर्यात किया जाता है। इस प्रकार पहले इस कारोबार से बड़े पैमाने पर गरीब बेचने वाले और बांग्लादेश के गरीब खाने वाले फायदा उठाते थे अब इस से अमीर विक्रेता और यूरोप और खाड़ी के समृद्ध खाने वाले आनंद लेते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि लोकतंत्र की बाबत यह भ्रम पैदा कर दिया गया है कि इस में वोट को नोट पर प्राथमिकता प्राप्त है। आपातकाल जैसी स्थिति में कभी कभार यह अपवाद देखने को मिलता है, लेकिन सामान्य परिस्थिति में ऐसा नहीं होता।
वोट और नोट के अंतर के कई कारण हैं। वोट अपने आप उगने वाली फसल है जो हर चुनाव के समय बिना किसी परिश्रम के उग जाती है इसलिए उस का विशेष महत्व नहीं होता लोग इसे एक शराब की बोतल के बदले भी बेच देते हैं। वोट का इस्तेमाल बहुत ज्यादा सोच समझकर नहीं किया जाता। इसके विपरीत अक्सर नोट कमाने के लिये काफी मेहनत करनी पड़ती है। यही कारण है कि बड़े विचार विनमय के बाद इसे कहीं लगाया जाता है। एक और अंतर यह है कि वोट का इस्तेमाल चुनाव के समय नहीं किया जाए तो वह बर्बाद हो जाता है जबकि नोट बर्बाद नहीं होते यह उचित मौका तक सेंत कर रखे जा सकते हैं। नोट के कारोबार में लाभ हानि का हिसाब किताब आसान है वोट के धंधे में यह असंभव होता है। नोट वाले मुट्ठी भर लोगों को खुश करना सुविधाजनक है लेकिन वोट देने वाले करोडों लोगों के कल्याण एक मुश्किल काम होता है इसलिए राजनीतिज्ञ इस बखेड़े में नहीं पड़ते। अंतिम बात यह है कि आम आदमी को बरगलाना राजनेताओं के बाएं हाथ का खेल है मगर पूंजीपतियों को फरेब देना असंभव है।
जिन नियमों का ऊपर उल्लेख हुआ है वह तो खैर स्वतंत्रता के बाद बनाए गए लेकिन जम्मू कश्मीर का संविधान डोगरा राजा रणबीर सिंह के ज़माने में बनाया हुआ है इसलिए उसे आईपीसी के बजाय आरपीसी यानी रणबीर दंड संहिता कहा जाता है।1862  में वहां गाय वध पर प्रतिबंध लगाया गया और प्रतिबद्ध करने वाले के लिए दस साल की सजा और मांस रखने पर एक साल सज़ा मुर्कर की गई । यह कानून अभी तक सिर्फ किताबों की शोभा बना हुआ था और किसी को इस के संचालन का विचार तक नहीं आया था लेकिन भाजपा की केंद्रीय सरकार और राज्य सत्ता में भागीदारी के बाद वकील प्रमोक्ष सिंह ने जम्मू हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर के इस कानून को लागू करने की मांग करदी। जस्टिस धीरज सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति जनक राज कोतवाल ने तुरंत डायरेक्टर जनरल पुलिस को आदेश दिया कि वह कानून के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करें और इस का उल्लंघन करने वालों को सख्त दंड देने की धमकी दे डाली। इस फैसले को जम्मू कश्मीर बार परिषद ने जनता के मूलअधिकारों का हनन करार दिया और राज्य के बहुसंख्यक समुदाय के धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ बताते हुए 12 सितंबर को हड़ताल की घोषणा कर दी।
अन्य सामाजिक दलों ने भी सार्वजनिक बंद की घोषणा की और पूरी घाटी ठंडी हो गई। विभिन्न नेताओं को अपने घरों में नजरबंद कर दिया गया इसके बावजूद बंद को अभूतपूर्व सफलता मिली उस दिन पूरे राज्य में बड़े पैमाने पर बड़े पशु वध किए गए। यहाँ तक के सरकारी मेडिकल कॉलेज के छात्रों ने भी अपने छात्रावास में इस क्रूर कानून की धज्जियां उड़ा दीं। मीर वाइज़ ने कहा कि यह बंद इस बात का सबूत है कि कश्मीरी जनता अपने धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेंगे। मजलिस मिल्लत ने मांस व्यापारियों को आश्वासन दिया कि वे अपना व्यवसाय करते रहें अगर पुलिस ने रोका तो मजलिस उसके खिलाफ पर्याप्त रणनीति अपनाएगी और अगर हालात खराब हुए तो प्रशासन जिम्मेदार होगा।
