Saturday 27 February 2016

हरियाणा में कलयुग की महाभारत

हरियाणा के अंदर जाट आरक्षण आंदोलन नया नहीं है। 1998 में पिछड़ी जाति के राष्ट्रीय आयोग ने जाटों को आरक्षण देने की सिफारिश तो कर दी मगर इंद्र कुमार गुजराल की सरकार ने उस पर कारवाई नहीं की। एक साल बाद अटल जी ने राजस्थान के जाटों को अन्य पिछड़ा जातियों में शामिल करने का वादा करके राज्य की 22 में 16 सीटें जीत लीं और अपना वादा पूरा करते हुए भरतपुर और धौलपूरी के अलावा राज्य के सारे जाटों को आरक्षण दे दिया। इस फैसले से उत्साहित हो कर जाटों का आरक्षण आंदोलन अन्य राज्यों में भी फैल गया। विरोध प्रर्दशन की शुरुआत 2004 में हुई जब राजनीतिक दल चुनाव पूर्व वादा करके बाद में मुकर गए। 2007 के अंदर दिल्ली में जाट महासभा की बैठक में आरक्षण ही मुख्य मुद्दा था तथा 2008 में इस उद्देश्य के लिए अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति की स्थापना हुई जिसके तहत विरोध सभाओं की अंतहीन श्रंखला चल पड़ी।
कांग्रेस पार्टी इस विरोध से संयम के साथ निपटती रही है, 2014 में तो उसने जाटों को आरक्षण प्रदान भी दिया लेकिन न्यायालय ने इस फैसले को खारिज कर दिया। इस तरह सांप तो नहीं मरा मगर लाठी यानी कांग्रेस जरूर टूट फूट गई। हरियाणा के विधानसभा चुनाव से पूर्व भाजपा ने कांग्रेस के फैसले को उचित ठहराया और इसका भरपूर राजनीतिक लाभ उठाया परंतु बाद में उसकी नीयत बदल गई और मोदी जी के कार्यकाल में पिछड़ों के राष्ट्रीय आयोग ने उसके खिलाफ सिफारिश कर दी जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में इसे फिर से खारिज कर दिया। भाजपा जाटों को बहला फुसला कर राम सकती थी लेकिन जिनके मन में निरर्थक घमंड भरा हुवा हो वे भला कब किसी को घास डालते हैं?
जाट आंदोलन की आग में तेल डालने का काम इस बार कुरूकक्षेत्र के भाजपा सांसद राज कुमार सैनी ने किया। उन्होंने बहुत अपमानजनक शैली में जाटों की मांग को खारिज करते हुए उन के आगे नहीं झुकने और प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करने की धमकी दे डाली। राजकुमार अपनी अपमानजनक शैली के लिए प्रसिद्ध हैं भूतकाल में वह मंच से जाटों को गालियां दे चुके हैं और कह चुके हैं कि जाटों द्वारा पानी या दूध बंद कर देने की धमकी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है। सोनिपत के भाजपा बहू बली संजीव बालियान ने नवंबर में सैनी के जवाब में कहा था जाटों को आरक्षण मिलकर रहेगा जिसे निकल कर जाना है चला जाए। उन्होंने यह भी कहा कि हरियाणा की गरम हवा पश्चिमी उत्तर प्रदेश को प्रभावित कर रही है। भाजपा अपने ही सांसद की चेतावनी पर ध्यान देकर अगर सैनी की भाषा पर लगाम लगा देती तो स्थिती नियंत्रण से बाहर नहीं होते।
