Saturday 27 February 2016

हरियाणा में कलयुग की महाभारत

हरियाणा के अंदर जाट आरक्षण आंदोलन नया नहीं है। 1998 में पिछड़ी जाति के राष्ट्रीय आयोग ने जाटों को आरक्षण देने की सिफारिश तो कर दी मगर इंद्र कुमार गुजराल की सरकार ने उस पर कारवाई नहीं की। एक साल बाद अटल जी ने राजस्थान के जाटों को अन्य पिछड़ा जातियों में शामिल करने का वादा करके राज्य की 22 में 16 सीटें जीत लीं और अपना वादा पूरा करते हुए भरतपुर और धौलपूरी के अलावा राज्य के सारे जाटों को आरक्षण दे दिया। इस फैसले से उत्साहित हो कर जाटों का आरक्षण आंदोलन अन्य राज्यों में भी फैल गया। विरोध प्रर्दशन की शुरुआत 2004 में हुई जब राजनीतिक दल चुनाव पूर्व वादा करके बाद में मुकर गए। 2007 के अंदर दिल्ली में जाट महासभा की बैठक में आरक्षण ही मुख्य मुद्दा था तथा 2008 में इस उद्देश्य के लिए अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति की स्थापना हुई जिसके तहत विरोध सभाओं की अंतहीन श्रंखला चल पड़ी।
कांग्रेस पार्टी इस विरोध से संयम के साथ निपटती रही है, 2014 में तो उसने जाटों को आरक्षण प्रदान भी दिया लेकिन न्यायालय ने इस फैसले को खारिज कर दिया। इस तरह सांप तो नहीं मरा मगर लाठी यानी कांग्रेस जरूर टूट फूट गई। हरियाणा के विधानसभा चुनाव से पूर्व भाजपा ने कांग्रेस के फैसले को उचित ठहराया और इसका भरपूर राजनीतिक लाभ उठाया परंतु बाद में उसकी नीयत बदल गई और मोदी जी के कार्यकाल में पिछड़ों के राष्ट्रीय आयोग ने उसके खिलाफ सिफारिश कर दी जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में इसे फिर से खारिज कर दिया। भाजपा जाटों को बहला फुसला कर राम सकती थी लेकिन जिनके मन में निरर्थक घमंड भरा हुवा हो वे भला कब किसी को घास डालते हैं?
जाट आंदोलन की आग में तेल डालने का काम इस बार कुरूकक्षेत्र के भाजपा सांसद राज कुमार सैनी ने किया। उन्होंने बहुत अपमानजनक शैली में जाटों की मांग को खारिज करते हुए उन के आगे नहीं झुकने और प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करने की धमकी दे डाली। राजकुमार अपनी अपमानजनक शैली के लिए प्रसिद्ध हैं भूतकाल में वह मंच से जाटों को गालियां दे चुके हैं और कह चुके हैं कि जाटों द्वारा पानी या दूध बंद कर देने की धमकी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है। सोनिपत के भाजपा बहू बली संजीव बालियान ने नवंबर में सैनी के जवाब में कहा था जाटों को आरक्षण मिलकर रहेगा जिसे निकल कर जाना है चला जाए। उन्होंने यह भी कहा कि हरियाणा की गरम हवा पश्चिमी उत्तर प्रदेश को प्रभावित कर रही है। भाजपा अपने ही सांसद की चेतावनी पर ध्यान देकर अगर सैनी की भाषा पर लगाम लगा देती तो स्थिती नियंत्रण से बाहर नहीं होते।
14 फरवरी से 18 फरवरी के बीच शांतिपूर्ण ढंग से चलने वाले जाट आंदोलन को इस बार सैनी जैसे लोगों से उत्साहित ''35 जनजातीय समुदाय संघर्ष समिति' के प्रतिरोध का सामना करना पडा। इस के नाम से ही जाहिर है कि यह जातिवाद के नाम पर जाटों के खिलाफ अन्य जातियों को उत्तेजित करने वाला कदम था। इस से जाट प्रदर्शनों में अधिक तीव्रता आई मगर घमंडी सैनी अपने चेलों को मैदान में उतार कर कोलकाता की ओर खिसक गए। यह ऐसा ही था जैसे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पाखंडी शांति आवाहन करके जंतर मंतर पर धरना देकर बैठ गए। इस मामले में कांग्रेस और भाजपा का रवैया बिल्कुल समान था दोनों पर राजनैतिक संधीसाधू भूत सवार था। '35 जनजातीय समुदाय संघर्ष समिति की घोषणाओं से उस के रोष और अभिमान का अनुमान लगाया जा सकता है। '' सीएम साहब मत घबराओ 35 बिरादरी आपके साथ है। '' दूसरा नारा और भी अधिक खतरनाक था '' हमें मजबूर न करो कि हमें कठोर कदम उठाना पड़े। ' इस नारे ने तो मानो जाटों के आत्मसम्मान को ही ठेस पहुंचा दी।
सैनियों, नाईसों और पंजाबियों के उस जुलूस के जोश ए जुनून का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भिवानी बस अड्डे से दोपहर ढाई बजे जब रास्ते में जेएनयू के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले कुछ वकील मिले तो यह गलतफहमी में उनसे भिड़ गया। जेएनयू के प्रदर्शनकारियों (जो दरअसल भाजपा के ही समर्थक थे) ने लाख समझाने पर भी वह नहीं माने और जिन तीन लोगों को घायल किया वे सभी पंजाबी थे। इस हिंसा की खबर जब सोशल मीडिया से फैली तो जाट युवा भी मैदान में आ गए और विभिन्न स्थानों पर जुलूस के ऊपर पथराव किया गया तथा मारपीट भी हुई। इसी के साथ हिंसा की वारादतें शहर में फैलने लगीं। इस दौरान एक घटना जाट कॉलेज चौराहे पर भी हुई जिसमें छात्रों व्दारा पुलिस पर हमले का आरोप है। इसके जवाब में पुलिस ने रात के अंधेरे में नेकी राम छात्रावास के अंदर घुस कर छात्रों की जमकर पिटाई कर दी।
छात्रावास के जाट छात्रों ने अत्याचार की इस वारदात को मोबाइल कैमरे में बंद कर लिया। जैसे जैसे यह वीडियो सोशल मीडिया में फैलने लगी हिंसा की आग भी फैलती चली गई यहाँ तक की स्थिति पूरी तरह नियंत्रण से बाहर हो गई। कुंभकर्ण की नींद सोने वाली हरियाणा सरकार ने अब हॉस्टल पर छापे की जांच के लिए एक पैनल मनोनीत किया है। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के रवैये की जांच एक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी प्रकाश सिंह के सुपुर्द की गई है। इस बीच कांग्रेसी नेता प्राध्यापक वीरेंद्र सिंह के ऊपर एक टेप के आधार पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया है। मनोहर लाल खट्टर जो कुच्छ अपने विरोधियों के खिलाफ कर रहे हैं अगर यही सब खुद अपने लोगों को काबू में रखने के लिए करते तो इस खून खराबे को टाला जा सकता था।