जम्मू बेंच के इस फैसले को कश्मीर हाई कोर्ट में चुनौती दी गई और उसने सरकार से सफाई मांगी। राज्य सरकार सफाई देने के बजाए सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गई और सुप्रीम कोर्ट ने दो महीने के लिए जम्मू हाईकोर्ट बँच के फैसले को निलंबित करके दोनों बेंचों से कहा वे आपस में बैठकर इस विवाद को सुलझाएं। इस कानून के रद्द करने के लिए नेशनल कांफ्रेंस ने पीडीपी को अपना समर्थन प्रदान कर दिया। अब पीडीपी लिए धर्म संकट पैदा हो गया या तो वो भाजपा को प्रसन्न करे या अपने मतदाताओं को खुश करने के लिए नेशनल कांफ्रेंस के साथ हाथ मिलाए लेकिन इस अवसर पर भाजपा में शामिल खुर्शीद अहमद ने बीफ पार्टी की घोषणा कर के सभी को चौंका दिया। खुर्शीद मलिक दक्षिण कश्मीर से भाजपा के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। उनके अनुसार इस दावत में हिन्दू मुस्लिम दोनों को आमंत्रित किया गया था। शाकाहारी मेहमेनों के लिए सब्जी की व्यवस्था की गई थी । उन्होंने इस के व्दारा हिन्दू और मुसलमानों के बीच भाईचारा बढ़ाने की उम्मीद जताई। जब पूछा गया कि क्या आप ने पार्टी से अनुमति ली है तो वह बोले क्या मुझे मस्जिद जाने के लिए पार्टी से अनुमति लेनी होगी यह धार्मिक मामला है इससे भाजपा का कोई लेना देना नहीं। धार्मिक मामलों में कोई सामझौता संभव नहीं है। में एक राजनीतिक नेता के अलावा मुसलमान भी हूँ और अदालत हमारे धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही है।
भाजपा नेता का यदि यह हाल हो तो जनता की स्थिति का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। कश्मीर में सबसे अधिक सेना और अर्धसैनिक दल तैनात हैं। राज्य सरकार में भाजपा की भागीदारी है और केंद्र सरकार भी उसी की है इसके बावजूद उनकी एक नहीं चली। किसी ऐसे गांव में जहां कुछ मुस्लिम परिवार रहते हों सैन्य बेटा घर से दूर हो दो सौ लोगों का दो निहत्ते लोगों पर हमला बोल देना प्रताप सेना की वीरता नहीं कायरता और राणा प्रताप का अपमान है। इन लोगों में अगर हिम्मत होती तो कश्मीर घाटी में कानून लागू करवा देते और किसी को सजा देना तो दूर गिरफ्तार ही करवा लेते लेकिन यह तो अपनी गली के शेर हैं जब बाहर निकलते हैं तो भीगी बिल्ली बन जाते हैं। इस का प्रमाण भाजपा के सिनियर नेता प्रोफेसर हरिओम की यह सलाह है कि कश्मीर समस्या का एकमात्र समाधान यह है कि इसे चार भागों में बांट दिया जाए। एक जम्मू दूसरा लद्दाख तीसरा घाटी में पंडितों का क्षेत्र और चौथा कश्मीर। यही भय की मनस्थिती किसी जमाने में विभाजन का कारण बनी थी। उल्लेखनीय बात यह है कि कश्मीर ही वह राज्य है जहां विधानसभा के अंदर मोहम्मद अखलाक़ पर हमला की निंदा प्रस्ताव पारित किया गया।

उत्तरी और पश्चिमी भारत के अक्सर राज्यों में बीफ पर प्रतिबंध जरूर है लेकिन दक्षिण व पूर्वी भारत में ऐसा कानून नहीं है। गोवा के अंदर भाजपा सरकार है फिर भी वहाँ ईसाइयों का बहुमत है जो बीफ खाता है इसलिए भाजपा पाबंदी का साहस नहीं करती। मेघालय में अमित शाह के आगमन पर उनका स्वागत बीफ पार्टी के साथ किया गया था और भाजपा के स्थानीय नेता कहलोर सिंह लनगडोह ने प्रतिबंध का विरोध करते हुए कहा था बीफ आदिवासियों का आहार है। यह क्षेत्रीय मामला है और इसे रोका नहीं जा सकता। प्रदर्शनकारियों ने उस दिन बंद का आह्वान किया और इस तरह के प्रतिबंध को आदिवासी विरोधी बताते हुए विरोध प्रकट किया। भाजपा के संघ प्रवक्ता राम माधव ने उस मौके पर कहा था बीफ पर प्रतिबंध की खबर महज अफवाह है जो गलतफहमी का कारण बनी। हम देश के विभिन्न सभ्यताओं और धर्मों का सम्मान करते हैं। इस अवसर पर गृह राज्यमंत्री किरण रजेजो ने यह कहकर भाजपा को परेशानी में डाल दिया था कि वह भी बीफ खाते हैं।