14 फरवरी से 18 फरवरी के बीच शांतिपूर्ण ढंग से चलने वाले जाट आंदोलन को इस बार सैनी जैसे लोगों से उत्साहित ''35 जनजातीय समुदाय संघर्ष समिति' के प्रतिरोध का सामना करना पडा। इस के नाम से ही जाहिर है कि यह जातिवाद के नाम पर जाटों के खिलाफ अन्य जातियों को उत्तेजित करने वाला कदम था। इस से जाट प्रदर्शनों में अधिक तीव्रता आई मगर घमंडी सैनी अपने चेलों को मैदान में उतार कर कोलकाता की ओर खिसक गए। यह ऐसा ही था जैसे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पाखंडी शांति आवाहन करके जंतर मंतर पर धरना देकर बैठ गए। इस मामले में कांग्रेस और भाजपा का रवैया बिल्कुल समान था दोनों पर राजनैतिक संधीसाधू भूत सवार था। '35 जनजातीय समुदाय संघर्ष समिति की घोषणाओं से उस के रोष और अभिमान का अनुमान लगाया जा सकता है। '' सीएम साहब मत घबराओ 35 बिरादरी आपके साथ है। '' दूसरा नारा और भी अधिक खतरनाक था '' हमें मजबूर न करो कि हमें कठोर कदम उठाना पड़े। ' इस नारे ने तो मानो जाटों के आत्मसम्मान को ही ठेस पहुंचा दी।
सैनियों, नाईसों और पंजाबियों के उस जुलूस के जोश ए जुनून का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भिवानी बस अड्डे से दोपहर ढाई बजे जब रास्ते में जेएनयू के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले कुछ वकील मिले तो यह गलतफहमी में उनसे भिड़ गया। जेएनयू के प्रदर्शनकारियों (जो दरअसल भाजपा के ही समर्थक थे) ने लाख समझाने पर भी वह नहीं माने और जिन तीन लोगों को घायल किया वे सभी पंजाबी थे। इस हिंसा की खबर जब सोशल मीडिया से फैली तो जाट युवा भी मैदान में आ गए और विभिन्न स्थानों पर जुलूस के ऊपर पथराव किया गया तथा मारपीट भी हुई। इसी के साथ हिंसा की वारादतें शहर में फैलने लगीं। इस दौरान एक घटना जाट कॉलेज चौराहे पर भी हुई जिसमें छात्रों व्दारा पुलिस पर हमले का आरोप है। इसके जवाब में पुलिस ने रात के अंधेरे में नेकी राम छात्रावास के अंदर घुस कर छात्रों की जमकर पिटाई कर दी।
छात्रावास के जाट छात्रों ने अत्याचार की इस वारदात को मोबाइल कैमरे में बंद कर लिया। जैसे जैसे यह वीडियो सोशल मीडिया में फैलने लगी हिंसा की आग भी फैलती चली गई यहाँ तक की स्थिति पूरी तरह नियंत्रण से बाहर हो गई। कुंभकर्ण की नींद सोने वाली हरियाणा सरकार ने अब हॉस्टल पर छापे की जांच के लिए एक पैनल मनोनीत किया है। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के रवैये की जांच एक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी प्रकाश सिंह के सुपुर्द की गई है। इस बीच कांग्रेसी नेता प्राध्यापक वीरेंद्र सिंह के ऊपर एक टेप के आधार पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया है। मनोहर लाल खट्टर जो कुच्छ अपने विरोधियों के खिलाफ कर रहे हैं अगर यही सब खुद अपने लोगों को काबू में रखने के लिए करते तो इस खून खराबे को टाला जा सकता था।
अनुभवहीनता इन दंगों का मुख्य कारण है। इस बार प्रथम: देश की जनता ने एक ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री का पद दिया है जिसने कभी सांसद के रूप में सदन के भीतर कदम भी नहीं रखा था। मोदी जी को गुजरात सरकार का अनुभव तो था लेकिन वहां भी उन्होंने सरकार कम चलाई और राजनीति ज्यादा की थी, यह दोनों मौलिक रूप से विभिन्न हैं। जहां तक ​​गुजरात की समृद्धि और विकास का प्रशन है वह तो मोदी जी से पहले और बाद में भी वैसा ही है