अनुभवहीनता इन दंगों का मुख्य कारण है। इस बार प्रथम: देश की जनता ने एक ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री का पद दिया है जिसने कभी सांसद के रूप में सदन के भीतर कदम भी नहीं रखा था। मोदी जी को गुजरात सरकार का अनुभव तो था लेकिन वहां भी उन्होंने सरकार कम चलाई और राजनीति ज्यादा की थी, यह दोनों मौलिक रूप से विभिन्न हैं। जहां तक ​​गुजरात की समृद्धि और विकास का प्रशन है वह तो मोदी जी से पहले और बाद में भी वैसा ही है इसमें सरकार का नहीं बल्कि वहां के प्राकृतिक संसाधनों और जनता का योगदान है। मोदी जी को चाहिए था कि वह अपनी अनुभवहीनता का निवारण करने के लिए पार्टी में मौजूद अनुभवी लोगों की सहायता लेते लेकिन शायद आत्मविश्वास में कमी के कारण वे ऐसे लोगों से दूर रहते हैं या आहंकार उन्हें इस की अनुमति नहीं देता खैर कारण जो भी हो तथ्य यही है कि वह स्मृति ईरानी, ​​वी के सिंह और मनोहर पर्रिकर जैसे लोगों पर भरोसा करने को उचित समझते हैं। यह सिलसिला केंद्र से लेकर तो राज्यों तक फैला हुआ है।
सत्ता में आने के बाद मोदी जी ने जितने लोगों को मुख्य मंत्री नियुक्त किया वे सभी अनुभवहीन और अयोग्य थे। इसका मुख्य कारण यह था कि उनके चयन की पहली कसौटी संघ परिवार से संबंध और दुसरी मोदी जी से वफादारी था। इसमें योग्यता और क्षमता को ध्यान में नहीं रखा गया। इसके अलावा मोदी और शाह की जोड़ी ने हर जगह वहाँ के पारंपरिक जाति ढांचे को तोड़ने का प्रयत्न किया उदाहर्ण के तौर पर  झारखंड में किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाने के बजाय उड़ीसा के रघुबर दास को मुख्यमंत्री बनाया गया। महाराष्ट्र में मराठा या पिछड़ी जाति का मुख्यमंत्री हुआ करता था बाला साहब ठाकरे ने इससे हट कर ब्राह्मण मनोहर जोशी को मुख्यमंत्री तो बना दिया लेकिन चुनाव से पहले उन्हें मराठा नारायण राणे से बदलना पडा। मोदी जी ने भी ब्राह्मण फडनवीस को मुख्य मंत्री बना दिया और हरियाणा में अपनी ही तरह के एक ऐसे संघी को मुख्यमंत्री पद सौंपा जो पहली बार विधायक बना था।
हरियाणा के अंदर तो इस रणनीति का परिणाम तो सारी दुनिया ने देख लिया इस घटनाक्रम के दौरान मुख्यमंत्री दृश्य से गायब थे। भारतीय जनता पार्टी वालों के दिल आपस में इतना फटे हुए हैं दिल्ली से निकटता बावजूद ना वह खुद दिल्ली आए और न कोई और उनकी मदद के लिए चंडीगढ़ गया। आजकल भाजपा के अंदर या बाहर किसी को प्रधानमंत्री और उनके के व्दारा नियुक्त किये गए लोगों से तनिक सहानुभूति नहीं है। हर कोई इस त्रस्त वातावरण से तुरंत छुटकारा पाने के लिए छटपटा रहा है।
हवा में लाठी चलाने वाले तिलक धारी खाकी चड्डी वाले मुख्य मंत्री ने घबरा कर एक दिन के अंदर सेना तलब कर ली हालांकि इस तरह की स्थिति में स्थानीय पुलिस अधिक प्रभावी होती है और सेना को अपरिहार्य स्थिति में बुलाया जाता है। खट्टर ने सोचा होगा कि पुलिस में शामिल जाट अपने लोगों के साथ नरमी करेंगे मगर स्पष्ट आदेश ना होने के कारण सेना पुलिस को हतोत्साहित करने के अलावा कुछ और नहीं कर सकी। इस दौरान हालत यह थी कि दंगाइयों के अलावा कोई नहीं जानता था कि किसे क्या करना है? यही कारण है कि गैर जाटों ने भी खट्टर को धक्के दिए और काली झंडियाँ दिखाईं। मंत्रियों ने तक अपने मुख्यमंत्री पर न केवल अप्रभावी होने का आरोप जड़ दिया बल्कि उन्हीं को दंगे का मुख्य दोषी ठहरा दिया।
यह मात्र संयोग नहीं बल्कि संघ परिवार की सोची समझी रणनीति थी जो वास्तविक्ता से टकरा कर चकनाचूर हो गई। हरियाणा में जाट लगभग 30 प्रतिशत हैं। चुनाव से पहले वह दो धड़ों में विभाजित थे इसलिए कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री भुपेंद्र सिंग हुड्डा भी जाट थे और उनके खिलाफ चौटाला भी जाट वोट के दावेदार थे। भाजपा ने सोचा कि यह अच्छा मौका है जाटों की अनदेखी करके दूसरी 35 जातियों पर ध्यान केंद्रित किया जाए और उनका तुष्टीकर्ण करके चुनाव जीत लिया जाए। यह रणनीति सफल रही भाजपा को पहली बार जबरदस्त सफलता मिली। भाजपा ने मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाकर जाटों का अधिक दिल दुखाया जिस से सैनी जैसे लोगों का हौसला बुलंद हो गया।
दरअसल जाटों के साथ धोखा हुआ चुनाव पूर्व अमित शाह ने जाट नेता कप्तान अभिमन्यु के मुख्यमंत्री बनाए जाने का संकेत दिया था मगर बहुमत मिल जाने के बाद वह बदल गए और एक पंजाबी को मुख्यमंत्री बनवा दिया। जाट समुदाय को चुनाव के बाद अपनी गलती का आभास हुआ तो वह अपने राजनैतिक मतभेद मिटा कर एकजुट हो गया और भाजपा की ईंट से ईंट बजा दी। अफसोस भाजपा की धोकाधडी की कीमत जनता को चुकाई। हजारों करोड की संपत्ती और 28 लोगों की जानें नष्ट हुईं।
5 मार्च को हरियाणा में विदेशी निवेश के लिए मेक इन इंडिया प्रदर्शनी होने वाली है। मुंबई के शांतिपूर्ण वातावरण में बड़े गाजे-बाजे से यह तमाशा आयोजित हुआ तो उसकी पर्याप्त सराहना नहीं हुई ऐसे में हरियाणा के हिंसक माहौल में वहाँ जाने की गलती कौन करेगा? जिस राज्य में विदेशियों को बीफ खाने के लिए परमिट देने पर मुख्यमंत्री विचार कर रहे हैं और उनके दाहिने हाथ अनिल विज इसके जवाब में घोषणा कर रहे हैं कि जिन्हें गोमांस खाना हो वह हमारे यहां न आएं वहां पर उद्योग लगाने के लिए कितने परमिट लेने पड़ेंगे यह सवाल भी निवेशकों को परेशान कर रहा होगा? भाजपा गुजरात में गीर के उन जंगलों को जो बाघों के लिए सुरक्षित रखे गए थे अपने परिवार गणों में कौड़ियों के भाव बांट रही है जिस के कारण शेर वहां से निकल कर कभी मेक इन इंडिया के पोस्टर में तो कभी पटियाला हाउस में पहंच जाते हैं लेकिन इन दोनों प्रकार के कागजी शेरों का हाल यह है कि बाहर से वह जैसे स्वस्थ और बहादुर नज़र आते हैं अंदर उतने ही कायर और कमजोर होते हैं।