 मोहम्मद अखलाक़ की शहादत के बाद संघ परिवार के विरोध में जो ज्वालामुखी फटा उससे उनकी बरसों की मेहनत से फैलाई हुई गलतफहमी रूई के गालों की तरह उड़ गई कि हिंदू बीफ नहीं खाते। कई दलित नेताओं ने कहा कि वह बीफ खाते हैं। केरल के हिंदुओं ने मोहम्मद अखलाक़ के साथ एकजुटता व्यक्त करने की खातिर सार्वजनिक रूप से बीफ की बिरयानी खाते हुए घोषणा की कि अगर हिम्मत है तो आओ हमारी हत्या करो। इस के अलावा लालू यादव ने स्वीकार किया कि हिंदू भी बीफ खाता है। शोभा डे ने चुनौती दी मैंने अभी अभी बीफ खाया है आओ और मुझे मार डालो। न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने वाराणसी हिंदू विश्वविद्यालय के अंदर कहा गाय भी एक जानवर है वह किसी की माँ कैसे हो सकती है। मेरा जी चाहेगा तो बीफ खाऊंगा मुझे कौन रोक सकता है?
 स्वामी नाथन अंकलेसरियाने तो हिंदू शास्त्रों का हवाला देकर लिखा कि मैं ब्राह्मण हूँ मेरे पूर्वज बीफ खाते थे और मैं भी खाता हूँ यह मेरा अधिकार है। इन बयानों से संघ परिवार के दावे की कलई खुल गई और इसका खोखलापन उजागर हो गया। यह ऐसा ही है जैसे करोडों रुपये फूंक कर प्रधानमंत्री ने सारी दुनिया में देश की जो छवि बनाई थी वह एक हमले से अकारत हो गई। इस बार अमेरिका यात्रा के दौरान तो विदेशी मीडिया ने प्रधानमंत्री की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया मगर मोहम्मद अखलाक़ पर होने वाली हिंसा की खूब जमकर आलोचना हुई और सारे किए कराए पर पानी फिर गया। राष्ट्रपति ओबामा ने प्रधानमंत्री के किसी उपलब्धि की प्रशंसा नहीं की मगर दादरी की घटना पर नाराजगी व्यक्त कर दी।
गांधी जी ने यह भी कहा था कि अगर मुसलमानों के हाथों हिंदू गाय का वध होने से नहीं रोक पाते तो वह पाप नहीं करते लेकिन यदि वह गाय को बचाने की खातिर मुसलमानों से लड़ते हैं तो गंभीर पाप करते हैं। अब सवाल यह उठता है कि यह गांधी के भक्त हैं या गोडसे के कि गांधी जी ने जिस काम के लिए मुसलमानों से लड़ने की अनुमति तक नहीं दी थी इसके लिए यह हत्या कर देते हैं। अपराधियों को बचाने के लिए तरह तरह की मूर्खतापूर्ण तर्क पेश करने वाले। मृतक पर गाय वध करने का मुकदमा कायम करने की मांग करने वाले। इसे संयोगवश होने वाली दुर्घटना करार देने वाले। अखलाक़ के पुत्र दानिश के घावों से पता चलाने वाले कि आरोपी हत्या का इरादा नहीं रखते थे। अखलाक़ की मौत का कारण दानिश की मौत के सदमे को करार देने वाले। आरोपियों पर जान बूझकर नहीं बलकि अनजाने में हत्या का मामला दर्ज करने की सिफारिश करने वाले।  गिरफ्तार होने वालों के अधिकारों के संरक्षण का विश्वास र्दशाने वाले। गाए के प्रति आसथा के कारण खून खौलने को उचित ठहराने वाले और गाय का मांस खाने वालों को इसी अंजाम की धमकी देने वाले मोदी जी के भक्त तो हो सकते हैं गांधीजी के अनुयायी नहीं हो सकते। इस गांधी जयंती का यही संदेश है जिस का दृश्य मंजर भोपाली ने इस तरह खेंचा है ؎
गांधी जी अब देख लें आकर अपना हिन्दुस्तान
कैसे कैसे अपने चेले बन गए बेईमान
मक्कारी है, अय्यारी है, इस युग की पहचान
गांधीजी अब देख लें आकर अपना हिन्दुस्तान

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