इसमें सरकार का नहीं बल्कि वहां के प्राकृतिक संसाधनों और जनता का योगदान है। मोदी जी को चाहिए था कि वह अपनी अनुभवहीनता का निवारण करने के लिए पार्टी में मौजूद अनुभवी लोगों की सहायता लेते लेकिन शायद आत्मविश्वास में कमी के कारण वे ऐसे लोगों से दूर रहते हैं या आहंकार उन्हें इस की अनुमति नहीं देता खैर कारण जो भी हो तथ्य यही है कि वह स्मृति ईरानी, ​​वी के सिंह और मनोहर पर्रिकर जैसे लोगों पर भरोसा करने को उचित समझते हैं। यह सिलसिला केंद्र से लेकर तो राज्यों तक फैला हुआ है।
सत्ता में आने के बाद मोदी जी ने जितने लोगों को मुख्य मंत्री नियुक्त किया वे सभी अनुभवहीन और अयोग्य थे। इसका मुख्य कारण यह था कि उनके चयन की पहली कसौटी संघ परिवार से संबंध और दुसरी मोदी जी से वफादारी था। इसमें योग्यता और क्षमता को ध्यान में नहीं रखा गया। इसके अलावा मोदी और शाह की जोड़ी ने हर जगह वहाँ के पारंपरिक जाति ढांचे को तोड़ने का प्रयत्न किया उदाहर्ण के तौर पर  झारखंड में किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाने के बजाय उड़ीसा के रघुबर दास को मुख्यमंत्री बनाया गया। महाराष्ट्र में मराठा या पिछड़ी जाति का मुख्यमंत्री हुआ करता था बाला साहब ठाकरे ने इससे हट कर ब्राह्मण मनोहर जोशी को मुख्यमंत्री तो बना दिया लेकिन चुनाव से पहले उन्हें मराठा नारायण राणे से बदलना पडा। मोदी जी ने भी ब्राह्मण फडनवीस को मुख्य मंत्री बना दिया और हरियाणा में अपनी ही तरह के एक ऐसे संघी को मुख्यमंत्री पद सौंपा जो पहली बार विधायक बना था।
हरियाणा के अंदर तो इस रणनीति का परिणाम तो सारी दुनिया ने देख लिया इस घटनाक्रम के दौरान मुख्यमंत्री दृश्य से गायब थे। भारतीय जनता पार्टी वालों के दिल आपस में इतना फटे हुए हैं दिल्ली से निकटता बावजूद ना वह खुद दिल्ली आए और न कोई और उनकी मदद के लिए चंडीगढ़ गया। आजकल भाजपा के अंदर या बाहर किसी को प्रधानमंत्री और उनके के व्दारा नियुक्त किये गए लोगों से तनिक सहानुभूति नहीं है। हर कोई इस त्रस्त वातावरण से तुरंत छुटकारा पाने के लिए छटपटा रहा है।
हवा में लाठी चलाने वाले तिलक धारी खाकी चड्डी वाले मुख्य मंत्री ने घबरा कर एक दिन के अंदर सेना तलब कर ली हालांकि इस तरह की स्थिति में स्थानीय पुलिस अधिक प्रभावी होती है और सेना को अपरिहार्य स्थिति में बुलाया जाता है। खट्टर ने सोचा होगा कि पुलिस में शामिल जाट अपने लोगों के साथ नरमी करेंगे मगर स्पष्ट आदेश ना होने के कारण सेना पुलिस को हतोत्साहित करने के अलावा कुछ और नहीं कर सकी। इस दौरान हालत यह थी कि दंगाइयों के अलावा कोई नहीं जानता था कि किसे क्या करना है? यही कारण है कि गैर जाटों ने भी खट्टर को धक्के दिए और काली झंडियाँ दिखाईं। मंत्रियों ने तक अपने मुख्यमंत्री पर न केवल अप्रभावी होने का आरोप जड़ दिया बल्कि उन्हीं को दंगे का मुख्य दोषी ठहरा दिया।