इस दंगे ने भगवा आतंकवादियों के साहस की कलई खोल कर रख दी। जब उनका मुकाबला कमजोर और असहाय लोगों से होता है तो यह बहुत शेर बनते हैं लेकिन जब किसी शक्तिशाली से पंजा आजमाई का अवसर आता है तो यह भीगी बिल्ली बन जाते हैं। इन दंगों का प्रभाव पंजाब और उत्तर प्रदेश के चुनाव पर अवश्य पड़ेगा और जाटों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में बीजेपी को जमानत बचाना कठिन हो जाएगा। हरियाणा में अगर कांग्रेस की राज्य सरकार होती तो अरुणाचल प्रदेश की तरह उसे भी बरख़ास्त कर के राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता और आया राम गया राम की मदद से भाजपा अपनी सरकार स्थापित करने की कोशिश करती लेकिन वहां तो उस की अपनी सत्ता है।
हरियाणा के विनाश के बाद देश का हिन्दू बहुमत आश्चर्य चकित है कि हिंदू ह्रदय सम्राट नरेंद्र मोदी जी के होते यह अनर्थ कैसे हो गया? इसलिए कि शायद पहली बार चुन चुन कर मुख्यमंत्री के जाति बंधुओं की दुकानों, कारखानों और घरों को जलाया गया। पुलिस की गोली से मरने वाले अधिकांश भगवा समर्थक थे। इस दौरान हरियाणा में महिलाओं का सामूहिक बलात्कार भी हुआ और पुलिस ने उसे अफवाह ठहरा कर शिकायत तक दर्ज करने से इनकार कर दिया लेकिन सवाल उठता है कि क्या अपने देश में यह पहली बार हुआ है? जी नहीं इस देश के अल्पसंख्यकों और दलितों के साथ तो यह आए दिन होता रहता है इसलिए उन्हें यह सब देखकर कोई आश्चर्य और परेशानी नहीं होती।
भाजपा हरियाणा में कांग्रेस पर जो आरोप लगा रही है वही खेल वह आए दिन मुसलमानों के खिलाफ खेलती रहती है अंतर यह है कि इस बार इसका शिकार वह खुद हुई हैं। इस बार विरोधियों के बजाय उस के समर्थकों को घाव लगा है। अंतर केवल यह है कि चक्रव्यूह की दिशा बदल गई जिसने बहुल वर्ग की दशा को बदल कर रखा दिया। इस त्रासदी से अगर देश की बहुसंख्यक समुदाय अपने रवैये पर पुनर्विचार करे तो संभव है देश में शांति परस्थापित हो और वह प्रक्रति के रोष से भी वह सुरक्षित रहे।
हरियाणा में जाट बहुमत में नहीं हैं फिर भी उन्होंने बर्बादी का तूफान उठा कर साबित कर दिया कि देगा करने के लिए किसी का बहुमत में होना जरूरी नहीं है। वास्तविकता यही है कि इस देश में फासीवादी तत्व एक बहुत मामूली अल्पसंख्यक है। विभिन्न हितों या धोखा से उनके झांसे में आने वाले समर्थकों सहित इन लोगों की संख्या 31 प्रतिशत से अधिक नहीं होती इसके बावजूद ये गुजरात, दिल्ली और असम में भीषण दंगा करने में सफल हो जाते हैं। यह दंगा इस गलतफहमी का भी निवारण करता है कि जब आपनी समर्थक सरकार आजाएगी तो सांप्रदायिक दंगों का नामोनिशान मिट जाएगा। वर्तमान में न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बलकि राज्य के अंदर भी हिंदुत्व वादी सरकार है जिसे दंगा पीडितों ने अभी हाल में बड़े उत्साह के साथ चुना था। जो विद्वान और बुद्धिजीवी धर्म व समुदाय की सुरक्षा की खातिर केवल चुनावी संघर्ष के कायल हैं उनके लिए हरियाणा की घटनाओं में बडा सबक है।
महाभारत की रण भूमि कुरूकक्षेत्र यानी कौरव क्षेत्र थी। वही कौरव इस समय भाजपा के रूप में सत्तासीन है। हरियाणा में कलयुज की महाभारत का बिगुल भी उसी ऐतिहासिक शहर में बजा और नतीजा यह निकला कि कलयुग की पांडव यानी कांग्रेस पार्टी वनवास से लौट आई। हरियाणा में दर्यूधन की भूमिका राजकुमार सैनी ने निभाई। नेत्रहीन यूधिशटर की जगह मनोहर लाल खट्टर दिखे और असहाय भीष्म पतामह के स्थान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देखे गए। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने श्री कृष्णा की तरह बिना हथियार उठाए बाजी मार ली और अर्जुन की तरह चौटाला ने उनका साथ दिया। महाभारत के इस रीमेक (दोहराए जाने) में रोहतक के विनाश के दृश्य देख कर जनता को टीवी धारावाहिक महाभारत का समापन दृश्य याद आ गया होगा जिसमें कौरव यानी गैर जाट पूरी तरह तबाह व ताराज कर दिए गए थे और पांडव यानी जाटों का बाल भी बांका नहीं हुआ था।

Monday 22 February 2016

भगवा आतंकवाद: हैदराबाद विश्वविद्यालय से जवाहरलाल विश्वविद्यालय तक


जम्मू कश्मीर के पंपोर में आतंकी हमले में तीन आतंकवादीयों के अलावा पांच सैनिक मारे गए, जिनमें से एक पवन कुमार का संबंध न केवल हरियाणा बल्कि जेएनयू से भी था। वही हरियाणा जिसमें आरक्षण की मांग को लेकर चलने वाले आन्दोलन ने अभी तक 12 लोगों की जान ले ली है। पवन कुमार जेएनयू का छात्र भी था जहां कश्मीर के नाम पर एक कृत्रिम बवंडर खडा कर दिया गया इस प्रकार मानो आग और खून की नदी दिल्ली से लेकर कर हरियाणा से होते हुए श्रीनगर तक पहुंच गई। इस दौरान जिन तथाकथित शेर दिल भगवा वकीलों ने जेएनयू के छात्र कनैह्या कुमार पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ छत्तीस हजारी कोर्ट परिसर में कायर हमला किया था वह बिल्ली बनकर न जाने किस सुरंग में दुबक गए। इसी के साथ उमर खालिद को बदनाम करने की खातिर नकली वीडियो प्रसारित करने वाले टीवी चैनलों का मुंह भी काला हो गया।
