Tuesday 18 August 2015

राजा हो या रंक यहाँ तो सब हैं चौकीदार

रानी झांसी की नगरी में 25 अक्टूबर  2013 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी '' मुझे प्रधानमंत्री नहीं चौकीदार बनाइये'' लेकिन जब जनता ने उन्हें यह जिम्मेदारी सौंप दी तो 15 अगस्त  2014 को उन्होंने घोषणा की कि '' मैं प्रधानमंत्री नहीं प्रधान सेवक हूँ। ख़ैर प्रधान सेवक ने राजनाथ सिंह को राष्ट्र का चौकीदार बना कर उन्हें गृह मंत्रालय का कलमदान सौंप दिया। राजनाथ सिंह ने किरण रजेजो को अपना राज्यमंत्री बना लिया इस तरह देश की सुरक्षा के लिए एक त्रिमूर्ती अस्तित्व में आ गई। अब यह देखना है कि गुरदासपूर में जब आतंकवादी हमला हुआ तो इस त्रिमूर्ती ने अपनी जिम्मेदारियों को किस तरह निभाई?
सुबह 5 बजे हमला हुआ और 5 घंटे बाद महा चौकीदार यह कहकर मध्यप्रदेश के नीमच शहर रवाना हो गए कि '' हालात काबू में हैं। मैं ने मुख्यमंत्री पंजाब से बात कर ली है और आवश्यक आदेश दे दिए हैं। '' हालात किसके नियंत्रण में हैं? मुख्यमंत्री से क्या बात हुई? और किसको क्या आदेश दीये? इस बाबत उन्होंने कुछ नहीं बताया मगर पाकिस्तान के रवैये पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि समझ में नहीं आता कि वह क्या चाहता है? हम दोस्ती का हाथ बढ़ाते हैं वह आतंकवाद फैलाता है। हम पहल नहीं करेंगे लेकिन कड़ा जवाब देंगे। उनके सहयोगी किरण ने केवल यह सूचना दी कि आतंकवादियों ने किसी को बंधक नहीं बनाया है।
प्रधान सेवक ने चौकीदार के दिल्ली से निकल जाने के बाद स्थिति का जायजा लेने के लिए एक बैठक बुलवाई। इस बैठक में पंजाब से चुनाव लड़कर हारने वाले अरुण जेटली मौजूद थे। उनके अलावा रक्षा मंत्री मनोहर परिकर और संसदीय मामलों के मंत्री वेंकैया नायडू शरीक थे। यह कहा गया कि इस बैठक के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली पत्रकारों से बातचीत करेंगे लेकिन वह संवाददाता सम्मेलन हुआ ही नहीं। मनोहर परिकर पिछले दिनों कसम खा चुके हैं कि वह 6 महीने तक कुछ नहीं बोलेंगे क्योंकि उनकी हर बात का गलत मतलब निकाल लिया जाता है इसलिए वे भी चुप रहे। वेंकैया नायडू बेचारे जो कहते हैं वह खुद उनकी समझ में नहीं आता इसलिए उन्होंने भी चूप्पी साध ली और मोदी जी तो हैं ही मौनी बाबा।
उक्त बैठक में राजनाथ तो इसलिए शरीक नहीं हो सके कि वह दिल्ली से बाहर थे लेकिन किरण रजेजो दिल्ली ही में मौजूद थे फिर भी उन्हें बुलाना जरूरी नहीं समझा गया यह आपसी विश्वास की कमी का प्रतीक है। इस हमले के लगभग 24 घंटे बाद प्रधान सेवक ने संसदीय बोर्ड की बैठक में इसे कायरतापूर्ण हमला करार देते निंदा की और पंजाब पुलिस की प्रशंसा की। गृह मंत्री ने संसदीय बोर्ड की बैठक में इस अभियान की लंबाई का यह कारण बताया कि वे कम से कम एक आतंकवादी को जिंदा गिरफ्तार करना चाहते थे ताकि उनकी वास्तविकता प्रकट हो सके। गृह मंत्री की इस दलील को स्वीकार कर लिया जाए तो यह भी मानना पड़ेगा कि वे इस उद्देश्य में विफल हुए क्योंकि तीनों आतंकवादी मारे गए और सारे रहस्य दफन हो गए। अब उनके बारे में जो कुछ कहा जा रहा है वह सब अटकलें संदेह के दायरे में आती हैं।