यह मात्र संयोग नहीं बल्कि संघ परिवार की सोची समझी रणनीति थी जो वास्तविक्ता से टकरा कर चकनाचूर हो गई। हरियाणा में जाट लगभग 30 प्रतिशत हैं। चुनाव से पहले वह दो धड़ों में विभाजित थे इसलिए कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री भुपेंद्र सिंग हुड्डा भी जाट थे और उनके खिलाफ चौटाला भी जाट वोट के दावेदार थे। भाजपा ने सोचा कि यह अच्छा मौका है जाटों की अनदेखी करके दूसरी 35 जातियों पर ध्यान केंद्रित किया जाए और उनका तुष्टीकर्ण करके चुनाव जीत लिया जाए। यह रणनीति सफल रही भाजपा को पहली बार जबरदस्त सफलता मिली। भाजपा ने मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाकर जाटों का अधिक दिल दुखाया जिस से सैनी जैसे लोगों का हौसला बुलंद हो गया।
दरअसल जाटों के साथ धोखा हुआ चुनाव पूर्व अमित शाह ने जाट नेता कप्तान अभिमन्यु के मुख्यमंत्री बनाए जाने का संकेत दिया था मगर बहुमत मिल जाने के बाद वह बदल गए और एक पंजाबी को मुख्यमंत्री बनवा दिया। जाट समुदाय को चुनाव के बाद अपनी गलती का आभास हुआ तो वह अपने राजनैतिक मतभेद मिटा कर एकजुट हो गया और भाजपा की ईंट से ईंट बजा दी। अफसोस भाजपा की धोकाधडी की कीमत जनता को चुकाई। हजारों करोड की संपत्ती और 28 लोगों की जानें नष्ट हुईं।
5 मार्च को हरियाणा में विदेशी निवेश के लिए मेक इन इंडिया प्रदर्शनी होने वाली है। मुंबई के शांतिपूर्ण वातावरण में बड़े गाजे-बाजे से यह तमाशा आयोजित हुआ तो उसकी पर्याप्त सराहना नहीं हुई ऐसे में हरियाणा के हिंसक माहौल में वहाँ जाने की गलती कौन करेगा? जिस राज्य में विदेशियों को बीफ खाने के लिए परमिट देने पर मुख्यमंत्री विचार कर रहे हैं और उनके दाहिने हाथ अनिल विज इसके जवाब में घोषणा कर रहे हैं कि जिन्हें गोमांस खाना हो वह हमारे यहां न आएं वहां पर उद्योग लगाने के लिए कितने परमिट लेने पड़ेंगे यह सवाल भी निवेशकों को परेशान कर रहा होगा? भाजपा गुजरात में गीर के उन जंगलों को जो बाघों के लिए सुरक्षित रखे गए थे अपने परिवार गणों में कौड़ियों के भाव बांट रही है जिस के कारण शेर वहां से निकल कर कभी मेक इन इंडिया के पोस्टर में तो कभी पटियाला हाउस में पहंच जाते हैं लेकिन इन दोनों प्रकार के कागजी शेरों का हाल यह है कि बाहर से वह जैसे स्वस्थ और बहादुर नज़र आते हैं अंदर उतने ही कायर और कमजोर होते हैं।
इस दंगे ने भगवा आतंकवादियों के साहस की कलई खोल कर रख दी। जब उनका मुकाबला कमजोर और असहाय लोगों से होता है तो यह बहुत शेर बनते हैं लेकिन जब किसी शक्तिशाली से पंजा आजमाई का अवसर आता है तो यह भीगी बिल्ली बन जाते हैं। इन दंगों का प्रभाव पंजाब और उत्तर प्रदेश के चुनाव पर अवश्य पड़ेगा और जाटों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में बीजेपी को जमानत बचाना कठिन हो जाएगा। हरियाणा में अगर कांग्रेस की राज्य सरकार होती तो अरुणाचल प्रदेश की तरह उसे भी बरख़ास्त कर के राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता और आया राम गया राम की मदद से भाजपा अपनी सरकार स्थापित करने की कोशिश करती लेकिन वहां तो उस की अपनी सत्ता है।