इस गंभीर स्थिति में लोगों ने जब बड़ी आशा से 56 इंच छाती वाले प्रधानमंत्री की ओर देखा तो पता चला कि वह दिल्ली से दूर छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बंगाल के दौरे पर निकल पड़े हैं और वापसी में अपने चुनावी क्षेत्र वाराणसी से होते हुए लौटने वाले हैं ताकि उनके आगमन से पहले सारा मामला अपने आप शांत हो जाए। इस दौरे पर वह किसानों को संबोधित कर के अपने खिलाफ बुनी जाने वाली साजिशों का रोना रो रहे हैं और इससे देश के कमजोर होने की दुहाई दे रहे हैं हालांकि इन दोनों में कोई आपसी संबंध ही नहीं है। इसी के साथ वही पुराना घिसा पिटा मनोवैज्ञानिक शोषण कि लोगों को एक चाय वाले का प्रधानमंत्री बनना खल रहा है हालांकि पिछले दो सालों में उन्होंने राष्ट्रपति ओबामा के अलावा किसी को चाय नहीं पिलाई। यह वही बराक ओबामा हैं जिन्हों ने हाल में पाकिस्तान को एफ -16 विमान दे कर मोदी जी को नाराज कर दिया। मोदी जी को चाहिए था कि वह चाय के साथ कुछ नमक पारे भी ओबामा के मुंह में ठूंस देते ताकि वे नमक हरामी न करते।
 मोदी जी ने अपनी तूफानी यात्रा के दौरान ममता बनर्जी से मिलने के बाद एक मठ में प्रवचन भी दिया हालांकि उन्हें चाहिए था कि चंडीगढ़ जाकर हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर से मुलाकात करते और जाट प्रदर्शनकारियों को शांति व सद्भभावना का उपदेश देते। वाराणसी में बी एच यू के भीतर दिखावे का भाषण देने के बजाय दिल्ली के जेएनयू में जाकर पोलिस के अत्याचार का शिकार छात्रों का दुख दर्द बांटते। पोलिस और मीडिया की साठगांठ से छात्रों को दिए जाने वाले जख्मों पर मरहम रखते या कम से कम दिल्ली के छत्तीस हजारी कोर्ट में जाकर अपने भक्तों को दिन दहाड़े कानून और संविधान की धज्जियां उड़ाने से मना करते। कश्मीर के अंदर महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार बनाने की जोड़ तोड़ करने के बजाय वहां की जनता का दिल जीतने की कोशिश करते ताकि स्थायी शांति प्रस्थापित हो सके लेकिन प्रधानमंत्री की न यह इच्छा है और न साहस है। उनका अपना संघ परिवार और सत्ता की लालसा उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं देगी।
मोदी जी की सत्ता से उन्हें बेदखल करने की साजिश को अगर गंभीरता से लिया जाए तो शक की सुई उनके अपने हिंदुत्व परिवार ही की ओर मुड़ जाती है जो जान बूझकर और अनजाने में आए दिन उनके लिए एक नई चिता तैयार कर देता है। पहले तो आदित्य नाथ और साक्षी महाराज जैसे लोगों ने लव जिहाद और घर-वापसी के नाम पर आतंक फैलाया और सारी दुनिया में भारत को बदनाम किया। इसके बाद गौ हत्या और असहिष्णुता का बेजोड़ प्रदर्शन करके सरकार की जड़ों को पूरी तरह खोखला कर दिया। इस पर सरकार अभी काबू नहीं कर पाई थी कि आरक्षण के लिए तीर्व प्रदर्शनों ने सिर उभारा। गुजरात, आंध्र प्रदेश और हरियाणा में हिंसा की आग भड़की संयोग से इन तीनों राज्यों में भाजपा या उसकी सहयोगी तेदेपा की सरकार है परंतु अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के गुंडागर्दी में बाजी मार ली। इन लोगों ने पहले तो हैदराबाद विश्वविद्यालय और फिर जेएनयू को आतंकवाद का निशाना बनाया।
जेएनयू के मामले में तो भगवा राजनीति की बेमिसाल मिट्टी पलीद हुई है। एबीवीपी वालों ने एक ऐसे हानिरहित प्रर्दशन का राजनीतिक फ़ायदा उठाने की कोशिश की, जो पिछले तीन सालों से होता रहा है मगर इसकी किसी को खबर तक नहीं हुई। अफजल गुरु की फांसी के फैसले के खिलाफ प्रर्दशन की इस साल भी अनुमति मिल गई थी, लेकिन नए कुलपति ने अंतिम समय में इसे एबीवीपी के दबाव में आकर रद्द कर दिया। यदि यह नहीं किया जाता तो वह महत्वहीन घटना अपने आप दब जाती लेकिन भगवा संधी साधू इसका राजनीतिक लाभ उठाने के तक्कर में खुद अपने जाल में फंस गए। अब तो हाल यह है कि पूर्व सोलीसिटर जनरल सोली सोराब जी ने खुले आम यह स्वीकार कर लिया है कि अफजल गुरु की फांसी के विरोध करना कोई अपराध नहीं है हाँ इसका बदला लेने की धमकी देना है। इस तरह मानो उन सभी के लिए जो अफजल गुरु की फांसी के खिलाफ प्रदर्शन करना चाहते हैं विरोध का मार्ग खुल गया है। अगले साल निश्चित रूप से ऐसे अनेक प्रदर्शन होंगे।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अनुभवहीन नेताओं ने जो गलती की सो की लेकिन केंद्र सरकार ने जिस अदूरदर्शिता का परिचय देते हुए दिल्ली पुलिस के दुरुपयोग से मानो करेला नीम चढ़ा हो गया। इन को चाहिए था कि वे विश्वविद्यालय के कुलपति से रिपोर्ट मांग कर मामले को रफा-दफा कर देते लेकिन इन मूर्खों ने एक हानिरहित प्रदर्शन की अनदेखी ना कर के उसे राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इस के डांडे आईएसआई और हाफिज सईद से जोड़ दिए और तो और जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कनैह्या कुमार को गिरफ्तार कर लिया। कनैह्या का दोष केवल यह था कि जब उसे अनुमति रद्द होने की सूचना मिली तो वह मोदी जी की तरह मैदान छोड कर भागने के बजाय प्रदर्शन स्थल पर पहुंच गया। प्रदर्शनकारियों का आक्रोश कम करने के लिए वहां भाषण भी दिया जो लेकिन इसमें कश्मीर या अफजल गुरु की बाबत कोई ऐसी बात नहीं की जिसका हिन्दत्ववादी दुर्उप्योग कर सकें।
एबीवीपी वाले भला कब मानने वाले थे उन लोगों ने कनैह्या कुमार वीडियो के पीछे कश्मीर में होने वाले एक प्रदर्शन की आवाज लगाकर उसे बिकाऊ मीडिया द्वारा प्रसारित करना शुरू कर दिया। इस तरह कनैह्या कुमार को देश का गद्दार बनाकर पेश किया गया। बहुत जल्द झी टीवी का झूठ खुल गया और उस के प्रतिद्वंद्वी ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया। इस के बाद पोलिस और भगवा गुंडों की मिली भगत से दमन व अत्याचार का नंगा नाच शुरू हुआ। जो लोग यह कह रहे थे कि अफजल गुरु की फांसी का विरोध करना न्याय प्रणाली की अवमानना ​​है उन लोगों ने अदालत परिसर में संविधान और कानून अपने पैरों तले रौंदा पुलिस ने कनैह्या कुमार को लाकर भगवा वकीलों के हवाले कर दिया और वे उस पर टूट पड़े। इस असाधारण घटना पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया और कहा कि अगले दिन जब कनैह्या कुमार की फिर पेशी हो तो अदालत में सुरक्षा प्रदान की जाए और अपने प्रवेक्षक रवाना किए।
