Tuesday 7 June 2016

होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे

नियती के आगे किसी की नहीं चलती। इस तथ्य का प्रदर्शन राजनीति की दुनिया में बहुत आम है क्योंकि राजनीति खेल ही अपने आप को अधिक से अधिक सशक्त और दूसरों को शक्तिहीन करने का है। इसके बावजूद तथाकथित सत्ताधारियों की नज़रों के सामने बहुत कुछ ऐसा होता रहता है जो वह नहीं चाहते बल्कि खुद उन्हें भी ऐसे फैसले करने पड़ते हैं जो उन को स्वीकार्य नहीं होते। उदाहर्ण के तौर पर एक ऐसे मौके पर जबकि सरकार एक हजार करोड रुपयों के खर्च से अपना व्दिवर्शीय समारोह मनाने जा रही थी गुजरात के दंगों पर राना अय्यूब की किताब प्रकाशित हो कर मीडिया पर छा गई।
यह पुस्तक पिछले 14 सालों में किसी भी समय प्रकाशित हो सकती थी। होना तो यह चाहिए था कि यह किताब पिछले चुनाव से पहले छपती और नई सरकार इस पर प्रतिबंध लगा देती लेकिन इसके विपरीत हुआ। क्यों कि किस्मत के लिखे को कौन टाल सकता है? नियती पर किसी का अधिकार कब है? गुजरात फ़ाईल्स की सराहना सरकार की लोकप्रियता को मुंह चिढ़ा रही है सत्ता उस के आगे बेबस है। राना अयूब की प्रशंसा और मोदी व शाह पर लानत मलामत हो रही है। क्या पुराने घावों के हरा होने का यही उपयुक्त समय था। वास्तविकता तो यह है कि समय किसी का नहीं होता घड़ी के कांटे किसी के काबू में नहीं आते न राना के और न मोदी के।
राना अय्यूब और रविश कुमार जैसे लोग तो भगवा राजनीति के पुराने दुश्मन हैं लेकिन कौन सोच सकता है कि गोवा रास्वसंघ का प्रमुख सुभाष वेलंगर भी उन सरकारी समारोहों के बहिष्कार की घोषणा कर सकता है जिसमें भाजपा के नेताओं और गोवा के रहने वाले रक्षा मंत्री परिकर उपस्थित हों ? उन्हें शिकायत है कि सरकार चुनाव से पहले किए गए वादों का सम्मान करने में नाकाम रही है यह शिकायत किसको नहीं है। सुभाष जी का कहना है कि सरकार अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को सहायता देकर क्षेत्रीय भाषा की हत्या कर रही है। चूंकि हर मंत्री अपने बच्चों को आरएसएस के सरस्वती विद्यालय के बजाय अंग्रेजी स्कूल में पढाना चाहता इस लिए धर्मसंकट में है कि आरएसएस की माने या अंग्रेजी माध्यम स्कूलों का संरक्षण करे?
तथा कथित राष्ट्रभक्ती का ठेकेदार संघ परिवार दोहरी नागरिकता की समस्या निपटाने वाला विभाग के स्थापना को लेकर गृह राज्यमंत्री किरण रजिजू से भी नाराज है। गोवा 450 वर्षों तक पुर्तगालियों का उपनिवेश रहा है। 1961 में जब उस का भारत में विलय हुवा तो राज्य के सारे निवासियों को भारतीय नागरिकता मिल गई लेकिन जाते हुए पुर्तगालियों ने घोषणा कर दी कि उनके कार्यकाल में पैदा होने वाले सारे लोग पुर्तगाली नागरिकता के आधिकारी हैं और वे अपना जन्म प्रमाण पत्र प्रस्तुत करके पुर्तगाल का पासपोर्ट प्राप्त कर सकते हैं। आगे चलकर पुर्तगाल सरकार ने इस सुविधा को दो पीढियों तक विस्तरित कर दिया। भगवा वादियों के निकट यह भारत माता का अपमान है लेकिन खुद उनके मंत्री किरण रजिजू इस विचार से सहमत नहीं हैं।
चीन की सीमा पर स्थित अरुणाचल प्रदेश के रहने वाले किरण रजिजू क्या जानें कि राष्ट्र भक्ति क्या होती है मगर गोवा के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत परसीकर का क्या किया जाए जिन्होंने जनवरी में पुर्तगाल के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्टा के माडगाव समबंध के कारण विधानसभा में उनका अभिनंदन किया और जल्द ही गोवा बुलाकर उनका सम्मान करने की घोषणा कर दी। मुख्यमंत्री के घोषणा की धुलाई  करते हुए प्रांतीय मंत्री रामकृष्ण धोलकर ने कहा पुर्तगाली प्रधानमंत्री को अतीत के अत्याचार की माफी मांगनी चाहिए। संघ भी भाजपा के बजाय एमजीपी के समर्थन में खड़ा हो गया और कहा हम गोवा की धरती पर एंटोनियो के सम्मान का विरोध करते हैं। पुर्तगालियों के अत्याचार अक्षम्य हैं इसलिए अगर वह आएं तो उन्हें माफी मांगनी होगी। अब इन मूर्खों को कौन समझाए कि अक्षम्य अपराध की माफी महीं सजा होती है।
