Tuesday 18 August 2015

उदय से पतन की अनोखा साल

राष्ट्रीय राजनीति की द्रष्टी से इस असाधारण वर्ष को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। इसका पहला हिस्सा पिछले स्वतंत्रता दिवस से लेकर इस साल गणतंत्र दिवस तक था और दूसरा गणतंत्र दिवस से लेकर तो स्वतंत्रता दिवस तक की अवधि है। इस दौरान देश की जनता ने प्रधानमंत्री का उदय और पतन दोनों देख लिया है और लोगों को पता चल गया कि जो जिस तेजी के साथ ऊपर जाता है उसी गति से नीचे भी आ जाता है।
उन्नति पर्व की शुरुआत चुनाव परिणाम की घोषणा से हुई। खुद भाजपा को इस बात की उम्मीद नहीं थी कि उसे अपने बल पर बहुमत मिल जाएगा। पहली बार एक ऐसी पार्टी को यह सम्मान मिला जो उसके सपने में भी नहीं था। पतन की शुरुआत दिल्ली के चुनावी नतीजों से हुई। भारत के इतिहास में किसी नवजात पार्टी को ऐसी जीत नहीं मिली थी।  संसद में पिछले सप्ताह सुषमा स्वराज ने तो स्वीकार कर लिया कि वह अपयश पर्व से गुजर रही हैं। हो सकता है स्वतंत्रता दिवस के भाषण में प्रधानमंत्री भी घोषणा कर दें कि फिलहाल उनके सितारे भी गर्दिश में हैं।
चुनाव से पहले मोदी जी के सर्मथक उनके जो गुण खूब बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे थे, उचित मालूम होता कि उन्हीं के आधार पर प्रधानमंत्री की वार्षिक प्रदर्शन की समीक्षा की जाए। वह विशेषताएं और गुण निम्नलिखित थे:
• विकास पुरूष,
• उद्योग व्यापार मित्र,
• भ्रष्टाचार से मुक्त,
• हिंदू राष्ट्रवादी और
• कार्यकुशल
कार्यकौशल्य: स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पिछले साल मोदी जी ने क्या कहा था यह तो शायद ही किसी को याद हो इसलिए कि खुद मोदी जी ने भी कहने के बाद उन बातों को भुला दिया था मगर '' स्वच्छ भारत '' का नारा भला कौन भूल सकता है? मोदी जी ने खुले में शौच की मजबूरी को इतना खोलकर बयान किया था सारा देश शर्मसार हो गया और दुनिया भर का ध्यान उस ओर आकर्षित हो गया। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े भी सामने आ गए कि खुले में शौच करने वाली आधी जनसंख्या भारत में रहती है।
ढाई महीने बाद गांधी जयंती के अवसर पर बड़े गाजे-बाजे के साथ '' स्वच्छ भारत '' नामक अभियान शुरू किया गया। टीवी पर सुंदर दिखने वाले रंगीन कचरे को साफ करके रास्तों पर फैलाया गया ताकि मंत्री जी को दुर्गंध न आए और फिर मीडिया के सामने उसे साफ करने का नाटक किया गया। इस अभियान के विज्ञापन में 94 करोड रुपये खर्च भी हुए लेकिन दस महीने बाद भाजपा की ही केंद्र सरकार के शहरी विकास मंत्रालय ने 476 शहरों की समीक्षा कर के जो खुलासे किए इसे पढ़ कर मोदी सरकार को इस्तीफा दे देना चाहिए।