चौकीदार नीमच में जब सीमा सुरक्षा बल के लोगों को नसीहत कर रहे थे प्रधान सेवक मौन बैठे थे कि अचानक पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के मौत की खबर आ गई और मीडिया का ध्यान गुरदासपुर से हट गया। प्रधानमंत्री ने पूर्व राष्ट्रपति को श्रद्धांजलि अर्पित करने में कोई देरी नहीं की और दिल्ली में उनके पार्थिव शरीर का इंतजार करने लगे। यह बात समझ में नहीं आती कि इस कार्य में सरकार को 17 घंटे का समय क्यों लगा? अब प्रधान सेवक तमिलनाडु में जाकर पूर्व राष्ट्रपति के अंतिम संस्कार में भाग लेने की तैयारी कर रहे हैं लेकिन अभी तक सेवकों, भक्तों और चौकीदारों में से किसी ने पंजाब जाने के इरादा व्यक्त नहीं किया जबकि कांग्रेसी प्रतिनिधि मंडल वहां पहुंच गया।
 बांग्लादेश के अंदर तो प्रधान जी ने पाकिस्तान को बड़ी धमकी दी थी आतंकवाद को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करने की घोषणा की था। बर्मा में जाकर सैन्य कार्रवाई के बाद भी बड़े-बड़े दावे किए गए थे लेकिन अब जबकि कुछ कर दिखाने का मौका आया तो सभी गूंगे हो गए और सब के हाथ पैर ढीले हो गए। विपक्ष तो दूर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल अकाली दल और खुद भाजपा के सांसद अहलूवालिया तक सदन संसद में बहस की मांग करते रहे मगर वेंकैया नायडू इस राष्ट्रीय मुद्दे पर राजनीति न करने की दुहाई देने से आगे नहीं जा सके। न कोई बयान, न बहस और न प्रस्ताव रष्ट्र आश्चर्य से देखता रहा कि आखिर हो क्या रहा है? भाजपा के एसएस अहलूवालिया एक जमाने में कांग्रेस के अंदर थे। उन्हें पता ऐसे मौके पर सरकार प्रस्ताव लाए तो वह सर्वसम्मति से पास हो जाएगा लेकिन भाजपा वालों को कुछ सुझाई ही नहीं दिया।
भाजपा ने इस बार जो कमजोरी दिखाई वह उसकी पुरानी बीमारी है। कर्नल (रि) भारत भूषण वत्स का बयान इस तथ्य की पुष्टि करता है। 14 साल पहले संसद पर हमले के बाद पाकिस्तान पर हमला करने के लिए उन्हें वहां रवाना किया गया था। उन्होंने कहा कि1999  से लेकर 2006 तक अपनी पंजाब में तैनाती के दौरान 9 महीने तक वह उसी दीना नगर में थे। पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए ऑपरेशन प्राक्रम के तहत मीज़ाइलस को एयर कंडीशनिंग से निकाल टैंक पर लगा दिया गया था। इस समय पाकिस्तान की सेना अफगानिस्तान की सीमा पर प्रतिबद्ध थी इसके बावजूद 9 महीने के इंतजार के बाद सेना को वापस बुला लिया गया और सारा मामला टाएँ टाएँ फिश हो गया जबकि लोह पुरूष  आडवाणी जी गृहमंत्री थे। उसी युग में नेपाल से भारती विमान का अपहरण हुवा जहाज को चंडीगढ़ में ईंधन के लिए उतरना पड़ा। ऐसे में विमान को अपने कब्जे में लेने का सर्वण अवसर हाथ आ गया था लेकिन भाजपा में निर्णय की कमी आड़े आ गई और वह तेल लेकर कंधार रवाना हो गया। इस तरह अपहरण कार अपने लक्ष्य में सफल हो गए।