संघ परिवार के वंशज भाजपा की खोखली देश भक्ति का प्रमाण अप्रैल में सारी दुनिया के सामने आ गया जब कोहिनूर हीरे की वापसी से संबंध में मोदी सरकार के सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सांस्कृतिक मंत्रालय के अनुसार वह हीरा ब्रिटेन को उपहार में दिया गया था, उसे चुराया नहीं गया। अदालत का कहना है कि सरकार अगर अपने रुख पर कायम रहती है तो भविष्य में कोहिनूर की वापसी का रास्ता बंद हो जाएगा। इस प्रकार राष्ट्र भक्तों की सरकार ने स्पष्ट शब्दों में यह स्वीकार कर लिया कि कोहिनूर को वापस लाने में उसकी रुचि नहीं है। इस रवैये से संघ परिवार बल्कि हिन्दुत्वावादियों की ब्रिटिश गुलामी का संकेत भी मिलता है। अटल जी पर मुखबिरी का आरोप लग चुका है। जस्टिस काटजू ने सावरकर को खुलेआम अंग्रेजों के दलाल बताया है। अब जो सरकार सावर्कर का सम्मान कर रही हो उससे यह अपेक्षा कैसे की जाए कि वह ब्रिटिश सरकार से आँखों में आँखें डालकर बात करेगी।
सरकारी रुख के विपरीत एक विचारधारा यह है कि कोहिनूर हीरा ईसट इंडिया कंपनी ने लाहौर में रंजीत सिंह के पोते दिलीप सिंह से छीनकर ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को उपहार में दिया था। ईस्ट इंडिया कंपनी राज्य नहीं बल्कि एक व्यापारिक कंपनी थी और उसे ऐसा करने का कानूनी अधिकार नहीं था। कोहिनूर हीरा एक राज्य ने दूसरे राज्य को दिया जाने वाला तोहफा था ही नहीं इसलिए रानी का उस पर कानूनी अधिकार नहीं है। यही कारण है कि भारत और पाक में कई लोग इसे राष्ट्रीय विरासत का हिस्सा मानते हैं और वापस लाना चाहते हैं। यहां तक ​​कि कुछ भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसदों भी यह मांग कर चुके हैं कि कोहिनूर भारत को लौटा दिया जाए क्योंकि उनके अनुसार ब्रिटिश सरकार ने इसे अवैध रूप से प्राप्त किया था। बलिदान जाइए देशभक्त मोदी सरकार पर जो सुभाष चंद्र बोस पर तो खूब राजनीति करती है लेकिन राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक कोहिनूर हीरे को वापस लाने का साहस करने में अक्षम है।
भाजपा वाले उठते बैठते भारत की जनता को यह याद दिलाते हैं कि सोनिया गांधी इटली की रहने वाली हैं इस लिए उनकी देश भक्ति विस्वशनीय नहीं है लेकिन इसी के साथ राष्ट्र भक्तों की सरकार ने केरल में अपने ही मछुआरों के इटलियन हत्यारों की रिहाई में मदद करके उन्हें स्वदेश भेज दिया। एक ओर पाकिस्तान से मौलाना अजहर मसूद को वापस लाने का दावा और दूसरी तरफ खुद अपनी कैद से हत्यारों को रिहा करने करतूत दोगले संघ परिवार की विशेषता है। वैसे तो इन हत्यारों को अदालत ने रिहा किया है लेकिन सच यह है कि सरकारी वकील ने गंभीर कोशिश नहीं की और प्रज्ञा ठाकुर या वंजारा की तरह मामले को कमजोर करके उन्हें रिहा करवा दिया।