सफाई में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले 100 शहरों में से 39 का संबंध दक्षिण भारत से है जहां किसी राज्य में भाजपा सत्ता में नहीं है। दूसरा स्थान पूर्वी राज्यों का है वह भी अब तक कमल के साए से वंचित है। पश्चिम और उत्तर जहां भाजपा की राज्य सरकारें हैं क्रमशः तीसरे और चौथे स्तर पर हैं। दस बेहतरीन शहरों की अगर बात की जाए तो नवी मुंबई के अलावा एक भी शहर ऐसे राज्य में नहीं है जहां भाजपा सत्तासीन हो। सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले दस शहरों पर नजर डालें तो पता चलता है 8 भाजपा की सरकार वाले राज्यों में हैं। वाराणसी जो मोदी जी का अपना चुनावी क्षेत्र है 418 वें स्थान पर है। यह कार्यकुशलता है या चराग तले अंधेरा।
हिंदू राष्ट्रवाद: हमारे देश में बुद्धिजीवियों की एक बहुत बड़ी संख्या ऐसी भी है जिसके लिये किसी नेता का हिंदू राष्ट्रवादी होना अवगुण नहीं है। मोदी जी के सत्ता में आते ही हिंदू राष्ट्रवादियों के हौसले बुलंद हो गए। जबानें बेलगाम हो गईं। किसी ने कहा सारे भारतीय हिंदू हैं। किसी ने रामज़ादे और हरामज़ादे का अंतर बताना शुरू कर दिया। कोई लव जिहाद के खिलाफ प्रतिबद्ध हो गया तो किसी ने घर वापसी का अभियान छेड़ दिया। सांप्रदायिक दंगों और मस्जिदों के साथ चर्च पर भी होने वाले हमलों में वृध्दि हो गई लेकिन विश्व व्यापी आलोचना के पश्चात मोदी जी ने साक्षी महाराज को कुछ इस तरह डांटा कि वह रोपड़े।
इस प्रकार सारे महारथियों को स्पष्ट संदेश मिल गया। आरएसएस ने अपने इतिहास में पहली बार मुसलमानों के लिए इफ्तार पार्टी का आयोजन शुरू कर दिया और अब तो उलेमा की बैठकें भी होने लगी हैं। भले ही इसका कोइ खास फायदा ना हो मगर कम से कम लव जिहाद और घर-वापसी के कारण जो वातावरण खराब हो रहा था उस पर रोक लगी। अब तो हाल यह है कि जंतर-मंतर पर दलित इस्लाम स्वीकार करते हैं, लेकिन संघ परिवार प्रतीकात्मक विरोध से आगे नहीं जा पाता। सीमा पार से होने वाले आतंकवादी हमलों में भी किसी की जबान नहीं खुलती। क्या यही हिंदू राष्ट्रवाद है।
भ्रष्टाचार का खात्मा: मोदी जी ने अपनी सरकार की पहली वर्षगांठ के अवसर पर छत्तीसगढ़ में जनता से सवाल किया था। इस वर्ष के दौरान क्या आप लोगों ने कोई घोटाला सुना? प्रधानमंत्री को नहीं पता था कि खुद छत्तीस गढ में डेढ़ लाख करोड का चावल घोटाला उबल रहा है। उसके बाद तो भ्रष्टाचार का ज्वालामुखी फट पड़ा महाराष्ट्र में चिक्की का घोटाला, हरियाणा में जमीन का घोटाला और मध्य प्रदेश की व्यापम भ्रष्टाचार सामने आते चले गए। व्यापम घोटाले को दबाने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने जो कार्यप्रणाली अपनाई उस पर सोशल मीडिया में यह चुटकुला प्रसिध्द हो गया कि '' हमारे यहां यम राज के बदले शिवराज आता है।'' जिस किसी ने जबान खोलने का साहस किया उसका गला घोंट दिया गया और अब 70 से अधिक छात्र राष्ट्रपति से आत्मदाह की अनुमति मांग रहे हैं। इस तरह '' न खाऊँगा और न खाने दूंगा '' वाले नारे की धज्जियां उड़ गईं।