दूसरे दिन फिर वही खेल दोहराया गया। अदालत के सभी दरवाजों पर गुंडों ने कब्जा कर लिया। पत्रकारों तक पर हमला किया गया। उनके कैमरे छीन लिए गए और नारा लगाया गया कि '' फोन भी तोड़ेंगे और बोन (हड्डी) भी तोड़ेंगे। ' कनैह्या कुमार पर दूसरे दिन फिर हमला हुआ। सुप्रीम कोर्ट की टीम किसी तरह अपनी जान बचाकर लौटी मगर उसकी रिपोर्ट को दबा दिया गया इसके बावजूद आर के धवन जैसे ईमानदार वकील ने एनडीटीवी पर सरकार के चेहरे से नकाब नोच कर फेंक दी और सरकार जो खबर ली इसकी मिसाल नहीं मिलती। इसके बावजूद कनैह्या कुमार को जमानत नहीं मिली बल्कि उसे अफजल गुरु के कमरे में बंद कर दिया गया। इसके विपरीत कनैह्या कुमार पर हमला करने वाले भाजपा के विधायक ओपी शर्मा को जमानत मिल गई। जिन वकीलों ने कनैह्या कुमार पर हमला किया था उनकी वीडियो मीडिया में प्रसारित होती रही। उनका सार्वजनिक सम्मान भी होता रहा लेकिन दिल्ली पुलिस उन्हें पहचान न सकी और कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई। राजधानी दिल्ली के भीतर कानून की ऐसी धज्जियां तो शायद आपातकाल के दौरान भी नहीं उड़ाई गई होंगी।
इस चरण में संघ परिवार को अपनी गलती का जो एहसास हुआ वह भी सही नहीं था। उसे लगा कि कनैह्या कुमार हिंदू है और उसकी गिरफ्तारी से संभवत: हिंदू जनमत हमारे खिलाफ हो जाए इसलिए उसने जेएनयू मामले को सांप्रदायिक रंग देने का फैसला किया और पहले प्रोफेसर एसएआर गिलानी पर हाथ डाला गया। गिलानी साहब को अफजल गुरु के सहायक के रूप में पहले भी गिरफ्तार किया गया था लेकिन न्यायालय ने उन्हें रिहा कर दिया था। इस अवसर पर भी उच्चकोटि के पाखंड का प्रदर्शन हुआ। गिलानी के खिलाफ एक वीडियो टेप अदालत में पेश किया गया लेकिन मंच पर उनके साथ बैठने वाले ग़ैर मुस्लिमों की गिरफ्तारी तो दरकिनार उन्हें पहचानने से भी पुलिस ने इनकार कर दिया और दो अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया।
प्रोफेसर गिलानी को फंसाना आसान नहीं है इसलिए उमर खालिद का हव्वा खड़ा किया गया। वह उमर खालिद जो टेलीविजन चैनलों पर इंटरव्यू दे रहा था और अकेले पूरी भगवा टीम के नाक में दम किए हुए था अचानक आतंकवादी बना दिया गया। हद तो यह है कि तीस हजारी कोर्ट के अंदर कनैह्या कुमार के साथ होने वाली दुर्व्यवहार के बाद भी ज़ी टीवी के संवाददाता ने बड़ी ढिटाई के साथ उमर खालिद के पिता डॉ। सैयद कासिम रसूल इलियास से सवाल कर डाला कि वह अदालत में उपस्थित क्यों नहीं होता। अगर इस संवाददाता के कैमरामैन की अदालत में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद दो बार पीटाई हो जाए तो क्या वह खुद अदालत में पहुंच कर अपने आप को बलि का बकरा बनाएगा? इस से आगे बढ़कर एक और मूर्खतापूर्ण प्रशन किया गया कि क्या वे अपने बेटे की हरकतों के लिए माफी मांगेंगे? यह मांग तो कोई अदालत किसी अपराधी से नहीं कर सकती कुजा कि किसी ऐसे आरोपी के पिताश्री से यह मांग की जाय कि जिस पर ऊटपटांग आरोप लगाए जा रहे हैं। नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की मगर माफी नहीं मांगी। गोपाल गोडसे अपने हत्यारे भाई को उचित ठहराते हैं और गोडसे भक्त उस का मंदिर निर्माण करना चाहते हैं लेकिन वे सभी देश भक्त हैं और उमर खालिद का अफजल गुरु का नारा लगा देना देशद्रोह है? न्याय का ऐसा तराजू तो आज तक किसी ने नहीं देखा।
जेएनयू में जो मूर्खता भाजपा से हुई है उसका दुषपरिणाम तो उसे आगामी चुनाव में निश्चित रूप से भुगतना होगा मगर उस की अग्रिम किस्त अभी से उसे मिलने लगी हैं। जेएनयू के अंदर जब कनैह्या कुमार की गिरफ्तारी के विरोध में मानव श्रृंखला बनाई गई तो वे छात्र भी कंधे से कंधा मिला कर खड़े थे जो वामपंथी वीचारधारा का सर्मथन नहीं करते। वे सभी भगवा आतंक के खिलाफ एकजुट हो गए थे। हवा के बदलाव का दूसरा प्रभाव सीधे एबीवीपी पर पड़ा जब उसके तीन बड़े नेताओं ने इस्तीफा दे दिया उनमें जेएनयू इकाई का उपाध्यक्ष भी शामिल था। भाजपा भी इस आंच से सुरक्षित नहीं रह सकी इसके आईटी सेल के प्रमुख ने भी यह कहकर त्यागपत्र दे दिया कि इस परिस्थितियों में दम घुटने लगा है। ढिटाई के साथ इस अभियान में जुटे ज़ी टीवी के एक ईमानदार पत्रकार विश्व दीपक ने भी इस्तीफा देकर यह साबित कर दिया कि अब इस कागज की नाव के दिन लद चुके हैं और उस का डूबना सुनिश्चित है।
मुसलमानों के साथ आरएसएस और भाजपा का पिंगें बढ़ाना इस भावना का प्रमाण है कि उनके लिए मुसलिम समुदाय की अनदेखी करके देश पर राज करना असंभव है। ऐसे में अगर वह अफजल गुरु की फांसी का सही उपयोग करते तो बड़ा राजनीतिक लाभ उठा सकते थे। इस मामले में महाअत्याचार तो कांग्रेस पार्टी ने किया था। अदालत के फैसले ठोस सबूत के आधार पर न्याय की आवश्यकता को पूरा करने के लिए किए जाते हैं लेकिन अफजल गुरु को बिना ठोस सबूत के तथाकथित राष्ट्रीय भावना को संतुष्ट करने के लिए फांसी दी गई। उस मौके पर कांग्रेस पार्टी ने खुद को भाजपा से बड़ा देश भक्त साबित करने का प्रयत्न किया था। चुनाव में यह निष्पाप खून रंग लाया कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी और वह अपमानित होकर सत्ता से बेदखल कर दी गई।