इस दौरान हथियारों के ब्रिटिश दलाल क्रिस्चियन माइकल ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में आरोप लगाया है कि आगस्टा वेस्टलैंड हेलीकाप्टर भ्रष्टाचार के मामले में मोदी सरकार ने सोनिया के खिलाफ सबूत के बदले हत्यारों को रिहा करने की सौदेबाजी की। हेलीकाप्टर भ्रष्टाचार में सोनिया तो नहीं भाजपा फंस गई। निविदा में बदलाव का फैसला कांग्रेस ने नहीं अटल जी के विशेष सलाहकार ब्रजेश मिश्रा ने किया था। युपीए ने अगस्ता को ब्लैकलिस्ट किया मगर भाजपा ने उस पर से प्रतिबंध उठा दिया। कांग्रेस ने उसके खिलाफ जांच शुरू कि जिसे भाजपा ने ठंडे बस्ते में डाल दी। जब कोतवाल को डांटने वाला उल्टा चोर चारों ओर से घिर गया तो इतालवी हत्यारों को रिहा करना पड़ा वरना साजिश के खुल जाने की धमकी मिल रही थी। इस तरह न खुदा मिला न विसाले सनम मजबूरी में देशवासियों के जिन हत्यारों को कांग्रेस ने गिरफ्तार किया था उन्हें देश भक्तों की सरकार ने मुक्त कर दिया।
मोदी जी ने जब स्मृति ईरानी को मानव संसाधन मंत्री बनाया तो लोगों की समझ में नहीं आया लेकिन इन दो सालों में समृति ने साबित कर दिया है कि प्रधान मंत्री के बाद जनता के लिए सबसे अधिक मनोरंजन वही प्रदान करती हैं। वह जब भी मुंह खोलती हैं नए गुल खिलाती हैं। अभी हाल में उन्होंने कह दिया कि राहुल गांधी का कांग्रेस की कमान संभालना भाजपा के लिए अच्छे दिन ले आएगा। इस एक वाक्य में कई अर्थ हैं एक तो यह कि अभी तक भाजपा के अच्छे दिन नहीं आए अब जिनके अपने अच्छे दिन नहीं आए वह दूसरों के अच्छे दिन क्या लाएंगे? दूसरा अर्थ यह कि भाजपा के अच्छे दिन सरकार के अच्छे प्रदर्शन के कारण नहीं बल्कि राहुल की अक्षमता के कारण आएंगे। सच यही है कि भाजपा को सत्ता मोदी जी कौशल्य की वजह से नहीं बल्कि कांग्रेस के प्रति सार्वजनिक असंतोष के कारण मिली है लेकिन समृती को याद रखना चाहिए कि राहुल लाख अयोग्य सही लेकिन अमेठी में उन्हों ने स्मृति ईरानी को पराजित किया था इसलिए जनता की नजरों में वे तो राहुल से भी गई गुज़री है। राहुल के कारण भाजपा के अच्छे दिन आएंगे या रहेंगे यह तो कोई नहीं कह सकता लेकिन अगर शाह जी ने समृती को उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी मनोनित कर दिया तो भाजपा के बुरे दिन जरूर आजाएंगे।
भाजपा ठीक ही कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाती है परंतु क्या यह मोदी जी का भाई-भतीजावाद नहीं है कि उन्होंने संघ के प्राचीन वफादारों को दरवाजा दिखा कर अपने चापलुसों को पार्टी के सभी महत्वपूर्ण पदों पर आसीन कर दिया। क्या भाजपा के पास तड़ीपार अमित शाह से बेहतर अध्यक्ष नहीं था। क्या मानव संसाधन मंत्री की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के लिए स्मृति ईरानी के अलावा कोई और नहीं मिला था। क्यों बरसों से बुद्धिजीवियों में काम करने वाला संघ परिवार वित्त मंत्री पद के लिए कोई अर्थशास्त्री नहीं दे सका जो एक वकील को नियुक्त करना पड़ा? और अब उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए नामित करने की खातिर गुजरात की करोड पती प्रीति महापात्र मिल गईं। इन के पास अपने पद का औचित्य मोदी की निकटता के अलावा कोई और नहीं है वरना उत्तर प्रदेश भाजपा के पास सदन में मनोनीत करने के लिए योग्य लोगों की कमी नहीं है।
सोनिया गांधी को गाली गलोच करने और मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलने का पुरस्कार सुब्रमण्यम स्वामी को राज्यसभा की सदस्यता के रूप में मिला। मंत्रालय की मोहमाया में गिरफ्तार स्वामी ने रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराज रामन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। वह उन्हें अयोग्य करार देकर वापस अमेरिका भेज देना चाहता है। इस मामले में अंततः मोदी जी ने खुद हस्तक्षेप करके सारी अटकलों को खारिज कर दिया। इसी के साथ यह खबर भी आई कि प्रधानमंत्री ने रामन को अगले तीन साल काम