इस एक साल में आने वाला सबसे बड़ा परिवर्तन '' नामो से लामो '' तक की यात्रा है। एक साल पहले चारों ओर नामो का बोलबाला था। हर कोई यह जानना चाहता था कि  मोदी किस मुद्दे पर क्या कह रहे हैं और उनकी हर ऊटपटांग बात मीडिया पर छा जाती थी लेकिन अब मोदी जी मौन धारण किए हुए हैं। चुनावी सभाओं में रटी रटाए भाषण या विदेश में लिखे हुए वक्तव्य के अलावा वह चुप्पी साधे रहते हैं। चुनावी सभाओं के भाषणों का भी यह हाल है कि बिहार के गया शहर में उनके भाषण का मिनटों में नीतीश कुमार ने ऐसा पोस्टमार्टम किया कि मीडिया में मोदी के बजाय नीतीश का बोलबाला हो गया।
इसके विपरीत ललित मोदी का यह हाल है कि अगर वह कोई मामूली सा ट्वीट भी करे तो मीडिया पर छा जाता है और लोग इस की बात को प्रधानमंत्री के मन की बात ज्यादा महत्व देते हैं। सुषमा के तुफ़ैल अपने खिलाफ वारंट के बावजूद वह ऑस्ट्रेलिया में आईसीसी के प्रतिसर्पधी नई प्रणाली स्थापित करने की घोषणा कर रहा है और सारी दुनिया उसकी ओर आकर्षित है। ललित मोदी विवाद ने मोदी सरकार का अभूतपूर्व अपमान किया है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इसके चक्रव्यूह में आए दिन फंसती जा रही हैं। वह जब भी कुछ बोलती हैं उनकी परेशानी बढ़ जाती है।
अभी हाल में उन्होंने संसद में कहा कि किसी कैंसर पीडित महिला की मदद करना अगर अपराध है तो वह उसकी दोषी हैं। इसके बाद वह बोलीं कि मैं ने यह सहयोग मौखिक किया है अगर किसी के पास मेरे खिलाफ सबूत हो तो प्रदान करे। राहुल ने सुषमा के बयान को उन्हीं पर उलट दिया और कहा कि यदि सुषमा मानवीय आधार पर किसी की मदद करना चाहती थीं तो ऐसा चोरी चुपके क्यों किया गया? अपने कार्यालय से उन्होंने पत्र क्यों नहीं लिखवाया? यह पर्दादारी उनके खिलाफ साक्ष है और उन्हें राष्ट्र को यह बताना होगा कि इस मामले में उन्होंने ललित मोदी से कितनी राशि रिश्वत के रूप में ली है?
सोनिया ने तो उसे नाटक बाजी बताकर खारिज कर दिया लेकिन मोदी जी की चोंच अभी तक इस गंभीर मामले में नहीं खुली इसलिए कपिल सिब्बल जैसे लोगों ने मोदी जी को ''भ्रष्ट्राचारों का चौकीदार '' के उपनाम से नवाज दिया है। मोदी जी ने बिहार के अंदर सिंधिया और चौहान की प्रशंसा तक कर डाली जिनके खिलाफ अनगिनत सबूत सामने आ चुके हैं।
नामो से लामो के परस्पर संबंध के बारे में बहुत ज्यादा तथ्य अभी पर्दे के पीछे हैं लेकिन कांग्रेस का आरोप है मोदी जी के चहीते गौतम अडानी के ललित मोदी से करीबी संबंध हैं। यह उस समय बने जब वह मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष थे। मोदी ने बाद में यह पद अपने दाहिने हाथ अमित शाह के हवाले किया और उनके जमाने में ललित मोदी के साथ संबंध खूब फले फूले। ललित मोदी के मामले में मोदी जी चुप्पी का एक कारण यह भी हो सकता है कि जिस दिन वह मुंह खोलेंगे चारों ओर से आरोपों का एक ज्वालामुखी फट पड़ेगा जो उनके साफ सुथरे दामन का पोल खोल देगा।
भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी जी के धर्म युध्द की कलई भाजपा पूर्व उपाध्यक्ष राम जेठमलानी ने खोल दी। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की खातिर मुख्य सतर्कता आयुक्त के रूप श्री वी के चौधरी की सिफारिश के खिलाफ जेठमलानी ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को पत्र लिखकर प्रार्थना की कि वह इससे परहेज करें इसलिए कि यह नामांकन राष्ट्र के लिए एक बहुत बड़ी आपदा बनेगा । राम जेठमलानी ने वी के चौधरी पर आरोप लगाया कि वह न केवल भ्रष्ट हैं बल्कि आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हैं। राष्ट्रविरोधी तत्वों के साथ अपने संबंधों के कारण वह बच निकलते हैं।
मोदी जी अगर इस तरह के आदमी की मदद से भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहते हैं उनके इरादे संदिग्ध हो जाते है। राम जेठमलानी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर बताया कि '' उनके मन में प्रधानमंत्री के प्रति हर रोज गिरता सम्मान अब पूर्णत: समाप्त हो गया और वह न्यायालय व जनता की अदालत में लडेंगे। '' यह वही राम जेठमलानी हैं जिन्होंने सब से पहले प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी का समर्थन किया था।
उद्योग मित्र: मोदी जी ने अपने पहले 6 महीने के अंदर गौतम अडानी और मुकेश अंबानी के वारे न्यारे कर दिये और 'मैक इन इंडिया' का नारा बुलंद करके सारी दुनिया के उद्योगपतियों को भारत में आकर निवेश के लिये आमंत्रित किया लेकिन लोग इस कागजी शेर के झांसे में नहीं आए। इस दौरान उन्होंने भूमि अधिग्रहण का नया क़ानून बना कर किसानों की जमीनों पर कब्जा करने की नाकाम कोशिश की मगर राहुल के आरोप '' सूट बूट वाली सरकार '' ने प्रधानमंत्री की चूलें हिलादीं।
जब मोदी जी को दिल्ली और बंगाल के चुनावी परिणाम से यह आभास हुआ कि गरीब जनता के अंदर उन की छवि खासी बिगड़ चुकी है तो उन्होंने हड़बड़ाहट में जो कदम उठाए इससे देश के पूंजीपति भी नाराज हो गए और मोदी जी की हालत न खुदा ही मिला न विसाले सनम की सी हो गई। मोदी जी क्षमताओं के प्रशंसक राहुल बजाज ने अपने हालिया बयान में उनका जो बाजा बजाया है वह अपनी मिसाल आप है।
राहुल बजाज के पिता बहुत बड़े गांधीवादी थे लेकिन उनके विचार में तत्कालीन कांग्रेस पार्टी गांधीजी तो दूर नेहरू जी वाली भी नहीं है। राहुल बजाज ने भ्रष्टाचार से बचने के लिए कभी भी सरकार के साथ व्यापार नहीं किया इसलिए वह निडर विचार व्यक्त करने के लिए प्रसिध्द हैं। राहुल बजाज ने गुजरात दंगों के बाद मोदी जी की आलोचना जरूर की थी लेकिन बाद में वह मोदी जी के प्रशंसकों की सूची में शामिल हो गए थे।
अभी हाल में एनडीटीवी से बातचीत करते हुए राहुल बजाज ने कहा कि 30 साल के बाद भारत की जनता ने किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्रदान किया और 27 मई के दिन लोगों को एक सम्राट प्राप्त हुवा। यह एक ऐतिहासिक सफलता थी। मैं सरकार के खिलाफ नहीं हूँ, लेकिन तथ्य यह है कि सरकार की चमक मांद पड़ती जा रही है। राहुल ने यहां तक कह दिया कि '' यह नरेंद्र मोदी की सरकार नहीं है '' यह वाक्य दरअसल उद्योग और धंदे के क्षेत्र में मोदी सरकार के प्रति पाई जाने वाली गंभीर निराशा का प्रतीक है।