हरियाणा के विनाश के बाद देश का हिन्दू बहुमत आश्चर्य चकित है कि हिंदू ह्रदय सम्राट नरेंद्र मोदी जी के होते यह अनर्थ कैसे हो गया? इसलिए कि शायद पहली बार चुन चुन कर मुख्यमंत्री के जाति बंधुओं की दुकानों, कारखानों और घरों को जलाया गया। पुलिस की गोली से मरने वाले अधिकांश भगवा समर्थक थे। इस दौरान हरियाणा में महिलाओं का सामूहिक बलात्कार भी हुआ और पुलिस ने उसे अफवाह ठहरा कर शिकायत तक दर्ज करने से इनकार कर दिया लेकिन सवाल उठता है कि क्या अपने देश में यह पहली बार हुआ है? जी नहीं इस देश के अल्पसंख्यकों और दलितों के साथ तो यह आए दिन होता रहता है इसलिए उन्हें यह सब देखकर कोई आश्चर्य और परेशानी नहीं होती।
भाजपा हरियाणा में कांग्रेस पर जो आरोप लगा रही है वही खेल वह आए दिन मुसलमानों के खिलाफ खेलती रहती है अंतर यह है कि इस बार इसका शिकार वह खुद हुई हैं। इस बार विरोधियों के बजाय उस के समर्थकों को घाव लगा है। अंतर केवल यह है कि चक्रव्यूह की दिशा बदल गई जिसने बहुल वर्ग की दशा को बदल कर रखा दिया। इस त्रासदी से अगर देश की बहुसंख्यक समुदाय अपने रवैये पर पुनर्विचार करे तो संभव है देश में शांति परस्थापित हो और वह प्रक्रति के रोष से भी वह सुरक्षित रहे।
हरियाणा में जाट बहुमत में नहीं हैं फिर भी उन्होंने बर्बादी का तूफान उठा कर साबित कर दिया कि देगा करने के लिए किसी का बहुमत में होना जरूरी नहीं है। वास्तविकता यही है कि इस देश में फासीवादी तत्व एक बहुत मामूली अल्पसंख्यक है। विभिन्न हितों या धोखा से उनके झांसे में आने वाले समर्थकों सहित इन लोगों की संख्या 31 प्रतिशत से अधिक नहीं होती इसके बावजूद ये गुजरात, दिल्ली और असम में भीषण दंगा करने में सफल हो जाते हैं। यह दंगा इस गलतफहमी का भी निवारण करता है कि जब आपनी समर्थक सरकार आजाएगी तो सांप्रदायिक दंगों का नामोनिशान मिट जाएगा। वर्तमान में न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बलकि राज्य के अंदर भी हिंदुत्व वादी सरकार है जिसे दंगा पीडितों ने अभी हाल में बड़े उत्साह के साथ चुना था। जो विद्वान और बुद्धिजीवी धर्म व समुदाय की सुरक्षा की खातिर केवल चुनावी संघर्ष के कायल हैं उनके लिए हरियाणा की घटनाओं में बडा सबक है।
महाभारत की रण भूमि कुरूकक्षेत्र यानी कौरव क्षेत्र थी। वही कौरव इस समय भाजपा के रूप में सत्तासीन है। हरियाणा में कलयुज की महाभारत का बिगुल भी उसी ऐतिहासिक शहर में बजा और नतीजा यह निकला कि कलयुग की पांडव यानी कांग्रेस पार्टी वनवास से लौट आई। हरियाणा में दर्यूधन की भूमिका राजकुमार सैनी ने निभाई। नेत्रहीन यूधिशटर की जगह मनोहर लाल खट्टर दिखे और असहाय भीष्म पतामह के स्थान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देखे गए। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने श्री कृष्णा की तरह बिना हथियार उठाए बाजी मार ली और अर्जुन की तरह चौटाला ने उनका साथ दिया। महाभारत के इस रीमेक (दोहराए जाने) में रोहतक के विनाश के दृश्य देख कर जनता को टीवी धारावाहिक महाभारत का समापन दृश्य याद आ गया होगा जिसमें कौरव यानी गैर जाट पूरी तरह तबाह व ताराज कर दिए गए थे और पांडव यानी जाटों का बाल भी बांका नहीं हुआ था।

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