करने की पेशकश भी कर दी लेकिन रामन ने इस प्रस्ताव को ठुकरा कर स्वत अमेरिका निकल जाने का संकेत दे दिया। रामन का यह इनकार मोदी सरकार के मुंह पर तमाचा है। एक तरफ मोदी भक्त मंत्रालय के लिए तलवे चाट रहे हैं और दूसरी ओर एक स्वाभिमानी अधिकारी संकेत दे रहा है कि जिसके पास आत्मसम्मान हो वह इन उजड़ जाहिलों के साथ काम नहीं कर सकता। रघु राज रामन के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके संन्यास की अटकलों से डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की कीमत घटने लगी और कुछ ही घंटों में दशमलव 3 प्रतिशत कम हो गया।
राज्य सभा से बहुत जल्द 58 सदस्य सेवा मुक्त हो रहे हैं जिनमें से 6 मुसलमान हैं। यह 6 सज्जन विभिन्न राजनीतिक दलों से आते हैं यानी 2 कांग्रेस, 2 भाजपा तथा एक एक बसपा और जनता दल (यू) से। भाजपा के अलावा सारी पार्टियों को मुसलमान अपना शुभचिंतक समझते हैं लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि अब तक दुश्मन समझी जाने वाली भाजपा के अलावा एक भी पक्ष ने हिंदू सदस्यों की जगह मुसलमान तो दूर मुसलमानों की जगह मुसलमान भेजने का इरादा भी नहीं किया है। कांग्रेस के लंबी सूची में कोई मुसलमान नहीं दिखा जबकि राज्यसभा में उस का नेता गुलाम नबी आजाद है। मायावती इस बार मुसलमानों की जगह ब्राह्मणों को देकर उनका तुष्टिकरण करना चाहती हैं। जद (यू) को अपने पूर्व अध्यक्ष शरद यादव की चिंता सता रही है इसलिए वह गुलाम रसूल बलियावी सीट उनको देना चाहती है।
मुस्लिम यादव राजनीति के विशेषज्ञ लालू यादव वर्तमान में अपनी बेटी मीसा भारती और वकील राम जेठमलानी को राज्यसभा के लिए नामित करना चाहते हैं। समाजवादी पार्टी ने जो अगले साल मुसलमानों की मदद से चुनाव जीतना चाहती है इस अवसर पर मुसलमानों को भूली दिया है। दो सदस्यों को नामित करने का अवसर उसे भी है परंतु उस को भी कोई मुसलमान नहीं मिला। अब ले दे कि भाजपा बच जाती है जिसने अपने दोनों सदस्यों एमजे अकबर और मुख्तार अब्बास नकवी को फिर सदन के लिए नामित किया है। भाजपा ने यह फैसला मुसलमानों से सहानभूति में नहीं बल्कि मजबूरी में किया है। इसे नाम लिए नकवी जैसा मंत्री चाहिए और काम के लिए अकबर जैसा पत्रकार। इस तरह जब सारे तथाकथित शुभचिंतक मुसलमानों को भूल गए तो एक दुश्मन को प्रकृति ने मजबूर कर दिया।
इसी बीच एक अद्भुत और दिलचस्प खबर गुवाहाटी से आई जहां सरफराज हुसैन ने एसएससी बोर्ड परीक्षा के अंदर राज्य में पहला स्थान प्राप्त किया। यह वही राज्य है जहां हाल में पहली बार भाजपा को सत्ता मिली और पहली बार एक मुस्लिम छात्र ने 3 लाख 80 हजार छात्रों को हराकर पहला स्थान प्राप्त कर लिया। सरफराज की खास बात यह नहीं है कि वह पहले नंबर पर आया इससे पहले कई मुस्लिम छात्र यह सम्मान प्राप्त कर चुके हैं, लेकिन उनमें से शायद ही किसी ने आरएसएस प्रशासित स्कूल में शिक्षा प्राप्त की हो।
सौ भाग्य से जिस समय देश की सत्ता पर एक तानाशाह विराजमान है चार ऐसे आरोपी रिहा हो गए जिन्हें फांसी का हकदार समझ लिया गया था। निसार अहमद, अब्रे रहमत और डॉक्टर जलीस अंसारी को जब गिरफ्तार किया गया था केंद्र से लेकर राज्यों तक में कांग्रेस की सरकार थी। इसके बाद जनता दल की सरकार आई फिर मुसलमानों के प्रति सहानुभूति रखने वाले अटल जी को सत्ता मिली वे गए तो साधु संत माने जाने वाले मनमोहन आए लेकिन निर्दोष आरोपियों की रिहाई के लिए नियती ने मोदी का युग चुना। उस मोदी का कि जो चाहता है सारे मुसलमान सलाखों के पीछे पहुंच दिए जाएं लेकिन जिन्हें अल्लाह रखे उन्हें कौन चख्खे।