 भाजपा अगर कांग्रेस की हार से सबक सीख कर मुसलमानों को करीब करने के लिए कुछ बिकाऊ  विद्वानों की बैसाखी बनाने के बजाय अफजल गुरु के मामले में कांग्रेस को बेनकाब करती तो संभवत: कुछ मुसलमान उस झांसे में आ जाते। अगर अफजल गुरु की हड्डियां कब्र से निकाल कर एक ताबूत में उस के परिवार को सौंप दी जातीं और उनका घाटी में अंतिम संस्कार कर दिया जाता तो कश्मीर में संघ परिवार से घ्रणा का वातावर्ण किसी क़दर ठीक होता। लेकिन भाजपा ने अफजल गुरु के खिलाफ माहौल बना कर कांग्रेस का अपराध अपने सिर बांध लिया और अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली अब हाल यह है कि भाजपा कांग्रेस के किए की सजा भुगतने की तैयारी में व्यस्त हो गई है और अपने लिये फांसी का फंदा तय्यार कर रही है। एक तरफ पंजाब में चुनावी लाभ लेने के लिए बेअंत सिंह के हत्यारे को बचाया जा रहा है। आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार लोगों को रिहा किया जा रहा है तमिलनाडु में राजीव गांधी के हत्यारों को नजरअंदाज किया जा रहा है कम से कम यही व्यव्हार कनैह्या कुमार और उमर खालिद के साथ भी किया जाता लेकिन इसके लिए जिस सदभुध्दि की अवश्यक्ता है उस से संघ परिवार पूर्णत: वंचित है।
संघ परिवार की सारी समस्याओं की जड़ यह अदूरदर्शिता है। यह लोग हर हंगामे का राजनीतिक लाभ उठाना चाहते हैं और बिना सोचे समझे किसी भी पलिते को आग दिखा देते हैं। शुरुआत में उन्हें अनुमान नहीं हो पाता कि आगे चलकर इसके परिणाम क्या निकलेंगे? फिर जब परिणामस्वरूप दंगा फूट पड़ता है जैसा कि हरियाणा में विधायक सैनी के बयान से फूट पड़ा तो निर्णय शक्ति का आभाव उनके पैरों की जंजीर बन जाता है। जब हालात पूरी तरह बेकाबू हो जाते हैं तब जाकर उन्हें होश आता है मगर तब तक बहुत बड़ा घाटा हो चुका होता है। हरियाणा, आंध्र और गुजरात में यही हुआ। एफ़टीटीआई, हैदराबाद विश्वविद्यालय और जेएनयू में भी वही हुआ लेकिन इसके बावजूद ये लोग एक के बाद एक नित नई गलतियां दोहराते हुए अपने अपने अंत की ओर दौड रहे हैं। ऐसा लगता है कि ईश्वर की भी यही इच्छा है अन्यथा कोई सदबुद्धि रखने वाला व्यक्ति ऐसी मूर्खता कैसे कर सकता है? उमर खालिद सहित जेएनयू के पांच छात्र जिन पर देशद्रोह का आरोप है परिसर में लौट आए हैं, लेकिन संघ परिवार के सन्मार्ग पर आने की संभावना कम ही दिखाई देती है।

Sunday 21 February 2016

زعفرانی دہشت گردی:حیدر آباد یونیورسٹی سے جواہر لال یونیورسٹی تک


 جموں کشمیر کے پمپور مقام پر عسکریت پسندوں کے حملہ  میں ایک دہشت گرد کے علاوہ پانچ فوجی ہلاک ہوئے جن میں سے ایک پون کمار کا تعلق  نہ صرف ہریانہ بلکہ جے این یو سے بھی تھا ۔ وہی ہریانہ جس میں ریزرویشن کی مانگ کو لے کر چلنے والی تحریک  نے ابھی تک ۱۲ لوگوں کی جان لے لی ہے۔ پون کمار جے این یو کا طالبعلم تھا جہاں کشمیر کے نام پر ایک مصنوعی زلزلہ برپا کردیا گیا اس طرح گویا آگ اور خون کا دریا دہلی سے لے کرہریانہ ہوتا ہوا  سرینگر پہنچ گیا ہے۔اس دوران جن نام نہاد شیردل زعفرانی  وکلاء نے جے این یو ایس یو کے صدر کنھیا کمار پر سپریم کورٹ کے احکامات  کے خلاف چھتیس ہزاری کورٹ کے احاطے میں  پولس سے ملی بھگت کرکے بزدلانہ حملہ کیا تھا وہ بھیگی بلی بن کر نہ جانے کس سرنگ میں دبک  گئے ہیں ۔   اسی کے ساتھ عمر خالد کو بدنام کرنے کی خاطر جعلی ویڈیو نشر کرنے والے ٹی وی چینلس کا منہ بھی  کالا ہوگیا ۔
اس سنگین صورتحال میں ساری قوم نے جب بڑی امید کےساتھ۵۶ انچ کی چھاتی والے وزیراعظم کی جانب دیکھا تو پتہ چلا  کہ وہ دہلی کا سنگھاسن چھوڑ کر مشرق کی دور دراز کی ریاستوں چھتیس گڑھ ، اڑیسہ،بنگال  کے دورے پر نکل کھڑے ہوئے ہیں  اور واپسی میں اپنے حلقۂ انتخاب وارانسی سے ہوتے ہوئے دہلی لوٹنے والے ہیں تاکہ ان کی آمد سے قبل سارا معاملہ اپنے آپ ٹھنڈا ہوجائے۔ اس دورے پر وہ کسانوں کو خطاب فرماکر اپنے خلاف بُنی جانے والی سازشوں کا رونا رورہے ہیں  اور اس سے ملک کے کمزور ہونے کی دہائی دے رہے ہیں حالانکہ ان دونوں میں کوئی باہمی تعلق نہیں ہے۔اسی کے ساتھ وہی پرانا گھسا پٹاجذباتی استحصال کا راگ کہ لوگوں کو ایک چائے والے کا وزیراعظم بننا کھل رہا ہے حالانکہ گزشتہ دوسالوں میں انہوں نے صدر اوبامہ کے علاوہ کسی کو چائے نہیں پلائی ۔ یہ وہی براک اوبامہ ہیں جنہوں نے حال میں پاکستان کو ایف ۱۶ طیارے عنایت فرما کر مودی جی کو  ناراض کردیا ۔ مودی جی کو چاہئے تھا کہ وہ چائے کے ساتھ کچھ نمک پارے بھی اوبامہ کے منہ میں ٹھونس دیتے تاکہ  اس نمک حرامی کاارتکاب نہ  ہوتا۔
 مودی جی نے اپنے طوفانی دورے کے دوران  ممتا بنرجی سے ملنے کے بعد کسی مٹھ میں وعظ و نصیحت بھی کی حالانکہ انہیں چاہئے تھا کہ چندی گڑھ جاکر  ہریانہ کے وزیراعلیٰ کھٹر سے ملاقات کرتے اور جاٹ مظاہرین  کو امن وشانتی کا اپدیش دیتے ۔ وارانسی میں بی ایچ یو کے اندرنمائشی بھاشن بازی کے بجائے  دہلی کے اندرجے این یو میں جاکرپولس کے مظالم کا شکار طلباء کے دکھ درد میں شریک ہوتے ۔انتظامیہ اور میڈیا کی سانٹھ گانٹھ سے ان کو دئیے جانے والے زخموں پر مرہم رکھتے یا کم ازکم دہلی کے چھتیس ہزاری کورٹ میں آکر اپنے بھکتوں کو دن دہاڑے قانون اور دستور کی دھجیاں اڑانے سے منع کرتے ۔ کشمیر کے اندر محبوبہ مفتی کے ساتھ مل حکومت سازی کی جوڑ توڑ کرنےکے بجائے وہاں کی عوام کا دل جیتنے کی کوشش کرتے تاکہ  دائمی امن قائم ہوسکے لیکن وزیراعظم کی نہ یہ خواہش ہے اور نہ ان میں ایسا کرنے کی جرأت ہے۔ ان کا اپناسنگھ پریوار اور ان کی اقتدار پسندی انہیں  کسی صورت میں بھی  اس کی اجازت نہیں دے گا ۔