भारत भूषण ने बताया कि आतंकवादी जम्मू कश्मीर के हीरा नगर से 85 किलोमीटर की दूरी तय करके हथियार सहित दीना नगर पहुंचे जबकि इस बीच 5 चेक पोस्ट आते हैं इसलिए यह खुफिया एजेंसियों की त्रुटि की ओर इशारा है। दीना नगर पठानकोट और गुरूदासपुर के बीच 30 किमी के समान दूरी पर स्थित है और इन दोनों स्थानों पर सैन्य केंद्र हैं। इसके बावजूद वहां पहुंचकर पांच स्थानों पर रेलवे पटरी पर बम रख देना खासा निराशाजनक काम है। वात्स के अनुसार अगर यह कश्मीरी हैं तो इसका मतलब यह होगा कि कश्मीरी लड़ाके अब अपने राज्य से बाहर भी हाथ पैर फैलाने लगे हैं और अगर यह खालिस्तानी हैं मानो 20 साल पहले की समस्या का फिर उभरना खतरा की घंटी है।
इस हमले से 2 दिन पहले 26 जुलाई को दिल्ली में कारगिल की जीत का जश्न मनाया गया। प्रधानमंत्री ने भी युद्ध में अपने प्राण भेंट करने वाले सैनिकों को श्रद्धांजलि दी। संयोग से कारगिल का मामला भी भाजपा के शासन काल का है। इन यादों को ताजा करते हुए कारगिल युद्ध में वीरचक्र विजेता एयर वाइस मार्शल (रि) अदित्य विक्रम पैठिया ने कहा कि घुसपैठ की खबर भी चरवाहों से मिली जबकि उन लोगों ने भारतीय चौकियों पर पाकिस्तानी लड़ाके देखे और फिर जब पटरोलिंग की गई तो पता चला कि इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर घुसपैठ हो चुकी है। इसके थल और वायु सेना की मदद से अपना क्षेत्र तो वापस ले लिया गया, इसका जश्न भी मनाया गया। चुनाव में इसका फायदा उठाने की कोशिश भी की गई मगर इस महान त्रुटी से कोई सबक नहीं लिया गया वरना गुरदासपुर दीना नगर की यह घटना नहीं घटती ।
इसमें शक नहीं कि सारे सरकारी संस्था और मीडिया इस हमले के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहरा रहा है लेकिन यह भी तथ्य है कि कुछ सप्ताह पहले जम्मू में तीस साल पहले होने वाले ऑपरेशन ब्लू स्टार की सालगिरह मनाने वाले पोस्टर्स सामने आए थे और जब सुरक्षाबलों ने उन्हें हटाने की कोशिश की तो उस पर हंगामा भी हुआ। भाजपा नेता और पूर्व गृह सचिव आरके सिंह के अनुसार आईएसआई ने यह निर्णय कर लिया है कि सिख आतंकवाद को पुनर्जीवित किया जाए। ऑपरेशन ब्लू स्टार का नेतृत्व करने वाले सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल के एस बराड़ ने गुरदासपुर के हमले के लिए आईएसआई के साथ पंजाब की राज्य सरकार को भी दोषी ठहराया है। उन्होंने राज्य सरकार की आलोचना करते हुए कहा पंजाब सरकार खालिस्तानी आतंकवादियों के साथ नरमी बरत रही है और अपने वोट बैंक की खातिर उन्हें रिहा कर रही है जिसके कारण यह स्थिति पैदा हुई है। बराड़ ने सुरक्षाबलों पर काबू पाने में देरी की आलोचना की और आतंकवादियों को जिंदा गिरफ्तार करने में विफलता का आरोप लगाते हुए कहा कि एक अच्छा मौका गंवा दिया गया है। उनके अनुसार इस तरह के हमलों को रोकने के लिए गुप्त सूचना प्रणाली को पुर्नसंपादित करने की आवश्यकता है।