देश के व्यापारी और उद्योगपति वर्ग ने नई सरकार के साथ जो उम्मीदें बांध रखी थीं वह सपने चकनाचूर हो चुके हैं। उन्नति और विकास का प्रतीक समझे जाने वाले नरेंद्र मोदी पर गिरावट और पिछड़ेपन का ग्रहण लग चुका है। वैसे यह तो होना ही था मगर यह सब इतनी जल्दी हो जाएगा इसकी कल्पना मोदी जी के बड़े से बडे दुश्मन को भी नहीं थी।
यह क्यों हो रहा है इसके कई कारण हैं लेकिन स्वतंत्रता दिवस के सुखद अवसर पर एक दिलचस्प उदाहरण देखें। नरेंद्र मोदी की उन सभी गुणों के अलावा जिनका ऊपर उल्लेख किया गया बहुत सारी खामियां भी हैं मसलन अगर आप दुनिया के सबसे बड़े अपराधी को खोजने के लिए गूगल बाबा की मदद लें तो वह मोदी जी की तस्वीर दिखला देते हैं और यदि इस साइट पर सब से भोंदू प्रधानमंत्री टाइप करें तब भी गूगल बाबा मोदी की ओर इशारा कर देते हैं। न जाने उन्हें हमारे प्रधानमंत्री से कौन सा बैर है। ख़ैर ये सभी गुण और दोष जगजाहिर हैं परंतु कभी किसी ने यह नहीं सुना कि मोदी जी किताबें भी लिखते हैं, बल्कि उन्हें किताबें पढ़ने का शौक है यह बात भी अखबारों की शोभा नहीं बनी लेकिन अब अचानक यह खुलासा भी हो गया है कि अमित शाह साहब दिल्ली में मोदी की तीन पुस्तकों का विमोचन करने वाले हैं। इस समारोह की अध्यक्षता राजनाथ सिंह करेंगे।
पुस्तक का शीर्षक भी कम दिलचस्प नहीं है मसलन सामाजिक सद्भाव सद्भावना। मोदी जी को चाहिए था कि अगर वह किसी को अपने नाम से किताब लिखने के लिए कहते तो कम से कम विषय तो उनके व्यक्तित्व के अनुरूप होता। अब कहां सद्भावना और कहा नरेंद्र मोदी, यह तो मानो चोर की दाढ़ी में तिनका वाली बात हो गई। दूसरी पुस्तक का नाम ज्योति पुंज है जो ऐसे लोगों की जीवनी है जिनसे उन्हें प्रेरणा मिली। किताबें लिखवा कर श्रद्धांजलि अर्पित करना बहुत आसान है लेकिन आडवाणी और जोशी को 'मार्गदर्शक' बनाकर उन्होंने जिस तरह '' बाहर का रास्ता दिखा दिया '' वह जगज़ाहिर है। उनके व्यव्हार से मार्ग दर्शक का असली अर्थ '' राह देखने वाला '' या '' रास्ता नापने वाला '' स्पष्ट हो गया है।
तीसरी किताब काव्य संग्रह है। कल युग की इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि जो व्यक्ति लिखा हुआ भाषण पढ़ने में भी गलतियाँ करता हो वह किताबें लिख रहा है। वैसे मोदी जी अगर इस स्वतंत्रता दिवस के भाषण में घोषणा फरमादें कि अब वह राजनीति को अलविदा कहकर लेखन पाठन के लिए अपना जीवन समर्पित कर देंगे तो यह स्वयं उनके  और समाज के हित में एक बहुत शुभ निर्णय होगा। मोदी जी की पुस्पकों के समाचार की  संचार माध्यम ने जैसी अनदेखी की उस से पता चलता है कि अब देश वासियों ने उन्हें गंभीरता से लेना छोड दिया है इस लिये शायद ही कोई उन के स्वतंत्रता दिवस के भाषण को गंभीरता पूर्वक सुनेगा वैसे भी राहुल गांधी ने डरपोक प्रधान मंत्री कह कर मोदी जी की हवा निकाल दी है।⁠⁠[8/18/2015, 

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