مودی جی کی انہیں اقتدار سے بے دخل کرنے کی سازش کو اگر سنجیدگی سے لیا جائے تو شک کی سوئی ان کے اپنے ہندوتوا پریوار ہی کی جانب مڑجاتی ہے جو دانستہ اور نادانستہ طور پر آئے دن ان کیلئے ایک نئی قبر کھود کر تیار کردیتا ہے۔ پہلے تو ادیتہ ناتھ اور ساکشی مہاراج جیسے لوگوں نے لوجہاد اور گھرواپسی کے نام پر آتنک پھیلایا  اور ساری دنیا میں ہندوستان کو بدنام کیا ۔ اس کے بعد گئو ہتیا اور عدم رواداری کا بے مثال مظاہرہ کرکے حکومت کی جڑوں کو بالکل کھوکھلا کردیا گیا ۔ ان ہنگامہ آرائیوں  پر حکومت ابھی قابو بھی نہیں پاسکی تھی ریزویشن کے لئے زبردست مظاہروں نے سر ابھارا۔  اس کے نتیجے میں گجرات ، آندھرا پردیش اور ہریانہ میں تشدد کی آگ بھڑکی اتفاق سے ان تینوں صوبوں میں بی جے پی یا اس کی حلیف ٹی ڈی پی کی حکومت ہے ۔ لیکن اس  فتنہ سامانی کے بازارمیں  پر اکھل بھارتیہ ودیارتھی پریشد کے غنڈوں نے بازی  مارلی ۔ان لوگوں نے پہلے تو حیدرآباد یونیورسٹی اور پھر جے این یو کو اپنی دہشت گردی کا نشانہ بنایا ۔
جے این یو کے معاملے میں تو زعفرانی سیاست کی بےمثال  مٹی پلید ہوئی ہے ۔ اے بی وی پی والوں نے ایک ایسے بے ضرر احتجاج کا سیاسی فایدہ اٹھانے کی کوشش کی جو گزشتہ تین سالوں سے ہورہا ہے اور ملک میں اس کی کسی کو خبر تک نہیں ہوئی۔ افضل گرو کی پھانسی کے فیصلے کے خلاف مظاہرےکواس سال بھی جازت مل گئی تھی مگر آخری وقت میں اسے اے بی وی پی کے دباو  کے تحت نئے وائس چانسلر  نےمنسوخ  کردیا۔ اگریہ  نہ کیا جاتا تو وہ غیر اہم واقعہ اپنے آپ دب جاتا لیکن زعفرانی  ابن الوقتوں نے اس کا سیاسی فائدہ اٹھانے کی کوشش کی اور خود اپنے جال میں پھنس گئے ۔ اب تو حال یہ ہے کہ سابق سالیسیٹر جنرل سولی سوراب جی نے برملا اعتراف کرلیا ہے کہ افضل گرو کی پھانسی کے خلاف احتجاج کرنا کوئی جرم نہیں ہے ہاں اس کا بدلہ لینے کی دھمکی دینا  ہوسکتا ہے۔ اس طرح گویا ان  تمام لوگوں کیلئے جو افضل گرو کی پھانسی کے خلاف مظاہرے کرنا چاہتے ہیں احتجاج کا دورازہ کھل گیا۔ آئندہ سال یقیناً ایسے کئی مظاہرے ہوں گے۔
اکھل بھارتیہ ودیارتھی پریشد کےناتجربہ کار رہنماوں نے جو غلطی کی سو کی لیکن مرکزی حکومت نے جب ناعاقبت اندیشی کا مظاہرہ  کرتے ہوئے  دہلی پولس کے بیجا استعمال کیا تو گویا کریلا نیم چڑھا ہوگیا۔  ان  احمقوں  کو چاہئے تھا کہ وہ یونیورسٹی کے وائس چانسلر سے رپورٹ طلب کرکے معاملے کو رفع دفع کردیتے لیکن نےانہوں نے اس بے ضرر مظاہرے سے صرفِ نظر کرنے کے بجائے اسے قومی مسئلہ بنا دیا  ۔ وزیر داخلہ راجناتھ سنگھ نے اس کے ڈانڈے آئی ایس آئی اور حافظ سعید تک سے جوڑ دئیے اور تو اور جے این یو اسٹوڈنٹس یونین کے صدر کنھیا کمار کو گرفتار کرلیا ۔ کنھیا کا قصور تو صرف یہ تھا جب اسے اجازت کی منسوخی کی اطلاع ملی تو وہ مودی جی کی مانند راہِ فرار اختیار کرنے کے بجائے مظاہرہ گاہ پر پہنچ گیا ۔اس نے وہاں تقریر بھی کی جو مظاہرین کا غم وغصہ کم کرنے کیلئے ضروری تھی  لیکن اس میں کشمیر یا افضل گرو کی بابت کوئی ایسی  بات نہیں کی جس کا ہندتوا نواز فائدہ اٹھا سکیں  ۔
اس کے باوجوداے بی وی پی والے کب ماننے والے تھے ان لوگوں نے کنھیا کمار کی ویڈیو کے پیچھے کشمیر میں ہونے والے ایک مظاہرے کی آواز لگاکر اسے اپنے زرخرید میڈیا کے ذریعہ نشر کرنا شروع کردیا ۔ اس طرح گویا کنھیا کمار کو ملک کا غدار بنا کر پیش کیا گیا ۔ بہت جلد وہ جھوٹ کھل گیا اور جو چینل اسے جعلی ویڈیو کو نشر کررہے تھے ان کے مسابقین نے دودھ کا دودھ اور پانی کا پانی کردیا۔ اس کے بعدپولس اور زعفرانی غنڈوں کی ملی بھگت سے  ظلم وتشدد کا ننگا ناچ  شروع ہوا ۔ جو لوگ یہ کہہ رہے تھے کہ افضل گرو کی پھانسی کی مخالفت کرنا عدالتی فیصلے کی توہین ہے ان لوگوں نے عدالت کے احاطے میں دستور اورقانون کو اپنے قدموں تلے روندا ۔پولس نے کنھیا کمار کو لاکر زعفرانی وکلاء کے حوالے کردیا اور وہ اس پر ٹوٹ پڑے ۔ اس غیر معمولی واقعہ کا سپریم کورٹ نے نوٹس لیا اور کہا کہ اگلے دن جب کنھیا کمار کی  دوبارہ پیشی ہو تو عدالت کو محفوظ کیا جائے اور اپنے نگراں روانہ کئے ۔
دوسرے دن پھر وہی کھیل دوہرایا گیا ۔ عدالت کے تمام دروازوں پر غنڈوں نے قبضہ کرلیا ۔ صحافیوں تک کو زدوکوب کیا گیا ۔ ان کے کیمرے چھین لئے گئے اور نعرہ لگایا گیا کہ ’’فون بھی توڑیں گے اور بون(ہڈی) بھی توڑیں گے‘‘۔ کنھیاکمار پر دوسرے دن پھر حملہ ہوا ۔ سپریم کورٹ کی ٹیم کسی طرح اپنی جان بچا کر لوٹی مگر اس کی رپورٹ کو دبا دیا گیا اس کے باوجود آر کے دھون جیسے باضمیر وکیل نے این ڈی ٹی وی پر حکومت کے چہرے سے نقاب نوچ کر پھینک دی اور سرکار کوہ و صلوٰتیں سنائی ہیں اس کی مثال نہیں ملتی۔  اس کے باوجود کنھیاکمار کو ضمانت نہیں ملی بلکہ اس کو افضل گرو کے کمرے میں قید کردیا گیا ۔ اس کے برعکس کنھیاکمار پر حملہ کرنے والے بی جے پی کے رکن اسمبلی او پی شرما کو ضمانت مل گئی۔ جن وکلاء نے کنھیاکمار پر حملہ کیا تھا ان کی ویڈیو ذرائع ابلاغ میں نشر ہوتی رہی ۔ ان کی عوامی پذیرائی بھی ہوتی رہی لیکن دہلی پولس ان کو شناخت نہ کرسکی اور چند نامعلوم افراد کے خلاف شکایت درج کی گئی ۔  دارالخلافہ دہلی کے اندرقانون کی ایسی دھجّیاں   تو شاید ایمرجنسی کے دوران بھی نہیں اڑائی گئی ہوں گی۔
اس مرحلے میں سنگھ پریوار کو اپنی غلطی کا جو احساس ہوا وہ بھی ناقص تھا۔ اسے لگا کہ کنھیا کمار ہندو ہے اور اس کی گرفتاری سے ممکن ہے ہندو رائے عامہ ہمارے خلاف ہوجائے اس لئے اس نے جے این یو معاملے کو فرقہ وارانہ رنگ دینے کا فیصلہ کیا اور پہلے پروفیسر ایس اے آر گیلانی پر ہاتھ ڈالاگیا۔ گیلانی صاحب کو افضل گرو کے مددگار کے طور پر بھی پہلے گرفتار کیا گیا تھا لیکن عدالت عالیہ نے انہیں رہا کردیا تھا ۔ اس موقع پر بھی کمال منافقت کا مظاہرہ ہوا۔ گیلانی صاحب کے خلاف ایک ویڈیو ٹیپ عدالت میں پیش کی گئی لیکن اسٹیج پر ان کے ساتھ بیٹھنے والے غیر مسلمین کی گرفتاری تودرکنار انہیں  پہچاننے سے بھی پولس نے انکار کردیا اور مزید دو نامعلوم افراد کے خلاف مقدمہ درج کرلیا گیا ۔