 यह दिलचस्प स्थिति है कि वर्तमान में पंजाब में अकाली दल की सरकार है और वह भाजपा की सहयोगी है इसके बावजूद पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने इस हमले की सारी जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर डाल दी और यह भूल गए कि यह उनकी बहू वहरसमरीत इसमें मंत्री है. बादल का कहना है कि आतंकवाद किसी राज्य की नहीं बल्कि राष्ट्रीय समस्या है और केंद्र सरकार इसे रोकने में नाकाम रही है। यह खुफिया एजेंसियों की बड़ी नाकामी है। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय समस्या होने के कारण इसका समाधान राष्ट्रीय नीति के अनुरूप होना चाहिए। अकाली दल सांसद चंदू माजरा ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह कहना गलत है कि हमें इसकी जानकारी दी गई थी। अकाली दल मांग करती रही कि इस प्रशन पर संसद में गंभीरता के साथ चर्चा हो मगर केंद्र सरकार पर हमला जारी है का बहाना करके मुंह चुराती रही।
अकाली दल ने वैसे तो केंद्र सरकार पर तरह तरह के आरोप लगाए मगर तथ्य यह है कि वह खुद गंभीर आरोपों के घेरे में फंसी हुई है। यह हमला लगभग 12 घंटे चला मुंबई में ताज और ओबरॉय के बाद यह सबसे लंबे समय का हमला था। मुंबई की विश्वप्रसिद्ध पुलिस केवल घेराबंदी करके रात भर दिल्ली से आने वाली स्पेशल टास्क फोर्स का इंतजार करती रही इस के विपरीत गुरदासपुर में कुछ घंटों के अंदर सेना और विशेष दस्ता पहुंच गया लेकिन पंजाब सरकार ने उसे रखवाली में लगा दिया और कमान अपने हाथ में रखी। टीवी पर सारी दुनिया ने देखा कि पुलिस के पास बुलेट प्रूफ जाकेट और लोहे की टोपी तक नहीं थी और वह गैर पेशेवर तरीके से वे पारंपरिक हथियार से लड़ रही थी। सुना है विशेष दस्ते का इस्राएल ने प्रशिक्षित किया है यदि यही वह प्रशिक्षण है तो इसके बिना ही पंजाब पुलिस बेहतर थी। सेना के अनुसार यह दो ढाई घंटे का काम था जिस पर 12 घंटे खर्च किए गए।
दोपहर बारह बजे जब पुलिस अधिकारी दलबीर सिंह को गोली लगी तो ढाई बजे स्पेशल टास्क फोर्स की मदद ली गईं जिसने 4 बजकर 35 मिनट पर तीनों आतंकवादियों के मौत की घोषणा की और उसके बाद पंजाब पुलिस जिंदाबाद के नारे लगाए गए । पंजाब के अकालियों ने जिस तरह केंद्रीय सुरक्षा बल पर अविश्वास व्यक्त किया है अगर कोई और राजनीतिक दल करता तो भाजपा वाले आसमान सिर पर उठा लेते लेकिन अब क्या किया जाए कि होंठ और दांत दोनों ही अपने हैं। यदि जम्मू कश्मीर सरकार में भाजपा शामिल न होती तो यह कह दिया जाता है कि अगर हम होते तो उन्हें प्रवेश ही नहीं करने देते लेकिन जम्मू में भाजपा का प्रभाव जब से बढ़ा हैं वहां कई हमले हुए हैं। सरकार बनाने के बाद चार महीने पूर्व कठुआ और साम्बा में इसी तरह के दो हमले हो चुके हैं।
यह मीडिया का युग है यहाँ 24 घंटे टेलीविजन वालों को खबर प्रसारित करनी पड़ती हैं और ऑनलाइन अखबार को हर आधे घंटे के अंदर शीर्षक बदलना पड़ता है इसलिए यदि सरकार यह कहकर चुप हो जाए कि वह हमले के उन्मूलन पर ही बोलेगी तब भी टीवी वाले किसी न किसी को विश्लेषक के रूप में खड़ा कर देते हैं और वह आधी अधूरी जानकारी के आधार पर ऊटपटांग अटकलें में लगता रहता है। उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन गुरदासपुर हमले के दौरान हुआ। दोपहर तक हमलावरों की संख्या 4 बताई जाती रही और उनके बीच एक महिला आतंकवादी का अनुमान भी किया जाता रहा लेकिन अचानक शाम में पता चला वह केवल 3 थे और महिला गायब हो गई।