پروفیسر گیلانی کو پھنسانا آسان نہیں ہے اس لئے عمر خالد کا ہواّ کھڑا کیا گیا ۔ وہ عمر خالد جو ٹیلی  ویژن چینلس پر انٹرویو دے رہا تھا اور تن تنہا پوری زعفرانی ٹیم کا ناطقہ بند کئے ہوئےتھا اچانک دہشت گرد بنا دیا گیا ۔ حد تو یہ ہے کہ  تیس ہزاری کورٹ کے اندر کنھیا کمار کے ساتھ ہونے والی بدسلوکی کے بعد بھی زی ٹی وی کے نامہ نگار نے بڑی بے حیائی کے ساتھ عمر خالد کے والد ڈاکٹر سید قاسم رسول الیاس سے سوال کرڈالا کہ وہ عدالت میں حاضر کیوں نہیں ہوتا۔ اگر اس نامہ نگار کے کیمرہ مین کو عدالت میں سپریم کورٹ کی ہدایت کے باوجود دو مرتبہ مارا پیٹا جائے تو کیا وہ خود عدالت میں پہنچ کر اپنے آپ کو بلی کا بکرہ بنائے گا؟ اس سے آگے بڑھ کر ایک اور احمقانہ سوال یہ کیا کہ کیا وہ اپنے بیٹے کی حرکات کیلئے معافی مانگیں گے ؟ یہ مطالبہ تو کوئی عدالت کسی مجرم سے بھی نہیں کرسکتی  کجا کہ کسی ایسے ملزم  کے والدسے اس کا مطالبہ کیا جائے کہ جس پر اوٹ پٹانگ الزامات لگائے جارہے ہیں۔ ناتھو رام گوڈسےنے مہاتما گاندھی کے قتل کی معافی نہیں مانگی ۔ گوپال گوڈسے اپنے قاتل بھائی کو حق بجانب ٹھہراتے ہیں اور گوڈسے بھکت اس کامندر تعمیر کرنا چاہتے ہیں لیکن وہ سب دیش بھکتی ہے اور عمر خالد کا افضل گرو کیلئے نعرہ لگا دینا دیش دروہ ہے ؟ انصاف کا ایسا ترازو تو آج تک کسی نے نہیں دیکھا۔    
جے این یو میں جو حماقت بی جے پی سے سرزد ہوئی اس کا نتیجہ تو اسے آئندہ انتخاب میں یقیناً بھگتنا پڑے گا مگر اس پیشگی قسط ابھی سے اس کو ملنے لگی ہیں ۔ جے این یو کے اندر جب کنھیا کمار کی گرفتاری کے خلاف احتجاج ہوا اور انسانی زنجیر بنائی گئی تو وہ طلباء بھی ایک دوسرے کے شانہ بشانہ کھڑے تھے جو سرخ نظرئیے کے خلاف ہیں ۔ وہ تمام لوگ دراصل زعفرانی غنڈہ گردی کے خلاف متحد ہوگئے تھے ۔ ہوا کے رخ کی اس تبدیلی کا دوسرا اثر براہ راست اے بی وی پی پر پڑا جب اس کے تین بڑےعہدےداران  نے استعفیٰ دے دیا ان میں جے این یو یونٹ کا نائب صدر بھی شامل تھا۔ بی جے پی بھی ان شعلوں سے محفوظ نہ رہ سکی اس کے آئی ٹی سیل کے سربراہ نے بھی یہ کہہ کر استعفیٰ دے دیا کہ ان حالات میں زعفرانی ٹولے میں دم گھٹنے لگا ہے۔ بڑی بے حیائی کے ساتھ  اس مہم میں جٹے  ہوئے ذرائع ابلاغ کے سرخیل زی ٹی وی کے ایک باضمیر صحافی  سدھارتھ ورداراجن نے بھی علی الاعلان استعفیٰ دے کر یہ ثابت کردیا کہ اب اس کاغذ کی ناو کے دن لد چکے ہیں اور اس کا غرقاب ہونا یقینی ہے۔    
مسلمانوں کے ساتھ آر ایس ایس اور بی جے پی کا پینگیں بڑھانے کی کوشش کرنا اس احساس  کا ثبوت ہے کہ ان کیلئے ملت کونظر انداز کرکے ملک پر حکومت کرنا ناممکن ہے۔ ایسے میں اگر وہ افضل گرو  کی پھانسی کا صحیح استعمال کرتے تو بڑا سیاسی فائدہ اٹھا سکتے تھے۔ اس  معاملے میں ظلم عظیم کا ارتکاب کانگریس پارٹی نے کیا  تھا۔  عدالت کے فیصلے ٹھوس ثبوت کی بنیاد پر عدل کے تقاضوں کو پورا کرنے کیلئے کئے جاتے ہیں لیکن افضل گرو کو ناقص ثبوت کے باوجود نام نہاد قومی  ضمیر کو مطمئن کرنے کیلئے  تختۂ دار تک پہنچا دیا گیا ۔ اس موقع پر کانگریس پارٹی نے اپنے آپ کو  بی جے پی سے بڑادیش بھکت  ثابت کرنے کیلئے کمال  بے ضمیری کامظاہرہ کیا تھا۔قومی انتخاب میں خون ناحق رنگ لایا کانگریس کو منہ کی کھانی پڑی اوروہ  ذلیل و رسوا  ہوکر اقتدار سے بے دخل ہوئی ۔
 بی جے پی اگر کانگریس کی عبرتناک شکست سے سبق سیکھ کر مسلمانوں کو قریب کرنے کیلئے چند زرخرید علماء کو بیساکھی بنانے کے بجائے افضل گرو کےمعاملے میں کانگریس کو بے نقاب کرتی تو ممکن کچھ مسلمان اس کے جھانسے میں آ جاتے۔ اگر افضل گرو کی ہڈیاں قبر سے نکال کرایک تابوت میں افضل گرو کے اہل خانہ کے سونپ دی جاتیں اور ان کی وادی میں تدفین ہوجاتی تو کشمیرمیں  سنگھ پریوار  کی زہر افشانی کا اثر کسی قدر زائل ہوجاتا ۔ لیکن بی جے پی نے افضل گرو کے خلاف ماحول بنا کر کانگریس کا جرم اپنے سر باندھ لیا اور  اپنے پیروں پر کلہاڑی مارلی اب حال یہ کہ  بی جے پی کانگریس کے کئے کی سزا بھگتنے کی تیاری میں مصروف ہوگئی ہے اور  اپنے لئےسیاسی پھانسی کا پھنداتیار کررہی ہےحالانکہ پنجاب میں انتخابی فائدہ اٹھانے کیلئے بینت سنگھ کے قاتل کو بچایا جارہا ہے ۔ دہشت گردی کے الزام میں گرفتار لوگوں کو رہا کیا جارہا ہے تمل ناڈو میں راجہو گاندھی کے قاتلوں کو نظر انداز کیا جارہا ہے کم از کم    یہ رویہ کنھیا کمار اور عمر خالد کے ساتھ بھی اختیار کیا جانا چاہئے لیکن اس کے لئے جس فہم و فراست کی ضرورت ہے اس سے سنگھ پریوار محروم ہے ۔
سنگھ پریوار کے سارے مسائل کی جڑ اس کی ناعاقبت اندیش  اورکم ظرف قیادت ہے ۔یہ لوگ ہر ہنگامے کا سیاسی فائدہ اٹھانا چاہتے ہیں  اور بغیر  سوچے سمجھےکسی بھی پلیتہ  تو شعلہ  دکھا دیتے ہیں ۔ ابتداء میں ان کو اندازہ نہیں ہوپاتا کہ آگے چل کر اس کے نتائج کیا نکلیں گے؟ پھر جب ان حماقت خیز اقدامات کے نتیجے میں فساد پھوٹ پڑتا ہے جیسا کہ ہریانہ میں رکن اسمبلی سینی کے بیان سے پھوٹ پڑا تو قوت فیصلہ کی کمی ان کے پیروں کی زنجیر بن جاتی ہے۔ جب حالات پوری طرح بے  قابو  ہو جاتے ہیں تب جاکر انہیں ہوش آتا ہے اور اس وقت تک بہت بڑا خسارہ ہوچکا ہوتا ہے۔ جو کچھ ہریانہ، آندھرا اور گجرات  میں ہوا وہی  ایف ٹی ٹی آئی ، حیدر آباد یونیورسٹی اور جے این یو میں بھی ہوا لیکن اس کے باوجود یہ لوگ ایک کے بعد ایک نت نئی  غلطیوں کو دوہراتے ہوئے اپنے انجام بد کی کی جانب رواں دواں ہیں ۔ایسا  لگتا ہے کہ مشیت کو بھی یہی منظور ہے ورنہ کوئی صاحب عقل ایسی حماقت کیسے کرسکتا ہے؟جے این یو پانچ طلباءبشمول عمر خالدجن پر بغاوت کا الزام ہے کیمپس میں لوٹ آئے ہیں مگر سنگھ پریوار کے راہِ راست پر آنے کے آثار نظر نہیں آتے۔