प्रारंभ से ही यह घोषणा कर दी गई कि हमलावरों का संबंध सीमा पार नरवोल गांव है। बाद में पता चला कि नक्शे पर सीमा की दूसरी ओर निकटतम गांव नरवोल है इसलिए शायद हवा में यह तीर छोड़ दिया गया। यह बताया गया कि वह सुबह प्रवेश करके आए हैं,  बाद में जीपीएस से पता चला कि वह 21 तारीख को आए थे और फिर इसे बंद कर दिया गया था लेकिन इसके बाद भी उनके जीपीएस की मदद से यात्रा का सारा विवरण बरामद होता रहा और बताया गया कि वह 12 किलोमीटर पैदल आए थे। इतना हथियार और गोला बारूद लेकर 12 किलोमीटर चलना, यह तो कोई जिन भूत ही कर सकता है। यह बात बताई गई कि वह अमरनाथ यात्रियों को मारने के लिए कठुआ जाने वाले थे लेकिन अचानक घबरा कर पुलिस थाने में घुस गए। आजकल तो आम नागरिक भी पुलिस थाने में जाने से घबराता है तो आतंकवादियों यह गलती कैसे की। बाद में पता चला उनके जीपीएस में पुलिस थाने का विवर्ण मौजूद था और वह जानबूझकर वहें आए थे इसके साथ यह खुलासा भी हो गया कि वह किस-किस को मौत के घाट उतारना चाहते थे। दिन भर खबरों का बाजार गर्म रहा, जो एक दूसरे का खंडन करते रहे।
आतंकवादियों के पास जो हथियार मिला इसके बारे में पहले बताया गया वे चीनी है बाद में कहा गया उस पर बनाने वाले देश के निशान मटा दये गए हैं। इस दौरान एक अद्भुत खुलासा यह हुआ कि पटरी पर लगाए गएबम के पास रात के अंधेरे में इस्तेमाल किया जाने वाला चश्मा भी मिला जो केवल अमेरिकी सैन्य उपयोग करते हैं और जिन्हें खुले बाजार से खरीदा नहीं जा सकता। बाद में उस का यह कारण यह बताया गया कि अफगान मुजाहिदीन उन्हें अमेरिकियों से लूट लेते हैं इसलिए संभव है यह हमलाआवर अफगानीयों के साथ हों। लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि इस हमले का कुप्रभाव हिन्द पाक बातचीत पर होगा जो अमेरिका के हित में है।
गुरदासपुर हमले के दौरान जो कुप्रबंधन और अनुशासनहीनता सामने आई इसे छिपाने के लिये डॉक्टर अब्दुल कलाम के निधन और याकूब मेमन की फांसी का भरपूर उपयोग किया गया लेकिन इसके बावजूद आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह का वह बयान शत प्रतिशत सही मालूम होता है जिसमें उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे असफल प्रधानमंत्री साबित हुए हैं। उनके पहले साल में पाकिस्तान ने 58 और चीन ने 38 बार सीमा का उल्लंघन  किया। शायद उनका 56 इंच का सीना पिचक गया है। गुरदासपुर का हमला, अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ, कश्मीरमें पाकिस्तानी और आईएसआई के ध्वज का स्पंदन और ललित गेट व व्यापम जैसे मुद्दों पर वह चुप्पी साधे हुए हैं बस रेडियो पर मन की बात कर देते हैं। लेकिन इस तरह की चौकीदारी आख़िर कितने दिन चलेगी जिसमें सेंध उत्तर में गुरदासपुर में लगती है तो चौकीदार दक्षिण में रामेश्वरम की ओर भागता है। मोदी जी को चाहिए वह राजेंद्रकिशन का यह गीत याद रखें
यह दुनिया (कुर्सी) नहीं जागीर किसी की
राजा हो या रंक यहाँ तो सब हैं चौकीदार
कुछ तो आकर चले गए कुछ जाने को तैयार
खबरदार खबरदार खबरदार⁠⁠[8/13/2015, 

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